Hindi Vyakaran -Varn Vichar -वर्ण विचार – Gyansindhuclasses

वर्ण विचार

Hindi Vyakaran -Varn Vichar -वर्ण विचार – Gyansindhuclasses are presented लिपि क्या है ? वर्णों के भेद एवं उच्चारण स्थान|स्वरों के भेद स्वरों के प्रकार व्यंजनों का वर्गीकरण तथा व्यंजनों के भेद |

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Hindi Vyakaran -Varn Vichar -वर्ण विचार – Gyansindhuclasses

देवनागरी लिपि चार भाषाओं में है भाषाओं में है
 हिंदी
 संस्कृत
 नेपाली
 मराठी

व्यंजन

१.स्पर्श व्यंजन :–जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा का कोई न कोई भाग मुख से स्पर्श करता है। उन्हें स्पर्श व्यंजन कहा जाता है। इन व्यंजनों की संख्या 25 है, जो कि क से म तक आते हैं –

क वर्ग
च वर्ग
ट वर्ग
त वर्ग
प वर्ग

२. अनुनासिक व्यंजन :--जिन व्यंजनों के उच्चारण में वायु नासिका मार्ग से निकलती है, उन्हें अनुनासिक व्यंजन कहते हैं। यह है- ´ ³ .k u e ।
३. अंतस्थ व्यंजन:- जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख बहुत संकुचित हो जाता है, फिर वायु स्वरों की भांति बीच से निकल जाती है, उस समय उत्पन्न होने वाली ध्वनि अंतस्थ कहलाती है। ये चार हैं – य र ल व ।
४.ऊष्म व्यंजन :- जिन व्यंजनों के उच्चारण में एक प्रकार की ऊष्मा, सुरसुराहट के साथ मुख से बाहर निकलती है उन्हें ऊष्म व्यंजन कहते है ।
ये चार हैं – श ष स ह ।
५. उत्क्षिप्त / द्वित्व /द्विगुण व्यंजन :– जिन व्यंजनों के उच्चारण करते समय जिह्वा की उल्टी उल्टी नोक तालु को स्पर्श करके झटके के साथ हट जाती है, उन्हें उत्क्षिप्त व्यंजन कहते हैं।
ये दो हैं- ड ढ ।
६. संयुक्ताक्षर या संयुक्त व्यंजन:- जिन व्यंजनों के उच्चारण में कई अन्य व्यंजनों की सहायता लेनी पड़ती है, उन्हें संयुक्त व्यंजन कहते हैं ।
ये चार हैं- क्ष त्र ज्ञ श्र।
क्+ष्+अ = क्ष
त्+र्+अ = त्र
ज्+ञ्+अ = ज्ञ
श्+र्+अ =श्र

उच्चारण स्थान

क. कंठ्य: –
सूत्र– अकुहविसर्जनीयानाम् कण्ठ:

अ,आ,क वर्ग- क,ख,ग,घ,ह,विसर्ग(:) आदि कण्ठ से उच्चरित होते हैं।
ख. तालु:-

सूत्र– इचुयशानाम् तालु: ।
इ,ई,च वर्ग- च,छ,ज,झ,य,श आदि तालुसे उच्चरित होत्ते हैं।

ग. मूर्धा:- सूत्र—ऋटुरषाणाम् ।
ऋ, ट वर्ग-ट,ठ,ड,ढ,ण,र,ष आदि मूर्धन्य व्यन्जन हैं।

घ. दंत:-
सूत्र—लृतुलसानाम् दंत्।

ङ. ओष्ठ:-
सूत्र—उपूपध्मानीयानाम् ओष्ठौ: ।
उ,ऊ,प वर्ग- प,फ,ब,भ,म आदि ओष्ठ से उच्चरित होते हैं।

च. कण्ठ+तालु:-सूत्र—एदातौ कण्ठतालु: ।
ए,ऐ कण्ठ तालु दोनों से उच्चरित होते हैं।

छ. कण्ठ+ओष्ठ:-
सूत्र—ओदातौ कंठोष्ठ ।
ओ,औ कण्ठोष्ठ से उच्चरित होते हैं।

ज. दंत+ओष्ठ:-
सूत्र—वकारस्य दंत्योष्ठ: ।
व,फ दंत्योष्ठ से उच्चरित होते हैं।

प्रयत्न-

बाह्य प्रयत्न ११ प्रकार का होता है –
ये हैं- अघोष,सघोष,अल्पप्राण,महाप्राण,विवार,संवार,श्वास,नाद, उदात्त,अनुदात्त,स्वरित।

क. अघोष-
अघोष 
क,ख
च,छ
ट,ठ
त,थ
प,फ

ख. सघोष-
श,ष,स ग,घ,ङ
ज,झ,ञ
ड,ढ,ण
द,ध,न
ब,भ,म

प्राण (वायु) के आधार पर वर्वणों का वर्गीकरण – 
ग. अल्पप्राण- प्राण का अर्थ होता है-वायु। जिस व्यंजन वर्णो के उच्चारण में वायु अल्प मात्रा में लगती है,उन्हे अल्पप्राण व्यंजन कहा जाता है।
घ. महाप्राण- नोट- महाप्राण के साथ सदैव अल्पप्राण ही आता है,जैसे- लट्ठ।

अल्पप्राण महाप्राण अल्पप्राण महाप्राण अल्पप्राण

क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ
श,ष,स,ह,अ: म

क. विवार- उच्चारण के समय स्वरतंत्रियाँ पूर्णत: खुली हों। उदाहरण- क,ख,च,छ,ट,ठ,त,थ,प,फ,श,ष,स।(वर्ग का प्रथम,द्वितीय वर्ण, श,ष,स)
ख. संवार- उच्चारण के समय स्वरतंत्रियाँ बंद हों। उदाहरण-ग,घ,ङ,ज,झ,ञ,ड,ढ,ण,द,ध,न,ब,भ,म,य,र,ल,व्।(वर्ग का,तृतीय,चतुर्थ,पंचम् वर्ण, य,र,ल,व)
ग. श्वास-
            उदाहरण- क,ख,च,छ,ट,ठ,त,थ,प,फ,श,ष,स।(वर्ग का प्रथम,द्वितीय वर्ण, श,ष,स)

घ. नाद-
उदाहरण-ग,घ,ङ,ज,झ,ञ,ड,ढ,ण,द,ध,न,ब,भ,म,य,र,ल,व्।(वर्ग का,तृतीय,चतुर्थ,पंचम् वर्ण, य,र,ल,व)
ङ. उदात्त- मुख के भीतर जो कण्ठ तालु आदि उच्चारण स्थान हैं,उसमे उर्ध्व भाग से बोले जाने वाले वर्ण।
च. अनुदात्त- मुख के भीतर जो कण्ठ तालु आदि उच्चारण स्थान हैं,उसमे निम्न भाग से बोले जाने वाले वर्ण।
छ. स्वरित- सभी स्वर ।

ध्वनियां

उच्चारण के आधार पर ध्वनियां तीन प्रकार की होती हैं-

1.संयुक्त ध्वनि
2.संपृक्त ध्वनि
3.युग्मक ध्वनि

1.संयुक्त ध्वनि:- दो या दो से अधिक व्यंजन ध्वनियाँ परस्पर संयुक्त होकर एक स्वर के सहारे बोली जाती हैं, तो वह संयुक्त ध्वनियाँ कहलाती हैं।
जैसे:- प्राण, प्रकाश (*यहाँ पर प्+र् के साथ आ स्वर जोडने पर सयुक्त ध्वनि हुई)
2.संपृक्त ध्वनि:- एक ध्वनि जब दो व्यंजनों से संयुक्त होती है तो यह संपृक्त ध्वनि कहलाती है।
जैसे- सम्बल इसमें स एवं ब के मध्य म् आया है ।
3. युग्मक ध्वनि:- एक ही ध्वनि का जब द्वित्व हो जाए तब यह ध्वनि युग्मक ध्वनि कहलाती है।
जैसे – प्रफुल्ल दिक्कत।(*यहाँ पर ल तथा क का द्वित्व हुआ है।)

 

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