UP Board Hindi -9 Solution of Class 9 Hindi Chapter 5 Smriti – Shri Ram Sharma स्मृति (गद्य खंड)पाठ – 5 स्मृति हिन्दी कक्षा-9 हिन्दी – गद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर
UP Board Hindi -9 Solution of Class 9 Hindi Chapter 5 Smriti – Shri Ram Sharma स्मृति (गद्य खंड)पाठ – 5 स्मृति हिन्दी कक्षा-9 हिन्दी – गद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर- Class 9 Hindi Chapter 5 पाठ -5 स्मृति (गद्य खंड) – लेखक श्रीराम शर्मा|
पाठ – 5 स्मृति हिन्दी कक्षा-9 हिन्दी – गद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. निम्नलिखित गद्यांशों के नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
Chapter 5 Smriti
(1) जाड़े के दिन थे ही, तिस पर हवा के प्रकोप से कँपकँपी लग रही थी। हवा मज्जा तक ठिठुरा रही थी, इसलिए हमने कानों को धोती से बाँधा। माँ ने भुँजाने के लिए थोड़े-से चने एक धोती में बाँध दिये। हम दोनों भाई अपना-अपना डण्डा लेकर घर से निकल पड़े। उस समय उस बबूल के डण्डे से जितना मोह था, उतना इस उम्र में रायफल से नहीं। मेरा डण्डा अ साँपों के लिए नारायण-वाहन हो चुका था। मक्खनपुर के स्कूल और गाँव के बीच पड़नेवाले आम के पेड़ों से प्रतिवर्ष उससे आम झूरे जाते थे। इस कारण वह मूक डण्डा सजीव-सा प्रतीत होता था। प्रसन्नवदन हम दोनों मक्खनपुर की ओर तेजी से बढ़ने लगे। चिट्ठियों को मैंने टोपी में रख लिया, क्योंकि कुर्ते में जेबें न थीं।
प्रश्न (i) प्रस्तुत गद्यांश का संदर्भ लिखिए ।
उत्तर — (i) सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित ‘स्मृति’ – नामक निबन्ध से उद्धृत है। प्रस्तुत अवतरण में लेखक ने अपनी बाल्यावस्था का सजीव चित्रण करते हुए बचपन की छोटी-छोटी बारीकियों को स्पष्ट किया है।
प्र.(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए
उ. रेखांकित अंश की व्याख्या – लेखक शीतऋतु का वर्णन करते हुए कहता है कि ” जाड़े का दिन था। हाड़ कँपा देने वाली ठण्ड थी। इसलिए हमने कानों को धोती से बाँध लिया। माँ ने चना भुँजाने के लिए उसे एक धोती में बाँध कर मुझे दिया। मैं और छोटा भाई डण्डा लेकर घर से चल पड़े। उस समय उस बबूल के डण्डे से जितना लगाव था उतना आज एक रायफल से नहीं है। मैं उस डण्डे से अनेक साँपों को मार चुका था । प्रतिवर्ष इसी डण्डे से आम के टिकोरे तोड़े जाते थे । इसीलिए वह डण्डा मुझे अत्यन्त प्रिय था । हम दोनों भाई मक्खनपुर की ओर आगे बढ़े। कुर्ते में जेब न होने के कारण चिट्ठियों को मैंने टोपी में रख लिया था। “
प्र.(iii) लेखक ने चिट्ठियों को कहाँ रख लिया था?
उ. लेखक ने चिट्ठियों को अपनी टोपी में रख लिया था।
प्र.(iv) लेखक ने चिट्ठियों को टोपी में क्यों रख लिया?
उ. लेखक के कुर्ते में जेबें न थीं, इसलिए उसने चिट्ठियों को टोपी में रख लिया।
प्र.(v) लेखक ने डण्डे की तुलना किससे की है ?
उ. लेखक ने डण्डे की तुलना गरुण से की है।
Chapter 5 Smriti
(2) साँप से फुसकार करवा लेना मैं उस समय बड़ा काम समझता था । इसलिए जैसे ही हम दोनों उस कुएँ की ओर से निकले, कुएँ में ढेला फेंककर फुसकार सुनने की प्रवृत्ति जागृत हो गयी। मैं कुएँ की ओर बढ़ा। छोटा भाई मेरे पीछे हो लिया, जैसे बड़े मृगशावक के पीछे छोटा मृगशावक हो लेता है। कुएँ के किनारे से एक ढेला उठाया और उझककर एक हाथ से टोपी उतारते हुए साँप पर ढेला गिरा दिया, पर मुझ पर तो बिजली-सी गिर पड़ी।
प्रश्न (i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
उत्तर- (i) सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित ‘स्मृति’ नामक निबन्ध से उद्धृत हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने अपने बचपन की एक घटना का वर्णन किया है। स्कूल जाते समय एक कुआ पड़ता, जो सूख गया है। पता नहीं एक काला साँप उसमें कैसे गिर पड़ा था। स्कूल जाते समय बच्चे उसकी फुसकार सुनने के लिए पत्थर मारते थे ।
प्र.(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उ. रेखांकित अंश की व्याख्या – लेखक कहता है कि “मैं बचपन में साँप से फुसकार करवा लेना महान् कार्य समझता था। मैं और छोटा भाई जब कुएँ की तरफ से गुजरे तो फुसकार सुनने की इच्छा बलवती हुई। मैं कुएँ की तरफ बढ़ा और छोटा भाई मेरे पीछे हो गया। कुएँ के किनारे से मैंने एक ढेला उठाया और एक हाथ से टोपी उतारते हुए साँप पर प्रहार किया, लेकिन मैं एक अजीब संकट में फँस गया। टोपी उतारते हुए मेरी तीनों चिट्ठियाँ कुएँ में गिर पड़ीं। साँप ने फुसकारा था या नहीं मुझे आज भी ठीक से याद नहीं है। मेरी स्थिति उस समय वही हो गयी थी जैसे घास चरते हुए हिरन की आत्मा गोली लगने पर निकल जाती है और वह तड़पता रहता है। चिट्ठियों के कुएँ में गिरने से मेरी भी स्थिति हिरन जैसी हो गयी थी।”
प्र.(iii) लेखक को कब लगा कि उस पर बिजली सी गिर पड़ी?
उ. लेखक को टोपी उतारते हुए तीन चिट्ठियाँ कुएँ में गिर पड़ीं। उस समय लेखक पर बिजली-सी गिर पड़ी।
Chapter 5 Smriti
(3) साँप को चक्षुःश्रवा कहते हैं। मैं स्वयं चक्षुःश्रवा हो रहा था। अन्य इन्द्रियों ने मानो सहानुभूति से अपनी शक्ति आँखों को दे दी हो। साँप के फन की ओर मेरी आँखें लगी हुई थीं कि वह कब किस ओर को आक्रमण करता है, साँप ने मोहनी सी डाल दी थी। शायद वह मेरे आक्रमण की प्रतीक्षा में था, पर जिस विचार और आशा को लेकर मैंने कुएँ में घुसने की ठानी थी, वह तो आकाश-कुसुम था । मनुष्य का अनुमान और भावी योजनाएँ कभी-कभी कितनी मिथ्या और उल्टी निकलती हैं। मुझे साँप का साक्षात् होते ही अपनी योजना और आशा की असम्भवता प्रतीत हो गयी। डण्डा चलाने के लिए स्थान ही न था । लाठी या डण्डा चलाने के लिए काफी स्थान चाहिए, जिसमें वे घुमाये जा सकें। साँप को डण्डे से दबाया जा सकता था, पर ऐसा करना मानो तोप के मुहरे पर खड़ा होना था ।
प्रश्न (i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
उत्तर — (i) सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यावतरण पं० श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित ‘स्मृति’ नामक संस्मरणात्मक निबन्ध से अवतरित – है । प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने कुएँ से पत्र निकालने की योजना का वर्णन किया है।
प्र.(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उ. रेखांकित अंश की व्याख्या – लेखक का कहना है कि “साँप एक ऐसा जीव है जिसे चक्षुःश्रवा के नाम से जाना जाता है। वहाँ मैं स्वयं चक्षुःश्रवा हो रहा था। मुझे कुएँ में ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अन्य इन्द्रियों ने अपनी सम्पूर्ण शक्ति नेत्रों को दे दी है। मेरी आँखें साँप के फन पर थीं कि साँप किस तरफ से आक्रमण कर सकता है। इसलिए मैं बिल्कुल चौकन्ना था। उधर साँप भी मेरे आक्रमण की प्रतीक्षा में था। मैंने जिस संकल्प के साथ कुएँ में प्रवेश किया था, लगता था संकल्प अधूरा ही रह जायेगा। साँप से सामना होते ही मेरी योजना एवं आशा असम्भव-सी प्रतीत होने लगी। लाठी-डण्डा चलाने के लिए पर्याप्त स्थान चाहिए। कुएँ में डण्डा चलाने के लिए स्थान बहुत कम था, वहाँ केवल साँप को डण्डे से दबाया जा सकता था, लेकिन ऐसा करना तोप के आगे खड़ा होना था। “
प्र.(iii) चक्षुःश्रवा के नाम से कौन सा जीव जाना जाता है?
उ. चक्षुःश्रवा के नाम से साँप को जाना जाता है। माना जाता है कि सर्प कर्णविहीन होने के कारण आँख से सुनता भी है।
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