Essay on Unemployment in India in Hindi हिंदी निबन्ध भारत में बेरोजगारी, बेरोजगारी : कारण एवं निवारण

 

यहां पर हमने बेरोजगारी : समस्या और समाधान पर आधारित निबंध की चर्चा की है इससे संबंधित अन्य टॉपिक पर भी यही निबंध लिख सकते हैं -अन्य सम्बन्धित शीर्षक बेरोजगारी : समस्या और समाधान , भारत में बेरोजगारी, बेरोजगारी : कारण एवं निवारण , जनसंख्या वृद्धि और बेरोजगारी , बेकारी की समस्या, शिक्षा और रोजगार, शिक्षित बेरोजगारों की समस्या आदि |   Here we have discussed the essay based on the Unemployment: Problem and Solution, Unemployment in India, Unemployment: Causes and Prevention, Population Growth and Unemployment, Unemployment Problem, Education and Employment, Problem of educated unemployed, you can write the same essay on other topics related to it like. UP Board Mp Board RBSE, CBSE Board class  9,10,11,12  Essential and important essay for Students of all Classes. We have explained the topic heading by heading along with the outline here.

रूपरेखा –

  1. प्रस्तावना ,
  2. बेरोजगारी का अर्थ , 
  3. बेरोजगारी के दुष्परिणाम ,
  4. बेरोजगारी के कारण ,
  5. बेरोजगारी दूर करने के उपाय
  6. उपसंहार ।
  • प्रस्तावना—

हमारे देश के सम्मुख अनेक समस्याएं मुँह फैलाए खड़ी हैं । इनमें से सर्वाधिक प्रमुख है— बेरोजगारी की समस्या | एक मोटे अनुमान से भारत में बेरोजगारों की संख्या करोड़ों में है । पिछले सत्तावन वर्षों में बेरोजगारों की एक फौज ही देश में खड़ी हो गई है । स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरान्त लोगों को यह आशा थी कि देश में सबको रोजगार प्राप्त हो जाएगा , किन्तु यह सम्भव नहीं हो सका और तमाम प्रयासों के बावजूद स्थिति बद से बदतर होती गई । यद्यपि निर्धनता , गन्दगी , रोग , अशिक्षा और बेकारी – इन पांच राक्षसों ने संसार को विनाश की ओर प्रेरित किया है , तथापि बेकारी इनमें सबसे भयानकतम है । ”

  • बेरोजगारी का अर्थ –

बेरोजगार उस व्यक्ति को कहा जाता है जो योग्यता रखने पर भी और कार्य की इच्छा रखते हुए भी रोजगार प्राप्त नहीं कर पाता । शारीरिक तथा मानसिक रूप से सक्षम होते हुए भी जब योग्य व्यक्ति बेकार रहता है , तो उस स्थिति को बेरोजगार की संज्ञा दी जाती है । बेरोजगारी को सामान्यतः दो में बांटा जा सकता है— स्थायी या अस्थायी । कभी – कभी व्यक्ति जिस प्रकार की योग्यता रखता है , उस प्रकार का काम उसे नहीं मिलता , परिणामतः वह किसी अन्य साधन से जीवन यापन करने लगता है । यह स्थिति भी अर्द्धबेरोजगारी की ही मानी जाती है । कुछ उद्योग – धन्धे सीजनल ‘ होते हैं तथा एक विशेष मौसम में ही वहाँकाम होता है । उदाहरण के लिए , चीनी उद्योग या आइसक्रीम उद्योग मौसमी उद्योग हैं अतः यहाँ काम करने वाले श्रमिकों को साल में कुछ महीने बेकार रहना पड़ता है । हड़ताल , तालाबन्दी जैसे कारणों से भी श्रमिकों को बेरोजगारी झेलनी पड़ती है ।

  • बेरोजगारी के दुष्परिणाम –

सबसे खराब स्थिति तो वह है जब पढ़े – लिखे युवकों को भी रोजगार नहीं मिलता । शिक्षित युवकों की यह बेरोजगारी देश के लिए सर्वाधिक चिन्तनीय है , क्योंकि ऐसे युवक जिस तनाव और अवसाद से गुजरते हैं , उससे उनकी आशाएं टूट जाती हैं और वे गुमराह होकर उग्रवादी , आतंकवादी तक बन जाते हैं । कश्मीर और असम के आतंकवादी संगठनों में कार्यरत उग्रवादियों में अधिकांश इसी प्रकार के शिक्षित बेरोजगार युवक हैं । बेरोजगारी देश की आर्थिक स्थिति को डाँवाडोल कर देती है । इससे राष्ट्रीय आय में कमी आती है , उत्पादन घट जाता है और देश में राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न हो जाती है । बेरोजगारी से क्रय शक्ति घट जाती है , जीवन स्तर गिर जाता है जिसका दुष्प्रभाव परिवार एवं बच्चों पर पड़ता है । बेरोजगारी मानसिक तनाव को जन्म देती है जिससे समाज एवं सरकार के प्रति कटुता के भाव जाग्रत होते हैं परिणामतः व्यक्ति का सोच नकारात्मक हो जाता है और वह समाज विरोधी एवं देश विरोधी कार्य करने में भी संकोच नहीं करता ।

  • बेरोजगारी के कारण

भारत में बढ़ती हुई इस वेरोजगारी के प्रमुख कारणों में से एक है तेजी से बढ़ती जनसंख्या । पिछले चार दशकों में देश की जनसंख्या लगभग तीन गुनी हो गई है । सन् २००१ की जनगणना के अनुसार भारत की आबादी लगभग  130 करोड़ हो गई है । यद्यपि सरकार ने विभिन्न योजनाओं के द्वारा रोजगार को अनेक नए अवसर सुलभ कराए हैं , तथापि जिस अनुपात में जनसंख्या वृद्धि हुई है उस अनुपात में रोजगार के अवसर सुलभ करा पाना सम्भव नहीं हो सका , परिणामतः बेरोजगारों की फौज बढ़ती गई , प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में बेरोजगारों की वृद्धि हो रही है । बढ़ती हुई बेरोजगारी से प्रत्येक बुद्धि – सम्पन्न व्यक्ति चिन्तित है । हमारी शिक्षा पद्धति भी दोषपूर्ण है जो रोजगारपरक नहीं है । कॉलेजों और विश्वविद्यालयों से लाखों स्नातक प्रतिवर्ष निकलते हैं , किन्तु उनमें से कुछ ही रोजगार पाने का सौभाग्य प्राप्त कर पाते हैं । उनकी डिग्री रोजी – रोटी को जुटा पाने में उनकी सहायता नहीं कर पाती । वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति ने उद्योगों का मशीनीकरण कर दिया है परिणामतः आदमी के स्थान पर मशीन से काम लिया जाने लगा । मशीन आदमी की तुलना में अधिक कुशलता से एवं अधिक गुणवत्ता से कम कीमत पर कार्य सम्पन्न कर देती है , अतः स्वाभाविक रूप से आदमी को हटाकर मशीन से काम लिया जाने लगा । फिर एक मशीन सैकड़ों श्रमिकों का काम अकेले ही कर देती है । परिणामतः औद्योगिक क्षेत्रों में बेकारी पनप गई । लघु उद्योग एवं कुटीर उद्योगों की खस्ता हालत ने भी बेरोजगारी में वृद्धि की है ।

  • बेरोजगारी दूर करने के उपाय –

भारत एक विकासशील राष्ट्र है , किन्तु आर्थिक संकट से घिरा हुआ है । उसके पास इतनी क्षमता भी नहीं है कि वह अपने संसाधनों से प्रत्येक व्यक्ति को रोजगार सुलभ करा सके । ऐसी स्थिति में न तो यह कल्पना की जा सकती है है कि वह प्रत्येक व्यक्ति को बेरोजगारी भत्ता दे सकता है और न ही यह सम्भव है , किन्तु सरकार का यह कर्तव्य अवश्य है कि वह बेरोजगारी को दूर करने के लिए ठोस कदम उठाए । यद्यपि बेरोजगारी की समस्या भारत में सुरसा के मुख की तरह बढ़ती जा रही है फिर भी में हर समस्या का निदान तो होता ही है । यदि जनता और सरकार मिलकर इस दिशा में प्रयत्न करें तो क्या कुछ नहीं किया जा सकता , हाँ प्रयत्न ईमानदारी से अवश्य हों । इस सन्दर्भ में कुछ सुझाव अवश्य दिए जा सकते हैं यथा : में

( १ ) जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण — भारत में वर्तमान में जनसंख्या वृद्धि 2.1 % वार्षिक है जिसे रोकना अत्यावश्यक है । हम दी हमारे दो का युग भी बीत चुका , अब तो ‘ एक दम्पति एक सन्तान ‘ का नारा ही महत्वपूर्ण होगा , इसके लिए यदि सरकार को कड़ाई भी करनी पड़े तो वोट बैंक की चिन्ता किए बिना उसे इस ओर सख्ती करनी होगी । यह कठोरता भले ही किसी भी प्रकार की हो ।

( २ ) विनियोग ढांचे में परिवर्तन –देश में आधारभूत उद्योगों के पर्याप्त विनियोग के पश्चात् उपभोग वस्तुओं से सम्बन्धित उद्योगों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है । इन उद्योगों में उत्पादन के साथ ही वितरण परिवहन , आदि में रोजगार उपलब्ध होंगे ।

( ३ ) शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन– शिक्षा को रोजगारोन्मुख बनाना आवश्यक है ।

( ४ ) कृषि पर आधारित उद्योग – धन्धों का विकास – गांवों में कृषि सहायक उद्योग – धन्धों का विकास किया जाना आवश्यक है । इससे कृषक खाली समय में अनेक कार्य कर सकेंगे । बागवानी , दुग्ध उत्पादन , मत्स्य अथवा मुर्गीपालन , पशुपालन , दुग्ध व्यवसाय , आदि ऐसे ही धन्धे हैं ।

( ५ ) कुटीरोद्योग एवं लघु उद्योगों के विकास – कुटीरोद्योग एवं लघु उद्योगों के विकास से ग्रामीण एवं शहरी दोनों ही क्षेत्रों में रोजगार के अवसर सुलभ कराए जा सकते हैं ।

( ६ ) जनशक्ति का उचित नियोजन- आज स्थिति यह है कि एक ओर विशिष्ट प्रकार के दक्ष श्रमिक नहीं मिल रहे हैं तो दूसरे प्रकार के दक्ष श्रमिकों को कार्य नहीं मिल रहा है ।

( ७ ) सरकारी योजनाएं- सरकार के द्वारा चलाई जाने वाली अनेक योजनाएँ बेरोजगारी को दूर करने में सहायक हो सकती हैं । जवाहर रोजगार योजना , नेहरू रोजगार योजना , प्रधानमन्त्री रोजगार योजना , आदि के द्वारा शिक्षितों एवं अर्द्धशिक्षितों को ऋण सुविधा उपलब्ध करवाकर स्वरोजगार हेतु प्रोत्साहित किया जाता है , किन्तु इन योजनाओं का सही ढंग से क्रियान्वयन न हो पाने से इनका अपेक्षित लाभ नहीं मिल सका है । पंचवर्षीय योजनाओं में भी रोजगार के नए अवसर सृजित करने पर बल दिया गया है और बैंकों को निर्देश दिया गया है कि वे शिक्षित युवकों को उद्योग – धन्धों के लिए स्वरोजगार योजना के अन्तर्गत धन उपलब्ध करावें ।

  • उपसंहार —

रोजगारपरक शिक्षा तथा व्यावसायिक शिक्षा पर अब जोर दिया जाने लगा है । लघु उद्योगों एवं कुटीर उद्योगों को बढ़ावा दिया जा रहा है । आशा की जानी चाहिए कि इन उपायों से बढ़ती हुई बेरोजगारी परे प्रभावी अंकुश लगाकर इस समस्या का समाधान किया जा सकेगा ।

बेरोजगारी

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