UP Board Solution of Class 12th Sahityik Hindi -Pratyay प्रत्यय (संस्कृत प्रत्यय)
UP Board Solution of Class 12th Sahityik Hindi -Pratyay प्रत्यय (संस्कृत प्रत्यय) यूपी बोर्ड परीक्षा प्रत्यय के उदहारण.Sahityik Hindi -Pratyay
प्रत्यय- की परिभाषा
जो वर्ण या वर्ण समूह किसी धातु या शब्द के अन्त में जुड़कर नए अर्थ की प्रतीति कराते हैं तथा शब्द की विश्वसनीयता में वृद्धि करते हैं अर्थात् शब्दों के बाद जो अक्षर लगाया जाता है , उसे प्रत्यय कहते हैं । प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं — कृदन्त प्रत्यय , तद्धित प्रत्यय ।
१. कृदन्त प्रत्यय – जो प्रत्यय क्रिया या धातु के अन्त में प्रयुक्त होकर नए शब्द बनाते हैं , प्रत्यय कहते हैं और उनके मेल से बने शब्द कृदन्त कहलाते हैं ।
२. तद्धित प्रत्यय – संज्ञा और विशेषण के अन्त में लगने वाले प्रत्यय को तद्धित प्रत्यय कहते हैं । इस प्रकार बने शब्दों को ‘ तद्धितान्त ‘ शब्द कहते हैं ।
कृत् प्रत्यय- Sahityik Hindi -Pratyay
क्त ( त ) – भूतकालिक क्रिया तथा विशेषण शब्द बनाने के लिए ‘ क्त ‘ प्रत्यय का प्रयोग होता है । क्त प्रत्यय भाव और कर्म अर्थ में जोड़ा जाता है अर्थात् कर्ता में तृतीया तथा कर्म में प्रथमा विभक्ति तथा क्रिया कर्म के पुरुष , वचन और लिंग के अनुसार होती है । क्त में से कू का लोप होने पर ‘ त ‘ शेष रहता है । जैसे – कृ + क्त = कृत । हृ + क्त = हृत । गम् + क्त = गत
क्त प्रत्यय सकर्मक धातुओं से भूतकाल कर्मवाच्य में तथा अकर्मक धातुओं से भूतकाल भाव वाच्य में होता है । कर्मवाच्य में क्त प्रत्यय होने से क्त प्रत्ययान्त शब्द के लिंग और वचन उसके कर्म के अनुसार होते हैं ; जैसे—
पुल्लिंग | स्त्रीलिंग | नपुंसकलिंग |
कृ + क्त = कृतः | कृता | कृतम् |
दा + क्त = दत्तः | दत्ता | दत्तम् |
श्रु + क्त = श्रुतः | श्रुता | श्रुतम् |
पा + क्त = पीतः | पीता | पीतम् |
पठ् + क्त = पठितः | पठिता | पठितम् |
गम + क्तं = गतः | ् | |
कथ + क्त = कथितः | ् |
१. क्तवतु
यह प्रत्यय भी भूतकालिक क्रिया के अर्थ में प्रयुक्त होती है । यह किसी कार्य की समाप्ति का बोध कराती है । इसमें ‘ तवत् ’ शेष रहता है । यह केवल कर्तृवाच्य में होता है , धातु चाहे सकर्मक हो या अकर्मक । अतएव इसके कर्ता में प्रथमा और कर्म में द्वितीया होती है । इसके रूप तकारान्त ‘ भगवत् ‘ के समान बनते हैं ।
कृ + क्तवतु = कृतवान्—- पुल्लिंग
= कृतवती—-स्त्रीलिंग
= कृतवत्—–नपुंसकलिंग
२. क्त्वा ( पूर्वकालिक कृदन्त प्रत्यय )
जब दो क्रियाओं का एक ही कर्ता होता है तो जो क्रिया पूरी हो चुकी है उसे बताने के लिए क्रिया के साथ क्त्वा , ( त्वा ) प्रत्यय का प्रयोग करते हैं । ‘ क्त्वा ‘ का ‘ त्वा ‘ शेष रहता है । यह प्रत्यय ‘ करके ’ या ‘ कर ’ के अर्थ में प्रयोग होता है । यथा- मैं पुस्तक पढ़कर घर जाऊंगा = अहं पुस्तकं पठित्वा गृहं गमिष्यामि ।
क्त्वा ( त्वा ) प्रत्ययान्त रूप
धातु | अर्थ | रूप |
भू | होना | भूत्वा |
गम् | जाना | गत्वा |
दृश् | देखना | दृष्ट्वा |
पा | पीना | पीत्वा |
श्रु | सुनना | श्रुत्वा |
पठ् | पढ़ना | पठित्वा |
खाद् | खाना | खादित्वा |
दा | देना | दत्वा |
हन् | मारना | हत्वा |
नीं | ले जाना | नीत्वा |
कृ | करना | कृत्वा |
३. तव्यत् ( तव्य ) और अनीयर् ( अनीय )
इनका प्रयोग साधारणतः विधिलिंग लकार ‘ चाहिए ‘ अर्थ में होता है ; जैसे
१. मया पुस्तकं पठितव्यम् =मुझे पुस्तक पढ़नी चाहिए । (तव्यत् प्रत्यय )
२. मया पुस्तकं पठनीयम् =मुझे पुस्तक पढ़नी चाहिए । ( अनीयर् प्रत्यय )
३. छात्रैः परिश्रमः कर्तव्यः = छात्रों के द्वारा परिश्रम किया जाना चाहिए । ( तव्यत् प्रत्यय )
४. छात्रैः परिश्रमः करणीयः = छात्रों के द्वारा परिश्रम किया जाना चाहिए । ( अनीयर् प्रत्यय )
तव्यत् प्रत्यय के उदाहरण | ||||
धातु प्रत्यय पुल्लिंग | स्त्रीलिंग | नपुंसकलिंग | ||
पठ् + तव्यत् =पठितव्यः | पठितव्या | पठितव्यम् | ||
लिख् + तव्यत् =लिखितव्यः | लिखितव्या | लिखितव्यम् | ||
कृ + तव्यत् =कर्तव्यः। | कर्तव्या | कर्तव्यम् | ||
अनीयर् प्रत्यय के उदाहरण | ||||
धातु प्रत्यय पुल्लिंग | स्त्रीलिंग | नपुंसकलिंग | ||
हस + अनीयर् =हसनीयः | हसनीया | हसनीयम् | ||
पठ + अनीयर् = पठनीयः | पठनीया | पठनीयम् | ||
लिख + अनीयर् =लिखनीयः | लिखनीया | लिखनीयम् | ||
कृ + अनीयर् =करणीयः | करणीया | करणीयम् | ||
गम् + अनीयर् =गमनीयः | गमनीया | गमनीयम् | ||
दा + अनीयर् =दानीयः | दानीया | दानीयम् | ||
भजू + अनीयर् =भजनीय : | भजनीया | भजनीयम् | ||
पूज् + अनीयर् =पूजनीयः | पूजनीया | पूजनीयम् | ||
दर्श + अनीयर् = दर्शनीयः | दर्शनीया | दर्शनीयम् | ||
तद्धित प्रत्यय हमेशा किसी बनाए हुए संज्ञा , विशेषण , अपव्यय या क्रिया के बाद जोड़कर अन्य संज्ञा , विशेषण , अपव्यय या क्रिया आदि बनाने में प्रयुक्त होता है । तद्धित प्रत्यय के अन्तर्गत त्व , तलू , मतुप् का संक्षिप्त परिचय दे रहे हैं :
१. त्व , तल् ( ता ) – संज्ञा या विशेषण से भाववाचक संज्ञा बनाने के लिए ‘ त्व ‘ और ‘ तल ‘ प्रत्यय का प्रयोग होता है । ‘ त्व ’ प्रत्ययान्त शब्द नपुंसक लिंग और ‘ तल ‘ प्रत्ययान्त शब्द स्त्रीलिंगवाची होते हैं , जैसे-
● महत् + त्व। = महत्व |
● लघु + त्व = लघुत्व |
● गुरू + त्व। = गुरूत्व |
● प्रभु + त्व = प्रभुत्व |
● मानव + त्व। = मानवत्व |
● महत् + तल् (ता) = महत्ता |
● लघु +तल् (ता) = लघुता |
● गुरू +(तल्) ता = गुरूता |
● प्रभु +(तल्) ता = प्रभूता |
● मानव। +(तल्) ता = मानवता |
२. मतुप् प्रत्यय – संज्ञा से ‘ वाला ‘ ( गाड़ी वाला , बुद्धि वाला आदि ) अर्थ प्रकट करने वाले विशेषण शब्द ‘ बनाने के लिए ‘ मुतुप् ‘ प्रत्यय का प्रयोग होता है । मतुपू का ‘ मत् ‘ शेष रहता है जो कभी – कभी ‘ वत् ‘ भी हो जाता है । ये शब्द विशेषण होते हैं , इसलिए ये अपने विशेष्य के अनुसार ही लिंग , वचन और विभक्ति ग्रहण करते हैं । जैसे—
श्री + मत् ( मतुप् ) = श्रीमत् ( इसके रूप चलते हैं श्रीमान् श्रीमन्तौ श्रीमन्तः )
श्रीमत् में ई जोड़कर श्रीमती स्त्रीलिंग रूप बनता है ।
इसी प्रकार ,
पुल्लिंग | स्त्रीलिंग |
श्री + मत् = श्रीमान् | |
रस + मत् ( वत् भी हो जाता है )=रसवान् | रसवती |
धन + वत् | =धनवान् धनवती |
बुद्धि + मत् | =बुद्धिमान् बुद्धिमती |
रूप + वत् | =रूपवान् रूपवती |
गो + मत् | =गोमान् गोमती |
गुण + वत् | =गुणवान् गुणवती |
ज्ञान + वत् | =ज्ञानवान् ज्ञानवती |
बल + वत् | = बलवान् बलवती |