UP Board12th Paper Sahityik Hindi Model Paper 2022

UP Board12th Paper Sahityik Hindi Model Paper 2022

UP Board12th Paper Sahityik Hindi Model Paper 2022- कक्षा 12 साहित्यिक हिंदी यूपी बोर्ड मॉडल पेपर २०२२. UP Board Model Paper 2022 Class 12th for General Hindi and UP Board Model Question Paper for Class 12th and General Hindi has been released By UPMSP So here i give you to based on Covid 19 Syllabus up board general hindi model paper 2022. this Model Question Paper is for Session -2021-22.       See Vedio Lecture

12th Paper General Hindi- UP Board Samany Hindi Model Paper 2022

हिन्दी मॉडल पेपर 2021-22 

कक्षा -12th {साहित्य हिन्दी}

समय – 3:15 hrs.                                                     Model Paper- 2021-22                                                      पूर्णांक: 100

निर्देश –

  1. प्रारम्भ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्न – पत्र पढ़ने के लिए निर्धारित हैं ।
  2. सभी प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है ।
  • सभी प्रश्नों हेतु निर्धारित अंक उनके सम्मुख अंकित हैं ।

खंड – क

  1. ( क ) आदिकाल का नाम ‘ वीरगाथा काल ‘ किस इतिहासकार ने रखा है ?
    1. हजारीप्रसाद द्विवेदी
    2. महावीर प्रसाद द्विवेदी
    3. शान्तिप्रिय द्विवेदी
    4. रामचन्द्र शुक्ल

( ख ) ‘ खलिक बारी ‘ के रचयिता हैं –

    1. अमीर खुसरो
    2. अबुल फजल
    3. ख्वाजा अहमद
    4. अब्दुर्रहमान

( ग ) निम्नलिखित में से कौन अपनी व्यंग्य – रचनाओं के लिए प्रसिद्ध हैं ?

    1. श्यामसुन्दर दास
    2. गुलाब राय
    3. हरिशंकर परसाई
    4. रामचन्द्र शुक्ल

( घ ) ‘ रूपक रहस्य ‘ रचना है

    1. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की
    2. श्यामसुन्दर दास की
    3. वासुदेवशरण अग्रवाल की
    4. जैनेन्द्र कुमार की

( ङ ) ‘ तन्त्रालोक से यन्त्रालोक तक ‘ रचना की विधा है –

    1. भेट वार्ता
    2. संस्मरण
    3. रिपोर्ताज
    4. यात्रावृत्त
  1. ( क ) सही सुमेलित है-
    1. भारत – भारती / महाकाव्य
    2. प्रणभंग / चरितकाव्य
    3. गीतिका / वीरकाव्य
    4. रश्मिरथी / खण्डकाव्य

( ख ) निम्नलिखित में से कौन – सी पन्त जी की रचना मानी जाती है ?

    1. परशुराम की प्रतीक्षा
    2. युगांत
    3. यामा
    4. निरुपमा

( ग )  तुलसीदास के बचपन का नाम क्या था –

    1. रामबोला
    2. सीताराम
    3. गणपति
    4. रामचन्द्र

( घ ) ‘ रीतिमुक्त काव्यधारा के कवी नहीं  हैं  –

    1. घनानन्द
    2. बिहारी
    3. बोधा
    4. आलम

( ङ ) अज्ञेय की प्रथम काव्यकृति कौन सी है –

    1. बावरा अहेरी
    2. चिंता
    3. भग्नदूत
    4. इत्यलम
  1. निम्नलिखित अवतरणों को पढ़कर दिए गए गद्यांशों पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

धरती माता की कोख में जो अमूल्य निधियाँ भरी हैं , जिनके कारण वह वसुन्धरा कहलाती है , उससे कौन परिचित न होना चाहेगा ? लाखों – करोड़ों वर्षों से अनेक प्रकार की धातुओं को पृथिवी के गर्भ में पोषण मिला है ।

दिन -रात बहने वाली नदियों ने पहाड़ों को पीस-पीसकर अगणित प्रकार की मिट्टियों से पृथिवी की देह को सजाया है । हमारे भावी आर्थिक अभ्युदय के लिए इन सबकी जाँच – पड़ताल अत्यन्त आवश्यक है ।

  • धरती को वसुन्धरा क्यों कहते हैं ?

उत्तर-  धरती को वसुन्धरा इसलिए कहते हैं , क्योंकि पृथ्वी के गर्भ में अमूल्य निधियों का भण्डार है , जो लाखों – करोड़ों वर्षों से मौजूद हैं । इन निधियों को पृथ्वी के गर्भ में पोषण प्राप्त होता है ।

  • किसने पृथिवी की देह को सजाया है ?

उत्तर – यहाँ बहने वाली नदियाँ पहाड़ों की चट्टानों को तोड़कर उन्हें अत्यन्त महीन कणों में परिवर्तित कर मिट्टी का रूप देती हैं और इसी मिट्टी से पृथ्वी की या धरती माता की देह सजती है अर्थात् धरती फलती – फूलती व उपजाऊ बनती है ।

  • आर्थिक विकास के लिए क्या आवश्यक है ?

उत्तर – पृथ्वी की अमूल्य निधियों के विषय में जानकारी प्राप्त करना आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है ।

  • रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उत्तर-  प्रस्तुत पंक्ति में लेखक ने राष्ट्र के निर्माण में पृथ्वी अर्थात् भूमि के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहा है कि इस धरती माता के विविध पक्षों से हम जितने अधिक परिचित होंगे , हमारी राष्ट्रीयता की भावना उतनी ही अधिक बलवती होगी । लेखक धरती माता अर्थात् पृथ्वी के गर्भ में भरी पड़ी अमूल्य निधियों ( रत्नों ) की चर्चा करते हुए कहता है कि इन निधियों के कारण ही पृथ्वी को वसुन्धरा कहा जाता है । इन अमूल्य निधियों के विषय में सभी को पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए । अनेक धातुएँ इस धरती माता के गर्भ में लाखों – करोड़ों वर्षों से मौजूद हैं । इन धातुओं को , अमूल्य निधियों को पृथ्वी के गर्भ में पोषण प्राप्त होता है ।

  • उक्त गद्यांश के पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम बताइए ।

उत्तर-  पाठ का शीर्षक – राष्ट्र का स्वरूप पाठ का लेखक – वासुदेवशरण अग्रवाल

अथवा

जन्म लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति के भरण – पोषण की , उसके शिक्षण की जिससे वह समाज के जिम्मेदार घटक के नाते अपना योगदान करते हुए अपने विकास में समर्थ हो सके , उसके लिए स्वस्थ एवं क्षमता की अवस्था में जीविकोपार्जन की , और यदि किसी कारण से वह संभव न हो , तो भरण – पोषण की तथा उचित अवकाश की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी समाज की है । प्रत्येक सभ्य समाज इसका किसी न किसी रूप में निर्वाह करता है । प्रगति के यही मुख्य मानदण्ड हैं । अत : न्यूनतम जीवन – स्तर की गारंटी , शिक्षा , जीविकोपार्जन के लिए रोजगार , सामाजिक सुरक्षा और कल्याण को हमें मूलभूत अधिकार के रूप में स्वीकार करना होगा ।

  • लेखक की दृष्टि में सभ्य समाज के क्या दायित्व हैं ?

उत्तर – लेखक की दृष्टि में समाज में जन्म लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति के पालन – पोषण , शिक्षण , जीविका के लिए रोजी – रोटी का उचित प्रबन्ध करना सभ्य समाज के दायित्व हैं ।

  • ‘ घटक ‘ तथा ‘ मानदण्ड ‘ शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर – घटक शब्द का अर्थ ‘ तत्त्व ‘ तथा मानदण्ड शब्द का अर्थ मानक , पैमाना आदि होते हैं ।

  • रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उत्तर-  लेखक अनुसार समाज में जन्म लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति के पालन – पोषण की , उसकी शिक्षा की जिसके माध्यम से वह समाज के विकास में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सके । साथ ही स्वस्थ एवं क्षमता की अवस्था तथा अस्वस्थ एवं अक्षमता की अवस्था में उचित अवकाश की व्यवस्था करने और जीविकोपार्जन का दायित्व समाज का है ।

  • समाज का जिम्मेदार घटक कौन है –

उत्तर – जन्म लेने वाला प्रत्येक प्राणी समाज का जिम्मेदार घटक है|

 

  1. निम्नलिखित पद्यांशों को पढ़कर दिए गए गद्यांशों पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

जल पंजर – ग -गत अब अरे अधीर , अभागे ,

वे ज्वलित भाव थे स्वयं तुझी में जागे ।

पर था केवल क्या ज्वलित भाव ही मन में ?

क्या शेष बचा था कुछ न और इस जन में ?

 कुछ मूल्य नहीं वात्सल्य – मात्र , क्या तेरा ?

पर आज अन्य – सा हुआ वत्स भी मेरा ।

थूके , मुझ पर त्रैलोक्य भले ही थूके ।

जो कोई जो कह सके , कहे , क्यों चूके ?

छीने न मातृपद किन्तु भरत का मुझसे ,

रे राम , दुहाई करूँ और क्या तुझसे ?

  • प्रस्तुत पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए ।

उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘ काव्यांजलि ‘ में संकलित तथा मैथिलीशरण गुप्त  ‘ द्वारा रचित ‘ कैकेयी का अनुताप ‘ शीर्षक कविता से उद्धृत है ।

  • रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियों में कैकेयी , राम को वनवास भेजने के लिए स्वयं को दोषी ठहराते हुए पश्चाताप कर रही हैं , वे कहती हैं कि क्या मुझमें और कुछ भी शेष न था ? क्या मेरे मन के वात्सल्य भाव अर्थात् पुत्र – स्नेह का कुछ भी मूल्य नहीं ? कहने का तात्पर्य यह है कि कैकेयी ने अपनी विवशता को स्पष्ट किया है ।

  • ‘ अन्य सा हुआ वत्स भी मेरा ‘ का आशय स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर- ‘ अन्य सा हुआ वत्स भी मेरा ‘ का आशय यह है कि अपने मन को अधीर और अभागा मान कैकेयी अपने अन्तर्मन को कहती हैं कि मेरे मन में स्थित हे मन ! ईर्ष्या – द्वेष से परिपूर्ण वे ज्वलन्त भाव तुझमें ही जागे थे , जिस कारण आज स्वयं मेरा पुत्र ही मुझसे पराए की भाँति व्यवहार करता है ।

  • इस पद्यांश में अभिव्यक्त रस का नाम लिखिए ।

उत्तर – इस पद्यांश में करुण रस है , क्योंकि दुःख या शोक की संवेदना बड़ी गहरी और तीव्र होती है । करुणा से हमदर्दी , आत्मीयता और प्रेम उत्पन्न होता है , जिससे व्यक्ति परोपकार की ओर उन्मुख होता है । यहाँ कैकेयी को स्वयं के कृत्य पर पश्चाताप हो रहा है , जिसमें करुण रस की पुष्टि हो रही है ।

  • कैकेयी किससे दुहाई करती है ?

उत्तर- कैकेयी राम से दुहाई करती है |

अथवा

समर्पण लो सेवा का सार सजल संसृति का वह पतवार ;

आज से यह जीवन उत्सर्ग इसी पद तल में विगत विकार ।

बनो संसृति के मूल रहस्य तुम्हीं से फैलेगी वह बेल ;

विश्व भर सौरभ से भर जाय सुमन के खेलो सुन्दर खेल ||

  • श्रद्धा मनु को क्या सन्देश देना चाहती है ?

उत्तर-  श्रद्धा , मनु को सन्देश देती हुई कहती है कि मुझे अपनी संगिनी अर्थात् पत्नी के रूप में सहर्ष स्वीकार कर संसार रूपी बेल को सूखने से बचा लो ।

  • सृष्टि का क्रम चलाने के लिए वह क्या कहती है ?

उत्तर-  सृष्टि का क्रम चलाने के लिए श्रद्धा , मनु से स्वयं को पत्नी के रूप में स्वीकार कर इस निर्जन संसार में मानव की उत्पत्ति का मूलाधार बनने को कहती है ।

  • ” सुमन के खेलो सुन्दर खेल ‘ का भाव स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर-  ‘ सुमन के खेलो सुन्दर खेल ‘ का भाव यह है कि सृष्टि के सुन्दर खेलों को खेलने से सम्पूर्ण विश्व मानव रूपी सुगन्धित पुष्पों से सुवासित हो उठेगा और प्रकृति खुश होकर झूमने लगेगी ।

  • रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उत्तर-  श्रद्धा मनु से कहती है कि हे तपस्वी ! तुम मुझे अपनाकर सृष्टि को आगे बढ़ाने में सहायक बनो और इसके रहस्यों अर्थात् जीवन – मरण के साथ का साक्षात्कार करो । अतः मुझे अपनी संगिनी अर्थात् पत्नी के रूप में सहर्ष स्वीकार कर संसार रूपी बेल को सूखने से बचा लो । तुम्हारे ऐसा करने अर्थात् सृष्टि के सुन्दर खेलों को खेलने से सम्पूर्ण विश्व मानव रूपी सुगन्धित पुष्पों से सुवासित हो उठेगा और प्रकृति खुश होकर झूमने लगेगी ।

  • पाठ का शीर्षक और कवि का नाम बताइए ।

उत्तर – प्रस्तुत पाठ का शीर्षक ‘ श्रद्धा – मनु ‘ तथा कवि का नाम जयशंकर प्रसाद है ।

 

  1. ( क ) निम्नलिखित लेखकों में से किसी एक लेखक का जीवन परिचय देते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए
    • कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर
    • डॉ . वासुदेवशरण अग्रवाल
    • हजारीप्रसाद द्विवदी

( ख ) निम्नलिखित कवियों में से किसी एक का जीवन परिचय देते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए

  1. महादेवी वर्मा
  2. सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘ अज्ञेय ‘
  3. अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘ हरिऔध ‘

 

  1. ‘ बहादुर ‘ अथवा ‘ कर्मनाशा की हार ‘ कहानी की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए ।

अथवा

‘ पंचलाइट  ‘ अथवा ‘ कर्मनाशा की हार ‘ कहानी के मुख्य पात्र का चरित्र – चित्रण कीजिए |

  1. निम्नलिखित खण्डकाव्यों में से स्वपठित खण्डकाव्य के आधार पर किसी एक प्रश्न का उत्तर दीजिए

( क ) “ मुक्तियज्ञ ‘ खण्डकाव्य की कथावस्तु की समीक्षा कीजिए । अथवा ‘ मुक्तियज्ञ ‘ के नामकरण की सार्थकता पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए रचना के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए ।

( ख ) “ सत्य की जीत ‘ खण्डकाव्य की कथावस्तु की विशेषताएँ बताइए ।

अथवा “ नारी अबला नहीं , शक्तिरूपा है । ” द्रौपदी के चरित्र के माध्यम से इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए |

Section -B

  1. निम्नलिखित अवतरणों का सन्दर्भ – सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए ।

( क ) महामना विद्वान् वक्ता , धार्मिको नेता , पटुः पत्रकारश्चासीत् । परमस्य सर्वोच्चगुण : जनसेवैव आसीत् । यत्र कुत्रापि अयं जनान् दुःखितान् पीड्यमानांश्चापश्यत् तत्रैव सः शीघ्रमेव उपस्थितः , सर्वविधं साहाय्यञ्च अकरोत् । प्राणिसेवा अस्य स्वभाव एवासीत् । अद्यास्माकं मध्येऽनुपस्थितोऽपि महामना मालवीयः स्वयशसोऽमूर्तरूपेण प्रकाशं वितरन् अन्धे तमसि निमग्नान् जनान् सन्मार्ग दर्शयन् स्थाने – स्थाने , जने – जने उपस्थित एव ।

 सन्दर्भ प्रस्तुत संस्कृत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक संस्कृत दिग्दर्शिका के महामना मालवीय पाठ से अवतरित है|

अनुवाद – महामना विद्वान् वक्ता , धार्मिक नेता एवं कुशल पत्रकार थे , किन्तु जनसेवा ही इनका सर्वोच्च गुण था । ये जहाँ कहीं भी लोगों को दुःखी और पीड़ित देखते , वहाँ शीघ्र उपस्थित होकर सब प्रकार की सहायता करते थे । प्राणियों की सेवा ही इनका स्वभाव था । आज हमारे बीच अनुपस्थित होकर भी महामना मालवीय अमूर्त रूप से अपने यश का प्रकाश बाँटते हुए गहन अन्धकार में डूबे हुए लोगों को सन्मार्ग दिखाते हुए स्थान – स्थान पर जन – जन में उपस्थित हैं ।

अथवा

सप्तदशवर्षाणि यावत् अमरत्वप्राप्त्युपायं चिन्तयन् मूलशङ्करः ग्रामाद् ग्राम , नगरान्नगरं , वनाद् वनं , पर्वतात् पर्वतमभ्रमत् परं नाविन्दतातितरां तृप्तिम् । अनेकेभ्यो विद्वद्भ्य : व्याकरण – वेदान्तादीनि शास्त्राणि योगविद्याश्च अशिक्षत् । नर्मदातटे च पूर्णानन्दसरस्वतीनाम्नः संन्यासिनः सकाशात् संन्यासं गृहीतवान् ‘ दयानन्दसरस्वती ‘ इति नाम च अङ्गीकृतवान् ।

 

सन्दर्भ – प्रस्तुत संस्कृत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक संस्कृत दिग्दर्शिका के  महर्षि दयानंद:  पाठ से अवतरित है|

अनुवाद-  मूलशंकर सत्रह वर्ष तक अमरता प्राप्ति के उपाय पर विचार करते हुए गाँव – गाँव , शहर – शहर , वन – वन , पर्वत – पर्वत घूमते रहे , किन्तु सन्तुष्टि नहीं पा सके । अनेक विद्वानों से व्याकरण , वेदान्त आदि शास्त्र तथा योग विद्या सीखी । इन्होंने नर्मदा नदी के तट पर ‘ पूर्णानन्द सरस्वती ‘ नाम के संन्यासी से संन्यास ग्रहण कर ‘ दयानन्द सरस्वती ‘ नाम अंगीकार किया ।

 

 

 

अथवा

( ख ) व्यतिषजति पदार्थानान्तरः कोऽपि हेतुः

न खलु बहिरुपाधीन् प्रीतयः संश्रयन्ते ।

विकसति हि पतङ्गस्योदये पुण्डरीकं

द्रवति च हिमरश्मावुद्गतेः चन्द्रकान्तः ।।

 

सन्दर्भ – प्रस्तुत संस्कृत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक संस्कृत दिग्दर्शिका के सुभाषितरत्नानि  पाठ से अवतरित है|

अनुवाद – पदार्थों को मिलाने वाला कोई आन्तरिक कारण ही होता है । निश्चय ही प्रीति ( प्रेम ) बाह्य कारणों पर निर्भर नहीं करती ; जैसे – कमल सूर्य के उदय होने पर ही खिलता है और चन्द्रकान्त – मणि चन्द्रमा के उदय होने पर ही द्रवित होती है । .

अथवा

जयन्ति ते महाभागा जन – सेवा – परायणाः ।

जरामृत्युभयं नास्ति येषां कीर्तितनोः क्वचित् ।।

सन्दर्भ –  प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य – पुस्तक ‘ संस्कृत दिग्दर्शिका ‘ के ‘ महामना मालवीयः ‘ नामक पाठ से उद्धृत है ।

अनुवाद –  जन – सेवा में परायण ( तत्पर ) वे व्यक्ति जयशील होते हैं , जिनके यशरूपी शरीर को कहीं भी बुढ़ापे तथा मृत्यु का भय नहीं है । यहाँ कहने का तात्पर्य यह है कि जो लोग अपना जीवन जनकल्याण के लिए समर्पित कर देते हैं , उनकी कीर्ति मृत्यु के बाद भी जीवित रहती है ।

 

  1. निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं दो के उत्तर संस्कृत में दीजिए ।

( क ) अन्यदा भोज : कुत्र अगच्छत् ?

( ख ) राजहंस : पषिन्मथे कस्मै दुहितरम् अददात् ?

( ग ) मालवीयमहोदयस्य प्रारम्भिकी शिक्षा कुत्र अभवत् ?

( घ ) वासुदेव कस्य दौत्येन कुत्र गत 😕

  1. ( क ) ‘ वीभत्स ‘ अथवा ‘ भयानक रस की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए ।

( ख ) ‘ उपमा ‘ अथवा ‘ यमक ‘ अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए ।

( ग ) ‘ रोला ‘ अथवा ‘ चौपाई  ‘ का लक्षण एवं उदाहरण लिखिए ।

  1. निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर अपनी भाषा – शैली में निबन्ध लिखिए ।

( क ) वर्तमान शिक्षा प्रणाली के गुण – दोष

( ख ) दूरदर्शन की उपयोगिता

( ग ) मेरे जीवन की अविस्मरणीय घटना

( घ ) स्वदेश प्रेम

( ङ ) वर्तमान समय में समाचार – पत्रों का महत्त्व

 

 

 

 

  1. ( क ) ( i ) ‘ नायक : ‘ का सन्धि – विच्छेद है –
  2. नै + अक :
  3. नाय + अक :
  4. नाय + क
  5. नौ + अक :

( ii ) ‘ उल्लास : ‘ का सन्धि – विच्छेद है

  1. उल + लासः
  2. उद् + लासः
  3. उत् + लासः
  4. उ + ल्लासः

( iii ) ‘ रामाग्रतः ‘ का सन्धि – विच्छेद है

  1. रामे + अग्रतः
  2. रामौ + अग्रतः
  3. रामो + अग्रतः
  4. रामः + अग्रत

( ख ) ( i ) नीलाम्बुजम् ‘ में समास है –

  1. बहुव्रीहि समास
  2. कर्मधारय समास
  3. अव्ययीभाव समास
  4. द्विगु समास

( ii ) त्रिलोकी ‘ में समास है

  1. द्वन्द्व समास
  2. द्विगु समास
  3. तत्पुरुष समास
  4. बहुव्रीहि समास
  5. ( क ) ‘ पथिष्यन्ति ‘ ‘ नी ‘ धातु के किस लकार , किस पुरुष तथा किस वचन का रूप है ?

उत्तर – लृट लकार , प्रथम पुरुष,   एकवचन

  1. ( ख ) ( i ) ‘ तिष्ठेव ‘ रूप है

( a ) विधिलिङ्लकार , प्रथम पुरुष , द्विवचन            ( b ) विधिलिङ्लकार , उत्तम पुरुष , द्विवचन

( c ) लङ्लकार , मध्यम पुरुष , बहुवचन                  ( d ) लोट्लकार , उत्तम पुरुष , एकवचन

( ii ) ‘ गच्छथ: ‘ रूप है-

( a ) लट्लकार , मध्यम पुरुष , द्विवचन              ( b ) लङ्लकार , मध्यम पुरुष , एकवचन

( c ) लङ्लकार , प्रथम पुरुष , बहुवचन             ( d ) लृट्लकार , प्रथम पुरुष , एकवचन

( ग ) ( i ) ‘ गत :  ‘ में प्रत्यय है –

( a ) क्त            ( b ) त्व

( c ) मतुप्          ( d ) अनीयर्

( ii ) ‘ धनवान् ‘ में प्रत्यय है –

( a ) तव्यत्                ( b ) क्त्वा

( c ) वतुप               ( d ) मतुप

 

( घ ) निम्नलिखित रेखांकित पदों में से किसी एक पद में प्रयुक्त विभक्ति तथा उससे सम्बन्धित नियम का उल्लेख कीजिए ।

  1. मातुः हृदयं कन्यां प्रति स्निग्धं भवति ।

अभित: पारित: समाया निकसा हा प्रति योगे5पि  सूत्र से कन्यां पद में  द्वितीया विभक्ति कर्म कारक है |

  1. छात्रासु लता श्रेष्ठा ।

यतश्च निर्धारणम   सूत्र से छात्रासु पद में सप्तमी  विभक्ति अधिकरण कारक है |

  1. अहमपि त्वया सार्धं यास्यामि ।

सहयुकते5प्रधाने   सूत्र से त्वया  पद में  तृतीया  विभक्ति करण   कारक है |

 

  1. निम्नलिखित वाक्यों में से किन्हीं दो वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
  • गाँव के दोनों ओर सरोवर हैं ।

अनुवाद –  ग्रामम् अभितः सरोवरः अस्ति ।

  • पेड़ से पत्ता गिरता है ।

अनुवाद –   वृक्षात् पत्रं पतति ।

  • बन्दर वृक्ष पर चढ़ते हैं ।

अनुवाद –  वानराः वृक्षस्योपरि आरोहति

  • राम ने रावण को बाण से मारा ।

अनुवाद –   रामः बाणेन हतो रावणः ।

  • गाँव के समीप विद्यालय है ।

अनुवाद –   ग्रामस्य समीपम् विद्यालयः अस्ति|

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