Up board solution of class 10 Hindi – मेवाड़ मुकुट (खण्डकाव्य) (Mevad Mukut) charitr chitran sarans -up board class 10 syllabus 2022-23

Up board solution of class 10 Hindi – मेवाड़ मुकुट (खण्डकाव्य) (Mevad Mukut) charitr chitran sarans -up board class 10 syllabus 2022-23

up board class 10 syllabus 2022-23- Class 10 Hindi Chapter – मेवाड़ मुकुट (खण्डकाव्य)- डॉ० गंगारत्न पाण्डेय – मेवाड़ मुकुट -खंडकाव्य-सभी-सर्ग-10th, charitr chitran sarans kathavastu. मेवाड़ मुकुट खण्डकाव्य के आधार पर पात्रों का चरित्र-चित्रण कीजिए मेवाड़ मुकुट खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए। UP Board Solution Class 10 Hindi Chapter Question Answer. Mevad Mukut. सर्गों का सरांश. Matrbhoomi ke liye – सुभाष चन्द्र बोस का चरित्र चित्रण.

मेवाड़ मुकुट

प्रश्न 1. ‘मेवाड़ मुकुट’ के प्रथम सर्ग ‘अरावली’ का सारांश लिखिए।

उत्तर–अरावली सर्ग (प्रथम सर्ग) – इस सर्ग में कथा की पृष्ठभूमि प्रस्तुत की गयी है। राजस्थान के दक्षिण-पूर्व में अरावली पर्वत की शृंखलाएँ स्थित है। यह पर्वत मेवाड़ की रक्षा का दायित्व निभाता है। प्राचीन में इस पर्वत की कन्दराओं में ऋषि-मुनियों के वेदमन्त्र और ऋचाएँ गुंजायमान होती थीं। वर्तमान में यहाँ वीरों के जयघोष सुनाई देते हैं। अरावली को इस बात पर गर्व है कि चित्तौड़ दुर्ग हाथ से निकल गया तो कोई बात नहीं, राणा प्रताप अभी जीवित हैं जो अन्तिम श्वास तक स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करते रहेंगे।

प्रश्न 2. ‘मेवाड़ मुकुट’ खण्डकाव्य के ‘लक्ष्मी’ (द्वितीय) सर्ग का सारांश लिखिए।

उत्तर – लक्ष्मी सर्ग (द्वितीय सर्ग) — द्वितीय सर्ग में महाराणा की पत्नी लक्ष्मी का वर्णन है। चाँदनी रात के प्रथम प्रहर का समय है। इस निर्जन वन की एक कुटिया में लक्ष्मी चिन्तित मुद्रा में बैठी हैं। फटे-पुराने वस्त्र और कन्दमूल फल उसका भोजन है। धरती पर उसका शयन होता है। भूखे पुत्र को देखकर उसका हृदय व्याकुल हो उठता है । शत्रु के सामने अपना मस्तक नत न करने के कारण महाराणा प्रताप को इन सभी दुःखों का सामना करना पड़ रहा है। यद्यपि रानी स्वयं इन कष्टों को तो सहन कर सकती हैं किन्तु अपने पुत्र एवं पुत्री की इस अवस्था से उनका धैर्य टूट-सा जाता है और वह रोने लगती हैं। रानी को रोते हुए देखकर राणा प्रताप की आँखों में भी अश्रु भर आते हैं । किन्तु राणा को लक्ष्मी से प्रेरणा मिलती है कि उनकी पत्नी अपने कर्तव्य का पालन करती है तो वे क्यों न करें।

प्रश्न 3. ‘मेवाड़ मुकुट’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘प्रताप’ (तृतीय) सर्ग की कथा का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – प्रताप सर्ग (तृतीय सर्ग) – तृतीय सर्ग के आरम्भ में राणा प्रताप प्रतिज्ञा करते हैं कि वे या तो मेवाड़ को स्वतन्त्र करायेंगे अथवा इसी प्रयत्न में प्राणों का बलिदान चढ़ायेंगे। राणा शत्रु की शक्ति अपनी साधनहीनता और राजपूतों के भोलेपन पर विचार करते हैं। अकबर ने साम, दाम, दण्ड, भेद का ऐसा जाल फैलाया कि उससे कोई बच नहीं पाया। मानसिंह जैसा वीर भी उसके इशारों पर नाचता है। यह अकबर की नीति की विजय है। बस एक राणा बचा है जिसने उसकी दासता स्वीकार नहीं की।

राणा को शक्ति सिंह का ध्यान आता है-उसका प्रिय भाई शक्ति सिंह भी अकबर के पक्ष में चला गया है। राणा को अब श्री शक्ति सिंह से द्वेष नहीं है किन्तु उसकी मूर्खता पर खेद अवश्य है। राणा को प्रिय चेतक की भी याद आती है जिसने अपने प्राण देकर राणा के प्राण बचाये थे।

राणा को पश्चाताप होता है कि हल्दी घाटी के युद्ध में जरा-सी गलती हो जाने से सलीम बच गया। वह भूल न होती तो इन्हें वन-वन भटकना न पड़ता ।

राणा को दौलत की चिन्ता होती है। दौलत आगरा के राजमहल की बेटी! जो राजमहल को छोड़ दुःख सहने के लिए राणा के आश्रम में आयी है। उसने अकबर का आश्रय न लेकर शत्रु पक्ष का आश्रय लिया। कितनी सरल, पवित्र और स्नेहमयी है दौलत ! दौलत के उदाहरण से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि संसार में वैरभाव की अपेक्षा प्रेमभाव कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण भाव है।

राणा प्रताप अकबर के विषय में सोचता है। उसके हृदय में भरी है छल-कपट और सत्ता की लिप्सा ! उसके कपटजाल में फंसकर सारा राजस्थान नष्ट हो गया। राणा प्रतिज्ञा करता है कि वह कष्ट झेलता रहेगा परन्तु जब तक जीवित है अकबर की दासता स्वीकार नहीं करेगा। वह मर जायेगा परन्तु उसके जीवित रहते सिसोदिया वंश का झण्डा नहीं झुकेगा।

प्रश्न 4. ‘मेवाड़ मुकुट’ खण्डकाव्य के ‘दौलत’ (चतुर्थ) सर्ग की कथा का सारांश लिखिए।

उत्तर– दौलत सर्ग (चतुर्थ सर्ग) – कुंज में बैठी हुई दौलत अपने विगत जीवन को याद कर रही है। सोने चाँदी के थे उसके दिन और रात ! उसके जीवन में वैभव, भोग-विलास और रंगरेलियाँ थीं किन्तु साथ में था छल, कपट, द्वेष, स्वार्थ ! प्रेम का सर्वथा अभाव था । दौलत को आश्चर्य है कि महावली अकबर राणा जैसे निष्कपट, स्नेहमयी और पवित्र हृदय व्यक्ति की महत्ता न समझकर उन्हें अपना शत्रु क्यों मान बैठे हैं।

राणा मेवाड़ की स्वतन्त्रता हेतु कष्ट सहन करने वाला महान देशभक्त है, इसलिए उन्हें ‘मेवाड़ मुकुट’ कहा जाता है।

दौलत के वन आने का कारण —दौलत शक्ति सिंह के विषय में सोचती है। शक्ति सिंह, सिसोदिया वंश का कुमार, राणा प्रताप का भाई, वह जब आगरा गया था तो उसने अकबर को कोर्निश किया! कितना अन्तर था दोनों भाइयों में दौलत को शक्ति सिंह की इस कायरता पर बड़ा क्रोध आया था। उस दिन अकबर ने उसको बहुत सम्मान दिया था किन्तु वह तो अकबर की कूटनीति थी । शक्ति सिंह ने स्वार्थ के वशीभूत होकर अपना स्वाभिमान बेच दिया था।

कायर होते हुए भी शक्ति सिंह बहुत रूपवान है। उसका रूप ही दौलत को यहाँ खींच लाया है। दौलत इसे अपना सौभाग्य मानती है कि वह शक्ति सिंह के रूप पर आकृष्ट होकर आयी थी किन्तु यहाँ उसे मिल गया राणा प्रताप का पवित्र स्नेह !

दौलत राणा की कोई सेवा करने के लिए इच्छुक है, किन्तु उसकी समझ में नहीं आता कि वह क्या सेवा कर सकती है। उधर राणा कुछ. दिन से मौन रहने लगे, न जाने उनके सामने कौन-सी बड़ी समस्या है। मैंने भी आकर उनकी चिन्ताओं को और बढ़ा दिया है। दौलत इन विचारों में मग्न थी कि उसे अचानक राणा की पगध्वनि सुनाई पड़ती है।

प्रश्न 5. ‘मेवाड़ मुकुट’ खण्डकाव्य के ‘चिन्ता’ (पंचम) सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – चिन्ता सर्ग (पंचम सर्ग) – विचारमग्न दौलत से राणा प्रताप उसकी चिन्ता का कारण पूछते हैं। दौलत उत्तर देती है कि उसे न कोई दुःख है न कष्ट । केवल एक चिन्ता है कि कहीं उसके कारण मेवाड़ मुकुट को सिर न झुकाना पड़ जाये।

राणा कहते हैं कि दौलत के आने से उन्हें यह अभाव नहीं खटकता कि उनकी कोई पुत्री नहीं । किन्तु आज राणा ने उसकी माँ की आँखों में आँसू देखे हैं। यदि दौलत अपनी माँ (राणा की पत्नी) को धैर्य प्रदान कर सके तो फिर राणा का मस्तक कभी नहीं झुक सकेगा। दौलत वचन देती है कि वह रानी की व्यथा को दूर करने की चेष्टा करेगी।

उधर रानी लक्ष्मी कुटी में विचारमग्न बैठी है। उसे खेद है कि उसने राणा के सामने अपना दुःख कहकर उन्हें दुःखी किया है। दौलत रानी लक्ष्मी के पास जाकर मधुर स्वर में उनकी चिन्ता का कारण पूछती है और रानी का दुःख स्वयं लेना चाहती है।

राणा भी रानी को कहते हैं कि उन्होंने (रानी ने अब तक हार नहीं मानी तो आगे भी हार नहीं माननी चाहिए। राणा अपना निश्चय बताते हैं कि वे अरावली छोड़ किसी अन्य स्थान पर जायेंगे और वहाँ साधन तथा सेना जुटायेंगे। वे या तो मेवाड़ से अकबर का शासन हटायेंगे . प्रयत्न में अपने प्राण दे देंगे। राणा के इस निश्चय को सुनकर वह उत्साह से भर जाती है। राणा भी फिर से आश्वस्त हो जाते हैं।

प्रश्न 6. ‘मेवाड़ मुकुट’ खण्डकाव्य के ‘पृथ्वीराज’ सर्ग (षष्ठ सर्ग) की कथा अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – पृथ्वीराज सर्ग (षष्ठ सर्ग) – प्रातः काल का समय है। राणा प्रस्थान की तैयारी में लगे हैं। उसी समय एक अनुचर आकर अकबर के दरबारी कवि पृथ्वीराज का पत्र देता है और कहता है कि पृथ्वीराज राणा से मिलना चाहता है। राणा इसे अकबर की चाल समझते हैं। वे अनुचर को आदेश देते हैं कि वह आगुन्तक को वृक्ष के नीचे बैठाये। राणा तलवार लेकर पृथ्वीराज से मिलने जाते हैं।

राणा और पृथ्वीराज की बातचीत – पृथ्वीराज राणा प्रताप के शौर्य की प्रशंसा करते हुए राजपूतों की लाज बचाने की प्रार्थना करता है। राणा व्यंग्यपूर्ण भाषा में पूछते हैं कि जब सूर्यध्वज झुक रहा था और राणा की मर्यादा लुट रही थी, उस समय तुम्हें अकबर के शासन में राजपूतों की आन फलती-फूलती दीख रही थी, किन्तु आज जब राणा के पास कुछ नहीं, वह यन-वन भटक रहा है, आपका स्वागत कैसे कर सकता है?

पृथ्वीराज अपनी भूल स्वीकार करते हुए कहता है कि सचमुच आज तक वे अन्धे थे। अकबर को ही सब कुछ समझते थे । हम अकबर की दासता पर ही गर्व करते थे। अनेक प्रकार से पश्चाताप करता हुआ पृथ्वीराज राणा के चरणों में गिर पड़ा। पृथ्वीराज के शब्दों को सुनकर राणा का हृदय द्रवित हो जाता है। वे पृथ्वीराज से उसके दुःख का कारण पूछते हैं।

तब पृथ्वीराज अपनी दुःख भरी कथा राणा को सुनाते हैं। राणा को खेद होता है। वे यह तो जानते थे कि अकबर बड़ा अभिमानी है पर उन्होंने यह कभी नहीं सोचा था कि वह इतने निम्न स्तर पर उतर आयेगा कि अपने आश्रित कवि की लाज भी लूटने को तैयार हो जायेगा ।

महाराणा प्रताप पृथ्वीराज से पूछते हैं कि वह प्रतिशोध लेना चाहता है कि घर पर बैठे-बैठे आहे भरना चाहता है। राणा के शब्दों को सुनकर पृथ्वीराज का पौरुष जाग उठता है। उसकी आँखें प्रतिशोध की ज्वाला से चमकने लगती हैं। उत्तेजित त्वर में वह पुन: साधन जुटा राणा को सहयोग देने की बात कहता है। वह राजपूतों में नया उत्साह भरेगा। वह अपना एक ही लक्ष्या बताता है – मेवाड़ को मुक्त कराना और अकबर के मनोरथ को विफल करना ।

राणा कहते हैं कि केवल मनोरथ करने से तो सिद्धि नहीं मिलती, इसके लिए कठोर कर्मपथ का आय लेना होता है और असहाय व्यक्ति कठोर कर्मपथ पर भला कैसे चल सकता है ! तब पृथ्वीराज राणा के साहस और धैर्य की प्रशंसा करता है और कहता है कि साधन और सिद्धि महाराणा के पीछे चलते हैं। पृथ्वीराज सूचना देता है कि साधन भामाशाह प्रस्तुत करेंगे। वे इसी वन में हैं। पृथ्वीराज राणा से प्रार्थना करता है कि वे भामाशाह की विनय सुन लें और उसे स्वीकार कर लें।

प्रश्न 7. ‘मेवाड़ मुकुट’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘भामाशाह’ सर्ग (सप्तम सर्ग) की कथा का सारांश लिखिए।

(अथवा) ‘मेवाड़ मुकुट’ खण्डकाव्य के आधार पर किसी प्रमुख घटना का उल्लेख कीजिए जिसने आपको प्रभावित किया हो।

उत्तर – भामाशाह सर्ग (सप्तम सर्ग) – एक शिलाखण्ड पर बैठे राणा प्रताप सोच रहे हैं- “शायद मेरे जीवन में पुनः कोई नया मोड़ आने वाला है।” वे वर्तमान के शोषण, दासवृत्ति और छल-प्रपंच की राजनीति को सोचकर खिन्न हैं। पृथ्वीराज और भामाशाह के द्वारा उन्हें वन में खोजते फिरना राणा को इस बात का प्रतीक लगता है कि फिर से अन्धकार दूर होगा और चित्तौड़ का भाग्य पुनः जागेगा ।

इस समय भामाशाह उपस्थित हो जाते हैं। भामाशाह कहते हैं—“भगवान एकलिंग की कृपा से अब आपके शत्रु मरेंगे। साधना आपकी सेवा में अर्पित हैं, उन्हें स्वीकार करें और सेना एकत्र कर फिर से युद्ध आरम्भ करें। मेरे पिता और पितामह द्वारा एकत्र लाखों स्वर्ण मुद्राएँ जो भूमि में गड़ी थीं, आपके चरणों में अर्पित हैं। यह धनराशि व्यर्थ ही पड़ी हुई थी, वैसी ही पड़ी रहती।” राणा दूसरों के धन को उपहारस्वरूप लेने से इन्कार करते हैं किन्तु भामाशाह धन को राणा का ही बताता है क्योंकि इसे उसके पूर्वजों ने राणा के पूर्वजों की सेवा करके उन्हीं से प्राप्त किया था। भामाशाह के बहुत निवेदन करने पर राणा ने भामाशाह की प्रार्थना स्वीकार कर ली। उन्होंने देश छोड़कर बाहर जाने का विचार छोड़ दिया। भामाशाह ने उनकी दुविधा समाप्त कर दी। उन्होंने निश्चय किया कि अब वे यहीं रहकर स्वतन्त्रता के स्वप्न को साकार करेंगे। जिस देश में भामाशाह जैसे सपूत जन्म लेते हैं वह कभी परतन्त्र नहीं रह सकता। राणा को मेवाड़ की स्वतन्त्रता का नव प्रभात आने की आशा के साथ ही खण्ड समाप्त हो जाता है।

प्रश्न 8. ‘मेवाड़ मुकुट’ खण्डकाव्य के जिस पात्र ने आपको सर्वाधिक प्रभावित किया है, उसका चरित्र चित्रण कीजिए।

(अथवा ‘मेवाड़ मुकुट’ खण्डकाव्य का नायक कौन है? उसके चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए ।

(अथवा ‘मेवाड़ मुकुट’ खण्डकाव्य के आधार पर महाराणा प्रताप के चरित्र पर प्रकाश डालिए ।

(अथवा ‘मेवाड़ मुकुट’ के नायक (प्रधान पात्र) का चरित्र-चित्रण कीजिए ।

उत्तर– ‘मेवाड़ मुकुट’ काव्य में ‘महाराणा प्रताप’ का चरित्र सबसे अधिक प्रभावपूर्ण है। राणा प्रताप ही इस काव्य के नायक हैं। उनके चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं

महान स्वतन्त्रता सेनानी – महाराणा प्रताप एक महान स्वतन्त्रता सेनानी हैं। वे मेवाड़ की स्वतन्त्रता के लिए जीवनभर संघर्ष करते हैं। वे प्रतिज्ञा करते हैं कि जब तक उनके शरीर में प्राण हैं तब तक वे अत्याचारी शासक से संघर्ष करते रहेंगे। वे या तो मेवाड़ को पुनः स्वतन्त्र करायेंगे या फिर इस प्रयत्न में अपने प्राण दे देंगे।

महान वीर – महाराणा महान वीर हैं। हल्दी घाटी के युद्ध में उन्होंने अपूर्व वीरता दिखाई थी। बड़े से बड़े कष्ट को भी वे उत्साह के साथ सहन कर लेते हैं। वे धैर्य और उत्साह के साथ कष्टों का सामना करते हैं और कहीं भी अपने स्वाभिमान पर आँच नहीं आने देते हैं।

उदार हृदय – महाराणा हृदय से अति उदार हैं। शरण में आये शत्रु की भी वे रक्षा करते हैं। अपने पराये का भेद वे नहीं जानते । अकबर के मामा की लड़की दौलत को वे अपनी पुत्री की तरह पालते हैं। दौलत विधर्मी है किन्तु कुछ भी हो, वह करुणा और दया की पात्र है। दौलत स्वयं कहती है कि उसने महाराणा को पिता मानकर बहुत बड़ी निधि पा ली है।

भ्रातृप्रेमी – शक्ति सिंह राणा ताप का भाई है। महाराणा ने पुत्र की तरह प्रेम से उसे पाला था परन्तु वह भी अकबर से जा मिला है। अब भी महाराणा को उससे द्वेष नहीं है बल्कि उसकी मूर्खता पर उन्हें दया आती है। धीर पुरुष – महाराणा में धैर्य चरम सीमा तक पहुँचा हुआ है। बड़ी से बड़ी विपत्ति में भी वे धैर्य नहीं खोते। वे हिमालय की तरह वृढ़ खड़े रहते हैं। वे वन-वन भटकते हैं, भूखों रहते हैं, अपने पत्नी और बच्चों को भूखों बिलखते देखते हैं किन्तु धैर्य नहीं। सोते ।

दृढ़-प्रतिज्ञ – महाराणा प्रताप अपने वचन के पक्के हैं। वे जो कुछ कहते हैं, उसे पूरा करते हैं। वे प्रतिज्ञा करते हैं कि या तो मेवाड़ को पुनः स्वतन्त्र करायेंगे अथवा इसी प्रयत्न में अपना जीवन दे देंगे। वे जीवनभर अपनी इस प्रतिज्ञा का निर्वाह करते हैं।

नीतिज्ञ – महाराणा नीति के पूर्ण ज्ञाता हैं। जब भामाशाह अपने पूर्वजों द्वारा एकत्र किया हुआ सारा धन महाराणा को अर्पित करते हैं तब महाराणा नीति विरुद्ध पराये धन को उपहारस्वरूप लेना स्वीकार नहीं करते हैं। जब भामाशाह अपने धन को राजवंश का ही धन बताता है तब तो महाराणा अपने द्वारा दिये धन को लेना और भी नीति विरुद्ध समझते हैं और धन को लेने से इन्कार कर देते हैं। परन्तु जब भामाशाह देशसेवा को अपना अधिकार और कर्तव्य समझकर धन देते हैं, तब महाराणा धन को स्वीकार करते हैं।

परम आस्तिक – महाराणा प्रताप को ईश्वरीय शक्ति पर पूर्ण विश्वास है। भगवान एकलिंग उनके आराध्य देवता हैं। वे मानते हैं कि सब कुछ भगवान की कृपा से ही होता है। वे भामाशाह से कहते हैं कि वह भगवान एकलिंग का ही प्रसाद है कि मैं अभी तक अविजित हूँ। मेरा संकल्प अडिग है और मेरा मन अविकल है।

मर्यादापालक – महाराणा प्रताप को अपने कुल की मर्यादा का सदैव ध्यान रहता है। कुल की मर्यादा के विपरीत वे भामाशाह द्वारा दिया गया धन उपहारस्वरूप स्वीकार नहीं करते।

इस प्रकार महाराणा प्रताप का चरित्र वीर महापुरुष का चरित्र है। उनके चरित्र में अनेक मानवीय गुणों का समावेश जाता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि महाराणा प्रताप इतिहास के एक ऐसे महान प्रतापी एवं सद्गुणी महापुरुष हैं, जिनमें जातीय स्वाभिमान देश-प्रेम एवं स्वाधीनता के लिए स्वस्व बलिदान की सीख हमारे राष्ट्र की भावी पीढ़ियाँ हमेशा ग्रहण करती रहेंगी।

प्रश्न 9. ‘मेवाड़ मुकुट’ काव्य के आधार पर भामाशाह का चरित्र चित्रण कीजिए ।

(अथवा) ‘मेवाड़ मुकुट’ खण्डकाव्य के किसी एक पात्र का चरित्र चित्रण कीजिए।

उत्तर- भामाशाह राणा प्रताप के मन्त्री और महान देशभक्त हैं। वे राणा की ऐसे समय पर सहायता करते हैं जबकि वे अत्यन्त असहाय थे। भामाशाह की देशभक्ति, राजभक्ति एवं दानशीलता आज के युग में प्रासंगिक एवं अनुकरणीय है। भामाशाह के चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं

“देशभक्त – भामाशाह महान देशभक्त हैं। अपने देश को वह सर्वोपरि मानता है। देश की स्वतन्त्रता के लिए वह अपने पिता पितामह आदि द्वारा कमाया हुआ धन राणा को इसलिए दे देता है ताकि मेवाड़ स्वतन्त्र हो और अपने खोये गौरव को प्राप्त कर सके। प्रत्यक्ष रूप में धन राणा को दिया गया किन्तु परोक्ष रूप में तो राष्ट्र को ही समर्पित किया गया है।

राजभक्त — भामाशाह में देशभक्ति के साथ राजभक्ति भी कूट-कूटकर भरी है। वह राणा को खोजता वन-वन भटकता है और राणा की सहायता के लिए सर्वस्व समर्पित कर देता है।

बुद्धिमान – भामाशाह में विनयशीलता और तार्किक बुद्धि का मणिकांचन संयोग है। जब महाराणा उपहारस्वरूप धन को स्वीकार नहीं करते हैं तो भामाशाह दूसरा तर्क रखता है कि वह धन तो उसे या उसके पूर्वजों को राजवंश से ही मिला था, अतः वह उपहार नहीं, राजकोष का ही धन है। इस पर राणा अपने द्वारा दिये धन को वापस लेने से इन्कार कर देते हैं। तब भामाशाह एक अकाट्य तर्क प्रस्तुत करते हैं- “देशसेवा का अधिकार केवल राजवंश का नहीं, सबका है। देशसेवा करना सबका कर्तव्य है, अतः अपने धन को देशसेवा के लिए देना भामाशाह का अधिकार है और साथ ही कर्तव्य भी है।”

दानवीर – भामाशाह में सर्वोपरि गुण उसका त्याग है। वह अपने पिता पितामह द्वारा एकत्र की गयी सम्पूर्ण सम्पत्ति देश के लिए अर्पित करता है। अपने भावी जीवन की चिन्ता न कर वह देश को सर्वोपरि मानता है। आज के युग में उनकी दानवीरता अनुकरणीय है। भामाशाह स्वयं महाराणा से इस प्रकार कहते हैं

“यदि स्वदेश के मुक्ति यज्ञ में यह आहुति दे पाऊँ ।

पितरों सहित देव निश्चय ही, मैं कृतार्थ हो जाऊँ ।”

संक्षेप में, वह एक देशभक्त, विनयशील, बुद्धिमान तथा दानवीर है। अपने इस महान त्याग तथा दान के लिए वह इतिहास में सदैव के लिए अमर रहेगा।

प्रश्न 10. ‘मेवाड़ मुकुट’ खण्डकाव्य के कथानक (सारांश) पर प्रकाश डालिए।

(अथवा) ‘मेवाड़ मुकुट’ खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।

(अथवा) ‘मेवाड़ मुकुट’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर- [ खण्डकाव्य के कथानक हेतु प्रश्न संख्य 1 से 7 तक के उत्तरों को मिलाकर संक्षेप में लिखिए।

 

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