सुमित्रानंदन पंत की कविता चींटी | Sumitranandan Pant Poem Chiti -चींटी -Up Board Class 10 Hindi Kavya Chapter Cheeti (chinti)
सुमित्रानंदन पंत की कविता चींटी | Sumitranandan Pant Poem Chiti -चींटी -Up Board Class 10 Hindi Kavya Chapter Cheeti (chinti)- Up Board Solution of Class 10 Hindi Kavya chapter Cheeti ki vyakhya.
सुमित्रानंदन पन्त- चीटी
( 1 )
चींटी को देखा ………..जनपथ बुहारती
अथवा चींटी को…………….पिपीलिका पाँती |
अथवा चींटी को देखा …… .….अविरत !
सन्दर्भ प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य – पुस्तक हिन्दी काव्यखण्ड में संकलित’ चींटी ‘ शीर्षक से उद्धृत हैं जो प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित ‘ युगवाणी ‘ काव्य संग्रह से ली गयी हैं ।
प्रसंग– इसमें चींटी के गुणों का वर्णन है ।
व्याख्या -कवि चींटी के सतत प्रयत्न का वर्णन करते हुए कहता है कि क्या आपने कभी भी ध्यान से चींटी को देखा है । वह सीधी तथा बिखरी हुई पंक्ति है , जो काले डोरे के समान मालूम पड़ती है । वह हिल – डुलकर तथा अपने छोटे से पैरों को मिलाती हुई चलती है । वह उसकी पंक्ति है । क्या तुम उसको नहीं देखते कि वह कितना परिश्रम करती है ? वह एक – एक दाने या कण को इकट्ठा करती है । गायों को धूप में चराती है और अपने बच्चों की भी देखभाल करती है । अपने दुश्मन से जरा भी नहीं डरती है और उससे लड़ती है तथा अपनी सेना के दलों को सजाती है । समय पर वह अपने घर , आँगन तथा जाने के रास्ते को भी साफ कर देती है ।
काव्य – सौन्दर्य ( 1 ) रस -शान्त ( 2 ) गुण -प्रसाद ( 3 ) अनुप्रास -उपमा तथा पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार ।
(2)
चींटी है प्राणी सामाजिक……….कभी न टलती।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य – पुस्तक हिन्दी काव्यखण्ड में संकलित ‘ चींटी ‘ शीर्षक से उद्धृत हैं जो प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित ‘ युगवाणी ‘ काव्य संग्रह से ली गयी हैं ।
कवि ने इन पंक्तियों में चींटी के चारित्रिक गुणों का वर्णन किया है ।
व्याख्या – चींटी एक सामाजिक प्राणी है । चींटी का एक अपना समाज होता है , उसी के साथ चींटी हिल – मिलकर नियमपूर्वक रहती है । वह कठोर परिश्रमी है । श्रम करके वह अपना जीवन बिताती है । उसमें एक अच्छे नागरिक के सभी गुण विद्यमान हैं ।
कवि कहता है कि तुमने चींटी को ध्यान से देखा होगा । वह लघु प्राणी है , परन्तु उसका हृदय अत्यन्त विशाल है । वह भूरे बालों की कतरन के समान लघु एवं पतली है । उसकी लघुता को सब जानते हैं , लेकिन उसके हृदय में अपूर्व साहस है । वह सारी पृथ्वी पर , जहाँ चाहती निर्भय होकर विचरण करती है । उसे किसी भी स्थान पर घूमने में भय नहीं लगता है । लगातार अपने श्रम से , भोजन को एकत्र करने के काम में तल्लीन होकर जुटी रहती है । वह श्रम की साकार मूर्ति है । वह कभी नष्ट न होने वाला अग्निकण है । जब तक उसका जीवन है , अग्नि के सदृश प्रज्वलित रहती है ।
कवि कहता है कि उसका शरीर कोई बड़ा नहीं , तिल के समान अत्यन्त छोटा है । इतनी छोटी होते हुए भी चींटी शक्ति से भरी हुई इधर – उधर घूमती रहती है । दिनभर में वह कई मील की लम्बी यात्रा पूरी करती है , फिर भी वह कभी थकती नहीं और निरन्तर अपने काम में जुटी रहती है । धूप , छाँव , शीत आदि में भी अपना कार्य करने से नहीं चूकती है ।
काव्य – सौन्दर्य ( 1 ) पन्त जी ने चींटी जैसे लघु प्राणी की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डाला है । ( 2 ) मनुष्य को चींटी के आदर्श चरित्र से प्रेरणा प्राप्त करनी चाहिए । ( 3 ) भाषा – साहित्यिक खड़ीबोली । ( 4 ) शैली – वर्णनात्मक | ( 5 ) रस– शान्त । ( 6 ) अलंकार – उपमा , अनुप्रास , पुनरुक्तिप्रकाश ।