up board solution of Class 12 Hindi grammar sankrit samas संस्कृत में समास | समास की परिभाषा एवं भेद- संस्कृत समास
up board solution of Class 12 Hindi grammar sankrit samas संस्कृत में समास | समास की परिभाषा एवं भेद- संस्कृत समास
समास की परिभाषा -samas ki paribhasha
दो या दो से अधिक शब्दों ( पदों ) के मेल से एक नवीन शब्द के निर्माण की प्रक्रिया को समास कहते हैं । समास ( सम् + आस ) का अर्थ है संक्षेप । अर्थात् दो या दो से अधिक पदों को इस प्रकार मिलाना कि उनका आकार कुछ कम हो जाए , समास कहलाता है , जैसे – नीलः कण्ठः यस्य सः ( नीला है कण्ठ जिसका ) इन शब्दों को मिलाकर एक सामासिक पद बनाया जाता है— नीलंकण्ठः । समास होने पर पदों की विभक्तियों का लोप हो जाता है ।
समस्त पद – समास के नियम से मिले हुए शब्द समूह को समस्त पद कहते हैं । जैसे — ‘ राजपुरुष : ‘ समस्त पद है ।
विग्रह – समास के अर्थ बोधक वाक्य को विग्रह कहते हैं । जैसे – राज्ञः पुरुषः ।
समास के भेद – समास के निम्नलिखित छह भेद हैं : ( १ ) अव्ययीभाव , ( २ ) तत्पुरुष , ( ३ ) कर्मधारय , ( ४ ) द्वन्द्व , ( ५ ) द्विगु , ( ६ ) बहुव्रीहि ।
निर्देश — इण्टरमीडिएट के पाठ्यक्रमानुसार केवल अव्ययीभाव , कर्मधारय तथा बहुव्रीहि का अध्ययन करना है ।
१. अव्ययीभाव – जिस समास में पूर्व पद अव्यय तथा दूसरा पद संज्ञा होता है , उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं । दोनों पद मिलकर अव्यय का रूप धारण कर लेते हैं ; जैसे — यथाशक्ति ।
अव्ययीभाव का नपुंसकलिंग एकवचन में रूप बनता है । यह नित्य समास है , अतः इसके अपने पदों में विग्रह नहीं होता । यथा :
● यथाशक्ति = शक्तिम् अनतिक्रम्य ( शक्ति के अनुसार ) |
● यथोचितम् = उचितम् अनतिक्रम्य ( उचित के अनुसार ) |
● उपगंगम् = गंगम् / गंगायाः समीपे ( गंगा के पास ) |
● प्रतिदिनम् = दिनं दिनं प्रति ( प्रत्येक दिन ) |
● उपनदि = नद्याः समीपे ( नदी के पास ) |
● उपकृष्णम् = कृष्णस्य समीपं ( कृष्ण के पास ) |
● अनुरूपम् = रूपस्य योग्यम् ( रूप के योग्य ) |
● उपतटं = तटं समीपे |
● प्रत्येकम् = एकं एकं प्रति |
● निजनं = जनानाम् अभावः ( जनरहित ) |
● अनुदिनम् = दिनं दिनं अनु |
● उपनगरम = नगरस्य समीपं |
२. कर्मधारय — जिस समास में पहला पद विशेषण तथा दूसरा पद विशेष्य होता है , वहां कर्मधारय समास होता है ; यथा
- कृष्णसर्प =कृष्णः सर्पः ( काला सांप |
- नीलोत्पलम् =नीलम् उत्पलम् ।
- रक्तकमलम् =रक्तम् कमलम् ।
- नीलकमलम् = नीलम् कमलम्
उपमा अथवा रूपक अलंकार के रूप में जहां उपमेय और उपमान को मिला दिया जाए , वहां भी कर्मधारय समास होता है , जैसे —
- घन इव श्याम : = घनश्यामः
- यशोधनः = यश एवं धनः
- मुखं कमलम् इव = मुखकमलम्
- पुरुषः व्याघ्रः इव = पुरुष व्याघ्रः
- कृष्णाश्व = कृष्णः अश्वः
समस्त पद समास – विग्रह
- महापुरुषः महान् चासौ पुरुष :
- पीताम्बरम् पीतम् अम्बरम्
- विद्याधनम् विद्या एव धनम्
- महावीर :. महान चासौ वीरः
- पीतवस्त्रम् पीतम् वस्त्रम्
- महाधनम् महान् चासौ धन :
- मीनाक्षी मीन इव अक्षी
- मुखकमलम् मुखमेव कमलम्
- पीतकमलम् पीतम् कमलम्
- श्वेताम्बरा श्वेता अम्बरा
- रक्तवस्त्रम् रक्तम् वस्त्रम्
अन्य उदाहरण
- नीलाम्बुजम् = नीलम् अम्बुजम्
- पीतवसनम् = पीतम् वसनम्
- रक्तवर्णः = रक्तम् वर्णम महान्
- महात्मा = महान् चासौ आत्मा
- महाजनः = महान् चासौ जनः
- श्रेष्ठ पुरुष : = श्रेष्ठ चासौ पुरुष :
- नीलोत्पलं = नीलम् उत्पलम्
३. बहुव्रीहि — जहां अनेक पद होते हुए भी अन्य पद प्रधान होता है , वहां बहुव्रीहि समास होता है । अर्थात् जहां दो या दो से अधिक पद मिलकर किसी अन्य पद का बोध कराएं , वहां बहुव्रीहि समास होता है , जैसे — पीतम्
- अम्बरम् यस्य सः = पीताम्बरः
- दश आननानि यस्य सः. = दशाननः
- लम्बम् उदरम् यस्य सः = लम्बोदरः
- लम्बा : केशाः यस्या सा. = लम्बकेशी
- चन्द्र : शेखरे यस्य सः = चन्द्रशेखरः
- चन्द्रः मौलिः यस्य सः. = चन्द्रमौलिः
- गज इव आननः यस्य सः = गजाननः
- जितानि इन्द्रियाणि येन सः = जितेन्द्रिय
- चत्वारः आननानि यस्य सः = चतुराननः
- कृतं कर्म येन सः = कृतकर्मा
- त्रयः नेत्राणि यस्य सः. = त्रिनेत्रः
- दृढ़ा प्रतिज्ञा यस्य सः. = दृढ़प्रतिज्ञः
- लब्धा प्रतिष्ठा येन सः = लब्धप्रतिष्ठः
- गदा हस्ते यस्य सः = गदाहस्तः
- चक्रं पाणौ यस्य सः. = चक्रपाणि
- पंचमुखानि यस्य सः = पंचमुखः
- नीलम् कण्ठम् यस्य सः = नीलकण्ठ :