UP Board Solution of Class 10 History Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद Bharat me Rashtravad PDF Notes in Hindi Question Answer

UP Board Solution of Class 10 Social Science (History) Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद -Bharat me Rashtravad PDF Notes in Hindi Question Answer

भारत में राष्ट्रवाद  लघु उत्तरीय प्रश्न  और दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Laghu eva Deergh Utttariy Prashn) UP Board New Latest Syllabus Based on NCERT SST Social Science Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद (Nationalism in India).

भारत में राष्ट्रवाद  

भारत में राष्ट्रवाद   –लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. प्रथम विश्वयुद्ध के किन्हीं तीन कारणों का उल्लेख कीजिए ।

उत्तर.प्रथम विश्वयुद्ध के मुख्य कारण निम्न प्रकार है

जर्मनी की नई विस्तारवादी नीति – जर्मनी के सम्राट विल्हेम द्वितीय ने 1890 ई. में एक अन्तर्राष्ट्रीय नीति शुरू की, जिसके अन्तर्गत जर्मनी को विश्व शक्ति के रूप में परिवर्तित करने के प्रयास किए गए और इसका परिणाम यह रहा कि विश्व के अन्य देशों ने जर्मनी को उभरते हुए खतरे के रूप में देखा, जिससे अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति अस्थिर हो गई।

साम्राज्यवाद – प्रथम विश्वयुद्ध से पूर्व कच्चे माल की उपलब्धता से अफ्रीका और एशिया के मध्य विवाद उत्पन्न हुए। जर्मनी और इटली के इस साम्राज्यवाद में शामिल होने से उनके विस्तार की सम्भावनाएँ बहुत कम हो गई, जिससे इन देशों ने उपनिवेशवाद के विस्तार की एक नई नीति अपनाने का निर्णय लिया। बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा और साम्राज्य के विस्तार ने विभिन्न देशों के मध्य मतभेदों को जन्म दिया, जिसने सम्पूर्ण विश्व को प्रथम विश्वयुद्ध की ओर धकेला । 2

प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय संस्था का न होना प्रथम विश्वयुद्ध होने – से पूर्व ऐसी कोई भी संस्था नहीं थी, जो साम्राज्यवाद, सैन्यवाद और उग्र राष्ट्रवाद पर नियन्त्रण करके विभिन्न राष्ट्रों के मध्य स्थिति को सुलझाने का कार्य कर सके। उस समय विश्व के सभी देश अपनी मनमानी कर रहे थे, जिससे विश्व के यूरोपीय देशों की राजनीति में अराजकता की भावना उत्पन्न हुई।

प्रश्न 2. सत्याग्रह के विचार का क्या मतलब है?

अथवा गाँधीजी के सत्याग्रह का अर्थ बताइए ।

उत्तर.महात्मा गाँधी जनवरी, 1915 में भारत लौटे। इससे पहले वे दक्षिण अफ्रीका में थे। उन्होंने एक नए तरह के जनान्दोलन के रास्ते पर चलते हुए वहाँ की नस्लभेदी सरकार से सफलतापूर्वक लोहा लिया था। इस पद्धति को वे सत्याग्रह कहते थे। सत्याग्रह के विचार में सत्य की शक्ति पर आग्रह और सत्य की खोज पर बल दिया जाता था।

इसका अर्थ यह था कि यदि आपका उद्देश्य सच्चा है और आपका संघर्ष अन्याय के विरुद्ध है, तो उत्पीड़क से मुकाबला करने के लिए आपको किसी शारीरिक बल की आवश्यकता नहीं है। प्रतिशोध की भावना या आक्रामकता का सहारा

लिए बिना सत्याग्रही केवल अहिंसा के सहारे भी अपने संघर्ष में सफल हो सकता है।

प्रश्न 3. महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम में सत्याग्रह एवं अहिंसा का किस प्रकार प्रयोग किया? कोई दो उदाहरण दीजिए।

उत्तर.सत्याग्रह एक प्रकार से दमनकारियों के विरुद्ध जन आन्दोलन का एक अहिंसावादी ढंग माना जाता है। महात्मा गांधी ने राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम में सत्याग्रह एवं अहिंसा का बखूबी प्रयोग किया, जिसके उदाहरण निम्न प्रकार हैं।

  • गाँधीजी ने दक्षिणी अफ्रीका में सत्याग्रह की तकनीक का सफल प्रयोग किया।
  • वर्ष 1916 में इन्होंने चम्पारन के किसानों को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष किया और सरकार को वर्ष 1918 में चम्पारन के किसानों के कल्याण के लिए एक अधिनियम पारित करना पड़ा।
  • वर्ष 1917 में इन्होंने गुजरात के खेड़ा जिले के किसानों की मदद के लिए सत्याग्रह का आयोजन किया। फसल खराब हो जाने और प्लेग की महामारी के कारण खेड़ा जिले के किसान लगान चुकाने की हालत में नहीं थे। ये चाहते थे कि लगान वसूली में छूट दी जाए। अन्ततः सरकार को झुकना पड़ा और लगान का भुगतान अगले वर्ष तक स्थगित कर दिया गया।
  • पुनः वर्ष 1918 में गाँधीजी ने अहमदाबाद के मिल श्रमिकों की हड़ताल में हस्तक्षेप किया तथा उनके वेतन में वृद्धि करने में सहायता की, जिसके लिए इन्होंने आमरण अनशन शुरू किया था।

 

प्रश्न 4. रॉलेट एक्ट क्या था? उसका विरोध कैसे किया गया क्या परिणाम हुआ?

अथवा भारत के लोग रॉलेट एक्ट के विरोध में क्यों थे?

उत्तर.भारतीयों के व्यापक विरोध के पश्चात् वर्ष 1919 में रॉलेट एक्ट पारित किया गया था। इस एक्ट के अनुसार राजनीतिक कैदियों को बिना किसी मुकदमे के दो साल तक जेल में रखने का प्रावधान था इस एक्ट में नो अपील, नो वकील एवं नो दलील का प्रावधान था अर्थात् किसी भी व्यक्ति को केवल संदेह के आधार पर बिना कारण बताए गिरफ्तार किया जा सकता था।

गाँधीजी ने इस एक्ट को काला कानून बताकर इसका विरोध किया। रॉलेट एक्ट के विरोध में 6 अप्रैल, 1919 को गाँधीजी के नेतृत्व में अहिंसक आन्दोलन चलाया गया, जिसमें जगह-जगह जुलूस एवं हड़ताल की गई। सरकार के दमनकारी कानून के विरोध में लोग बड़ी संख्या में 13 अप्रैल, 1919 को पंजाब के अमृतसर में जलियाँवाला बाग में एकत्रित हुए। एकत्रित लोगों ने रॉलेट एक्ट का जमकर विरोध किया, साथ ही लोगों ने उन नेताओं की रिहायी की माँग करने लगे, जो इस एक्ट के विरोध करने के कारण गिरफ्तार किए गए थे।

पंजाब के तत्कालीन पुलिस ऑफिसर जनरल डायर ने उस मैदान के सभी रास्ते बन्द करवा दिए तथा अपने सिपाहियों को गोली चलाने का आदेश दिया। इस घटना में सैकड़ों लोग मारे गए। रॉलेट एक्ट एवं जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड के पश्चात् ही गाँधीजी ने पूरे देश में असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ करने का फैसला किया।

 

प्रश्न 5. गाँधीजी ने असहयोग आन्दोलन क्यों स्थगित कर दिया?

अथवा वर्ष 1922 में गाँधीजी ने असहयोग आन्दोलन क्यों स्थगित किया?

उत्तर.5.फरवरी, 1922 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा नामक एक छोटे से गाँव में असहयोग आन्दोलन के दौरान एक जुलूस निकाला जा रहा था। इसका नेतृत्व कर रहे लोगों पर पुलिस के जवानों ने लाठीचार्ज कर दिया. जिससे भीड़ आक्रोशित हो गई तथा उसने पुलिस बल पर हमला कर दिया। पुलिस के जवान अपनी जान बचाने को थाने में छिप गए।

प्रदर्शनकारियों ने थाने को घेरकर जला दिया, जिसमें 1 थानेदार और 22 पुलिस के जवान जलकर मर गए। इस घटना से गाँधीजी अत्यन्त दुःखी हुए और उन्होंने असहयोग आन्दोलन को वापस लेने की घोषणा कर दी। गाँधीजी के इस निर्णय की अनेक नेताओं ने आलोचना की, किन्तु गाँधीजी अपने निर्णय पर अडिग रहे ।

प्रश्न 6. वर्ष 1921 में असहयोग आन्दोलन में शामिल होने वाले सभी सामाजिक समूहों की सूची बनाइए। इसके बाद उनमें से किन्हीं तीन को चुनकर उनकी आशाओं और संघर्षों के बारे में लिखते हुए यह दर्शाइए कि वे आन्दोलन में शामिल क्यों हुए ?

अथवा असहयोग आन्दोलन में समाज के कौन-से वर्ग ने आन्दोलन में भाग लिया था?

उत्तर.वर्ष 1921 में असहयोग आन्दोलन में भारत के विभिन्न सामाजिक समूहों ने हिस्सा लिया, लेकिन प्रत्येक की अपनी-अपनी आकांक्षाएँ थीं। आन्दोलन में , शामिल प्रमुख सामाजिक समूह निम्नलिखित घे― शिक्षित मध्यम वर्ग, भारतीय दस्तकार और मजदूर, भारतीय किसान पूँजीपति वर्ग, जमींदार वर्ग तथा व्यापारिक वर्ग, सभी ने असहयोग आन्दोलन में भाग लिया।

शिक्षित मध्यम वर्ग – शहरों में शिक्षित मध्यम वर्ग ने असहयोग आन्दोलन की शुरुआत की। हजारों विद्यार्थियों ने स्कूल कॉलेज छोड़ दिए, शिक्षकों ने त्याग पत्र दे दिए। वकीलों ने मुकदमे लड़ने बन्द कर दिए। शिक्षित वर्ग आन्दोलन में इसलिए शामिल हुआ, क्योंकि उन्होंने देखा कि उनके बराबर पढ़े-लिखे अंग्रेज उनके अफसर बन जाते थे।

व्यापारी वर्ग – बहुत से स्थानों पर व्यापारियों ने विदेशी चीजों का व्यापार करने या विदेशी व्यापार में पैसा लगाने से इनकार कर दिया। अंग्रेज सरकार की गलत नीतियों के कारण व्यापारी वर्ग पूरी तरह बर्बाद हो चुका था, जिसके परिणामस्वरूप व्यापारी वर्ग असहयोग आन्दोलन में शामिल हुआ।

सामान्य जनता – असहयोग आन्दोलन एक जन-आन्दोलन बन गया था, क्योंकि आम जनता ने विदेशी कपड़ों तथा चीजों का बहिष्कार किया।

बागान मजदूर – गाँधीजी के विचार और स्वराज की अवधारणा जब मजदूरों को समझ में आई तो वे भी बागानों की चारदीवारियों से बाहर निकलकर राष्ट्रीय आन्दोलन में सम्मिलित हो गए।

 

प्रश्न 7. असहयोग आन्दोलन के मुख्य कारण क्या थे?

उत्तर.असहयोग आन्दोलन के निम्नलिखित कारण थे .प्रथम विश्वयुद्ध के बाद आर्थिक कठिनाइयों के कारण महँगाई बहुत बढ़ गई। मध्यम वर्ग एवं निम्न वर्ग इस महँगाई से अत्यधिक परेशान हो गए थे। इन परिस्थितियों ने भारतीयों में ब्रिटिश विरोधी भावनाओं का प्रसार कर इन्हें आन्दोलन हेतु प्रोत्साहित किया।

.रॉलेट एक्ट तथा जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड जैसी घटनाओं ने विदेशी शासकों के क्रूर एवं असभ्य व्यवहार को उजागर कर दिया। वर्ष 1919 का मॉण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार भी द्वैध शासन लागू करने की नीयत से लाया गया, न कि आम जनता को राहत पहुँचाने के उद्देश्य से स्वशासन की माँग कर रहे राष्ट्रवादियों को भी इससे घोर निराशा हुई। सरकार के द्वारा किसी भी क्षेत्र में सहयोग नहीं करना।

प्रश्न 8. साइमन कमीशन की रिपोर्ट से कांग्रेस क्यों असंतुष्ट थी? कांग्रेस ने किस नई नीति की घोषणा की?

उत्तर.वर्ष 1927 में साइमन कमीशन जॉन साइमन की अध्यक्षता में गठित किया गया था। इस कमीशन के गठित करने का मुख्य उद्देश्य भारत में संवैधानिक व्यवस्था के कार्य की समीक्षा करना और आवश्यक सुझाव देना था। कांग्रेस सहित भारतीय नेताओं ने साइमन कमीशन का विरोध किया, क्योंकि इसमें कोई भारतीय सदस्य शामिल नहीं था। साइमन कमशीन वर्ष 1928 में भारत आया था। मुस्लिम लोग ने भी इसका विरोध किया था।

भारतीय नेताओं का मानना था कि भारतीयों के भविष्य का फैसला अंग्रेजों के हाथों में कैसे सौंपा जा सकता है। भारतीयों के भविष्य का फैसला करने का अधिकार केवल भारतीयों के हाथों में सुरक्षित है। कांग्रेस ने संवैधानिक व्यवस्था के कार्य ही समीक्षा करने हेतु मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया था। आयोग के द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज की माँग की थी।

 

प्रश्न 9. नमक यात्रा की चर्चा करते हुए स्पष्ट करें कि यह उपनिवेशवाद के विरुद्ध प्रतिरोध का असरदार प्रतीक था।

अथवा नमक सत्याग्रह क्यों प्रारम्भ किया गया? उसका संक्षिप्त विवरण दीजिए।

अथवा नमक कानून ब्रिटिश सरकार का दमनकारी कदम था कैसे? स्पष्ट करें।

उत्तर.31 जनवरी, 1930 को गाँधीजी ने इर्विन को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने 11 माँगों का उल्लेख किया था। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण माँग नमक कर को समाप्त करने के बारे में थी। नमक को अमीर-गरीब सभी प्रयोग करते थे। यह भोजन का अभिन्न हिस्सा था। इसलिए नमक पर कर को ब्रिटिश सरकार का सबसे दमनकारी पहलू बताया था।

11 मार्च तक उनकी मांगें नहीं मानी गई तो 12 मार्च, 1930 को गाँधीजी ने अपने 78 स्वयंसेवकों के साथ नमक यात्रा शुरू की। यह यात्रा साबरमती से दाण्डी नामक गुजरात तटीय कस्बे में जाकर समाप्त होनी थी। 6 अप्रैल को वे दाण्डी पहुँचे और उन्होंने समुद्र का पानी उबालकर नमक बनाना शुरू कर दिया। यह कानून का उल्लंघन था। यह उपनिवेशवाद के विरुद्ध प्रतिरोध का एक असरदार प्रतीक था।

 

प्रश्न 10. पूना पैक्ट पर किसके हस्ताक्षर हुए? उसकी दो शर्तें लिखिए।

उत्तर.पूना पैक्ट पर डॉ. बी. आर. अम्बेडकर तथा महात्मा गाँधी द्वारा पूना की यरवदा जेल में 24 सितम्बर, 1932 को सहमति बनी थी। इस पर मदनमोहन मालवीय तथा अम्बेडकर ने हस्ताक्षर किए थे। पूना पैक्ट की निम्न शर्तें थीं

  • राज्य विधायिका में दलित वर्गों को 147 सीटें प्रदान करना।
  • आरक्षित सीटों पर निर्वाचन संयुक्त निर्वाचन मण्डल द्वारा किया जाएगा।

गाँधीजी इस पैक्ट से सन्तुष्ट नहीं थे। गाँधीजी दलितों को हिन्दुओं से अलग नहीं मानते थे, परन्तु अम्बेडकर उनके लिए पृथक् निर्वाचन की माँग पर अड़े रहे।

पं. मदनमोहन मालवीय के असहयोग से पूना पैक्ट पर आम सहमति बनी थी।

 

प्रश्न 11. भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने वाले किन्हीं तीन नेताओं के नाम लिखिए।

उत्तर.भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने वाले तीन नेता निम्नलिखित हैं

(i) बाल गंगाधर तिलक – ये उग्रवादी विचारधारा के समर्थक थे। इनके द्वारा केसरी और मराठा पत्रों का प्रकाशन किया गया। ये पूर्ण स्वराज के पक्षधर थे।

(ii) आचार्य विनोबा भावे – इन्होंने भारत में व्यक्तिगत सत्याग्राही की शरुआत की थी। इन्होंने स्वतन्त्रता के बाद भूदान एवं सर्वोदय आन्दोलन का नेतृत्व किया था।

(iii) सरोजिनी नायडू – इन्होंने वर्ष 1925 में कानपुर के कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता की थी। यह कांग्रेस की प्रथम भारतीय महिला अध्यक्ष थीं। यह भारत में कोकिला के नाम से प्रसिद्ध हैं।

 

प्रश्न 12. प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम की असफलता के लिए उत्तरादायी कोई तीन कारण लिखिए।

उत्तर.प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम की असफलता के निम्नलिखित कारण थे

.विद्रोहियों में नेतृत्व की कमी, संगठन तथा एकता का अभाव होना आदि ।

.ग्वालियर के सिन्धिया, इन्दौर के होल्कर, हैदराबाद के निजाम आदि राजाओं का अंग्रेजों का खुलकर साथ देना ।

  • उच्च तथा मध्यम वर्ग के अधिकांश लोगों का सूदखोर, व्यापारी वर्ग, बंगाल के जमींदार व अंग्रेजों के प्रति वफादार बने रहना।

.सीमित क्षेत्र, राष्ट्रीय भावना का अभाव निश्चित उद्देश्य का अभाव, कुशल नेतृत्व का अभाव आदि ।

.आधुनिक शिक्षा प्राप्त भारतीयों का भी विद्रोहियों का साथ नहीं देना आदि ।

 

प्रश्न 13. भारत छोड़ो आन्दोलन के किन्हीं तीन कारणों का उल्लेख करो

उत्तर.भारत छोड़ो आन्दोलन के तीन कारण निम्नलिखित में

(i) इस आन्दोलन का तात्कालिक कारण क्रिप्स मिशन की समाप्ति तथा मिशन के किसी अनितम निर्णय पर न पहुंचना था।

(ii) ब्रिटिश विरोधी भावना तथा पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग थे भारतीय जनता के बोच लोकप्रियता हासिल कर ली थी।

(iii) अखिल भारतीय किसान सभा फॉरवर्ड ब्लॉक आदि जैसे कांग्रेस से सम्बन्ध विभिन्न निकायों के नेतृत्व में दो दशक से चल रहे थे। जन आन्दोलन में इस आन्दोलन के लिए पृष्ठभूमि निर्मित कर दी थी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद विरोधी आन्दोलन से जुड़ी हुई क्यों थी?

उत्तर.आधुनिक राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद के विरोध में होने वाले आन्दोलनों से बहुत गहरे रूप से जुड़ी थी. इसके निम्नलिखित कारण ये थे

  • औपनिवेशक उत्पीडन और दमन के साझा भाव ने अन्य सभी समूहों को एक-दूसरे से बांध दिया था।
  • औपनिवेशिक शासकों के विरुद्ध हो रहे संघर्ष के दौरान लोग आपसी एकता को पहचानने लगे थे।
  • चीन, वियतनाम, बर्मा, भारत और लैटिन तथा अफ्रीकी देशों में राष्ट्रीय आन्दोलन के साथ-साथ उनके सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक शोषण प्रारम्भ हुए इन देशों में राष्ट्रीय भावनाओं का विकास हुआ तथा उन्होंने उपनिवेशवाद को पूरे विश्व से हटा दिया।
  • इस प्रकार राष्ट्रवाद का उदय उपनिवेशवाद के विरोध में हुए आन्दोलनों का परिणाम था, क्योंकि इस विरोध के कारण ही औपनिवेशिक देश उपनिवेशवाद के विरुद्ध हुए अपने देश की एकता एवं परम्पराओं के लिए एकजुटता दिखी। यहीं से राष्ट्रवाद की भावना पनपने लगी।

प्रश्न 2. पहले विश्वयुद्ध ने भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन के विकास में किस प्रकार योगदान दिया?

अथवा  प्रथम विश्वयुद्ध ने राष्ट्रवादी आन्दोलन से किस प्रकार की भूमिका निभाई ?

उत्तर.प्रथम विश्वयुद्ध 1 अगस्त 1914 में मित्रराष्ट्रों (ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, जापान, अमेरिका) तथा धुरी राष्ट्रों (ऑफिर हंडी, जर्मनी, तुर्की, इटली) के मध्य प्रारम्भ हुआ। इसका भारतीय राष्ट्रवा आन्दोलन पर व्यापक प्रभाव पड़ा, जो इस प्रकार हैं

भारतीय का विश्व से सम्पर्क – इस युद्ध में सैनिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए कड़ी संख्या में भारतीयों को सेना में भर्ती किया गया। जब वे युद्ध क्षेत्रों में गए तो वहाँ से मिले अनुभवों का उन पर प्रभाव पड़ा और उनमें आत्मविश्वास जागा ।

आर्थिक प्रभाव – युद्ध के कारण ब्रिटेन का रक्षा व्यय बढ़ गया। इसे पूरा करने के लिए उसने अमेरिका जैसे विकसित देशों से कर्जे लिए। इन कर्जों को चुकाने के लिए भारतीयों पर सीमा शुल्क और अन्य टैक्स बढ़ा दिए।

साम्प्रदायिक एकता – खलीफा’ के प्रश्न पर सभी मुसलमान अंग्रेजों के विरुद्ध हो गए। जब गांधीजी ने अली बन्धुओं के सहयोग के लिए खिलाफत आन्दोलन प्रारम्भ किया तो हिन्दू-मुस्लिम एकता को बल मिला। साथ ही वर्ष 1916 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के मध्य ‘लखनऊ समझौता हो गया। इस कारण भारत में साम्प्रदायिक एकता को मजबूत आधार प्राप्त हुआ और राष्ट्रवादी आन्दोलन का जनाधार बढ़ा।

प्राकृतिक संकट – वर्ष 1918-21 के मध्य भारत में अकाल, सूखा, बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएँ आईं, जिनमें सरकार का व्यवहार असहयोग पूर्ण था। इस कारण भारतीय अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध एकजुट हो गए।

.डिफेंस ऑफ इण्डिया एक्ट वर्ष 1915 में अंग्रेजी सरकार ने क्रान्तिकारी गतिविधियों को रोकने के लिए ‘डिफेंस ऑफ इण्डिया एक्ट पास किया। एक दमनकारी एक्ट था। इसने क्रान्तिकारी आन्दोलन को दबाने के स्थान पर और तीव्र कर दिया। इस प्रकार प्रथम विश्वयुद्ध ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

 

प्रश्न 3. महात्मा गाँधी के सत्याग्रह पर एक निबन्ध लिखिए।

उत्तर. महात्मा गाँधी जनवरी, 1916 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे। भारत लौटने से पूर्व उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में एक तरह से नए आन्दोलन के माध्यम से वहाँ की नस्लभेदी सरकार से सफलतापूर्वक लोहा लिया था। इस पद्धति को सत्याग्रह आन्दोलन कहा जाता है। सत्याग्रह के विचार में सत्य की शक्ति पर आग्रह और सत्य की खोज पर विशेष बल दिया जाता था। सत्याग्रह का अर्थ यह था कि यदि आपका उद्देश्य सच्चा है और आपका संघर्ष अन्याय के विरुद्ध है, तो उत्पीड़न से मुकाबला करने हेतु आपको किसी शारीरिक बल की आवश्यकता नहीं है। प्रतिरोध की भावना या आक्रमकता का सहारा लिए बिना सत्याग्रही केवल अहिंसा के सहारे भी अपने संघर्ष में सफल हो सकता है।

महात्मा गाँधी के सत्य एवं अहिंसा के आधार पर आन्दोलन और विरोध का तरीका सत्याग्रह के रूप में जाना जाता है। उन्होंने अहिंसा के माध्यम से विरोध का कारगर तरीका बताया। वर्ष 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने के पश्चात् गाँधीजी ने वर्ष 1917 में बिहार के चम्पारण में अपना सत्याग्रह चलाया। इस अभियान में गाँधीजी पूरी तरह सफल रहे। वर्ष 1918 में गाँधीजी ने गुजरात के खेड़ा जिले में किसान आन्दोलन चलाया, जिसमें किसानों का अंग्रेज सरकार की कर वसूली के विरुद्ध एक सत्याग्रह था। गाँधीजी का सत्याग्रह आन्दोलन एक दार्शनिक विचारधारा का परिचायक माना जाता है।

प्रश्न 4. असहयोग आन्दोलन क्यों प्रारम्भ किया गया? उसका मुख्य कार्यक्रम क्या था?

अथवा असहयोग आन्दोलन क्यों प्रारम्भ किया के चार कार्य लिखिए ।

अथवा असहयोग आन्दोलन के स्वरूप, कारण एवं उसके परिणामों पर प्रकाश डालिए।

अथवा महात्मा गाँधी ने असहयोग आन्दोलन कब चलाया था? इसके दो मुख्य कारण बताइए ।

अथवा महात्मा गाँधी ने असहयोग आन्दोलन क्यों चलाया? इस आन्दोलन के क्या कार्यक्रम थे? उन्हें यह आन्दोलन क्यों स्थगित करना पड़ा?

अथवा असहयोग आन्दोलन किसने चलाया था? इसके किन्हीं तीन कारणों का उल्लेख कीजिए ।

अथवा महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गए असहयोग आन्दोलन का क्या अर्थ है ? इसके कारण क्या थे? अथवा गाँधीजी ने असहयोग आन्दोलन को वापस लेने का फैसला क्यो लिया?

उत्तर.असहयोग आन्दोलन की पृष्ठभूमि – महात्मा गाँधी ने भारतीय राजनीति में प्रवेश ब्रिटिश सरकार के सहयोगी के रूप में किया था, क्योंकि उन्हें ब्रिटिश सरकार की ईमानदारी व न्यायप्रियता में विश्वास था, परन्तु वर्ष 1919 में भारत में अनेक ऐसी घटनाएँ घटीं, जिन्होंने गांधीजी को ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध आन्दोलन प्रारम्भ करने के लिए विवश किया।

इन घटनाओं में वर्ष 1919 का दमनकारी रॉलेट एक्ट, जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड आदि घटनाएँ प्रमुख थीं। असहयोग आन्दोलन के कारण असहयोग आन्दोलन के निम्नलिखित कारण थे—

  • प्रथम विश्वयुद्ध के बाद आर्थिक कठिनाइयों के कारण महँगाई बहुत बढ़ गई। मध्यम वर्ग एवं निम्न वर्ग इस महँगाई से अत्यधिक परेशान हो गए थे।
  • इन परिस्थितियों ने भारतीयों में ब्रिटिश विरोधी भावनाओं का प्रसार कर इन्हें आन्दोलन हेतु प्रोत्साहित किया।
  • रॉलेट एक्ट तथा जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड जैसी घटनाओं ने विदेशी शासकों के क्रूर एवं असभ्य व्यवहार को उजागर कर दिया। पंजाब में अत्याचारों के सम्बन्ध में हण्टर कमेटी की सिफारिशों ने सबकी आँखे खोल दीं।
  • वर्ष 1919 का मॉण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार भी द्वैपशासन लागू करने की नीयत से लाया गया, न कि आम जनता को राहत पहुँचाने के उद्देश्य से । स्वशासन की माँग कर रहे राष्ट्रवादियों को भी इससे घोर निराशा हुई।
  • सरकार के द्वारा किसी भी क्षेत्र में सहयोग नहीं करना असहयोग आन्दोलन का प्रारम्भ – असहयोग आन्दोलन औपचारिक रूप से 1 अगस्त, 1920 को शुरू हुआ था, क्योंकि इसी दिन 1 अगस्त, 1920 को बालगंगाधर तिलक का निधन हो गया था। कांग्रेस ने गाँधीजी की इस योजना को स्वीकार कर लिया।
  • जब ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस की मांगों को मानने से इनकार कर दिया तथा जून, 1920 में इलाहाबाद में सर्वदलीय सभा ने विदेशी वस्तुओं, स्कूलों, कॉलेजों, न्यायालयों आदि के बहिष्कार का कार्यक्रम बनाया, तब सितम्बर, 1920 में कांग्रेस ने कलकत्ता में एक विशेष सत्र बुलाया और इसमें अहिंसात्मक असहयोग आन्दोलन जिसका अन्तिम लक्ष्य स्वराज्य था, शुरू करने का प्रस्ताव पारित किया।

महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आन्दोलन का अर्थ ये था कि किसी भी रूप में अंग्रेजों को सहयोग न देना जैसे कि कोई कर न देना, उनके द्वारा चलाए जी रहे स्कूलों में शिक्षा न लेना, उनकी वस्तुएँ न खरीदना आदि। इस आन्दोलन को तात्पर्य था कि ब्रिटिश सरकार को जड़ से खत्म करना, क्योंकि अगर कोई भी भारतीय इन सभी बातों का सही से पालन करेगा, तो ब्रिटिश सरकार का कोष खाली हो जाएगा, जिसकी वजह से उनका हौसला पसत हो जाएगा और उन्हें ये समझ आ जाएगा कि यहाँ शासन करना नामुमकिन है।

आन्दोलन की वापसी – 5 फरवरी, 1922 को संयुक्त प्रान्त के गोरखपुर जिले (वर्तमान उत्तर प्रदेश) के चौरी-चौरा नामक स्थान पर आन्दोलनकारियों के जुलूस पर पुलिस ने गोलियां चलाई, जिस कारण भीड़ आक्रोशित हो गई और पुलिस थाने में आग लगा दी गई, जिसमें एक थानेदार समेत 22 सिपाहियों को जिन्दा जला दिया गया। इस हिंसक घटना से गाँधीजी ने दुःखी होकर आन्दोलन वापस लेने का निर्णय लिया। गाँधीजी ने 12 फरवरी को बारदोली में कांग्रेस कार्य समिति की एक बैठक बुलाई, जिसमें चौरी-चौरा काण्ड के कारण सामूहिक सत्याग्रह व असहयोग आन्दोलन स्थगित करने का प्रस्ताव पारित किया गया।

आन्दोलन के परिणाम – वस्तुतः वह देश का पहला राष्ट्रीय आन्दोलन था, जिसने समाज के सभी वर्गों जैसे किसानों, शिक्षकों, छात्रों, महिलाओं और व्यापारियों को साथ लाने का काम किया। इसे वास्तविक जनाधार प्राप्त हुआ, क्योंकि यह तेजी से देश के सभी हिस्सों में फैल गया। इस आन्दोलन ने लोगों में राष्ट्रीय एकता का भाव जगाया एवं देश की आजादी के लिए त्याग करने की भावना को जागृत किया।

प्रश्न 5. महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गए तीन आन्दोलनों का वर्णन कीजिए।

अथवा महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गए किन्हीं दो आन्दोलनों के बारे में विस्तारपूर्वक लिखिए।

अथवा गाँधीजी द्वारा संचालित तीन प्रमुख आन्दोलनों का नाम लिखिए । उनके अन्तिम आन्दोलन का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।

अथवा सविनय अवज्ञा आन्दोलन और भारत छोड़ो आन्दोलन का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करें।

अथवा महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गए किन्हीं तीन आन्दोलनों के नाम लिखिए।

उत्तर- महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गए तीन प्रमुख आन्दोलन असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन व भारत छोड़ो आन्दोलन थे, जिनका वर्णन इस प्रकार हैं

असहयोग आन्दोलन महात्मा गाँधी ने भारतीय राजनीति में प्रवेश ब्रिटिश सरकार के सहयोगी के रूप में किया था, क्योंकि उन्हें ब्रिटिश सरकार की ईमानदारी व न्यायप्रियता में विश्वास था, परन्तु वर्ष 1919 में भारत में अनेक ऐसी घटनाएँ घटी, जिन्होंने गांधीजी को ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध आन्दोलन प्रारम्भ करने के लिए विवश किया। इन घटनाओं में वर्ष 1919 का दमनकारी रॉलेट एक्ट, जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड आदि घटनाएँ प्रमुख थीं।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन सविनय अवज्ञा का अर्थ विनम्रतापूर्वक आज्ञा या कानून की अवहेलना करना है सविनय अवज्ञा गाँधीजी के आन्दोलनों की विशेषता रही है। इसके अन्तर्गत विनम्र तथा अहिंसक होकर सरकारी कानूनों का उल्लंघन किया जाता है। वर्ष 1930 में महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ किया था। इसके लिए उन्होंने नमक सत्याग्रह की शुरुआत की। महात्मा गाँधी के द्वारा 12 मार्च, 1930 को ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह शुरू करने का निश्चय किया गया। उन्होंने 12 मार्च को साबरमती आश्रम से अपने 78 समर्थकों के साथ दाण्डी के लिए पदयात्रा प्रारम्भ की। 6 अप्रैल को गाँधीजी ने नमक बनाकर कानून तोड़ा।

भारत छोड़ो आन्दोलन 8 अगस्त, 1942 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने बम्बई (मुम्बई) के ग्वालिया टैंक मैदान में हुए अधिवेशन में ऐतिहासिक भारत छोड़ो प्रस्ताव पास किया गया। इस आन्दोलन की सफलता के लिए महात्मा गाँधी ने लोगों को ‘करो या मरो’ का मन्त्र दिया तथा ब्रिटिश सरकार को तत्काल भारत छोड़कर चले जाने की चेतावनी दी। 8 अगस्त को रात्रि में भारत छोड़ो प्रस्ताव पास होते ही आन्दोलन की शुरुआत हो गई। ब्रिटिश सरकार ने भी तत्काल प्रतिक्रिया करते हुए महात्मा गाँधी समेत कांग्रेस के लगभग सभी शीर्ष नेताओं को गिरफ्तार कर नजरबन्द कर दिया या जेल में डाल दिया।

अतः यह आन्दोलन एक प्रकार से नेतृत्वविहीन, अराजक एवं हिंसक हो गया। आन्दोलन के समय अनेक स्थानों; जैसे- बलिया, सतारा एवं तामलुक आदि स्थानों पर ब्रिटिश अधिकारियों को हटाकर समानान्तर सरकारें भी स्थापित की गईं। । सरकार ने बल प्रयोग कर आन्दोलन का दमन करना प्रारम्भ कर दिया। ” हालाँकि आन्दोलन का दमन कर दिया गया, किन्तु इस आन्दोलन ने ब्रिटिश राज की जड़ें हिलाकर रख दीं।

 

प्रश्न 6. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना कब हुई थी? इसके उद्देश्य क्या थे?

उत्तर– भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना एक सेवानिवृत अंग्रेज सिविल सेवक ए.ओ. ह्यूम के द्वारा की गई थी। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय संघ की स्थापना की, जिसका प्रथम अधिवेशन 28 दिसम्बर, 1885 को बम्बई (मुम्बई) स्थित गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में आयोजित किया गया। इसी सम्मेलन में दादाभाई नौरोजी के सुझाव पर इसका नाम बदलकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कर दिया गया।

कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में कुल 72 लोगों ने भाग लिया, जिनमें प्रमुख थे दादाभाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, दीनशा एदलजी वाचा, काशीनाथ तैलंग, वी. राघवाचारी, एन.जी. चन्द्रावरकर, एस सुब्रह्मण्यम आदि।

कांग्रेस के उद्देश्य भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में अध्यक्ष व्योमेश चन्द्र बनर्जी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कांग्रेस के निम्नलिखित उद्देश्य बताए थे–

  • साम्राज्य के विभिन्न भागों में देश के हित के लिए कार्यरत् मुख्य कार्यकर्ताओं में व्यक्तिगत निष्ठा तथा मित्रता बढ़ाना।
  • सभी देशप्रेमियों में सीधे मित्रतापूर्ण व्यक्तिगत मेल-जोल द्वारा सभी जाति, धर्म या प्रान्त सम्बन्धी पक्षपात को दूर करना और राष्ट्र को उन भावनाओं की ओर बढ़ाना तथा दृढ़ करना था, जो लॉर्ड रिपन के शासनकाल में विकसित हुई थीं
  • भारत के शिक्षित वर्गों के परिपक्व विचारों का आधिकारिक प्रतिनिधित्व, जो वे समकालीन सामाजिक समस्याओं के बारे में रखते हैं।
  • उन रीतियों का निश्चय करना, जो राजनैतिक नेताओं को सार्वजनिक हित में आने वाले समय में करनी हैं।

 

प्रश्न 7. सविनय अवज्ञा आन्दोलन किन परिस्थितियों में प्रारम्भ किया गया? इसका क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर.सविनय अवज्ञा आन्दोलन सविनय अवज्ञा का अर्थ है विनम्रतापूर्वक की आज्ञा या कानून की अवहेलना करना । सविनय अवज्ञा गाँधीजी के आन्दोलनों विशेषता रही है। इसके अन्तर्गत विनम्र तथा अहिंसक होकर सरकारी कानूनों का उल्लंघन किया जाता है।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रारम्भ सविनय अवज्ञा आन्दोलन का आरम्भ 12 मार्च, 1930 को प्रसिद्ध दाण्डी मार्च के साथ आरम्भ हुआ। इस कार्यक्रम के अनुसार गाँधीजी को साबरमती आश्रम से 240 किमी दूर स्थित दाण्डी समुद्र तट पर नमक कानून का उल्लंघन करना था।

6 अप्रैल, 1930 को गांधीजी ने दाण्डी पहुँचकर समुद्र तट से थोड़ा-सा नमक उठाकर शान्तिपूर्ण और अहिंसात्मक ढंग से नमक कानून का उल्लंघन किया। इस आन्दोलन में हजारों लोगों ने भाग लिया। इस आन्दोलन को समाप्त करने के लिए अंग्रेजों के द्वारा दमन चक्र चलाया गया। कांग्रेस को गैर-कानूनी संस्था घोषित कर दिया गया तथा 15 मई को गाँधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया।

इसी बीच तत्कालीन वायसराय एवं गांधीजी के मध्य समझौता हुआ। समझौते के अनुसार गांधीजी ने दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेना एवं आन्दोलन बन्द करना स्वीकार कर लिया। इस प्रकार वर्ष 1931 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन को कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया गया।

आन्दोलन की प्रगति (वर्ष 1930-33) तथा समाप्ति लन्दन में 7 सितम्बर, . 1931 से दिसम्बर, 1931 तक आयोजित द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में गाँधीजी ने भाग लिया। सरकार द्वारा सम्मेलन में भारतीयों की स्वतन्त्रता की माँग पर किसी भी प्रकार का निर्णय नहीं लिया जा सका। 28 दिसम्बर, 1931 को गाँधीजी भारत लौट आए तथा 29 दिसम्बर, *1931 को कांग्रेस कार्यकारिणी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन फिर से प्रारम्भ करने का निर्णय लिया, लेकिन सरकार के दमन चक्र के कारण अन्ततः 14 जुलाई, 1934 को आन्दोलन वापस ले लिया गया।

आन्दोलन के परिणाम सविनय अवज्ञा आन्दोलन के निम्नलिखित परिणाम हुए–

  • इस आन्दोलन में बड़ी संख्या में महिलाओं ने भी भाग लिया। अतः महिलाओं को सक्रिय रूप से राष्ट्रीय आन्दोलन से जोड़ने में यह आन्दोलन उल्लेखनीय रहा। किसानों एवं मजदूर वर्ग ने भी इसमें व्यापक भागीदारी निभाई।
  • सरकार के कठोर दमन के बाद भी लोगों ने हिंसा का सहारा नहीं लिया, जिससे गाँधीजी के अहिंसा सिद्धान्त की वैश्विक स्तर पर सराहना हुई।
  • विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार से विदेशी कपड़ों के आयात में कमी आई, जिस कारण उद्योगपति वर्ग का सरकार पर सुधारों हेतु दबाव पड़ा।
  • लोगों में राष्ट्रीय चेतना का प्रसार हुआ, जिस कारण वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में लोगों का अभूतपूर्व उत्साह देखने को मिला।

 

प्रश्न 8. सविनय अवज्ञा आन्दोलन कब चलाया गया था? इसके प्रमुख तीन कारणों का उल्लेख कीजिए

उत्तर.वर्ष 1930 में महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ किया था। इसके लिए उन्होंने नमक सत्याग्रह की शुरुआत की। महात्मा गाँधी के द्वारा 12 मार्च, 1930 को ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह शुरू करने का निश्चय किया गया । इन्होंने 12 मार्च को साबरमती आश्रम से अपने 78 समर्थकों के साथ दाण्डी के लिए पदयात्रा प्रारम्भ की। 6 अप्रैल को गाँधीजी ने नमक बनाकर कानून तोड़ा।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कारण सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करने के पीछे निम्नलिखित कारण थे, जो इस प्रकार हैं–

  • ब्रिटिश सरकार ने नेहरू रिपोर्ट को अस्वीकृत कर भारतीयों के लिए संघर्ष के अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं छोड़ा।
  • देश में नौकरशाही तेजी से बढ़ रही थी तथा मजदूरों की दशा शोचनीय हो गई थी।
  • देश की आर्थिक स्थिति अत्यन्त दयनीय हो गई थी । विश्वव्यापी आर्थिक महामन्दी से भारत भी अछूता नहीं रहा। इस कारण किसानों व मजदूरों को दशा अत्यधिक शोचनीय हो गई थी।
  • वर्ष 1922 में असहयोग आन्दोलन के स्थगित होने से जनता में निराशा फैल चुकी थी, जिसे दूर करने के लिए यह आन्दोलन आवश्यक था।
  • मेरठ षड्यन्त्र केस के अन्तर्गत वर्ष 1929 में सरकार ने कम्युनिस्ट नेताओं को गिरफ्तार कर उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया, जिस कारण लोगों में क्रोध की भावना फैल रही थी।
  • ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में वर्ष 1929 में पारित पूर्ण स्वराज्य की माँग को ठुकरा दिया था। अतः इस परिस्थिति में आन्दोलन का मार्ग अपरिहार्य हो गया था।
  • “ब्रिटिश सरकार डोमिनियन स्टेट्स देने तथा इसके लिए संविधान बनाने हेतु गोलमेज सम्मेलन के आयोजन से पीछे हट गई थी। परिणामस्वरूप देश का वातावरण तेजी से ब्रिटिश सरकार विरोधी होता गया। गाँधीजी ने इस अवसर का लाभ उठाकर इस विरोध को सविनय अवज्ञा आंदोलन की ओर मोड़ दिया।

 

प्रश्न 9. सविनय अवज्ञा आन्दोलन की सीमाओं पर टिप्पणी लिखिए |

उत्तर.सविनय अवज्ञा आन्दोलन की सीमाओं के मुख्य बिन्दु निम्न हैं।

  • स्वराज की अवधारणा ने सभी सामाजिक समूहों को प्रभावित नहीं किया था। ऐसा एक समूह ‘अस्पृश्यों” का था, जो खुद को 1930 के दशक के दौरान दलित कहने लगा था।
  • लम्बे समय से कांग्रेस ने दलितों को सनातनपंथियों, रूढ़िवादी, उच्च जाति, हिन्दुओं पर हमला करने के डर से नजरअन्दाज किया था। गाँधीजी ने दलितों को हरिजन या भगवान के बच्चे बताया।
  • गाँधीजी का मानना था कि अस्पृश्यता को खत्म किए बिना स्वराज की सौ साल तक स्थापना नहीं की जा सकती। उन्होंने दलितों को मंदिरों में प्रवेश और सार्वजनिक कुएँ, तालाब, सड़कों और स्कूलों तक पहुँच बनाने के लिए सत्याग्रह किया।
  • गाँधीजी ने सफाई के काम को सम्मानित करने के लिए स्वयं शौचालयों को साफ किया। गाँधीजी ने अछूतों के बारे में अपनी मानसिकता बदलने के लिए ऊपरी वर्ग से आग्रह किया।

 

प्रश्न 10. वर्ष 1930 में महात्मा गाँधी ने नमक को अपने आन्दोलन का आधार क्यों बनाया? इस आन्दोलन का क्या प्रभाव पड़ा ?

उत्त– 31 जनवरी, 1930 को गाँधीजी ने इर्विन को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने 11 माँगों का उल्लेख किया था। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण माँग नमक कर को समाप्त करने के बारे में थी। नमक का अमीर-गरीब सभी प्रयोग करते थे। यह भोजन का अभिन्न हिस्सा था। नमक कर ब्रिटिश सरकार का सबसे दमनकारी पहलू था। जब 11 मार्च तक उनकी माँगे नहीं मानी गई, तो 12 मार्च, 1990 को गाँधी जी ने अपने 56 स्वयंसेवकों के साथ नमक यात्रा शुरू की। यह यात्रा साबरमती से गुजरात के दांडी नामक तटीय कस्बे में जाकर समाप्त होनी थी। 6 अप्रैल को वे दांडी पहुँचे और उन्होंने समुद्र का पानी उबालकर नमक बनाना शुरू कर दिया। यह कानून का उल्लंघन था यह उपनिवेशवाद के खिलाफ प्रतिरोध का एक प्रभावकारी प्रतीक सिद्ध हुआ।

आन्दोलन के प्रभाव :– सविनय अवज्ञा आंदोलन के निम्नलिखित प्रभाव हुए–

  • इस आंदोलन में बड़ी संख्या में महिलाओं ने भी भाग लिया। अतः महिलाओं को सक्रिय रूप से राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ने में यह आंदोलन उल्लेखनीय रहा। किसानों एवं मजदूर वर्ग ने भी इसमें व्यापक भागीदारी निभाई।
  • सरकार के कठोर दमन के बाद भी लोगों ने हिंसा का सहारा नहीं लिया, जिससे गाँधीजी के अहिंसा सिद्धान्त की वैश्विक स्तर पर सराहना हुई।
  • विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार से विदेशी कपड़ों के आयात में कमी आई, जिस कारण उद्योगपति वर्ग का सरकार पर सुधारों हेतु दबाव पड़ा।
  • लोगों में राष्ट्रीय चेतना का प्रसार हुआ, जिस कारण वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में लोगों का अभूतपूर्व उत्साह देखने को मिला।
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