UP Board Solution Of Hindi Class 12 Kahani Karmanasha ki Har (कर्मनाशा की हार) समीक्षा , कथावस्तु सारांश चरित्र चित्रण

UP Board Solution Of Hindi Class 12 Kahani Karmanasha ki Har (कर्मनाशा की हार) समीक्षा , कथावस्तु सारांश चरित्र चित्रण

UP Board Solution Of Hindi Class 12 Kahani Karmanasha ki Har (कर्मनाशा की हार) समीक्षा , कथावस्तु सारांश चरित्र चित्रण- kahani ka saransh bharopande ka charitr chitrn , kuldeep fulmat, kathavastu , uddeeshy. 

कर्मनाशा की हार

प्रश्न १. ‘ कर्मनाशा की हार ‘ कहानी के कथानक का सार प्रस्तुत कीजिए ।

अथवा ‘ कर्मनाशा की हार का कथासार अपने शब्दों में दीजिए ।

अथवा कर्मनाशा नदी के प्रति ग्रामीणों की क्या भावना व्यक्त की गई है ? साधार निरूपित कीजिए और बताइए कि उसकी ‘ हार ‘ का क्या अभिप्राय है ?

उत्तर – ‘ कर्मनाशा की हार ‘ भारतीय ग्रामीण जीवन में व्याप्त अन्धविश्वास , ईर्ष्या – द्वेष , जातिगत भेदभाव प्रस्तुत करने वाली एक ऐसी सामाजिक कहानी है जो कहानीकार के प्रगतिशील एवं मानवतावादी दृष्टिकोण का समर्थन करती है । ‘ भैरों पाण्डे ‘ इस कहानी के केन्द्रीय पात्र हैं । नैतिकता एवं वंश मर्यादा के पुरातन संस्कारों को झटककर वे मानवतावादी नवीन जीवन दृष्टि से अन्ततः परिचालित होते हैं । अन्धविश्वास की पराजय ही कर्मनाशा की हार है और प्रकारान्तर से वही मानवता की विजय है । इस कहानी का सार निम्न शब्दों में प्रस्तुत किया जा सकता है :

 

कर्मनाशा की हार का सारांश 

‘ नई डीह ‘ नामक गांव कर्मनाशा नदी के किनारे बसा हुआ है । इसी गांव में रहते हैं पैरों से अपाहिज भैरों पाण्डे जिन्होंने माता – पिता की मृत्यु के उपरान्त अपने दो वर्षीय भाई कुलदीप को बेटे की तरह पाला – पोसा है । कुलदीप अब सोलह वर्ष का नवयुवक है और अपने पड़ोस में रहने वाली फुलमत से प्रेम करता है जो मल्लाह जाति की है और एक बाल विधवा है ।

भैरों पाण्डेको इन दोनों पर सन्देह तो है , किन्तु वह सन्देह पुष्ट .तब होता है जब एक दिन चांदनी रात में कर्मनाशा के तट पर वे दोनों का प्रेमालाप देख लेते हैं । भैरों पाण्डेयह सहन नहीं कर पाते और कुलदीप के गाल पर थप्पड़ मार देते हैं जिससे रुष्ट होकर कुलदीप घर छोड़कर चला जाता है और बहुत खोजबीन करने पर भी वह भैरों पाण्डे को नहीं मिलता ।

कुलदीप को गए हुए चार – पांच महीने हो गए हैं तभी नदी में बाढ़ आ जाती है । उस गांव में यह अंधविश्वास प्रचलित है कि कर्मनाशा की बाढ़ मानव बलि लेकर ही शान्त होती है । तभी लोगों को पता चलता है कि विधवा फुलमत ने बच्चे को जन्म दिया है । इस सूचना पर सारे ग्रामीण कर्मनाशा की बाढ़ का कारण फुलमत और उसके पाप को समझने लगते हैं । लोग निर्णय करते हैं कि फुलमत और उसके बच्चे को नदी में फेंक दिया जाय , तभी कर्मनाशा की बाढ़ शान्त होगी ।

भैरों पाण्डे जानते हैं कि यह बच्चा कुलदीप का है , किन्तु सामाजिक प्रतिष्ठा के नष्ट होने का भय उन्हें सत्य प्रकट करने से रोके हुए हैं । अन्त में वे अपने मानसिक द्वन्द्व पर विजय प्राप्त कर उस स्थान पर पहुंच जाते हैं जहां ग्रामीणों की भीड़ भयभीत फुलमत और उसके बच्चे को नदी में फेंकने के लिए तैयारी कर रही है ।

भैरों पाण्डे इस अन्याय एवं अनर्थ को रोकने के लिए निर्भीक स्वर में कहते हैं कि यह बच्चा उनके भाई कुलदीप का है । फुलमत ने कोई पाप नहीं किया , वह उनके छोटे भाई की पत्नी है और यह बच्चा उनका कुलदीपक है । गांव वाले फिर भी फुलमत को पापिनी मानते हैं और मुखिया कहता है कि फुलमत को अपने पाप का दण्ड तो भोगना ही पड़ेगा ।

इस पर भैरों पाण्डे कठोर स्वर में ग्रामीणों का विरोध करते हुए कहते हैं कि अगर मैं लोगों में से एक – एक के पाप गिनाने लगूं तो सारे गांव को कर्मनाशा की धारा में डूबना पड़ेगा । चट्टान की भांति तुम दृढ़ भैरों पाण्डे बच्चे सहित फुलमत को अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर उसके रक्षक बन जाते हैं । अपाहिज भैरों पाण्डे के इस साहस को देखकर लोग सहमकर स्तब्ध रह जाते हैं ।

वह कर्मनाशा जो पहले कभी बिना वलि लिए हुए शान्त नहीं हुई थी वह भी इस बार हार गई थी । भैरों पाण्डे की यह गर्जना समस्त रूढ़ियों एवं अन्धविश्वासों को जड़ मूल से ध्वस्त कर रही थी- ‘ कर्मनाशा की बाढ़ दुधमुंहे बच्चे और एक अबला की बलि देने से नहीं रुकेगी । उसके लिए तुम्हें पसीना बहाकर बांधों को ठीक करना होगा । “ लोग अवाक् होकर पाण्डे की ओर देख रहे थे जो अपने कन्धे से छोटे बच्चे को चिपकाए अपनी बैसाखी के सहारे खड़े थे ।

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