Alankar all alankar

Class
12th (class 12) Intermediate
Subject
General Hindi (सामान्य हिंदी )
Chapter 
Kavya saundarya ke tatva ( काव्य सौन्दर्य के तत्त्व )
Topic
अलंकार ( Alankar)
Board
UP BOARD
By
Arunesh Sir
Other
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अलंकार/Alankar

           अलंकार शब्द  ‘ अलं + कार ‘ दो  शब्दों के योग से बना है । यहाँ अलं का अर्थ है – ‘ आभूषण ‘ तथा ‘ कार ‘ का अर्थ है – ‘वाला ‘ , अर्थात् जो अलंकृत करे या  शोभा बढ़ाने में सहायक हो , उसे अलंकार कहते हैं |

जिस प्रकार आभूषण पहनने से स्त्री के सौन्दर्य में चार चाँद लग जाते हैं , उसी प्रकार अलंकार के प्रयोग से काव्य का सौन्दर्य बढ़ जाता है । अलंकारों के प्रयोग से शब्द और अर्थ में चमत्कार उत्पन्न हो जाता है । अत : काव्य के शब्द तथा अर्थ में चमत्कार उत्पन्न करके काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्त्वों को अलंकार कहते हैं ।

अलंकार के भेद – अलंकार के दो भेद होते हैं

( 1 ) शब्दालंकार ,

( 2 ) अर्थालंकार

शब्दालंकार

शब्दालंकार – वे अलंकार हैं जिनका काव्यगत चमत्कार शब्दों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है , जैसे – अनुप्रास , यमक , श्लेष ।

अर्थालंकार – वे अलंकार हैं, जिनका काव्यगत चमत्कार उसके अर्थ द्वारा प्रदर्शित किया जाता है , जैसे – उपमा , रूपक , उत्प्रेक्षा आदि ।

  1. अनुप्रास अलंकार

परिभाषा – जहाँ किसी वर्ण की अनेक बार क्रम से आवृत्ति हो , वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है ।

उदहारण –

तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए ।

स्पष्टीकरण — यहाँ ‘ त ‘ वर्ण की अनेक बार आवृत्ति है अतः अनुप्रास अलंकार है ।

अनुप्रास के भेद –

अनुप्रास के पाँच भेद हैं :

( i ) छेकानुप्रास

( ii ) वृत्यनुप्रास

( iii ) श्रुत्यनुप्रास

( iv ) लाटानुप्रास

( v ) अन्त्यानुप्रास

( i ) छेकानुप्रास – जहाँ किसी वर्ण की क्रम से एक बार आवृत्ति हो वहाँ छेकानुप्रास होता है , जैसे-

जैसे जाना निकट प्रिय के व्योम चुम्बी गृहों के

यहाँ ‘ ज ‘ वर्ण की क्रम से एक बार आवृत्ति हुई है , अतः छेकानुप्रास है ।

( ii ) वृत्यनुप्रास – जहाँ एक ही वर्ण की क्रम से अनेक बार आवृत्ति हो-  यथा :

भूरि – भूरि भेदभाव भूमि से भगा दिया ।

यहाँ ‘ भ ‘ वर्ण की आवृत्ति अनेक बार हुई है , अतः वृत्यनुप्रास है ।

( iii ) श्रुत्यनुप्रास — यदि काव्य में ऐसे वर्णों का प्रयोग बार – बार हो जो मुख के एक ही स्थान से उच्चरित होते हो , तो वहाँ श्रुत्यनुप्रास होता है ।

यथा :

तुलसीदास सीदति निसिदिन देखत तुम्हार निठुराई

इस पंक्ति में दंत्य व्यंजनों की आवृत्ति अनेक बार है अतः श्रुत्यनुप्रास है ।

( iv ) लाटानुप्रास – जहाँ काव्य में शब्दों या वाक्यांशों की आवृत्ति हो , किन्तु अन्वय (व्याख्या)  करने से अर्थ बदल जाए , वहाँ लाटानुप्रास होता है ।

यथा :

पूत सपूत तो का धन संचे ।

पूत कपूत तो का धन संचे ।

पुत्र है तो धन संचय की कोई आवश्यकता नहीं, वह स्वयं कमा लेगा और यदि पुत्र कपूत है तो भी धन संचय की जरूरत नहीं वह सारे धन को बरबाद कर देगा ।

( v ) अन्त्यानुप्रास — तुकान्त छन्दों में जहाँ पंक्ति के अन्त में तुक ऊपर वाली पंक्ति से मिलाई जाती है , वहाँ अन्त्यानुप्रास होता है ।

यथा :

राम – राम कहु राम सनेही ।

पुनि कहु राम लखन वैदेही ॥

यहाँ सनेही की तुक वैदेही से मिलाई गई है . अतः अन्त्यानुप्रास है ।

 

यमक

” जहाँ पर एक ही शब्द की अनेक बार भिन्न अर्थों में आवृत्ति हो वहाँ पर यमक अलंकार होता है । ”

उदाहरण –

केकी रव की नूपुर ध्वनि सुन जगती ,

जगती की मूक प्यास ।

इस उदाहरण में जगती शब्द दो बार आया है और इसके अर्थ भिन्न – भिन्न हैं । जगती का पहला अर्थ जागना और दूसरा अर्थ पृथ्वी है , अतः यहाँ यमक अलंकार है ।

अन्य उदाहरण-

 खग – कुल कुल – कुल सा बोल रहा ।

किसलय का अंचल डोल रहा ।

यहाँ प्रथम ‘ कुल ‘ शब्द का अर्थ समूह है । द्वितीय – तृतीय कुल – कुल शब्द पक्षियों के कुल – कुल कलरव के सूचक हैं । कुल शब्द के भिन्न अर्थों में प्रयुक्त होने के कारण यहाँ यमक अलंकार है

 

श्लेष

 

” जहाँ किसी शब्द के एक बार प्रयुक्त होने पर उसके एक से अधिक अर्थ हों , वहाँ श्लेष अलंकार होता है । ” उदाहरण –

‘ रहिमन पानी राखिए , बिन पानी सब सून ।

पानी गये न ऊबरे , मोती मानुष चून ॥

इस उदाहरण में तीसरा ‘ पानी ‘ शब्द श्लिष्ट है और इसके यहाँ तीन अर्थ हैं – चमक ( मोती के पक्ष में ) , प्रतिष्ठा ( मनुष्य के पक्ष में ) , जल ( चूने के पक्ष में ) , अतः इस दोहा में ‘ श्लेष ‘ अलंकार है ।

 

अन्य उदाहरण –

गुन ते लेत रहीम जन , सलिल कूप ते काढ़ि ।

कूपहुं से कहुं होत है , मन काहू को बाढ़ि ॥

इस दोहे में गुन शब्द श्लिष्ट है । गुण का एक अर्थ है ‘ रस्सी ‘ तथा दूसरा अर्थ है ‘ गुण ‘ । अतएव इसमें श्लेष अलंकार है ।

अर्थालंकार

1.उपमा

समान धर्म के आधार पर जहाँ एक वस्तु की समानता या तुलना किसी दूसरी वस्तु से की जाती है , वहाँ उपमा अलंकार माना जाता है ।

सामान्य अर्थों में उपमा का तात्पर्य सादृश्य , समानता तथा तुलना से लगाया जाता है ;

जैसे ( 1 ) मुख चन्द्रमा के समान सुन्दर है ।

( 2 ) तापसबाला – सी गंगा कल ।

उपमा अलंकार के निम्नलिखित चार अंग होते हैं-

( 1 ) उपमेय — जिसके लिए उपमा दी जाती है ; जैसे- -मुख , गंगा ( उपर्युक्त उदाहरणों में ) ।

( 2 ) उपमान – उपमेय की जिसके साथ तुलना की जाती है ; जैसे – चन्द्रमा , तापसबाला ।

( 3 ) साधारण धर्म – जिस गुण या विषय में उपमेय और उपमान की तुलना की जाती है ; जैसे — सुन्दर ( सुन्दरता ) , कलता ( सुहावनी ) ।

( 4 ) वाचक शब्द — जिस शब्द के द्वारा उपमेय और उपमान की समानता व्यक्त की जाती है ; जैसे — समान , सी , तुल्य , सदृश , इव , सरिस , जिमि , जैसा आदि । ये चारों अंग जहाँ पाये जाते हैं , वहाँ पूर्णोपमा अलंकार होता है ; जैसा उपर्युक्त दोनों उदाहरणों में है ।

लुप्तोपमा – जहाँ उपमा अलंकार के चारों अंगों

( उपमेय , उपमान , साधारण धर्म और वाचक शब्द ) में से किसी एक अथवा दो अथवा तीन अंगों का लोप होता है , वहाँ लुप्तोपमा अलंकार होता है ।

लुप्तोपमा अलंकार चार प्रकार के होते हैं –

( i ) धर्म – लुप्तोपमा – जिसमें साधारण धर्म का लोप हो ;

जैसे तापसबाला – सी गंगा ।

यहाँ धर्म – लुप्तोपमा है ; क्योंकि यहाँ ‘ सुन्दरता ‘ रूपी गुण का लोप है ।

( ii ) उपमान – लुप्तोपमा – जिसमें उपमान का लोप हो ;

जैसे –

जिहिं तुलना तोहिं दीजिए , सुवरन सौरभ माहिं ।

कुसुम तिलक चम्पक अहो , हौं नहिं जानौं ताहिं ॥

अर्थात् सुन्दर वर्ण और सुगन्ध में तेरी तुलना किस पदार्थ से की जाए , उसे मैं नहीं जानता ; क्योंकि तिलक , चम्पा आदि पुष्प तेरे समकक्ष नहीं ठहरते । यहाँ उपमान लुप्त है ; क्योंकि जिससे तुलना की जाए , वह ज्ञात नहीं है ।

( iii ) उपमेय – लुप्तोपमा – जिसमें उपमेय का . लोप हो ;

जैसे — कल्पलता – सी अतिशय कोमल ।

‘ यहाँ उपमेय – लुप्तोपमा है ; क्योंकि ‘

कल्पलता – सी कोमल ‘ कौन है , यह नहीं बताया गया है ।

( iv ) वाचक – लुप्तोपमा – जिसमें वाचक शब्द का लोप हो ; जैसे –

नील सरोरुह श्याम , तरुन अरुन वारिज – नयन ।

यहाँ वाचक शब्द ‘ समान ‘ या उसके पर्यायवाची अन्य किसी शब्द का लोप है ; अत : इसमें वाचक – लुप्तोपमा अलंकार है ।

विशेष – जहाँ उपमेय ( जिसके लिए उपमा दी जाती है ) का उत्कर्ष दिखाने के लिए अनेक उपमान एकत्र किए जायँ , वहाँ मालोपमा अलंकार होता है ; जैसे –

हिरनी से मीन से , सुखंजन समान चारु ।

अमल कमल – से , विलोचन तुम्हारे हैं ।

उपर्युक्त पद में आँखों की तुलना अनेक उपमानों ( हिरनी से , मीन से , सुखंजन समान , कमल से ) से की गयी है । अत : यहाँ पर मालोपमा अलंकार है ।

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