Essay On Dowry System in India In Hindi दहेज प्रथा अभिशाप

दहेज प्रथा : एक अभिशाप || Essay On Dowry system

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रूपरेखा –

  • प्रस्तावना ,
  • दहेज का अर्थ ,
  • दहेज प्रथा के दोष , 
  • दहेज प्रथा के कारण , 
  • सरकारी प्रावधान ,
  • समाज की भूमिका ,
  • दहेज प्रथा के उन्मूलन हेतु सुझाव ,
  • उपसंहार । 
  1. प्रस्तावना — वर्तमान भारतीय समाज में जो कुप्रथाएं प्रचलित हैं उनमें सर्वाधिक बुरी प्रथा है- दहेज प्रथा जिसके कारण आम भारतीय त्रस्त , आशंकित एवं कुण्ठित हो रहा है । निश्चय ही दहेज प्रथा एक ऐसा अभिशाप बन गई है जो निरन्तर विकृत रूप धारण करती जा रही है तथा प्रतिदिन अनेक युक्तियाँ दहेज की बलिवेदी पर अपना बलिदान देने को विवश हो रही हैं । यदि इस दहेज रूपी भयंकर कोढ़ का हमने समय रहते उपचार न , किया तो यह हमारे समाज के नैतिक मूल्यों का क्षरण कर देगा और मानवता सिसकने लगेगी तथा मानवीय मूल्य समाप्त हो जाएंगे । प्रसिद्ध उपन्यासकार मुंशी प्रेमचन्द ने इस समस्या को आधार बनाकर ‘ निर्मला ‘ नामक उपन्यास लिखा . जिसमें दहेज प्रथा के दुष्परिणामों को भोगने वाली नायिका निर्मला की व्यथा की मार्मिक अभिव्यक्ति कुशलता से की गई है । इसी उपन्यास में दहेज प्रथा पर टिप्पणी करते हुए प्रेमचन्द कहते हैं : ” दहेज बुरा रिवाज है , बेहद बुरा । बस चले तो – दहेज लेने वालों और देने वालों को ही गोली मार देनी चाहिए , फिर चाहे फांसी ही क्यों न हो जाए । पूछो , आप लड़के का विवाह करते हैं कि उसे बेचते हैं ? ” प्रेमचन्द की ये पंक्तियां हमें इस ज्वलन्त समस्या पर सोचने को विवश करती हैं । उनके हृदय में इस कुप्रथा के प्रति कितना आक्रोश है यह भी यहाँ व्यंजित हो रहा है । “

  • दहेज का अर्थ — दहेज का शाब्दिक अर्थ है वह सम्पत्ति या वस्तु जो विवाह हेतु एक पक्ष ( प्रायः कन्या पक्ष ) द्वारा दूसरे पक्ष ( प्रायः वर पक्ष ) को दी जाती है । आज दहेज प्रथा भारतीय समाज की एक ऐसी अनिवार्य बुराई है , जिससे बच पाना बहुत कठिन है । दहेज वस्तुतः ‘ वर मूल्य ‘ के रूप में प्रचलित हो गया है और बाकायदा इसे विवाह पूर्व ही निश्चित एवं निर्धारित कर लिया जाता है । कैश एवं सामान की विधिवत् सूची बना ली जाती है , कितना रुपया दिया जाएगा , कब – कब दिया जाएगा और क्या – क्या सामान दिया जाए , इसे ‘ कन्या पक्ष एवं वर पक्ष के लोग तय कर लेते हैं और जब बातचीत किसी निर्णय पर पहुँच जाती है , तभी विवाह सम्बन्ध स्थिर होता है । प्राचीन भारत में भी दहेज प्रथा थी , किन्तु तब की स्थिति दूसरी थी । तब वह स्वेच्छा से दिया जाने वाला स्त्री धन था , जो कन्या को उपहार में मिलता था । युवक अपनी नई गृहस्थी वसाते थे , वे गृहस्थ जीवन का सरलता से संचालन कर सकें अतः उन्हें आवश्यक वस्तुएं भी उपहार में दी जाती थीं , किन्तु कालान्तर में इसका स्वरूप में बदल गया और वर्तमान समय में तो यह दहेज प्रथा समाज का कोढ़ बन गई है । विवाह के बाजार में ‘ वर ‘ की नीलामी हो रही है , बाकायदा उसके ‘ रेट ‘ लगाए जा रहे हैं । कन्या का पिता लाचार होकर ‘ वर ‘ की कीमत चुकाता है । क्या करे , यदि वह दहेज देने से इन्कार करता है , तो उसकी कन्या का पाणिग्रहण करने को कोई तैयार नहीं होता । समाज उस पिता को हिकारत की नज़र से देखता है जो सयानी कन्या का समय पर विवाह नहीं कर पाता । समाज की इन नजरों से त्राण पाने का उसके पास यही एक चारा है कि वह विवाह के बाजार में मुँहमांगी कीमत देकर कन्या के हाथ पीले कर दे ।

  • दहेज प्रथा के दोष – पिता के द्वारा कन्या को या वर को स्वेच्छा से उपहार देने में कोई बुराई नहीं है , किन्तु जब विवश होकर उसे धन देने को बाध्य किया जाता है या फिर धन वसूलने के लिए वर पक्ष के लोग तरह – तरह के हथकण्डे अपनाते हैं , तभी दहेज एक अभिशाप बन जाता है । कन्या के पिता द्वारा जब वर पक्ष की मांगें पूरी करने में असमर्थता व्यक्त की जाती है , तो उसकी पुत्री का शारीरिक मानसिक उत्पीड़न प्रारम्भ कर दिया जाता है , उसे घर से निकाल दिया जाता है , वैवाहिक सम्बन्ध तोड़ने की धमकी दी जाती है और कभी कभी तो उसकी हत्या तक कर दी जाती है । आज दहेज की बलि वेदी पर प्राण न्योछावर करने वाली ऐसी अभागिनों की संख्या निरन्तर बढ़ रही है । समाचार पत्र ऐसे समाचारों से भरे रहते हैं जिसमें नवविवाहिता ने या तो आत्महत्या कर ली या उसे मिट्टी का तेल छिड़ककर जला दिया गया । क्या यह सभ्य समाज की रीति है , जिसमें इस प्रकार के नीच कार्य किए जाते हैं ? विवाह पहले भी होते थे , किन्तु ऐसी घटनाएं यदा – कदा ही सुनने में आती थीं , किन्तु आज तो इन घटनाओं की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो गई है । क्या यही हमारा नैतिक विकास है , क्या यही सभ्यता का तकाजा है ? इन प्रश्नों पर गम्भीरता से विचार करने की आवश्यकता है कि हमारे समाज का यह अधोपतन क्यों हुआ ? दहेज प्रथा के प्रमुख कारण – वस्तुतः आज धनलिप्सा बढ़ गई है ।
  • आदमी अपने जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के लिए जैसे भी हो , धन प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील है । ऐसी स्थिति में दहेज प्रथा क्यों नहीं पनपेगी ? एक ही बार में एक साथ इतना धन , इतना सामान भला और कहाँ से प्राप्त हो सकता है ? इस दहेज प्रथा ने समाज में अनेक बुराइयों को जन्म दिया है । भ्रष्टाचार , काला धन्धा , तस्करी , रिश्वत , बेईमानी जैसी प्रवृत्तियों को विकसित करने में दहेज प्रथा ने योगदान किया है । कोई भी नौकरी पेशा व्यक्ति ईमानदारी से जीवन यापन करते हुए लाखों रुपए कन्या के विवाह में नहीं लगा सकता । अतः उसे बेईमानी एवं रिश्वतखोरी के लिए विवश होना पड़ता है । दहेज प्रथा का सबसे बुरा पक्ष यह है कि जो व्यक्ति पुत्री के विवाह में दिए जाने वाले दहेज को लेकर चिन्तित रहते हैं , उसे एक सामाजिक बुराई बताते हैं , वही पुत्र के विवाह में दहेज लेते समय जरा भी संकोच नहीं करते । पुत्री के पिता एवं पुत्र के पिता के रूप में उनका कार्य एवं व्यवहार अलग – अलग रहता है ।

  • सरकारी प्रावधान – दहेज प्रथा को रोकने के लिए यद्यपि सरकार ने कानून बनाए हैं , किन्तु वे अधिक प्रभावी नहीं हो पाए हैं । सन् १ ९ ६१ में भारत सरकार ने दहेज विरोधी अधिनियम बनाया जिसके प्रावधानों के अनुसार दहेज लेना और देना दोनों ही दण्डनीय अपराध हैं । तदुपरान्त सन् १ ९ ७६ तथा १ ९ ८४ में भी इस कानून में संशोधन किए गए । संशोधित अधिनियम के अन्तर्गत ऐसी कोई भी सम्पत्ति या वस्तु जो शादी के सम्बन्ध में दूल्हे को या किसी अन्य को दी गई है या देने का वादा किया गया है , दहेज कही जाएगी । कोई भी व्यक्ति , जो वर या कन्या के संरक्षक , अभिभावक या माता – पिता से शादी के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई मांग करता है , कम – से – कम ६ माह और अधिक से अधिक दो वर्ष की कैद का भागी होगा तथा उस पर १० हजार रुपए जुर्माना भी किया जा सकता है । साथ ही विवाह के अवसर पर दिए जाने वाले उपहारों की एक सूची भी बनाई जाएगी जिस पर वर – वधू के हस्ताक्षर होंगे । इस सूची को दहेज के अन्तर्गत नहीं माना जाएगा वशर्ते दिए गए उपहार देने वाले की आर्थिक हैसियत के अनुरूप हों । “

  • दहेज प्रथा को रोकने में समाज की भूमिका –  दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए सरकार द्वारा बनाए गए नियम कानून अधिक प्रभावी नहीं हो सकते , क्योंकि कानून अपनी ओर से विवाह में हस्तक्षेप नहीं करता जब तक कि किसी के द्वारा शिकायत न की गई हो । यही कारण है कि नियम और कानून होने पर भी दहेज प्रथा को नहीं रोका जा सकता है , किन्तु समाज की भूमिका इसमें अधिक प्रभावी हो सकती है । ऐसा देखा गया है कि कुछ पंचायतों ने यह निर्णय लिया है कि उनके समाज में दहेज लिया या दिया गया तो ऐसे व्यक्ति का सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाएगा । इस सामाजिक बहिष्कार के डर से दहेज प्रथा वहाँ समाप्त हो गई ।

  • दहेज प्रथा के उन्मूलन हेतु सुझाव – दहेज प्रथा सामाजिक अभिशाप है जिसे दूर करने के लिए एक ओर तो सरकार को कड़े कानून बनाने चाहिए और उनका पालन सुनिश्चित कराया जाना चाहिए , तो दूसरी ओर समाज को भी इस दिशा में सक्रिय भूमिका का निर्वाह करते हुए ठोस उपाय करने चाहिए । दहेज प्रथा के उन्मूलन हेतु उपयोगी सुझाव निम्नवत् हैं : १. अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन दिया जाए । २. लड़कियों को शिक्षित करके आत्मनिर्भर बनाया जाए । ३. लड़कियों को वर चुनने की स्वतन्त्रता दी जाए | ४. प्रेम विवाहों को प्रोत्साहन दिया जाए । ५. युवक – युवतियाँ दृढ़तापूर्वक दहेज लोभी माता – पिता का विरोध करें । ६. दहेज लेने वालों या देने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाए । ७. सरकार ऐसे विवाहों पर नजर रखे जिनमें वैभव प्रदर्शन किया गया हो । इनका पूरा हिसाब – किताब आयकर वाले लें । ८ : सामूहिक विवाहों का आयोजन किया जाए । ९ . समाज दहेज को महिमामण्डित करने की प्रथा बन्द करे |
  • उपसंहार — यदि हम उक्त उपायों पर ध्यान दें तो इस सामाजिक अभिशाप को दूर करने में योगदान कर सकते हैं और इस प्रकार समाज को इस कोढ़ से मुक्ति दिला सकते हैं |

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