UP Board Solution of Class 9 Hindi Chapter 5 Subhashitani (Anivarya Sanskrit Khand) – हिंदी कक्षा 9 पाठ -5 सुभाषितानि (अनिवार्य संस्कृत-खण्ड)
Uttar Pradesh Board Solution of Class 9 Hindi Chapter 5 Subhashitani (Anivarya Sanskrit Khand) – हिंदी कक्षा 9 पाठ -5 सुभाषितानि (अनिवार्य संस्कृत-खण्ड) upmsp
UP Board Solution of Anivary – Sanskrat – class 9th chapter – 5
पञ्चमः पाठः – सुभाषितानि
[ पाठ-परिचय : ‘संस्कृत’ के इस पाठ में जीवनोपयोगी उपदेश निहित हैं, जिनका आचरण करके मनुष्य सुख-शान्ति का जीवन जी सकता है। ]
- वरमेको गुणी……..,……………तारागणैरपि ।।
शब्दार्थ – वरम् = श्रेष्ठ । गुणी = गुणवान् । शतैरपि = सैकड़ों भी । त्म = अन्धकार |
सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य पुस्तक के अन्तर्गत संस्कृत खण्ड के ‘सुभाषितानि’ नामक पाठ से उद्धृत है।
हिन्दी अनुवाद – सैकड़ों मूर्ख पुत्रों से (भी) एक गुणवान् पुत्र श्रेष्ठ है; (क्योंकि असंख्य) तारागणों और एक चन्द्रमा दोनों में चन्द्रमा अन्धकार को मार देता है; असंख्य तारे नहीं।
- मनीषिणः सन्ति……………,हितं च दुर्लभम् ॥
शब्दार्थ – मनीषिणः = विद्वान् । हितैषिणः = हित चाहने वाले। सुहृत् = मित्र । नृणाम् = मनुष्यों में यथौषधम् (यथा + औषधम् ) = जैसे ओषधि । हितं = हितकारी ।
हिन्दी अनुवाद – जो विद्वान् हैं, वे हितैषी (भला चाहनेवाले) नहीं हैं। जो हित चाहने वाले हैं, वे विद्वान् नहीं हैं। जो विद्वान् भी हो और हितैषी भी ऐसा व्यक्ति मनुष्यों में उसी प्रकार से दुर्लभ है, जिस प्रकार स्वादिष्ट और हितकारी ओषधि दुर्लभ होती है।
- चक्षुषा मनसा ………….. लोको नु प्रसीदति ।।
शब्दार्थ – चक्षुषा = नेत्र से । वाचा = वाणी से । चतुर्विधम् = चार प्रकार से । प्रसादयति = प्रसन्न करता है। लोकं = संसार को। तं = उसके प्रति
हिन्दी अनुवाद – जो मनुष्य नेत्र से, मन से, वाणी से और कर्म से – (इन) चारों प्रकार से संसार को प्रसन्न रखता है, संसार उसे प्रसन्न रखता है
- अक्रोधेन जयेत्……………… सत्येन चानृतम् ॥
शब्दार्थ – अक्रोधेन = क्रोध न करने से। असाधुम् = दुर्जन को! जयेत् = जीतना चाहिए। कदर्यम् = कंजूस को। अनृतं = झूठ ।
हिन्दी अनुवाद – क्रोध को क्रोध न करने से (शान्ति से) जीतना चाहिए। दुर्जन को सज्जनता से जीतना चाहिए। कंजूस को दान से जीतना चाहिए। असत्य (झूठ) को सत्य से जीतना चाहिए।
- अकृत्वा परसन्तापमगत्वा……..स्वल्पमपि तद् बहु ।।
शब्दार्थ – अकृत्वा = न करके। परसन्तापम् = दूसरे को दुःख देना । अगत्वा = न जाकर। तद् = वह ! खल = दुष्ट । सतां = सज्जनों का।
हिन्दी अनुवाद – दूसरों को दुःखी न करके, दुष्ट के घर न जाकर, सज्जनों के मार्ग का उल्लंघन न करके, जो थोड़ा भी मिल जाता है, वही बहुत है।
- सत्याधारस्तपस्तैलं………….. यत्नेन वार्यताम् ।।
शब्दार्थ – सत्याधारः = सत्य ही जिसका आधार है। दयावर्तिः = दयारूपी बत्ती । शिखा = लौ । वार्यताम् = जलाना चाहिए। तपस्तेले = तपरूपी तेल ।
हिन्दी अनुवाद – सत्य का आधार वाले, तपरूपी तेल वाले, दयारूपी बत्ती वाले, (और) क्षमारूपी लौ वाले दीपक को अन्धकार में प्रवेश करते समय प्रयत्न से जलाना चाहिए।
- त्यज दुर्जन…………………….नित्यताम् ॥
शब्दार्थ – संसर्ग = संगति साथ, समगमम् = मेल-मिलाप । अहः = दिन! नित्यम् = उचित, ठीक अनित्यम् = अनुचित । भज = अनुकरण करो ।
हिन्दी अनुवाद – दुष्टों की संगति त्याग दो। सज्जनों से मेल-मिलाप करो। दिन में पुण्य कर्म करो और रात्रि में उचित अनुचित को याद करो अर्थात् हमें दिनभर अच्छे कार्य करने चाहिए और रात्रि में उन पर विचार करना चाहिए कि हमने क्या उचित किया और क्या अनुचित ।
8. मनसि वचसि……………सन्ति सन्तः कियन्तः ॥
शब्दार्थ—काये = शरीर में। पुण्यपीयूषपूर्णाः =
पुण्यरूपी अमृत से भरे हुए। परगुण- परमाणून् = दूसरों के अत्यल्प गुणों को! पर्वतीकृत्य = पर्वत के समान बड़ा ।
हिन्दी अनुवाद – मन, वाणी और शरीर में पुण्यरूपी अमृत से भरे हुए, परोपकारों के द्वारा तीन लोकों को प्रसन्न करनेवाले, दूसरों के परमाणु जैसे बहुत छोटे गुणों को भी पर्वत के समान बड़ा देखकर और अपने हृदय से सदा प्रसन्न रहनेवाले सज्जन इस संसार में कितने हैं अर्थात् बिरले ही हैं।
महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर -Question in sanskrit.Chapter 5 Subhashitani
प्रश्न 1. लोकः कं प्रसीदति?
उत्तर : यः लोकं चक्षुषा, मनसा, वाच, कर्मणा च प्रसादयति तं लोकं प्रसीदयति ।
प्रश्न 2. कोथं केन जयेत् ?
उत्तर : अक्रोधेन क्रोधं जयेत् । ।
प्रश्न 3. अनृतं केन जयेत् ?
उत्तर : अनृतं सत्येन जयेत् ।
प्रश्न 4. असाधुं केन जयेत् ?
उत्तर : साधुना असाधुं जयेत्।
प्रश्न 5. अंधकारे प्रवेष्टव्ये यत्नेन कः वार्यताम् ?
उत्तर : अंधकारे प्रवेष्टब्ये दीपो यत्नेन वार्यताम् ।
प्रश्न 6. कीदृशो मार्ग : सर्वोत्तमः भवति ?
उत्तर : सतां मार्ग: सर्वोत्तमः भवति
प्रश्न 7. कस्यः बुद्धि विकसिता भवति ?
उत्तर : यः पठति, लिखति, पश्यति, परिपृच्छति, पण्डितान् उपाश्रयति च तस्य बुद्धिः विकसिता भवति ।
प्रश्न 8. कीदृशाः जनाः लोके दुर्लभाः ?
उत्तर : सदाचारी जना: लोके दुर्लभाः ।
प्रश्न 9. कः तमो हन्ति ?
उत्तर : एकश्चन्द्रस्तमो हन्ति ।
प्रश्न 10. लोके कियन्तः सन्तः सन्ति?
उत्तर : लोके अत्यल्पाः सन्तः सन्ति
बहुविकल्पीय प्रश्न Chapter Chapter 5 Subhashitani
- कः तमः हन्ति ?
(अ) चन्द्रः (ब) सूर्यः
(स) तारा (द) एतेषु न कश्चिदामपि
- अनृतं केन जयेत् ?
(अ) असत्यभाषणेन (ब) सत्यभाषणेन
(स) मृदु भाषणेन (द) कटु भाषणेन
- क्रोधं केन जयेत् ?
(अ) शान्त्या (ब) भयेन
(स) अशान्त्या (द) कलहेनं
- कीदृशो मार्गः सर्वोत्तमः भवति ?
(अ) कुमार्गः (ब) सुमार्गः
(स) सतां मार्गः (द) एतेषु न कश्चिदामपि
- किस प्रकार के लोग लोकप्रिय होते हैं ?
(अ) जो लोगों को मन से प्रसन्न रखें
(ब) जो वाणी से लोगों को प्रसन्न रखें
(स) जो कर्म से लोगों को प्रसन्न रखें
(द) उपर्युक्त सभी
- किस प्रकार के लोग संसार में दुर्लभ हैं ?
(अ) सदाचारी (ब) कदाचारी
(स) अत्याचारी (द) मिथ्यावादी
- किसकी बुद्धि विकसित होती है ?
(अ) जो पढ़ता है
(ब) जो लिखता है
(स) जो पण्डितों के पास बैठता है।
(द) इनमें सभी
- कदर्यं केन जयेत् ?
(अ) दानेन (ब) पुण्येन
(स) कर्मेण (द) एतेषु न कश्चिदामपि
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