पंचशील – सिद्धान्ताः – Panchshil Shiddhant – UP Board Solution of Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका कक्षा 12 हिंदी अनुवाद

पंचशील – सिद्धान्ताः – Panchshil Shiddhant – UP Board Solution of Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका कक्षा 12 हिंदी अनुवाद

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प्रिय मित्रों! यहाँ पर आपको प्रत्येक पंक्ति का अलग अलग करके हिंदी अनुवाद दिया जा रहा है उम्मीद है आपको काफी सरलता महसूस होगी। 

पञ्चशील-सिद्धान्ताः

सन्दर्भ-प्रस्तुत गद्यखण्ड हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘संस्कृत भाग’ के ‘पञ्चशील-सिद्धान्ताः’ नामक पाठ से उद्धृत है।

पञ्चशीलमिति शिष्टाचारविषयकाः सिद्धान्ताः।
पंचशील शिष्टाचार-सम्बन्धी सिद्धान्त हैं।
महात्मा गौतमबुद्धः एतान् पञ्चापि सिद्धान्तान् पञ्चशीलमिति नाम्ना स्वशिष्यान् शास्ति स्म।
महात्मा गौतम बुद्ध ने इन पाँच सिद्धान्तों का पंचशील के नाम से अपने शिष्यों को उपदेश दिया था।
अत एवायं शब्दः अधुनापि तथैव स्वीकृतः।
इसलिए यह शब्द अब भी वैसा ही स्वीकृत है।
इमे सिद्धान्ताः क्रमेण एवं सन्ति- अहिंसा सत्यम् अस्तेयम्  अप्रमादः  ब्रह्मचर्यम् इति।।
ये सिद्धान्त क्रमशः इस प्रकार हैं- अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), अप्रमाद (प्रमाद न करना) तथा ब्रह्मचर्य।
बौद्धयुगे इमे सिद्धान्ताः वैयक्तिकजीवनस्य अभ्युत्थानाय प्रयुक्ता आसन्।
बौद्ध-युग में ये सिद्धान्त व्यक्तिगत जीवन की उन्नति के लिए प्रयुक्त थे,
परमद्य इमे सिद्धान्ताः राष्ट्राणां परस्परमैत्रीसहयोगकारणानि, विश्वबन्धुत्वस्य, विश्वशान्तेश्च साधनानि सन्ति।
किन्तु आजकल ये सिद्धान्त राष्ट्रों की पारस्परिक मैत्री एवं सहयोग के आधार (तथा) विश्व-बन्धुत्व और विश्व-शान्ति के साधन हैं।
राष्ट्रनायकस्य श्रीजवाहरलालनेहरूमहोदयस्य प्रधानमन्त्रित्वकाले चीनदेशेन सह भारतस्य मैत्री पञ्चशीलसिद्धान्तानधिकृत्यु एवाभवत्।
राष्ट्रनायक श्री जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमन्त्रित्व-काल में चीन के साथ भारत की मैत्री पंचशील सिद्धान्तों के आधार पर ही हुई थी,
यतो हि उभावपि देशौ बौद्धधमें निष्ठावन्तौ।
क्योंकि दोनों ही देश बौद्ध धर्म में आस्था रखते थे।
आधुनिके जगति पञ्चशीलसिद्धान्ताः नवीनं राजनैतिकं स्वरूपं गृहीतवन्तः।
आधुनिक विश्व में पंचशील सिद्धान्तों ने नया राजनीतिक स्वरूप ग्रहण किया है।
एवं च व्यवस्थिताः –
वे इस प्रकार व्यवस्थित (किये गये) हैं-
किमपि राष्ट्र कस्यचनान्यस्य राष्ट्रस्य आन्तरिकेषु विषयेषु कीदृशमपि व्याघातं न करिष्यति।।
कोई राष्ट्र किसी भी अन्य राष्ट्र के आन्तरिक मामलों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेगा।
प्रत्येकराष्ट्र परस्परं प्रभुसत्तां प्रादेशिकीमखण्डताञ्च सम्मानयिष्यति।
प्रत्येक राष्ट्र परस्पर प्रभुसत्ता और प्रादेशिक अखण्डता का सम्मान करेगा।
प्रत्येकराष्ट्र पुरस्परं समानतां व्यवहरिष्यति।।
प्रत्येक राष्ट्र परस्पर समानता का व्यवहार करेगा।
किमपि राष्ट्रमपरेण नाक्रंस्यते।
कोई भी राष्ट्र दूसरे (राष्ट्र) पर आक्रमण नहीं करेगा।
सर्वाण्यपि राष्ट्राणि मिथः स्वां स्वां प्रभुसत्तां शान्त्या रक्षिष्यन्ति।
सारे ही राष्ट्र परस्पर मिलकर अपनी-अपनी प्रभुसत्ता की शान्तिपूर्वक रक्षा करेंगे।
विश्वस्य यानि राष्ट्राणि शान्तिमिच्छन्ति, तानि इमान् नियमानङ्गीकृत्य परराष्ट्रस्सार्द्ध स्वमैत्रीभावं दृढ़ीकुर्वन्ति।
विश्व के जो राष्ट्र शान्ति चाहते हैं, वे इन नियमों को स्वीकार कर दूसरे राष्ट्र के साथ अपने मैत्रीभाव को दृढ़ करते हैं।

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