Hindi chhand doha chaupai soratha rola kundaliya
Hindi chhand doha chaupai soratha rola kundaliya – हिंदी छंद – दोहा रोला चौपाई सोरठा कुण्डलिया आदि छन्दों की परिभाषा एवं उदाहरण| चौपाई दोहा सोरठा कुंडलिया छंद का लक्षण उदाहरण – YouTube Chaupai chhand ka laxan udaharan Doha chhnd ka laxan udaharan Sortha chhand ka lakshan.
छन्द
छन्द कविता की स्वाभाविक गति के नियम – बद्ध रूप हैं । सामान्य धारणा के अनुसार जातीय संगीत और भाषावृत्ति के आधार पर निर्मित लयादर्श की आवृत्ति को छन्द कहते हैं । छन्द में निश्चित मात्रा या वर्ण की गणना होती है । छन्द के आदि आचार्य पिंगल हैं । इसी से छन्दशास्त्र को ‘ पिंगलशास्त्र ‘ भी कहते हैं ।
चरण – प्रत्येक छन्द चरणों में विभाजित होता है । इनको चरण या पाद कहते हैं । जिस प्रकार मनुष्य चरणों पर चलता है , उसी प्रकार कविता भी चरणों पर चलती है । एक छन्द में प्राय : चार चरण होते हैं जो सामान्यतः चार पंक्तियों में लिखे जाते हैं । किन्हीं किन्हीं छन्दों में , जैसे – छप्पय , कुण्डलियाँ आदि में छह चरण होते हैं ।
वर्ण और मात्रा – वर्णों की गणना करते समय वर्ण चाहे लघु हो अथवा गुरु , उसे एक ही माना जाता है , यथा- रम ‘ , ‘ राम ‘ , ‘ रामा ‘ . तीनों शब्दों में दो – दो वर्ण हैं ।
मात्रा – से अभिप्राय उच्चारण के समय की मात्रा से है । गुरु में लघु की अपेक्षा दूना समय लगता है इसलिए मात्राओं की जहाँ गणना होती हैं वहाँ लघु की एक मात्रा होती है और गुरु की दो मात्राएँ होती हैं ।
लघु का संकेत खड़ी रेखा । ‘ और गुरु का संकेत वक्र रेखा ‘ · ‘ होता है । लघु के लिए ल और गुरु के लिए ग के संकेतों का भी प्रयोग होता है ।
गण – तीन वर्गों के लघु गुरु क्रम के अनुसार योग को गण कहते हैं ।
गणों को समझने के लिए निम्न सूत्र उपयोगी है-
यमाताराजभानसलगा
सम , अर्द्धसम और विषम –
जिन छन्दों के चारों चरणों की मात्राएँ या वर्ण एक से हों वे सम कहलाते हैं , जैसे चौपाई , इन्द्रवज्रा आदि ।
जिनमें पहले और तीसरे तथा दूसरे और चौथे चरणों की मात्राओं या वर्गों में समता हो वे अर्द्धसम कहलाते हैं , जैसे दोहा , सोरठा आदि ।
जिन छन्दों में चार से अधिक छह चरण और वे एक से न हों , वे विषम कहलाते हैं , जैसे – छप्पय और कुण्डलिया ।
गति – पढ़ते समय कविता के स्पष्ट सुखद प्रवाह को गति कहते हैं ।
यति – छन्दों में विराम या रुकने के स्थलों को यति कहते हैं । छन्द के प्रकार मात्रा और
वर्ण के आधार पर छन्द मुख्यतया दो प्रकार के होते हैं – मात्रिक और वर्णवृत्त ।
मात्रिक छन्द– मात्रिक छन्दों में केवल मात्राओं की व्यवस्था होती है , वर्गों के लघु और गुरु के क्रम का विशेष ध्यान नहीं रखा जाता । इन छन्दों के प्रत्येक चरण में मात्राओं की संख्या नियत रहती है ।
मात्रिक छन्द तीन प्रकार के होते हैं — सम , अर्द्धसम और विषम ।
वर्ण– वृत्त छन्द– जिन छन्दों की रचना वर्णों की गणना के आधार पर की जाती है , उन्हें वर्ण – वृत्त या वर्णिक छन्द कहते हैं । वर्ण – वृत्तों के तीन मुख्य भेद हैं — सम , अर्द्धसम , विषम ।
( 1 ) चौपाई / Chaupai
[ उ०प्र० बोर्ड 2016 SL , 17 MJ , 19 CM , CN , ATO 20 ZH , ZN ]
लक्षण – चौपाई सम मात्रिक छन्द हैं । इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होनी हैं ।
उदाहरण –
| | | · | · | | | | · · = १६ मात्राएँ
निरखि सिद्ध साधक अनुरागे|
सहज सनेह सराहन लागे ।
होत न भूतल भाउ भरत को ।
अचर सचर चर अचर करत को ।
इस छन्द के प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ हैं , अतः यह चौपाई छन्द है ।
( 2 ) दोहा/Doha
[ 2016 SH , SK , SM , 17 ML , MM , 19 CQ , 20 ZB , ZC , HTO 20 ZI , ZM , ZK )
यह अर्द्धसम मात्रिक छन्द है । इसमें चार चरण होते हैं । इसके पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं । इसके विषम चरणों के आदि में जगण नहीं होना चाहिए तथा सम चरणों के अन्त में गुरु लघु होना चाहिए ।
उदाहरण । ।।। 5 ।।। SISS SIIISI
लसत मंजु मुनि मंडली , मध्य सीय रघुचंदु ।
ग्यान सभां जनु तनु धरें भगति सच्चिदानन्दु ।।
इस पद्य के पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएँ हैं और दूसरे तथा चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ हैं , अतः यह दोहा
( 3 ) सोरठा
[ 2016 SJ , SM , 17 MH , MI , MK , 19 AL , CR , 20 ZA , ZD , ZE , सा ०20 ZH , ZI , ZJ , ZL , ZN ]
यह अर्द्धसम मात्रिक छन्द है । इसके प्रथम और तृतीय चरण में 11-11 मात्राएँ तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में 13 13 मात्राएँ होती हैं । पहले और तीसरे चरण के अन्त में गुरु लघु आते हैं और कहीं – कहीं तुक भी मिलती है । यह दोहा का उलटा होता है ।
उदाहरण
SI | 5 || 5 ।।।। ।।। 5 ।। ।।।
नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन बारिज नयन करउ सो मम उर धाम ,
सदा छीरसागर सयन ।।
इस पद्य के प्रथम और तृतीय चरण में 11-11 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएँ हैं , अतः यह छन्द सोरठा है ।
( 4 ) रोला
[ 2019 CO , CP , 20 ZF , H. 20 ZL ]
यह सम मात्रिक छन्द है । इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 24 मात्राएं होती हैं । 11 और 13 मात्राओं पर यति होती है ।
उदाहरण |
|| SSI 51 ।। ।।।। 5 ।।
कोउ पापिह पंचत्व प्राप्त सुनि जमगन धावत ।
बनि बनि बावन वीर बढ़त चौचंद मचावत ।
पै तकि ताकी लोथ त्रिपथगा के तट लावत ।
नौ द्वै , ग्यारह होत तीन पाँचहिं बिसरावत ।।
इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएं हैं । 11-13 पर यति है , अतः यह छन्द रोला है । ”
( 5 ) कुण्डलिया
[ 2017 MJ , HTO 20 ZJ , ZK , ZM ]
यह विषम मात्रिक छन्द है । इसमें छह चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं । आदि में एक दोहा और बाद में एक रोला जोड़ कर कुण्डलिया छन्द बनता है । ये दोनों छन्द मानो कुण्डली रूप में एक दूसरे से गुंथे रहते हैं , इसलिए इसे कुण्डलिया छन्द कहते हैं । जिस शब्द से इस छन्द का प्रारम्भ होता है उसी से इसका अन्त भी होता है । दोहे का चौथा चरण रोला के प्रथम चरण का भाग होकर आता है ।
उदाहरण
55SI 5 15 5 ।। 5 ।
साई बैर न कीजिए गुरु पण्डित कवि यार ।
बेटा बनिता पौरिया यज्ञ करावन हार । । ।। 11
यज्ञ करावनहार राजमंत्री जो होई ।
विप्र पड़ोसी वैद्य आपुको तपै रसोई ।
कह गिरिधर कविराय जुगन सों यह चलि आई ।
इन तेरह को तरह दिये बनि आवै साई ।
इस पद्य के प्रथम एवं द्वितीय चरण दोहा हैं तथा आगे के चार चरण रोला हैं । दोनों के कुण्डलित होने से कुण्डलिया छन्द का निर्माण
( 6 ) हरिगीतिका
[ 2017 MN , 18 AH , 19 CM , 20 ZG ]
यह सम मात्रिक छन्द है । इसमें चार चरण होते हैं । इसके
( 6 ) हरिगीतिका / harigitika
[उ०प्र० बोर्ड 2017 MN , 18 AH , 19 CM , 20 ZG ]
लक्षण – यह सम मात्रिक छन्द है । इसमें चार चरण होते हैं । इसके प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती हैं । 16 और 12 मात्राओं पर यति होती है । प्रत्येक चरण के अन्त में रगण ( ऽ । ऽ) आना आवश्यक है ।
उदाहरण-
| | ऽ | ऽ ऽ ऽ | ऽ | | | | | ऽ ऽ ऽ | ऽ = 28 मात्राएँ हैं|
खग – वृन्द सोता है अतः कल कल नहीं होता वहाँ ।
बस मंद मारुत का गमन ही मौन है खोता जहाँ ।
इस भाँति धीरे से परस्पर कह सजगता की कथा ।
यों दीखते हैं वृक्ष ये हो विश्व के प्रहरी यथा ।
इसके प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ हैं , अतः यह हरिगीतिका छन्द है
( 7 ) बरवै / baravai
[ उ० प्र० बोर्ड 2016 SH , SK , SL , 17 MI , MK , 20 ZC ]
लक्षण – यह अर्द्धसम मात्रिक छन्द है । इसके प्रथम एवं तृतीय चरण में 12-12 मात्राएँ तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में 7-7 मात्राएँ होती हैं । सम चरणों के अन्त में जगण ( | ऽ | ) होता है ।
उदाहरण –
ऽ | | | | ऽ | | | | | | | | ऽ | = १२ + ७ = 19 मात्राएँ
चम्पक हरवा अँग मिलि , अधिक सुहाय ।
जानि परै सिय हियरे , जब कुँभिलाय ।
वर्ण– वृत्त छन्द
( 1 ) इन्द्रवज्रा / indravarja
[ UP BOARD 2016 SJ , 17 MJ , MM , 18 AH , 19 CP , CQ , 20 ZA , ZG ]
यह सम वर्ण – वृत्त है । इसके प्रत्येक चरण में 11 वर्ण त त ज ग ग अर्थात् दो तगण , एक जगण और दो के क्रम से रहते हैं ।
उदाहरण-
मैं जो नया ग्रंथ विलोकता हूँ , भाता मुझे सो नव मित्र सा है ।
देखू उसे मैं नित नेम से ही , मानो मिला मित्र मुझे पुराना ।
उपर्युक्त पद्य के प्रत्येक चरण में दो तगण , एक जगण और दो गुरु के क्रम से 11 वर्ण हैं , अतः यह छन्द इन्द्रवज्रा है ।
( 2 ) उपेन्द्रवज्रा / upendravajra
[ UP BOARD EXAM 2016 SL , 17 MH , 19 CO , 20 ZB ]
यह सम वर्ण – वृत्त है । इसके प्रत्येक चरण में ‘ ज त ज ग ग ‘ अर्थात् जगण तगण जगण और दो गुरु के क्रम से 11 वर्ण होते हैं ।
उदाहरण –
छोटा बड़ा कि कुछ काम कीजै ,परन्तु पूर्वापर सोच लीजै ।
बिना विचारे यदि काम कभी अच्छा परिणाम होगा ।
इस पद्य के प्रत्येक चरण में जगण , तगण , जगण और दो गुरु के क्रम से 11 वर्ण हैं , अतः यह छन्द उपेन्द्रवज्रा है ।
( 3 ) वसन्ततिलका / vasant tilaka
[UP BOARD EXAM 2016 SM , 17 MI , 18 AH , 19 CR , 20 ZE , ZF ]
यह सम वर्ण – वृत्त छंद है । इसके प्रत्येक चरण में ‘ त भ ज ज ग ग ‘ अर्थात् तगण , भगण , दो जगण और दो गुरु के क्रम से चौदह वर्ण होते हैं ।
उदाहरण
जो राजपंथ वन – भूतल में बना था , धीरे उसी पर सधा रथ जा रहा था ।
हो हो विमुग्ध रुचि से अवलोकते थे , ऊधो छटा विपिन की अति ही अनूठी ।
इस छन्द के प्रत्येक चरण में तगण , भगण , दो जगण और दो गुरु के क्रम से 14 वर्ण हैं , अतः यह वसन्ततिलका छन्द है ।
( 4 ) सवैया / savaiya
[UP BOARD EXAM 2016 SH , 17 ML , 19 AL , CN , 20 ZD ]
22 से 26 तक के वर्ण – वृत्त सवैया कहलाते हैं । मत्तगयंद , सुन्दरी , सुमुखी आदि इसके कुछ प्रमुख भेद हैं ।
( 5 ) मत्तगयंद ( सवैया )
यह सम वर्ण – वृत्त है । इसके प्रत्येक चरण में 7 भगण और दो गुरु के क्रम से 23 वर्ण होते हैं ।
उदाहरण
सीस जटा , उर – बाहु बिसाल बिलोचन लाल तिरीछी सी भौंहैं ।
तून सरासन – बान धरें तुलसी बन मारग में सुठि सोहैं ।
सादर बारहिं बार सुभाय चितै तुम्ह त्यों हमरो मनु मोहैं ।
पूँछति ग्राम वधू सिय सों , कहौ सांवरे से सखि रावरे को हैं ।
इस पद्य में 7 भगण और दो गुरु के क्रम से 23 वर्ण हैं । अतः यह मत्तगयंद सवैया छन्द है । इसके प्रथम चरण के अन्त में ‘ छी सी ‘ का लघु उच्चारण ‘ छि सि ‘ होगा ।
( 6 ) सुन्दरी ( सवैया ) [ 2017 MN ]
यह सम वर्ण – वृत्त है । इसके प्रत्येक चरण में आठ सगण और एक गुरु वर्ण के क्रम से 25 वर्ण होते हैं । उदाहरण
भुव भारहि संयुत राकस को गन जाय रसातल मैं अनुराग्यौ ।
जग में जय शब्द समेतहिं ‘ केसव ‘ राज विभीषन के सिर जाग्यौ ।
मय – दानव नंदिनी के सुख सों मिलि के सिव के हिय के दुख भाग्यौ ।
सुर दुंदुभि सीस गजा सर राम को रावन के सिर साथहि लाग्यौ ।
नोट -26 से अधिक वर्णों वाले छन्द दण्डक कहलाते हैं ।
( 7 ) सुमुखी ( सवैया )
इसमें चार चरण होते हैं । प्रत्येक चरण में 23 वर्ण होते हैं । सात जगण ( 1S1 ) और अन्त में एक लघु और एक गुरु होते हैं । इसे मल्लिका छन्द भी कहते हैं ।
उदाहरण
जु लोग लगैं सिय रामहि साथ चलै वन माहि फिरैन चहैं ।
हमें प्रभु आयुसु , देहु चलैं रउरे यों करि जोरि कहैं ।
चलें कछु दूरि नमै पगधूरि भले फल जन्म अनेक लहैं ।
सिया सुमुखी हरि फेरि तिन्हे बहु भाँतिनि ते समुझाइ रहैं ।
( 8 ) मनहर कवित्त
यह दण्ड वृत्त है । इसके प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते हैं । 16-15 वर्णों पर यति होती है । अन्त में एक गुरु वर्ण होता है ।
उदाहरण-
मैं निज अलिन्द में खड़ी थी सखि , एक रात , रिमझिम बूंदें पड़ती थीं घटा छाई थी ।
गमक रहा था केतकी का गन्ध चारों ओर , झिल्ली झनकार यही मेरे मन भाई थी ।
करने लगी मैं अनुकरण स्वनूपुरों से , चंचला थी चमकी , घनाली घहराई थी ।
चौंक देखा मैंने चुप कोने में खड़े थे प्रिय , माई! मुख लज्जा उसी छाती में छिपाई थी ।
इसके प्रत्येक चरण में 31 वर्ण हैं और 16 तथा 15 पर यति है । यह मनहर कवित्त है । इसे मनहरण कवित्त भी कहते हैं । 1