UP Board exam Class 11 Sahityik & Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 3rd सूरदास

UP Board exam Class 11 Sahityik & Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 3rd
सूरदास

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Board | बोर्डUP Board (UPMSP)
Class | कक्षा11th (XI)
Subject  | विषयHindi | हिंदी कक्षा ११वी  (Kavyanjali) 
Topic | शीर्षक काव्यांजलि Chapter 3rd सूरदास पद्यांश आधारित प्रश्न उत्तर 
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पद्यांश-1

UP Board exam Class 11 Sahityik & Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 3rd सूरदास

1. मेरौ मन अनत कहाँ सुख पावै ॥
जैसे उड़ि जहाज को पच्छी , फिरि जहाज पर आवै ।
कसल – नैन को छाँडि महातम , और देव कौं ध्यावें ।
परम गंग कौं छाँड़ि पियासौ , दुरमति कूप खनावै ।

जिहिं मधुकर अंबुज – रस चाख्यौ , क्यौं करील – फल भावै ।

सूरदास – प्रभु कामधेनु तजि , छेरी कौन बुहावै ॥ ( पद 2 )

शब्दार्थ – अनत – अन्यत्र , दूसरी जगह । पच्छी – पक्षी । महातम – महात्म्य , महत्ता । ध्यावै – ध्यान करे । दुरमति – मूर्ख । कूप – कुआँ । खनावै – खुदवाता है । मधुकर – भौंरा । अम्बुज – कमल । करील – कीकर । भाव अच्छा लगे । छेरी – बकरी ।

प्रश्न- ( क ) प्रस्तुत पद्यांश के पाठ एवं कवि का नाम
लिखिए ।
उत्तर- ( क ) प्रस्तुत पद्यांश ‘ विनय ‘ शीर्षक पाठ से लिया गया है जिसके रचयिता सूरदास जी हैं ।

( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या – सूरदास जी कहते हैं – मेरा मन अपने इष्टदेव श्रीकृष्ण के अतिरिक्त किसी अन्य स्थान पर कैसे सुख पा सकता है ? कहीं नहीं । जिस प्रकार समुद्र में चलते हुए जहाज पर बैठा हुआ पक्षी समुद्र के बीच में पहुँचने पर उड़े तो उसे कहीं आस – पास किनारा न मिलने के कारण फिर जहाज पर ही आना पड़ता है , उसी प्रकार कमल जैसे नेत्रों वाले श्रीकृष्ण को छोड़कर जो व्यक्ति किसी अन्य देवता का ध्यान करता है , उसे अन्त में भगवान् श्रीकृष्ण की ही शरण में आना पड़ता है ।

( ग ) जहाज का पंछी बार – बार लौटकर जहाज पर ही क्यों लौट आता है ?
( ग ) जहाज का पंछी अच्छे स्थान की खोज में जहाज से उड़ता है लेकिन आसपास जल ही जल मिलने तथा किनारा न मिलने पर जहाज पर ही लौट आता है ।

( घ ) जहाज का पंछी और जहाज किसके प्रतीक हैं 😕
( घ ) जहाज का पंछी जीवात्मा और जहाज अभीष्ट श्रीकृष्ण का प्रतीक है ।

( ङ ) उपर्युक्त पद में कवि ने किसकी श्रेष्ठता बताई है ?
( ङ ) उपर्युक्त पद में कवि ने भगवान श्रीकृष्ण की श्रेष्ठता का वर्णन किया है ।

2. ऊधौ मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं ।
हंस – सुता की सुंदर कगरी , अरु कुञ्जनि की छाँही ।
वै सुरभी वै बच्छ दोहिनी , खरिक दुहावन जाहीं ।
ग्वाल – बाल मिलि करत कुलाहल , नाचत गहि गहि बाहीं ।
यह मथुरा कंचन की नगरी , मनि – मुक्ताहत जाहीं ।
जबहिं सुरति आवति वा सुख की , जिय उमगत तन नाहीं ।
अनगन भाँति करी बहुत लीला , जसुदा नंद निबाहीं ।
सूरदास प्रभु रहे मौन हुदै , यह कहि – कहि पछिताहीं ॥
( पद 4 )

शब्दार्थ – विसरत नाही – भुलाया नहीं जाता । हंस – सुता – यमुना । कगरी – किनारा । सुरभी – गाएँ । बच्छ बछड़ा । दोहिनी – दुहना । खरिक – गाएँ वाँधने का स्थान । कुलाहल – शोर । कंचन – सोना । मुक्ताहल – मोती । सुरति – ध्यान , याद । अनगन – अनेक । मौन ह्वै – चुप होकर ।

प्रश्न- ( क ) प्रस्तुत पद्यांश के पाठ एवं कवि का नाम लिखिए ।
उत्तर- ( क ) प्रस्तुत पद्यांश ‘ भ्रमर – गीत ‘ शीर्षक पाठ से लिया गया है जिसके रचयिता सूरदास जी हैं ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या – श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे उद्धव ! यद्यपि यह मथुरा सुवर्ण की नगरी है , यहाँ पर मेरे लिए मणियाँ और मोती भी सुलभ हैं किन्तु जब ब्रज के उस सुख की याद आती है तो मेरा मन उमंगों से भर जाता है । उस समय मेरा मन शरीर में नहीं रहता । वह व्रज में ही पहुँच जाता है । हे उद्धव ! हमने वहाँ ( ब्रज में ) अनेक प्रकार से वहुत – सी लीलाएँ की हैं । यशोदा और नन्द ने हमारा पोषण किया । इतना कहते – कहते सूर के प्रभु श्रीकृष्ण स्मृतियों में खो गये । वे ये सब बातें कहते हुए पछताते रहे और फिर उनसे कुछ कहा नहीं गया , वे चुपचाप रह गए ।
( ग ) उपर्युक्त पद की विषय – वस्तु क्या है ?
( ग ) यहाँ भगवान श्रीकृष्ण उद्धव को ब्रज की स्मृतियों के विषय में बता रहे हैं कि वह ब्रज को भुला नहीं सकते हैं ।
( घ ) श्रीकृष्ण का मन कहाँ विचरण करता है ?
( घ ) श्रीकृष्ण का मन ब्रज में ही विचरण करता रहता है ।
( ङ ) यशोदा और नन्द कौन हैं ?
( ङ ) श्रीकृष्ण उद्धव को बताते हैं कि यशोदा और नन्द उनके माता – पिता हैं जिन्होंने उनका पालन – पोषण अपने पुत्र की भाँति ही किया है ।

3. हमारे हरि हारिल की लकरी ।
मनक्रम बचन नंद – नंदन उर , यह दृढ करि पकरी ।
जागत – सोवत स्वप्न दिवस – निसि , कान्ह – कान्ह जकरी ।
सुनत जोग लागत है ऐसौ , ज्यौं करुई ककरी ।
सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए , देखी सुनी न करी ।
यह तो सूर तिनहिं लै सौंपौ , जिनके मन चकरी ( पद 6 )

शब्दार्थ – हारिल – एक पक्षी जो अपने पंजों में सदा एक लकड़ी पकड़े रहता है । क्रम – कर्म , उर – हृदय । निसि – रात । कान्ह – कृष्ण । जकरी कहते रहना । करुई कड़वी । ककरी – ककड़ी । व्याधि – बीमारी । चकरी चक्कर ।

प्रश्न- ( क ) प्रस्तुत पद्यांश के पाठ एवं कवि का नाम लिखिए ।
उत्तर- ( क ) प्रस्तुत पद्यांश ‘ भ्रमर – गीत ‘ शीर्षक पाठ से लिया गया है जिसके रचयिता सूरदास जी हैं ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या – गोपियाँ उद्धव से कह रही हैं कि श्रीकृष्ण तो हमारे लिए हारिल की लकड़ी हैं । हारिल नामक पक्षी जैसे हमेशा अपने पंजों में एक लकड़ी को पकड़े रखता है और उसे कभी छोड़ता नहीं , ठीक उसी प्रकार से हम श्रीकृष्ण को नहीं छोड़ सकतीं । हमने मन , वचन और कर्म से श्रीकृष्ण को अपने हृदय में दृढ़ता से पकड़ रखा है । हम जागती , सोती , सपने में और दिन – रात कृष्ण – कृष्ण ही पुकारती रहती हैं ।
( ग ) हारिल पक्षी की क्या विशेषता है ?
( ग ) हारिल पक्षी हमेशा अपने पंजों में एक लकड़ी पकड़े रहता है और उसे कभी नहीं छोड़ता है ।
( घ ) हारिल पक्षी किसका प्रतीक है ?
( घ ) हारिल पक्षी एकनिष्ठ भक्ति भावना का प्रतीक है ।
( ङ ) गोपियाँ उद्धव से योग – साधना के लिए क्यों मना करती हैं ?
( ङ ) गोपियाँ उद्धव से योग – साधना के लिए इसलिए मना करती हैं क्योंकि उनका चित्त कृष्ण नाम स्मरण में स्थिर हो गया है । योग – साधना चंचल चित्त वालो के लिए उचित है ।

4. कहत कत परदेसी की बात ।
मंदिर अरध अवधि बदि हमसौं , हरि अहार चलि जात ।
ससि – रिपु बरष , सूर – रिपु जुग बर , हर – रिपु कीन्ही घात ।
मघ पंचक लै गयो साँवरो , तातै अति अकुलात ।
नखत , वेद , ग्रह , जोरि , अर्ध करि , सोइ बनत अब खात ।
सूरदास बस भई बिरह के , कर मीजै पछितात ॥ ( पद 9 )

शब्दार्थ – ससि रूप – चाँद का शत्रु , दिन । सूर रिपु – सूर्य का शत्रु , रात । हर रिपु – शिव का शत्रु , कामदेव । घात – दाँव लगाना । मघ पंचक – गघा से पाँचवाँ नक्षत्र अर्थात् चित्रा = चित्त । नखत – नक्षत्र । नक्षत्र -27 , वेद -4 , ग्रह -9 जोड़कर 27 + 4 + 9 = 40 , सबका आधा = 20 अर्थात् बीस – विष । मीजै – मलती है ।

प्रश्न- ( क ) प्रस्तुत पद्यांश के पाठ एवं कवि का नाम लिखिए ।
उत्तर- ( क ) प्रस्तुत पद्यांश ‘ भ्रमर – गीत ‘ शीर्षक पाठ से लिया गया है जिसके रचयिता सूरदास जी हैं ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या – गोपियाँ कहती हैं कि हे उद्धव जी ! उस परदेशी कन्हैया की क्या बात कहें ? वह हमसे एक पक्ष -15 दिन में आने के लिए अवधि वता गये थे किन्तु एक मास बीत गया है और वह अब तक भी नहीं आये । हे उद्धव ! अब कृष्ण के वियोग में चन्द्रमा का शत्रु दिन हमारे लिए वर्ष के समान और सूर्य की शत्रु रात्रि हमसे युग के समान बीतती है । शिवजी का शत्रु कामदेव तो हमारी हर समय घात लगाये रहता है ।
( ग ) गोपियाँ उद्धव से किसकी शिकायत करती हैं ?
( ग ) गोपियाँ उद्धव से परदेस गये श्रीकृष्ण की शिकायत करती हैं ।
( घ ) गोपियों के अनुसार श्रीकृष्ण उनका क्या लेकर गए हैं ?
( घ ) गोपियों के अनुसार श्रीकृष्ण उनका चित्त लेकर गये हैं ।
( ङ ) ‘ नखत , वेद , ग्रह जोरि अर्ध करि , सोइ बनत अब खात ‘ पंक्ति का क्या आशय है ?
( ङ ) “ नखत , वेद , ग्रह जोरि अर्ध करि , सोइ बनत अब खात ‘ पंक्ति का आशय है – गोपियाँ नक्षत्र 27 , वेद 4 , ग्रह 9 ( 27 + 4 + . 9 = 40 ) को जोड़कर उसका आधा बीस अर्थात विष खाने की बात कर रही हैं ।

5. ऊधौ भली भई ब्रज आए ।
बिधि कुलाल कीन्हें काँचे घट ते तुम आनि पकाए ।
रँग दीन्हौं हो कान्ह साँवरें , अंग – अंग चित्र बनाए ।
पात गरे न नैन नेह तैं , अवधि अटा पर छाए ।
ब्रज करि अँवा जोग ईंधन करि , सुरति अगनि सुलगाए ।
फॅक उसास बिरह प्रजरनि सँग , ध्यान दरस सियराए ।
भरे संपूरन सकल प्रेम – जल , छुबन न काहू पाए ।
राज काज तैं गए सूर प्रभु , नंद नंदन कर लाए । ( पद 11 )

शब्दार्थ – भली भई – अच्छा हुआ । विधि – ब्रह्म । कुलाल – कुम्भकार । घट – घड़ा । पातै गरे नगल नहीं पाते । अंबा – आवाँ । सुरति आनि याद दिलाकर । उसास – दुःख से भरी लम्बी गहरी साँसें । प्रजरनि लपटें । सियराये – ठण्डे किये । कर लाए – छूना या स्पर्श करना ।
प्रश्न- ( क ) प्रस्तुत पद्यांश के पाठ एवं कवि का नाम लिखिए ।
उत्तर- ( क ) प्रस्तुत पद्यांश ‘ भ्रमर – गीत ‘ शीर्षक पाठ से लिया गया है जिसके रचयिता सूरदास जी हैं ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या – हे उद्धव ! अब आपने आकर सम्पूर्ण ब्रज को अवाँ बना दिया और योग रूपी ईंधन से स्मृति रूपी आग को सुलगा दिया फिर उस अग्नि में हमारी निश्वासों से विरह की लपटों द्वारा हमारे शरीर रूपी घड़े पक गये तथा आपने श्रीकृष्ण के दर्शन प्राप्त करने की इच्छा और ध्यान से शीतल कर दिया । अब ये शरीर रूपी घड़े पूर्ण रूप से प्रेम रूपी जल से भरे हुए हैं और आज तक कोई इनका स्पर्श नहीं कर सका है । हे उद्धव ये तो उन्हीं नन्द – नन्दन के लिए सुरक्षित हैं जो राजकार्य से मथुरा गये हुए हैं ।
( ग ) गोपियाँ ब्रज में आने के लिए किसको धन्यवाद देती हैं ?
( ग ) गोपियाँ ब्रज में आने के लिए उद्धव को धन्यवाद देती हैं ।
( घ ) उद्धव ने गोपियों का क्या हित किया ?
( घ ) उद्धव के आने से गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति विश्वास दृढ़ हो गया ।
( ङ ) गोपियों का हृदय रूपी घट किस रस से भरा है ?

( ङ ) गोपियों का हृदय रूपी घट भक्ति – रस की वायु से भरा है ।

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