Up board solution of class 10 Hindi – कर्ण (खण्डकाव्य) (Karn) charitr chitran sarans -up board class 10 syllabus 2022-23

Up board solution of class 10 Hindi – कर्ण (खण्डकाव्य) (Karn) charitr chitran sarans -up board class 10 syllabus 2022-23

up board class 10 syllabus 2022-23– Class 10 Hindi Chapter – कर्ण (खण्डकाव्य)- डॉ० गंगारत्न पाण्डेय – कर्ण -खंडकाव्य-सभी-सर्ग-10th, charitr chitran sarans kathavastu. कर्ण खण्डकाव्य के आधार पर पात्रों का चरित्र-चित्रण कीजिए कर्ण खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए। UP Board Solution Class 10 Hindi Chapter Question Answer. Karn. सर्गों का सरांश.

कर्ण

प्रश्न 1. ‘कर्ण’ खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग का सांराश लिखिए।

(अथवा) ‘कर्ण’ खण्डकाव्य के किसी एक सर्ग की कथावस्तु लिखिए।

उत्तर – प्रथम सर्ग ( रंगशाला में कर्ण) की कथा – कुन्ती कुमारी थी। उसने मन्त्र द्वारा सूर्य का आह्वान किया। सूर्य से उसे एक अति तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ। लोकलज्जा के कारण कुन्ती ने बालक को नदी में बहा दिया। दुर्योधन के रथवान और उसकी पत्नी राधा ने इस बालक को पकड़कर पुत्र के रूप में पाल लिया। यही बालक आगे चलकर ‘कर्ण’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ । कर्ण महान वीर, तेजस्वी तथा धनुर्धारी था। जब द्रुपद की पुत्री द्रौपदी का स्वयंवर हुआ तो कर्ण स्वयंवर में उपस्थित हुआ। स्वयंवर में अर्जुन, भीम आदि पाण्डवों ने नीच, सूतपुत्र आदि कहकर उसे अपमानित किया । दुर्योधन पाण्डवों से बैर रखता था । उसने अवसर से लाभ उठाया। उसने कर्ण को अंगदेश का राजा बना दिया। किन्तु जब कर्ण लक्ष्यभेद करने को खड़ा हुआ तो द्रौपदी ने कहा- “मैं क्षत्राणी हूँ। एक नीच सूतपुत्र के साथ मेरा विवाह नहीं हो सकता।” इस प्रकार भरी सभा में कर्ण एक नारी द्वारा अपमानित हो जहर का घूंट पीकर रह गया।

प्रश्न 2. ‘कर्ण’ खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए।

(अथवा) ‘कर्ण’ खण्डकाव्य के आधार पर द्यूत सभा में ‘द्रौपदी’ सर्ग का वर्णन कीजिए ।

उत्तर- द्वितीय सर्ग (द्यूत सभा में द्रौपदी) की कथा – स्वयंवर में अर्जुन ने लक्ष्यभेद किया। द्रौपदी का विवाह पाण्डवों के साथ हो गया। विदुर आदि ने समझा – बुझाकर दुर्योधन से आधा राज्य भी पाण्डवों को दिलवा दिया। तत्पश्चात पाण्डवों ने राजसूय यज्ञ किया। पाण्डवों की कीर्ति चारों तरफ फैलने लगी। इसी समय एक और घटना घटी। पाण्डवों ने नये भवन का निर्माण कराया था। उसमें दुर्योधन को जल के स्थान पर स्थल और स्थल के स्थान पर जल दिखाई देने लगा। द्रौपदी ने व्यंग्य वचन कहकर दुर्योधन का अपमान किया।

इस अपमान का बदला लेने के लिए दुर्योधन ने एक द्यूत सभा का आयोजन किया और अपने मामा शकुनि की चालबाजी से पाण्डवों का खजाना, वाहन, राज्य यहाँ तक कि द्रौपदी को भी जीत लिया। दुर्योधन ने दुःशासन के द्वारा द्रौपदी को बुलाकर भरी सभा में उसे अपमानित किया। कर्ण ने भी द्रौपदी को अनेक कटु शब्द कहकर स्वयंवर सभा में किये गये अपने अपमान का बदला लिया।

प्रश्न 3. ‘कर्ण’ खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए।

(अथवा) ‘कर्ण’ खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग का सारांश लिखिए।

(अथवा) ‘कर्ण’ खण्डकाव्य के आधार पर कर्ण द्वारा ‘कवच-कुण्डल दोन’ का वर्णन कीजिए।

(अथवा) ‘कर्ण’ खण्डकाव्य के आधार पर कर्ण की वीरता और त्याग पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – तृतीय सर्ग (कर्ण द्वारा कवच-कुण्डल दान) की कथा – जुए में सब कुछ हार जाने के पश्चात पाण्डवों की बहुत दुर्दशा हुई। दुर्योधन ने अपने को सम्राट घोषित कर दिया। उधर कर्ण ने अर्जुन के वध की प्रतिज्ञा की। कर्ण की इस प्रतिज्ञा का इन्द्र को पता चला तो इन्द्र ब्राह्मण का रूप धारण कर कर्ण के अभेद्य कवच और कुण्डल मांग कर ले गया क्योंकि कवच-कुण्डल’ के रहते कर्ण को अर्जुन द्वारा नारा जाना सम्भव न था । कर्ण ने अपनी दानवीरता के कारण अपने जीवन-रक्षक कवच-कुण्डल को देने में भी संकोच नहीं किया।

प्रश्न 4. ‘कर्ण’ खण्डकाव्य के चतुर्थ सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए।

(अथवा) श्रीकृष्ण तथा कर्ण के संवाद (वार्तालाप) को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – चतुर्थ सर्ग (श्रीकृष्ण और कर्ण) की कथा – स्वभाव से शान्तिप्रिय युधिष्ठिर युद्ध को टालना चाहता था, अतः उसने श्रीकृष्ण को सन्धि का प्रस्ताव लेकर दुर्योधन के पास भेजा । कुटिल दुर्योधन भला सन्धि के प्रस्ताव को क्यों मानता ? श्रीकृष्ण निराश होकर वापस लौट गये। कृष्ण ने युद्ध को टालने का एक और उपाय सोचा। उन्होंने कर्ण को समझाया कि वह दुर्योधन at are also usवों के पक्ष में आ जाये। कृष्ण ने कर्ण को उसके जन्म का रहस्य भी बताया और कहा कि वह कुन्ती का ज्येष्ठ पुत्र तथा पाण्डवों का बड़ा भाई है। यदि वह पाण्डवों के पक्ष में आ जाये तो राजा वही बनेगा। कर्ण ने दुर्योधन द्वारा उसके प्रति किये गये उपकार बताकर विश्वासघात करने में विवशता प्रकट की। कर्ण ने अपनी माता कुन्ती के व्यवहार पर सेवा प्रकट किया। यदि कुन्ती यह रहस्य कुछ पहले बता देती तो वह अनेक अपमानों से बच जाता। कृष्ण ने अर्जुन, भीम आदि की वीरता का भय भी दिखाया किन्तु कर्ण किसी भी तरह अपने निर्णय से टस से मस नहीं हुआ ।

प्रश्न 5. ‘कर्ण’ खण्डकाव्य के पंचम सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए।

(अथवा) ‘कर्ण’ खण्डकाव्य के आधार पर कुन्ती और कर्ण (माँ-बेटा) के वार्तालाप का वर्णन कीजिए।

उत्तर- पंचम सर्ग (माँ-बेटों का वार्तालाप) की कथा– कुन्ती ने देखा युद्ध अनिवार्य है। पाण्डव केवल पाँच और कौरव सौ हैं। भीष्म, द्रोण और कर्ण जैसे वीर सभी दुर्योधन के पक्ष में हैं। पाण्डवों की पराजय की आशंका से कुन्ती कर्ण के आश्रम में उसे मनाने गयी। कुन्ती ने कर्ण को अपना पुत्र बताकर पाण्डवों से युद्ध न करने के लिए कहा। कर्ण ने उत्तेजित होकर कहा – “आज पाण्डवों पर विपत्ति आती देखी तो मुझे पुत्र कहने चली आयीं, जब द्रौपदी के स्वयंवर में मेरा अपमान हो रहा था, उस दिन तुम कहाँ थीं? तुमने मेरे साथ माँ होकर भी विश्वासघात किया है किन्तु मैं अपने मित्र के साथ विश्वासघात नहीं कर सकता। फिर भी तुमने मुझे अपना पुत्र कहा है, अतः मैं वचन देता हूँ कि मैं युद्ध में अर्जुन को छोड़कर किसी पुत्र को न मारूँगा किन्तु अर्जुन और कर्ण, दोनों में से एक की मृत्यु निश्चित है। तब भी माता ! तुम्हारे पाँच पुत्र रहेंगे। यदि मैं मर गया तो अर्जुन है ह और यदि अर्जुन मर गया तो मैं तुम्हारा पुत्र हैं।” यह सुनकर कुन्ती चली गयी।

प्रश्न 6. ‘कर्ण’ खण्डकाव्य के षष्ठ सर्ग की कथा लिखिए। (अथवा) ‘कर्ण’ खण्डकाव्य की किसी प्रमुख घटना का वर्णन कीजिए।

उत्तर- षष्ठ ‘सर्ग (कर्ण वध की कथा का वर्णन – युद्ध होकर रहा । पाण्डव पक्ष में अर्जुन अग्रणी था। श्रीकृष्ण उसका रथ हाँक रहे थे। कौरव पक्ष के सेनापति थे – भीष्म पितामह । भयंकर युद्ध हुआ। दसवें दिन भीष्म पितामह आहत हो गये। पितामह ने भी कर्ण को अपने भाइयों की ओर मिल जाने का परामर्श दिया किन्तु कर्ण ने अपने प्रण पर अटल रहने की बात कहकर उनसे भी क्षमा माँग ली। अब कौरव पक्ष के सेनापति द्रोणाचार्य बने । पन्द्रहवें दिन वे भी युद्धभूमि में सो गये । सोलहवें दिन कर्ण सेनापति बने। बहुत भयंकर युद्ध हो रहा था । पाण्डव सेना के छक्के छूट रहे थे। कुन्ती विलाप करने लगी थी। उसी समय अचानक भीमपुत्र घटोत्कच भयंकर युद्ध करता हुआ कर्ण के सामने आया। उसने कौरव सेना में हाहाकार मचा दिया। अपनी हार होती देखकर कर्ण ने अपनी अमोघ शक्ति चलाकर घटोत्कच का वध कर दिया। कर्ण के पास यही एक अस्त्र था जिससे वह अर्जुन का वध कर सकता था, वह भी समाप्त हो गया। अब आया कर्ण को ध्यान – कवच-कुण्डल पहले ही जा चुके थे, अमोघ शक्ति भी गयी। वह सोच ही रहा था कि उसके रथ का पहिया कीचड़ में धँस गया। कृष्ण की चेतावनी पर अर्जुन ने कर्ण का वध कर दिया ।

प्रश्न 7. ‘कर्ण’ खण्डकाव्य के सप्तम सर्ग की कथा का सार लिखिए।

उत्तर – सप्तम सर्ग (जलांजलि) की कथा– कर्ण की मृत्यु के बाद दुर्योधन का साहस टूट गया। गदायुद्ध में भीम ने दुर्योधन का भी अन्त कर दिया। इस प्रकार कौरवों की पराजय हुई और पाण्डवों की जीत हुई। युधिष्ठिर ने अपने सब भाइयों का नाम ले लेकर जलांजलि दी तब कुन्ती ने धर्मराज को बताया कि कर्ण उसी का पुत्र था अतः उस भाई को भी जलांजलि दो । युधिष्ठिर यह जानकर कि कर्ण उनका भाई था, बहुत दुःखी हुए और उनके गुणों को याद कर बहुत पछताये ।

प्रश्न 8. ‘कर्ण’ खण्डकाव्य का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।

(अथवा) ‘कर्ण’ खण्डकाव्य का कथानक (कथावस्तु अपनी भाषा में लिखिए।

उत्तर- [ उपर्युक्त प्रश्न 1 से 7 तक के प्रश्नों के उत्तर मिलाकर लिखिए।

प्रश्न 9. ‘कर्ण’ नामक खण्डकाव्य का नायक कौन है? उसके चरित्र की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

(अथवा ) ‘कर्ण’ खण्डकाव्य के नायक (प्रमुख पात्र) वीर कर्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए ।

(अथवा) ‘कर्ण’ खण्डकाव्य के आधार पर कर्ण की दानवीरता पर प्रकाश डालते हुए उसके अन्य गुणों का वर्णन कीजिए।

(अथवा) ‘कर्ण’ खण्डकाव्य के आधार पर कर्ण के जीवन में घटी प्रमुख घटनाएँ संक्षेप में लिखिए।

उत्तर- ‘कर्ण’ काव्य में कर्ण का चरित्र रार्वोपरि है। ‘कर्ण’ इस खण्डकाव्य का नायक है। धीरोदात्त नायक के उसमें सभी गुण विद्यमान हैं। कर्ण के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

दानवीर – कर्ण में दानशीलता का गुण सर्वाधिक प्रशंसनीय है। उसके द्वार से कभी कोई याचक निराश होकर नहीं लौटता है। इन्द्र ब्राह्मण का वेष बनाकर कवच और कुण्डल मांगने आता है। कर्ण यह जानता है कि कवच और कुण्डल ही उसके प्राणों के रक्षक हैं। ये अभेद्य कवच-कुण्डल उसे अपने पिता सूर्य से प्राप्त हुए थे। सूर्य ने कर्ण को चेतावनी भी दी कि वह इन्द्र के धोखे में न आये किन्तु दानवीर कर्ण अपने द्वार से याचक को निराश लौटा ही नहीं सकता, चाहे वह उसका शत्रु ही क्यों न हो। वह कवच-कुण्डल का ब्राह्मण वेषधारी इन्द्र को दान कर देता है।

युद्धवीर – कर्ण की युद्धवीरता जगत प्रसिद्ध है। कृष्ण भी इस बात को मानते हैं कि यदि कर्ण दुर्योधन के पक्ष में है तो पाण्डवों की विजय कठिन है किन्तु यदि कर्ण पाण्डवों के पक्ष में आ जाये तो शायद युद्ध टल सकता है। महाभारत के युद्ध में सोलहवें दिन कर्ण को ही सेनापति बनाया जाता है। वह धनुर्धर अर्जुन के साथ भयंकर युद्ध करता है। दुर्भाग्य से उसके रथ का पहिया कीचड़ में फँस जाता है, तब पहिया निकालते हुए निहत्थे कर्ण पर वाणवर्षा करके अर्जुन उसका वध करता है।

निःसन्देह शौर्य और पराक्रम में कर्ण-अर्जुन से उच्चर स्तर का था।

प्रणवीर – कर्ण अपनी बात का पक्का था। जो प्रण उसने कर लिया उसका वह अन्त तक निर्वाह करता है। कर्ण ने अर्जुन को मारने का प्रण किया था । मृत्युपर्यन्त वह अपने प्रण पर अटल रहा। युद्ध में आहत भीष्म पितामह ने भी उसे अपने भाइयों के पक्ष में चले जाने का परामर्श दिया किन्तु वह अपने प्रण से विचलित नहीं हुआ।

आत्मविश्वासी—कर्ण में ऊँचे दर्जे का आत्मविश्वास है। जब भीष्म पितामह ने उसे पाण्डव पक्ष में जाने का परामर्श देते हुए कहा कि पाण्डवों के पक्ष में श्रीकृष्ण हैं अतः उनकी विजय निश्चित है, तो दृढ़ आत्मविश्वास के साथ कर्ण कहता है ” है गोविन्द उधर यद्यपि, अर्जुन को मैं मारूंगा।”

निर्लोभी – कर्ण त्यागी स्वभाव का वीर है। बड़े से बड़ा लोभ या लालच उसे सत्पथ से डिगा नहीं सका । कृष्ण तथा कुन्ती ने कर्ण को बड़े-बड़े लालच दिये किन्तु कर्ण अपनी बात पर अडिग रहा।

कृतज्ञ – कर्ण कृतघ्न नहीं है। जो उसका थोड़ा भी उपकार करता है उसके प्रति वह कृतज्ञ होता है। अधिरथ और राधा ने उसका पालन-पोषण किया, उनके प्रति वह कृतज्ञ है। दुर्योधन ने उसे अंगदेश का राजा बनाया था, उसके लिए कर्ण मृत्युपर्यन्त दुर्योधन का कृतज्ञ रहता है।

धैर्यशाली – कर्ण बहुत धैर्यशाली है। घोर से घोर संकट में भी उसका मन चंचल नहीं होता। कवच और कुण्डलों को उतारते समय उसका धैर्य दर्शनीय है। संक्षेप में कर्ण महान वीर, आत्मविश्वासी, त्यागी तथा धैर्यवान है तथापि वह मानव है। मानवीय ईर्ष्या-द्वेष भी उसमें दिखाई पड़ते हैं।

प्रश्न 10. ‘कर्ण’ नामक खण्डकाव्य के आधार पर कुन्ती ( प्रमुख नारी पात्र) का चरित्र-चित्रण कीजिए ।

(अथवा) ‘कर्ण’ खण्डकाव्य के आधार पर कुन्ती के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए ।

उत्तर- ‘कर्ण’ खण्डकाव्य में कुन्ती प्रधान स्त्री पात्र है। वह पाण्डवों तथा कर्ण की माता है। उसके चरित्र में स्त्रियोचित गुण पाये जाते हैं। कुन्ती केवल पाँचवें सर्ग में सामने आती है। अत: उसके चरित्र का कुछ ही आभास हो पाता है । कुन्ती के चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

लज्जाभीरु – कुन्ती और कुछ होने से पहले नारी है। लज्जा और भीरुता सामान्य स्त्रियों के समान उसमें भी पायी जाती हैं। कुमारावस्था में वह कर्ण को जन्म देती है किन्तु लोकोपवाद के भय से वह बालक को नदी में प्रवाहित कर देती है। वह पाण्डवों से भी इस रहस्य को अन्त तक छुपाये रखती है।

ममतामयी माता – कुन्ती माता है। अपने पुत्रों की ममता उसके हृदय में निरन्तर लहराती है। कर्ण द्वारा अर्जुन को मारने की प्रतिज्ञा कर लेने पर वह कर्ण के पास उसे मनाने जाती है। कर्ण के प्रति भी उसे असीम प्रेम है किन्तु लोकलज्जा के कारण उसे दबाना पड़ता है। युद्ध समाप्त होने पर वह युधिष्ठिर से कर्ण को भी उसका भाई बताकर जलांजलि दिलाती है।

बुद्धिमती तथा वाक्पटु – कुन्ती बुद्धिमती है। वह अपनी बुद्धि से यह अनुमान करती है कि कर्ण द्वारा पाण्डवों का वध किया जा सकता है। अत: वह कर्ण के पास जाती है और अपनी वाक्पटुता से कर्ण को अपने पक्ष में करने का प्रयत्न करती हैं। यद्यपि वह कर्ण को अपने पक्ष में नहीं कर पाती तथापि अर्जुन के अतिरिक्त चार पुत्रों की सुरक्षा का आश्वासन तो पा ही लेती है । इस प्रकार हम देखते हैं कि कुन्ती के चरित्र में उत्कृष्ट नारी की अनेक विशेषताएँ विद्यमान हैं।

Imp. Links

Class 10th English Full Syllabus and Solutions Click Here
All Subjects Model Papers PDF DownloadClick Here
UP Board Official WebsiteClick Here
Join Telegram Channel For Live ClassClick Here
Join Official Telegram Channel Of GyansindhuClick Here
Hindi Syllabus / Mock Test / All PDF Home PageClick Here

 

error: Content is protected !!