Chhandogyopanishad- Aruni shvetketu samvad -छान्दोग्योपनिषद आरुणि श्वेतकेतु संवाद

Chhandogyopanishad- Aruni shvetketu samvad -छान्दोग्योपनिषद आरुणि श्वेतकेतु संवाद

Chhandogyopanishad- Aruni shvetketu samvad -छान्दोग्योपनिषद आरुणि श्वेतकेतु संवाद – gyansindhuclasses- UP Board Sanskrit 10th- Here UP Board Anivarya Sanskrit Khand ARuni Shvetketu samvad ka Hindi Anuvaad. कक्ष 10 हिंदी अनीवार्य संस्कृत भाग – आरुणि श्वेतकेतु संवाद का हिद्नी अनुवाद मीनिंग के साथ अत्यंत सरल भाषा में  दिया जा रहा है|UP Board Sanskrit 10th.

आवश्यक बात – इस पाठ का अनुवाद हर वाक्य अलग कर के किया गया है |यदि कोई समस्या हो तो नीचे  दिए गए लिंक पर क्लिक कर के वीडियो के माध्यम से समझें|

 Book Name / पाठ्य पुस्तक का नामScert
Class / कक्षाClass 10th / कक्षा -10
Subject / विषयHindi /हिंदी
Chapter Number /  पाठ संख्याChapter 9 पाठ -9
Name of Chapter / पाठ का नामछान्दोग्योपनिषद- आरुणि श्वेतकेतु संवाद:
Board Name /  बोर्ड का नामयूपी बोर्ड 10th हिंदी/up board 10th Hindi
 Book Name / पाठ्य पुस्तक का नामNon NCERT / एन सी आर टी
Class / कक्षा

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Class 10th / कक्षा -10

Vedio

आरुणिश्वेतकेतोः संवादः

Chhandogyopanishad- Aruni shvetketu samvad UP Board Sanskrit 10th

श्वेतकेतुर्हारुणेय आस , तह पितोवाच ‘ श्वेतकेतो ! वस ब्रह्मचर्यं न वै सोम्यास्मत्कुलीनोऽननूच्य ब्रह्मबन्धुरिव भवतीति ॥

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘ संस्कृत खण्ड ‘ के ‘ आरुणिश्वेतकेतोः संवादः ‘ नामक पाठ से अवतरित है ।

अनुवाद — श्वेतकेतु आरुणेय ( आरुणि का पुत्र ) था , उसको उसके पिता ने कहा , ‘ श्वेतकेतु ! ( जाओ ) ब्रह्मचर्य वास करो , क्योंकि हमारे कुल में ऐसा पुरुष नहीं होता कि जो वेद को न पढ़कर ब्रह्मबन्धु – सा बन जाए ।

स ह द्वादशवर्ष उपेत्य चतुर्वि  शतिवर्ष : सर्वान् वेदानधीत्य , महामना अनूचानमानी स्तब्ध एयाय

 सन्दर्भ – पूर्ववत् ।

अनुवाद — वह बारह वर्ष की आयु में ( आचार्य के ) पास जाकर चौबीस वर्ष की आयु में समस्त वेदों को पढ़कर बड़े मनवाला , अपने आपको पूरा विद्वान् समझता हुआ और बड़ा अकड़वाला बनकर वापस लौट आया ।

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त ह पितोवाच ‘ श्वेतकेतो ! यन्तु सोम्येदं महामना अनूचानमानी स्तब्धोऽस्युत तमादेशमप्राक्ष्यो , येनाश्रुत V श्रुतं भवत्यमतं मतमविज्ञातं विज्ञातमिति ॥

सन्दर्भ – पूर्ववत् ।

अनुवाद — उसे पिता ने कहा , श्वेतकेतु ! तुम जो इतने बड़े मनवाले , अपने आपको पूरा विद्वान् समझते हो और अकड़वाले हो , ( क्या तुमने ) वह आदेश ( उपदेश ) भी कभी पूछा है , कि जिससे न सुना हुआ , सुना हुआ हो जाता है , न समझा हुआ समझा हुआ हो जाता है और न जाना हुआ , जाना हुआ हो जाता है ।

यथा सोम्यैकेन लोहमणिना सर्वं लोहमयं विज्ञात स्याद् , वाचारम्भणं विकारो नामधेयं लोहमित्येव सत्यम् ॥

सन्दर्भ – पूर्ववत् ।

अनुवाद – और जैसे हे सोम्य ! एक सोने के ढेले से सोने की प्रत्येक वस्तु जानी जाती है , विकार केवल नाममात्र ही अलग है , जो वाणी का सहारा है , पर वह सोना है , यही सत्य है ।

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‘ कथं नु भगवः ! स आदेशो भवतीति । यथासोम्यैकेन मृत्पिण्डेन सर्व मृण्मयं विज्ञातं स्याद् , वाचारम्भणं विकारो नामधेयं मृत्तिकेत्येव सत्यम् ॥

सन्दर्भ – पूर्ववत् ।

अनुवाद – ( उसने पूछा ) ‘ वह आदेश , हे भगवन ! किस प्रकार का है ? ‘ ( पिता ने उत्तर दिया ) जैसे हे सोम्य ! एक मिट्टी के गोले ( के जानने ) से मिट्टी की हर वस्तु विज्ञात ( जानी गयी ) हो जाए ; क्योंकि विकार केवल नाममात्र ही अलग है , जो वाणी का सहारा है ( अलग शब्द से बोला जाता है ) पर वह मिट्टी है , यह सत्य है ।

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यथा सोम्पैकेन नखनिकृन्तनेन सर्वं कार्णायसं विज्ञात  ‘ स्याद्वाचरम्भणं विकारो नामधेयं कृष्णायसमित्येव सत्यम् एव सोम्य स आदेशो भवतीति ॥

सन्दर्भ – पूर्ववत् ।

अनुवाद — और जैसे हे सोम्य ! एक नख काटनेवाले से काले लोहे की प्रत्येक वस्तु जानी जाती है , विकार केवल नाममात्र का है , जो वाणी का सहारा है , पर वह लोहा ही है , वही सत्य है । इस प्रकार हे सोम्य ! वह आदेश ( उपदेश ) होता है ।

न वै नूनं भगवन्तस्तएतदवेदिषुर्यद्धयतेदवेदिष्यन् कथं मे नावक्ष्यन्निति , भगवाँस्त्वेव मे तद्ब्रवीत्विति तथा सोम्येति होवाच ॥

सन्दर्भ – पूर्ववत् ।

अनुवाद – ( पुत्र ने कहा ) निश्चय ही वह भगवन् ( मेरे आचार्य ) इसे नहीं जानते होंगे ; क्योंकि यदि वह जानते होते तो मुझे कैसे न बतलाते । इसलिए आप ही मुझे यह बतलाएँ । उसने ( पिता ने ) कहा , ‘ ऐसा ही हो , हे सोम्य ! ‘

 

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