Up Board Class 9th Hindi Solutions of Chapter-7  thele par himalay – ठेले पर हिमालय  (गद्य खण्ड) – कक्षा 9 हिंदी पाठ 7  मंत्र  के गद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर

Up Board Class 9th Hindi Solutions of Chapter-7  thele par himalay ठेले पर हिमालय  (गद्य खण्ड) – कक्षा 9 हिंदी पाठ 7  मंत्र  के गद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर

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    पाठ – ठेले पर हिमालय – हिन्दी कक्षा-9 हिन्दी – गद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर

 

प्रश्न 1. निम्नलिखित गद्यांशों के नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

(1) ठेले पर बर्फ की सिलें लादे हुए बर्फ वाला आया। ठण्डे, चिकने, चमकते बर्फ से भाप उड़ रही थी। मेरे मित्र का जन्म स्थान अल्मोड़ा है, वे क्षण भर उस बर्फ को देखते रहे, उठती हुई भाप में खोये रहे और खोये-खोये से ही बोले, “यही बर्फ तो हिमालय की शोभा है।” और तत्काल शीर्षक मेरे मन में कौंध गया, ‘ठेले पर हिमालय’। पर आपको इसलिए बता रहा हूँ कि अगर आप नये कवि हों तो भाई, इसे ले जायँ और इस शीर्षक पर दो-तीन सौ पंक्तियाँ बेडौल – बेतुकी लिख डालें – शीर्षक मौजूँ है और अगर नयी कविता से नाराज हों, सुललित गीतकार हों तो भी गुंजाइश है, इस बर्फ को डाँटें, “उतर आओ। ऊँचे शिखर पर बन्दरों की तरह क्यों चढ़े बैठे हो ? ओ नये कवियो ! ठेले पर लादो। पान की दुकानों पर बिको।”

प्रश्न (i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।

उत्तर — (i) सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ के ‘ठेले पर हिमालय’ नामक पाठ से उद्धृत – – है। इसके लेखक डॉ० धर्मवीर भारती जी हैं। प्रस्तुत अवतरण में लेखक ने बर्फ का वर्णन किया है।

प्र.(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उ.रेखांकित अंश की व्याख्या -ठेले पर लदे हुए बर्फ को देखकर लेखक कहता है कि एक मेरा मित्र है जिनका जन्म स्थान अल्मोड़ा है। वे पल भर उस बर्फ को एकटक देखते रहे। बर्फ से उठती हुई भाप को देखकर वे बोले कि ‘यही बर्फ तो हिमालय की शोभा है’। मेरे मन में तुरन्त यह शीर्षक प्रवेश कर गया, ‘ठेले पर हिमालय।’ मैं आपको इसलिए बताना उचित समझता हूँ कि यदि आप एक नये कवि हों तो आप इसे ले जायँ और इस पर दो-तीन सौ पंक्तियों में रचना कर दीजिए। यह शीर्षक बहुत ही रुचिकर है। यदि आपकी नयी कविता में रुचि नहीं है और सुललित कवि हैं तो झड़प लगावें कि नीचे उतर जाइये। ऊँचे शिखर पर बन्दरों की भाँति क्यों बैठे हो। ठेले पर चढ़ो और चाय, पान आदि की दुकानों पर बिकी।

प्र.(iii) हिमालय की शोभा क्या है?

उ. हिमालय की शोभा बर्फ है।

गद्यांश – 2 Chapter-7  thele par himalay

(2) सच तो यह है कि सिर्फ बर्फ को बहुत निकट से देख पाने के लिए ही हम लोग कौसानी गये थे। नैनीताल से रानीखेत और रानीखेत से मझकाली के भयानक मोड़ों को पार करते हुए कोसी। कोसी से एक सड़क अल्मोड़ा चली जाती है, दूसरी कौसानी। कितना कष्टप्रद, कितना सूखा और कितना कुरूप है वह रास्ता । पानी का कहीं नाम-निशान नहीं, सूखे भूरे पहाड़, हरियाली का नाम नहीं। ढालों को काटकर बनाये हुए टेढ़े-मेढ़े खेत, जो थोड़े से हों तो शायद अच्छे भी लगें, पर उनका एकरस सिलसिला बिल्कुल शैतान की आँत मालूम पड़ता है।

 प्रश्न (i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।

उत्तर—(i) सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में धर्मवीर भारती द्वारा लिखित ‘ठेले पर – ‘हिमालय’ से लिया गया है। लेखक बर्फ को निकट से देखने के लिए कौसानी जाता है। वह रास्ते में पड़े मुख्य दृश्यों का वर्णन करता है।

प्र.(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उ. रेखांकित अंश की व्याख्या -लेखक बताता है कि कौसानी जाने के लिए नैनीताल से रानीखेत जाना पड़ता है – और रानीखेत से मझकाली के दुर्गम मोड़ों को पार करते हुए एक रास्ता कोसी जाता है। कोसी से एक सड़क अल्मोड़ा को जाती है और दूसरी सड़क कौसानी को जाती है। यह मार्ग अत्यन्त कष्टप्रद और दुर्गम है। मार्ग में पानी कहीं नहीं दिखायी पड़ता है। सूखे-सूखे पहाड़ दिखायी पड़ते हैं। हरे-भरे दृश्य देखने को मन तरस जाता है। ढालों को काटकर टेढ़े-मेढ़े खेत तैयार किये जाते हैं, जो देखने में अच्छे नहीं लगते हैं।

प्र.(iii) बर्फ को पास से देखने के लिये लेखक कहाँ गया?

उ. बर्फ को पास से देखने के लिये लेखक कौसानी गया

गद्यांश – 2 Chapter-7  thele par himalay

(3) कौसानी के अड्डे पर जाकर बस रुकी। छोटा-सा, बिल्कुल उजड़ा-सा गाँव बर्फ का तो कहीं नाम-निशान नहीं। बिल्कुल ठगे गये हम लोग कितना खिन्न था मैं, अनखाते हुए बस से उतरा कि जहाँ था वहीं पत्थर की मूर्ति-सा स्तब्ध खड़ा रह गया। कितना अपार सौन्दर्य बिखरा था, सामने की घाटी में इस कौसानी की पर्वतमाला ने अपने अंचल में यह जो कत्यूर की रंग-बिरंगी घाटी छिपा रखी है; इसमें किन्नर और यक्ष ही तो वास करते होंगे। पचासों मील चौड़ी यह घाटी, हरे मखमली कालीनों जैसे खेत, सुन्दर गेरू की शिलाएँ काटकर बने हुए लाल-लाल रास्ते, जिनके किनारे किनारे सफेद-सफेद पत्थरों की कतार और इधर-उधर से आकर आपस में उलझ जानेवाली बेलों की लड़ियों-सी नदियाँ । मन में बेसाख्ता यहाँ आया कि इन बला की लड़ियों को उठाकर कलाई में लपेट लूँ, आँखों से लगा लूँ।

प्रश्न (i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।

उत्तर – (i) सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यावतरण डॉ० धर्मवीर भारती द्वारा रचित ‘ठेले पर हिमालय’ नामक यात्रा- वृत्तान्त से उद्धृत – है। यह यात्रा-वृत्तान्त हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित है। यहाँ नैनीताल से कौसानी तक की यात्रा का वर्णन अत्यन्त रोचक ढंग से किया गया है तथा कौसानी की पर्वत श्रृंखला के आसपास के सौन्दर्य की झाँकी प्रस्तुत की गयी है।

प्र.(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उ. रेखांकित अंश की व्याख्या– -धर्मवीर भारती कहते हैं कि कौसानी के सामने की घाटी के सौन्दर्य और उसके आकर्षण – से खिचा हुआ मैं मन्त्रमुग्ध-सा उसे देखता रहा। वह कत्यूर घाटी थी, जिसमें अनन्त सौन्दर्य बिखरा पड़ा था। जिस प्रकार कोई सुन्दरी अपने सौन्दर्य को अपने आँचल में छिपाकर रखती है, उसी प्रकार कौसानी की इस पर्वत श्रृंखला ने कत्यूर घाटी के सौन्दर्य को छिपा रखा था। कत्यूर घाटी के सौन्दर्य में जो आकर्षण है, उससे आकर्षित होकर निश्चय ही प्रेम, सौन्दर्य तथा संगीत के उपासक यक्ष और किन्नर यहाँ आते रहते होंगे। 

प्र.(iii) कौन-सी घाटी थी, जिसमें अनन्त सौन्दर्य बिखरा पड़ा था?

उ.कत्यूर घाटी में अनन्त सौन्दर्य बिखरा पड़ा था।

गद्यांश – 2 Chapter-7  thele par himalay

(4) हिमालय की शीतलता माथे को छू रही है और सारे संघर्ष, सारे अन्तर्द्वन्द्व, सारे ताप जैसे नष्ट हो रहे हैं। क्यों पुराने साधकों ने दैहिक, दैविक और भौतिक कष्टों को ताप कहा था और उसे नष्ट करने के लिए वे क्यों हिमालय जाते थे, यह पहली बार मेरी समझ में आ रहा था और अकस्मात् एक दूसरा तथ्य मेरे मन के क्षितिज पर उदित हुआ। कितनी, कितनी पुरानी है यह हिमराशि। जाने किस आदिम काल से यह शाश्वत, अविनाशी हिम इन शिखरों पर जमा हुआ। कुछ विदेशियों ने इसीलिए इस हिमालय की बर्फ को कहा है- चिरन्तन हिम ।

प्रश्न (i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।

उत्तर- (i) सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी गद्य में धर्मवीर भारती द्वारा रचित ‘ठेले पर हिमालय’ नामक पाठ से लिया गया है। इन पंक्तियों में लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है कि प्राचीनकाल से साधकों के हिमालय पर जाने का क्या प्रयोजन था ?

प्र.(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उ. रेखांकित अंश की व्याख्या – लेखक स्पष्ट करता है कि पुराने साधकों ने दैहिक, दैविक और भौतिक कष्टों को ताप की संज्ञा दी थी और वे इस कष्ट से मुक्त होने के लिए हिमालय जाते थे। यह बात मेरी समझ में आयी । हिमालय ताप का नाशक और शीतलता का सूचक है। एकाएक मेरे मन में यह विचार आया कि यह हिमराशि कितनी पुरानी है, न जाने किस से यह उत्तुंग शिखरों पर जमा हुआ है। इसीलिए विदेशियों ने हिमालय की बर्फ को चिरंतन हिम की संज्ञा प्रदान की है।

प्र.(iii) कुछ विदेशियों ने हिमालय की बर्फ को चिरन्तन हिम क्यों कहा है?

उ.न जाने किस आदिम काल से यह शाश्वत, अविनाशी हिम इन शिखरों पर जमा हुआ। कुछ विदेशियों ने इसीलिए इस हिमालय की बर्फ को चिरन्तन हिम भी कहा है। 

गद्यांश – 2 Chapter-7  thele par himalay

(5) सूरज डूबने लगा और धीरे-धीरे ग्लेशियरों में पिघली केसर बहने लगी। बर्फ कमल के लाल फूलों में बदलने लगी, घाटियाँ गहरी नीली हो गयीं। अँधेरा होने लगा तो हम उठे और मुँह-हाथ धोने और चाय पीने में लगे। पर सब चुपचाप थे, गुमसुम जैसे सबका कुछ छिन गया हो या शायद सबको कुछ ऐसा मिल गया हो, जिसे अन्दर ही अन्दर सहजेने में सब आत्मलीन हो अपने में डूब गये हों।

प्रश्न (i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।

उत्तर- (i) सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में धर्मवीर भारती द्वारा रचित ‘ठेले पर हिमालय’ नामक पाठ से लिया गया है। प्रस्तुत अवतरण में लेखक ने कौसानी की सायंकालीन बेला का चित्रण किया है।

प्र.(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उ. रेखांकित अंश की व्याख्या – लेखक कहता है कि जब सूर्य अस्त होने का समय आया तो ग्लेशियरों में पिघली केसर प्रवाहित होने लगी। बर्फ कमल के लाल फूलों में बदलने-सी प्रतीत होने लगी और घाटियाँ नीली दिखायी पड़ने लगीं। अँधेरा हो गया। मैं उठा और हाथ-मुँह धोकर चाय पीने लगा। उस समय का वातावरण बिल्कुल शान्त था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सबका सर्वस्व छिन गया हो या सभी को सब कुछ मिल गया हो और ऐसा लग रहा था जैसे सभी अन्दर अन्दर संजोने में तल्लीन होकर आत्मविभोर हो गये हों। यह दृश्य अत्यन्त मनमोहक था।

प्र.(iii) किस समय बर्फ कमल के लाल फूलों में बदलने सी प्रतीत होने लगी?

उ. सूर्य अस्त के समय बर्फ कमल के लाल फूलों में बदलने-सी प्रतीत होने लगी।

गद्यांश – 2 Chapter-7  thele par himalay

(6) आज भी उसकी याद आती है तो मन पिरा उठता है। कल ठेले के बर्फ को देखकर मेरे मित्र उपन्यासकार जिस तरह स्मृतियों में डूब गये, उस दर्द को समझता हूँ और जब ठेले पर हिमालय की बात कहकर हँसता हूँ तो वह उस दर्द को भुलाने का ही बहाना है। ये बर्फ की ऊँचाइयाँ बार-बार बुलाती हैं और हम हैं कि चौराहों पर खड़े ठेले पर लदकर निकलने वाली बर्फ को ही देखकर मन बहला लेते हैं। किसी ऐसे क्षण में ऐसे ही ठेलों पर लदे हिमालयों से घिरकर ही तो तुलसी ने कहा था—’कबहुँक हाँ यदि रहिन रहाँगो’ — मैं क्या कभी ऐसे भी रह सकूँगा, वास्तविक हिमशिखरों की ऊँचाइयों पर? –

प्रश्न (i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए ।

उत्तर— (i) सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश धर्मवीर भारती द्वारा लिखित ‘ठेले पर हिमालय’ नामक पाठ से अवतरित है। 

प्र.(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उ. रेखांकित अंश की व्याख्या – लेखक कहता है कि आज भी जब हिमालय की याद आती है तो मन दर्द के मारे कराह उठता है मेरे उपन्यासकार मित्र ठेले की बर्फ को देखकर स्मृतियों में डूब जाते थे। जब हिमालय का वास्तविक दर्शन होता तो क्या स्थिति होती। मैं उनके इस दर्द को भली-भाँति समझता हूँ। बर्फ की ऊँचाइयों को देखकर ऐसा मालूम होता है जैसे वे मुझे बुला रही हैं। हम ठेले पर लदे बर्फ को ही देखकर मन बहला लेते हैं।

प्र.(iii) किसने हिमालय के शिखरों पर रहने की इच्छा व्यक्त की है?

उ. तुलसी ने भी हिमालय के शिखरों पर रहने की इच्छा व्यक्त की है।

 

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