हिंदी गद्य साहित्य का इतिहास pdf || हिंदी गद्य साहित्य का इतिहास कक्षा – gyansindhuclasses

आदिकाल

समय सीमा – सं0 1050 वि0 से 1375 तक
नामकरण एवं नामकरणकर्त्ता —

1. चारण काल– जॉर्ज ग्रियर्सन
2. प्रारंभिक काल– मिश्र बंधु
3. बीजवपन काल– महावीर प्रसाद द्विवेदी
4. वीरगाथा काल– आचार्य रामचंद्र शुक्ल
5. सिद्धसामंत काल — राहुल सांकृत्यायन
6. वीरकाल– विश्वनाथ प्रसाद मिश्र
7. संधिकाल एवं चारणकाल– डॉ रामकुमार वर्मा
8. आदिकाल– हजारी प्रसाद द्विवेदी
9. जयकाल—रमाशंकर शुक्ल ‘रसाल’
10. संक्रांति काल – रामप्रसाद मिश्र
11. आधारकाल– सुमन राजे
विशेषताएं:-
1. आश्रयदाताओं की प्रशंसा
2. रासो ग्रंथों का निर्माण
3. अपभ्रंश भाषा का प्रयोग
4. युद्धों का सजीव वर्णन
5. वीर एवं श्रृंगार रस की प्रधानता
6. डिंगल पिंगल भाषा का प्रयोग
7. विभिन्न प्रकार के छंदों का प्रयोग
8. प्रकृति का आलंबन एवं उद्दीपन दोनों रूपों में चित्रण
अपभ्रंश साहित्य के कवि-
• अपभ्रंश भाषा के प्रथम कवि स्वयंभू हैं- डॉ रामकुमार वर्मा के अनुसार
• स्वयंभू की रचनाएं – पउमचरिउ, रिट्ठणेमिचरिउ, स्वयंभूछंद
• अपभ्रंश का बाल्मीकि अथवा व्यास स्वयंभू को कहा जाता है|
• पुष्पदंत की रचनाएं -जसहरचरिउ, णयकुमार चरिउ|
• हिंदी का भवभूति पुष्यदन्त
• भाखा की जड़- शिव सिंह सेंगर ने पुष्यदन्त को कहा है|
• अभिमानमेरू, कविकुल तिलक, काव्य रत्नाकर – उपाधियां पुष्पदंत की हैं|
• धनपाल – भविसयक्तकहा (भविष्यतकथा)
रासो साहित्य –
• उपदेश रसायन रास – जिन्नदत्त सूरी
• भारतेश्वर बाहुबली रास- शालिभद्र सूरी
• संदेशरासक – अब्दुल रहमान
• पाहुड़दोहा – राम सिंह
• परमात्म प्रकाश, योग सागर -जोइन्दु
• परमाल रासो (आल्हाखंड) – जगनिक
• खुमान रासो – दलपति विजय
• पृथ्वीराज रासो – चंदबरदाई (हिंदी का प्रथम महाकाव्य)
• बीसलदेव रासो – नरपति नाल्ह – प्रथम बारहमासा वर्णन के प्रवर्तक |
• विजयपाल रासो – नल्ल सिंह
• हम्मीर रासो- शारंगधर
• चंदायन /नूकर चंदा की प्रेम कथा / लोरकहा /लोरिक चंदा की प्रेम कथा- मल्ला दाऊद
• जयमयंक जस चंद्रिका- मधुकर कवि
• जयचंद्रप्रकाश – भट्ट केदार
• रणमल्ल छंद- श्रीधर

 

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