Class 10th Hidni Chapter 5 Pragati Ke Mandand प्रगति के मानदण्ड
UP Board Class 12 Sahityik Hindi गद्य Chapter 5 प्रगति के मानदण्ड ||Pragati ke Mandand : हिंदी पाठ्य-पुस्तक Class 12th sahityik hindi के पाठ Chapter 5th प्रगति के मानदण्ड Pragati ke Mandand के Chapter 5 के आधार पर पाठ 5 के गद्यांशो पर आधारित प्रश्नों का हल सरल भाषा में दिया जा रहा है , यूपी बोर्ड की कक्षा 12 के पाठयक्रम के आधार पर सम्पूर्ण पाठ गद्यांश सोल्यूशन दिया जा रहा है , विगत वर्षों में आये हुए प्रश्नों का बेहतरीन संकलन है , सभी विद्यार्थी Hindi Chapter 5 Pragati ke mandand Siddhant Aur Neeti ke Sampadit Ansh written by Deendayal Upadhyaay का लाभ उठायें|
आवश्यक बात – इस पाठ का अनुवाद हर वाक्य अलग कर के किया गया है |यदि कोई समस्या हो तो नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर के वीडियो के माध्यम से समझें|
Book Name / पाठ्य पुस्तक का नाम | Scert |
Class / कक्षा | Class 12th / कक्षा -12 |
Subject / विषय | Hindi /हिंदी |
Chapter Number / पाठ संख्या | Chapter 5 पाठ -5 |
Name of Chapter / पाठ का नाम | प्रगति के मानदण्ड Pragati ke Mandand |
Board Name / बोर्ड का नाम | यूपी बोर्ड 12th हिंदी/up board 12th Hindi |
Book Name / पाठ्य पुस्तक का नाम | Non NCERT / एन सी आर टी |
Class / कक्षा Vedio के माध्यम से समझें ⇒ | Class 12th / कक्षा -12 |
Up board non NCERT textbook for Class 12 Hindi explanations :
प्रगति के मानदण्ड (सिद्धान्त और नीति के सम्पादित अंश) -पं. दीनदयाल उपाध्याय गद्यांशों पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
Passage-1
( क ) हमारी सम्पूर्ण व्यवस्था का केन्द्र मानव होना चाहिए जो ‘ यत् पिण्डे तद्ब्रह्मांडे ‘ के न्याय के अनुसार समष्टि का जीवमान प्रतिनिधि एवं उसका उपकरण है । भौतिक उपकरण मानव के सुख के साधन हैं , साध्य नहीं । जिस व्यवस्था में भिन्नरुचिलोक का विचार केवल एक औसत मानव से अथवा शरीर – मन – बुद्धि – आत्मायुक्त अनेक एषणाओं से प्रेरित पुरुषार्थचतुष्टयशील , पूर्ण मानव के स्थान पर एकांगी मानव का ही विचार किया जाय , वह अधूरी है । हमारा आधार एकात्म मानव है जो अनेक एकात्म मानववाद के आधार पर हमें जीवन की सभी व्यवस्थाओं का विकास करना होगा ।
प्रश्न- ( i ) उपर्युक्त गद्यांश के लेखक एवं पाठ का नाम लिखिए।
उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश के लेखक ‘ पं . दीनदयाल उपाध्याय ‘ हैं तथा इस गद्यांश के पाठ का नाम है – ‘ प्रगति के मानदण्ड ‘ ।
( ii ) लेखक के अनुसार भौतिक उपकरण मानव के लिए क्या हैं ?
उत्तर- लेखक के अनुसार भौतिक उपकरण मानव के लिए सुख का साधन है , साध्य नहीं है ।
( iii ) लेखक ने सम्पूर्ण व्यवस्था का केन्द्र किसे कहा है ?
उत्तर- लेखक के सम्पूर्ण व्यवस्था का केन्द्र है – ‘ एकात्म मानववाद ‘ ।
( iv ) भौतिक उपकरण के विषय में लेखक के क्या विचार हैं ?
उत्तर- लेखक का विचार है कि पंखा, रेफ्रिजरेटर, टी.वी. , इण्टरनेट , गाड़ियाँ आदि भौतिक उपकरण मानव के लिए साधन हो सकते हैं किन्तु यह उनके जीवन का साध्य नहीं हो सकता है ।
( v ) गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- हमारी सम्पूर्ण व्यवस्था के मध्य अर्थात् केन्द्र में मनुष्य होना चाहिए । मनुष्य ही ब्रह्माण्ड का आधार है तथा पृथ्वी पर जीव का प्रतिनिधित्व करने वाला मनुष्य ही है और वही इस व्यवस्था का उपकरण या साधन है ।
Passage-2
( ख ) पाश्चात्य जगत ने भौतिक उन्नति तो की , किंतु उसकी आध्यात्मिक अनुभूति पिछड़ गयी । भारत भौतिक दृष्टि से पिछड़ गया और इसलिए उसकी आध्यात्मिकता शब्दमात्र रह गयी । ‘ नाऽयमात्मा बलहीनेन लभ्यः ‘ – अशक्त आत्मानुभूति नहीं कर सकता । बिना अभ्युदय के निःश्रेयस की सिद्धि नहीं होती । अतः आवश्यक है कि ‘ बलमुपास्य ‘ के आदेश के अनुसार अहम बल – संवर्द्धन करें , अभ्युदय के लिए प्रयत्नशील हों , जिससे अपने रोगों को दूर कर स्वास्थ्यलाभ कर सकें तथा विश्व के लिए भार न बनकर उसकी प्रगति में साधक और सहायक हो सकें ।
( i ) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए ।
उत्तर- उपर्युक्त
( ii ) पाश्चात्य जगत ने किस क्षेत्र में उन्नति की ?
उत्तर- भौतिक क्षेत्र में उन्नति की है।
( iii ) उपर्युक्त गद्यांश में किस बात को व्यक्त किया गया है ?
उत्तर- गद्यांश में यह व्यक्त किया है कि बिना अभ्युदय के निःश्रेयस की सिद्धि नहीं होती है ।
( iv ) लेखक ने भारत के सन्दर्भ में क्या कहा है ?
उत्तर- लेखक ने कहा है कि भारत की आध्यात्मिक उन्नति शब्दमात्र रह गयी है, लेकिन वह भौतिक क्षेत्र में पिछड़ गया |
( v ) गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- व्याख्या – पश्चिमी देशों ने सुख – सुविधा में प्रयोग आने वाले अनेक उपकरणों का निर्माण किया , जिसका वे उपभोग कर रहे हैं , किन्तु इस भौतिक प्रगति के कारण वे लोग आध्यात्मिक अनुभूति में पिछड़ गये । भौतिक उन्नति के साथ साथ आध्यात्मिक उन्नति भी आवश्यक है ।
( vi ) कौन सी वस्तु शब्द मात्र रह गयी है ?
उत्तर- आध्यात्मिकता शब्द मात्र रह गयी है ?
Passage-3
( ग )आज के अनेक आर्थिक और सामाजिक विधानों की हम जाँच करें तो पता चलेगा कि वे हमारी सांस्कृतिक चेतना के क्षीण होने के कारण युगानुकूल परिवर्तन और परिवर्द्धन की कमी से बनी हुई रूढ़ियाँ , परकीयों के साथ संघर्ष की परिस्थिति से उत्पन्न मांग को पूरा करने के लिए अपनाए गये उपाय अथवा परकीयों द्वारा थोपी गयी या उनका अनुकरण कर स्वीकार की गयी व्यवस्थाएं मात्र हैं । भारतीय संस्कृति के नाम पर उन्हें जिन्दा रखा जा सकता ।
( i ) गद्यांश के पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए ।
उत्तर- उपर्युक्त
( ii ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- आज के अनेक आर्थिक और सामाजिक नीतिगत सिद्धांतों अथवा उसके विधानों का परीक्षण करें तो यह स्पष्ट रूप से पता चलेगा कि वे हमारी सांस्कृतिक चेतना के क्षीण होने के कारण युग के अनुकूल परिवर्तन और परिवर्द्धन की कमी के कारण बनी हुई रूढ़ियाँ , दूसरे लोगों के साथ संघर्ष की परिस्थिति से उत्पन्न मांग को पूरा करने के लिए अपनाए गये उपाय अथवा दूसरों द्वारा थोपी गयी या उनका अनुकरण कर स्वीकार की गयी व्यवस्थाएँ मात्र हैं ।
( iii ) भारतीय नीतियाँ एवं सिद्धान्त किस प्रकार विदेशियों की नकलमात्र बनकर रह गये हैं ?
उत्तर- विदेशियों के साथ होने वाले संघर्ष तथा उन परिस्थितियों से उत्पन्न माँग को पूरा करने के लिए अपनाये गए तरीके या तो विदेशियों द्वारा जबरदस्ती थोपे गये हैं । या स्वयं हमने उनकी नकल करके नीतियाँ एवं सिद्धांत निर्मित कर लिए हैं ।
( iv ) समय के अनुरूप परिवर्तन एवं विकास न होने का प्रमुख कारण क्या है ?
उत्तर- समय के अनुरूप परिवर्तन एवं विकास न होने का प्रमुख कारण हमारी प्राचीन रूढ़ियाँ , परम्पराएँ , कुप्रथाएँ हैं जिन्हें समकालीन समय में मनुष्य की आवश्यकताओं से अधिक महत्त्व देने के कारण हमारी प्रगति रुक गई ।
( v ) भारत की सांस्कृतिक चेतना के कमजोर होने का प्रमुख कारण क्या है ?
उत्तर- युग के अनुकूल परिवर्तन न करके पुरानी प्रथाओं , रूढ़ियों को अधिक महत्त्व देना है ।
Passage-4
( घ ) जन्म लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति के भरण – पोषण की , उसके शिक्षण की , जिससे वह समाज के एक जिम्मेदार घटक के नाते अपना योगदान करते हुए अपने विकास में समर्थ हो सके , उसके लिए स्वस्थ एवं क्षमता की अवस्था में जीविकोपार्जन की और यदि किसी भी कारण वह सम्भव न हो तो भरण – पोषण की तथा उचित अवकाश की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी समाज की है । प्रत्येक सभ्य समाज इसका किसी न किसी रूप में निर्वाह करता है । प्रगति के यही मुख्य , मानदण्ड हैं , अतः न्यूनतम जीवन स्तर की गारंटी , शिक्षा , जीविकोपार्जन के लिए रोजगार , सामाजिक सुरक्षा और कल्याण को हमें मूलभूत अधिकार के रूप में स्वीकार करना होगा
( ii ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- देश में जन्मने वाला प्रत्येक मनुष्य समाज का अंग है । इसलिए उनके लिए पालन-पोषण एवं उचित शिक्षा व्यवस्था की आवश्यकता है । देश का प्रत्येक व्यक्ति समाज का एक घटक है । उस घटक लिए भरण – पोषण एवं शिक्षा व्यवस्था कर दी जाय तो वे समाज के लिए योगदान कर सकते हैं , साथ ही अपना भी विकास । प्रत्येक व्यक्ति के लिए स्वस्थ एवं क्षमता की अवस्था में जीविकोपार्जन की और यदि किसी कारण वह संभव न हो तो भरण – पोषण की तथा उचित व्यवस्था करने की जिम्मेदारी समाज की है ।
( ii ) समाज का मुख्य उत्तरदायित्व क्या है ?
उत्तर- समाज का मुख्य उत्तरदायित्व इस देश में जन्म लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति के भरण – पोषण एवं शिक्षा की व्यवस्था करने का है ।
( iv ) ‘ घटक ‘ तथा ‘ मानदण्ड ‘ शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- घटक -तत्त्व या अंग, मानदण्ड-मापन/मानक।
( v ) लेखक की दृष्टि में मूलभूत अधिकार क्या हैं ?
उत्तर-लेखक की दृष्टि में मूलभूत अधिकार है – न्यूनतम जीवन स्तर गारंटी , शिक्षा , जीविकोपार्जन के लिए रोजगार , सामाजिक सुरक्षा और कल्याण ।
( vi ) प्रगति का मापदण्ड क्या है ?
उत्तर-जो समान व्यक्ति के भरण – पोषण से लेकर उसे समाज में एक जिम्मेदार घटक के रूप में समर्थ करता है , वही प्रगति का मापदण्ड है ।
( vii ) जीविकोपार्जन और भरण – पोषण में क्या अन्तर है ? ।
उत्तर- जब बच्चे छोटे हैं तो उनके भरण – पोषण की जिम्मेदारी माता – पिता की होती है । भरण – पोषण ऐसी अवस्था से सम्बन्धित होता है जिसमें व्यक्ति असहाय की स्थिति में होता है । किन्तु अपनी जीविका के लिए किया गया अर्जन जीविकोपार्जन कहलाता है ।