Class 10 Sanskrit Solution for UP Board Chapter 3 Naitikmulyani नैतिकमूल्यानि Hindi Anuvad

Class 10 Sanskrit Solution for UP Board Chapter 3 Naitikmulyani नैतिकमूल्यानि Hindi Anuvad

UP Board Solution of Class 10 Sanskrit Chapter 1 Hindi Anuvad – Naitikmulyani नैतिकमूल्यानि  (संस्कृत गद्य भारती)

Dear Students! यहाँ पर हम आपको कक्षा 10 संस्कृत – UP Board Solution of Class 10 Sanskrit Chapter – 3 Naitikmulyani   गद्य – भारती in Hindi translation – हाईस्कूल परीक्षा हेतु  उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद् द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम

Class 10 Sanskrit Chapter

Subject / विषयसंस्कृत (Sanskrit)
Class / कक्षा10th
Chapter( Lesson) / पाठChpter 1
Topic / टॉपिकनैतिकमूल्यानि
Chapter NameNaitikmulyani
All Chapters/ सम्पूर्ण पाठ्यक्रमकम्पलीट संस्कृत बुक सलूशन

नयनं नीतिः, नीतेरिमानि मूल्यानि नैतिकमूल्यानि । यया सरण्या कार्यकरणेन मनुष्यस्य जीवनं सुचारु सफलञ्च भवति सा नीतिः कथ्यते। इयं नीतिः केवलस्य जनस्य समाजस्य कृते एव न भवति, अपितु जनानां, नृपाणां समेषां च व्यवहाराय भवति । नीत्या चलनेन, व्यवहरणेन, प्रजानां शासकानां समस्तस्य लोकस्यापि कल्याणं भवति। पुरातनकालादेव भारते कवयः नीतिकाराः मनोरमया सरसया गिरा नीतिवाक्यानि, कथाभिः श्लोकैश्च व्यरचयन्। इत्थं नीतिशास्त्राणि व्यवहारविदे, कान्तासम्मिततयोपदेशयुजे बभूवुः।

सन्दर्भ – प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत गद्य भारती’ के ‘नैतिकमूल्यानि’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है।

हिंदी अनुवाद-  नयन (ले चलना) ही नीति है, नीति का यह मूल्य नैतिक मूल्य है। जिस रीति या ढंग से कार्य करने से मनुष्य का जीवन सुन्दर और सफल होता है, उसे नीति कहते हैं। यह नीति केवल मनुष्य और समाज के लिए नहीं होती है, बल्कि मनुष्य, राजा और सभी लोगों के लिए होती है। नीति के अनुसार चलने और व्यवहार करने से प्रजा, शासक और समस्त संसार का कल्याण होता है। प्राचीन काल से ही भारत में नीतिकार कवियों ने सुन्दर और सरस वाणी से नीति वाक्यों की रचना कथाओं और श्लोकों द्वारा की है। इस प्रकार नीतिशास्त्र व्यवहार ज्ञान के लिए प्रेयसी के समान मधुर शब्दों में उपदेश देने के लिए बने होते हैं। 

फलन्त्विदं सम्पन्नं साधारणाः अपि जनाः व्यवहाराय नीतिवाक्यानि नीतिश्लोकांश्च गलविलाधः कुर्वन्ति स्म। यथा च चाणक्यनीतिः, विदुरनीतिः, विदुलोपाख्यानम्, पञ्चतन्त्रम्, शुक्रनीतिः, घटकर्परकृतः नीतिसारः, सुन्दरपाण्डेयेन कृता ‘नीतिद्विषष्टिका’, भल्लाटशतकम्, भर्तृहरिकृतम् नीतिशतकम्, ‘बल्लालशतकम्’, ‘दृष्टान्तशतकम्’ इत्यादि बहूनि नीतिपुस्तकानि संस्कृते उपलभ्यन्ते।

हिंदी अनुवाद- इसका फल यह हुआ कि साधारण लोग भी व्यवहार के लिए नीतिवाक्यों और नीतिश्लोकों को कण्ठस्थ कर लेते थे। जैसे कि चाणक्यनीति, विदुरनीति, विदुलोपाख्यान, पञ्चतन्त्र, शुक्रनीति, घट्टकर्पर द्वारा लिखा हुआ नीतिसार, सुन्दर पाण्डेय द्वारा लिखित नीतिद्विषष्टिका, भल्लाटशतक, भर्तृहरिकृत नीतिशतक, बल्लालशतक, दृष्टान्तशतक इत्यादि बहुत-सी नीति की पुस्तकें संस्कृत में उपलब्ध हैं।

UP Board Chapter 3 Naitikmulyani नैतिकमूल्यानि

विचार्यमाणे साहित्ये आदिकालादेव सर्वेष्वपि राष्ट्रेषु अयं विश्वासः प्रचलितः आसीत्, यत् काव्यस्यान्येषु प्रयोजनेषु सत्स्वपि एकं मुख्यं प्रयोजनं नैतिकः परितोषः। प्लेटो, अरस्तू, पेटर, होरेसादि सर्वैः विचारकैः काव्यस्य मुख्यं प्रयोजनं नैतिकविकासः एव स्वीकृतः।

हिंदी अनुवाद-  साहित्य में विचार किये जाने पर आदिकाल से ही सभी राष्ट्रों में यह विश्वास प्रचलित था कि काव्य के अन्य प्रयोजनों के होने पर भी एक मुख्य प्रयोजन नैतिक सन्तोष था। प्लेटो, अरस्तू, पेटर, होरेस आदि सभी विचारकों ने काव्य का मुख्य प्रयोजन नैतिक विकास ही स्वीकार किया है।

नैतिकमूल्यैः व्यक्तेः सामाजिकी प्रतिष्ठाभिवर्धते । मानवकल्याणाय नैतिकता आवश्यकी। नैतिकतैव व्यक्तेः समाजस्य, राष्ट्रस्य, विश्वस्य कल्याणं कुरुते। नैतिकताचरणेनैव मनुष्येषु त्यागः, तपः, विनयः, सत्यं, न्यायप्रियता एवमन्येऽपि मानवीयाः गुणाः उत्पद्यन्ते। नैतिकतया मनुष्योऽन्यप्राणिभ्यः भिन्नः जायते। तदाचरणेन व्यक्तेः समाजस्य च जीवनम् अनुशासितं निष्कण्टकं च भवति। व्यक्तेः समाजस्य, वर्गस्य, देशस्य च समुत्रयनावसरो लभ्यते। समाजः ईर्ष्या-द्वेषच्छल-कलहादिदोषेभ्यः मुक्तो भवति। अस्माकं सामाजिकाः अन्ताराष्ट्रियाः सम्बन्धाः नैतिकताचरणेन दृढाः भवन्ति। अतः नैतिकताशब्दः सच्चरित्रतावाचकः, सुखमयमानवजीवनस्याधारः अस्ति।

हिंदी अनुवाद-  नैतिक मूल्यों से व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है। मानव-कल्याण के लिए नैतिकता आवश्यक है। नैतिकता से ही व्यक्ति, समाज, राष्ट्र, विश्व का कल्याण होता है। नैतिकता के आचरण से ही मनुष्यों में त्याग, तप, विनय, सत्य, न्यायप्रियता इस प्रकार के दूसरे भी मानवीय गुण उत्पन्न होते हैं। नैतिकता से मनुष्य दूसरे प्राणियों से भिन्न हो जाता है। उसके आचरण से व्यक्ति और समाज का जीवन अनुशासित और निष्कण्टक होता है। व्यक्ति, समाज, वर्ग और देश की उन्ाति का अवसर प्राप्त हो जाता है। समाज ईर्ष्या, द्वेष, छल, कलह आदि दोषों से मुक्त होता है। हमारे सामाजिक और अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध नैतिकता के आचरण से मजबूत होते हैं। अतः ‘नैतिकता’ शब्द सच्चरित्रता का वाचक, सुखमय मानव जीवन का आधार है।

UP Board Chapter 3 Naitikmulyani नैतिकमूल्यानि

इदन्तु सम्यक् वक्तुं शक्यते यत् नैतिकताचरणस्य, नैतिकतायाश्च मुख्यमुद्देश्यं स्वस्य अन्यस्य च कल्याणकरणं भवति। कदाचित् एवमपि दृश्यते यत् परेषां कल्याणं कुर्वन् मनुष्यः स्वीयाम् हानिमपि कुरुते। एवंविधं नैतिकाचरणं विशिष्टं महत्त्वपूर्णं च मन्यते। परेषां हितं नैतिकतायाः प्राणभूतं तत्त्वम्।

हिंदी अनुवाद- यह तो भली-भाँति कहा जा सकता है कि नैतिक आचरण और नैतिकता का मुख्य उद्देश्य अपना और दूसरे का कल्याण करना होता है। कभी-कभी ऐसा भी देखा जाता है कि दूसरों का कल्याण करते हुए मनुष्य अपनी हानि भी कर लेता है। इस प्रकार का नैतिक आचरण विशिष्ट एवं महत्त्वपूर्ण माना जाता है। दूसरों का हित (करना) नैतिकता का प्राणभूत तत्त्व है।

कदाचित् एवमपि दृश्यते यत्समाजे प्रचलिता रूढिः समेषां कृते हितकरी न भवति। अतः प्रबुद्धाः विद्वांसः तस्या रूढेः विरोधमपि कुर्वन्ति। परं तैः आचरणस्य व्यवहारे नवीनः आदर्शः स्थाप्यते। यः कालान्तरे समाजस्य कृते हितकरः भवति। एवं सदाचरणेऽपि परिवर्तनं दृश्यते। परं वस्तुतः यानि नैतिकमूल्यानि सन्ति। तेषु परिवर्तनं न भवति। यथा सनातनो धर्मः न परिवर्तते तथा नैतिकमूल्यान्यपि स्थिराणि एव। एवं धमें नीतौ च दृढीयान् सम्बन्धो दृश्यते। परं द्वयोः भेदोऽपि वर्तते। धर्मशब्दः व्यापकः अस्ति। नीतिस्तु व्याप्या धमें एव विलीयते। यानि अवश्यकरणीयानि कर्त्तव्यानि यैः पुण्यानि नोपलभ्यन्ते तेषामपि गणना धमें कृता महर्षिभिः धर्माचार्यैः। नीतिः लौकिकं कल्याणं कुरुते। धर्मस्तु लौकिकं पारलौकिकञ्च कल्याणं कुरुते।

हिंदी अनुवाद-कभी-कभी ऐसा भी देखा जाता है कि समाज में प्रचलित परम्परा सभी के लिए हितकारी नहीं होती है। इसलिए जागरूक विद्वान् रूढ़ि का विरोध भी करते हैं; परन्तु इनके द्वारा किये गये आचरण के व्यवहार से नया आदर्श स्थापित किया जाता है, जो कुछ समय बाद समाज के लिए हितकर होता है। इस प्रकार सदाचार में भी परिवर्तन दिखायी देता है, परन्तु वास्तव में जितने (जो-जो) नैतिक मूल्य होते हैं उनमें परिवर्तन नहीं होता है। जैसे सदा से चला आता हुआ कर्म परिवर्तित नहीं होता है और नैतिक मूल्य भी स्थिर ही हैं। इस प्रकार नीति और कर्म में दृढ़ (मजबूत) सम्बन्ध दिखायी देता है, किन्तु दोनों में भेद भी है। धर्म शब्द व्यापक (गहनता से फैला हुआ) है। नीति तो व्याप्य होती है अतः धर्म में ही विलीन हो जाती है। जो-जो आवश्यक रूप से करने योग्य कर्त्तव्य (होते हैं), जिनसे पुण्य प्राप्त नहीं होते हैं, उनकी भी गणना महर्षि आचार्यों ने धर्म में कर दी है। नीति लौकिक (भौतिक, सांसारिक) कल्याण करती है। धर्म तो लौकिक और पारलौकिक (परलोक सम्बन्धी) कल्याण करता है। 

उभयोः कुत्रापि साङ्कर्यमपि प्राप्यते। धर्मः अलौकिकीं शक्तिं प्रकटयति। सः मुक्तेः मार्गमपि प्रशस्तं करोति । परलोकमपि प्रदर्शयति कल्पयति च। नीतिः लौकिकं हितं साधयति । परं नीतिधर्मयोः साहचर्यं सर्वैरेव स्वीक्रियते । दार्शनिकैः, धर्माचार्यैः पौराणिकैश्च धर्मः परिभाषितः यथा- “यतोऽभ्युदयनिःश्रेयस्सिद्धिः स धर्मः” यतः यस्मात् कर्मणः, इह लोके कल्याणं जायते, परत्र परलोके च शोभनं स्थानं जनैः लभ्यते नरकापातो न भवेत् येन, स धर्मः। एवं महाभारते श्रियते धर्मः, धारणाद्धर्मः यतः धारयते प्रजाः।

धर्मशास्त्रकारेण मनुना- 

धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः ।धीर्विद्यासत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ।।

हिंदी अनुवाद- दोनों में ही मिश्रण या मेल भी प्राप्त होता है। धर्म अलौकिक शक्ति को प्रकट करता है। वह मुक्ति का मार्ग भी दिखाता है। परलोक को भी दिखाता और (उसकी) कल्पना (भी) करता है। नीति लौकिक हित को पूरा करती है, किन्तु नीति और धर्म का साहचर्य सभी के द्वारा स्वीकार किया जाता है।  दार्शनिकों, धर्माचार्यों और पौराणिकों ने धर्म की परिभाषा की है। जैसे-“जिससे लौकिक उन्नति और पारलौकिक कल्याण की प्राप्ति हो वह धर्म है” क्योंकि जिस काम से इस लोक में कल्याण होता है और परलोक में लोगों को उत्तम स्थान मिलता है, नरक में पतन नहीं होता, वह धर्म है। महाभारत में ऐसा कहा गया है-जो धारण किया जाय वह धर्म है, धारण करने के कारण धर्म है या जिससे प्रजा धारण की जाती है वह धर्म है।

धर्मशास्त्रकार मनु ने कहा है-

धैर्य, क्षमा, इच्छाओं का दमन, चोरी न करना, पंवित्रता, इन्द्रिय-निग्रह, विद्या, सत्य, क्रोध न करना- ये धर्म के दस लक्षण हैं।

UP Board Chapter 3 Naitikmulyani नैतिकमूल्यानि

 इति मनुस्मृतौ दशस्वरूपको धर्मः उपवर्णितः। इत्थं धर्माचरणे नैतिकताचरणे च साङ्कर्यमुपलभ्यते। तीर्थाटनम्, पावनासु नदीषु स्नानम्, यजनम्, याजनम्, गुरुसेवा, मातृ-पितृसेवा, सन्ध्यावन्दनम्, षोडशसंस्कारा एते मुख्यरूपेण धर्मपदवाच्याः। एषु कर्मसु नीतेः मिश्रणं नास्ति। अतः धर्मो व्यापकः। धृति-दया- सहिष्णुता-सत्य-परोपकाराद्याचरणेषु द्वयोः साङ्कर्यमस्ति । परमेतत् निश्चितं यत् द्वयोराचरणेन लोकस्य परमं कल्याणं जायते एव।

हिंदी अनुवाद- मनुस्मृति में धर्म को दस रूपवाला वर्णित किया गया है। इस प्रकार धर्माचरण और नैतिकता के आचरण में मिश्रण मिलता है। तीर्थयात्रा, नदी में स्नान, यज्ञ करना और कराना, गुरुसेवा, माता-पिता की सेवा, सन्ध्यावन्दन जैसे सोलह संस्कार मुख्य रूप से धर्म कहलाते हैं। इन कर्मों में नीति का मिश्रण नहीं है। इसलिए धर्म व्यापक है। धैर्य, दया, सहनशीलता, सत्य, परोपकार आदि आचरणों में दोनों का मिश्रण है। लेकिन यह निश्चित है कि दोनों के आचरण से संसार का परम कल्याण होता है।

नीतिकाराणां मते इमे नैतिकतायाः गुणाः यथा- जीवहिंसायाः विरक्तिः, परधनापहरणान्निवृत्तिः, सत्यभाषणम्, पैशुन्यात् निवृत्तिः, सत्पात्रेभ्यः दीनेभ्यश्च दानम्, अतिलोभात् वितृष्णा, दया, सहिष्णुता, परोपकारः, गुरुजनेष्वनुरागः, श्रद्धा, विनयशीलता च। अनुत्सेकः, आतिथ्यम्, न्याय्यावृत्तिः, परगुणेभ्यः ईर्ष्याऽभावः, सत्सङ्गानुरक्तिः, दुष्टसङ्गान्निवृत्तिः, विपदि धैर्यम्, अभ्युदये क्षमा, सदसि वाक्पटुता, समयस्य सदुपयोगः, इत्यादयः नैतिकताचाराः एषामाचरणेनैव व्यक्तेः समाजस्य, राष्ट्रस्य विश्वस्य च सर्वथा कल्याणं सम्पद्यते।

हिंदी अनुवाद-   नीतिकारों के मत में ये नैतिकता के गुण हैं। जैसे-जीव हिंसा से विरक्ति, दूसरे के धन अपहरण से निवृत्ति, सत्य बोलना, चुगलखोरी से दूर रहना, सत्पात्र और दीनों को दान देना, अतिलोभ से विरक्ति, दया, सहनशीलता, परोपकार, गुरुजनों की सेवा से प्रेम, श्रद्धा और नम्रता। गर्वरहित, अतिथि सत्कार, उचित जीविका, दूसरे के गुणों के प्रति ईर्ष्या का अभाव, सत्संगति से प्रेम, दुष्ट संग से छुटकारा, विपत्ति में धैर्य, अभ्युदय में क्षमा, सभा में वाणी की चतुरता, समय का सदुपयोग इत्यादि नैतिक आचरण हैं। इनके आचरण से ही व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और विश्व का सर्वथा कल्याण हो सकता है।

                 नैतिकमूल्यानि [ पाठ का सारांश ]

जिस ढंग से कार्य करने से मनुष्य का जीवन सुचारु और सफल होता है वह नीति कही जाती है। नीति के मूल्यों को ही नैतिक मूल्य कहा जाता है। यह नीति केवल मनुष्य समाज के लिए ही नहीं होती, बल्कि मनुष्यों, राजाओं एवं सभी के व्यवहार के लिए होती है। नीति के साथ चलने से सबका कल्याण होता है।

अति प्राचीनकाल से ही कवियों और नीतिकारों ने सरस वाणी में नीति वाक्यों की रचना की है और व्यवहार कुशलता के लिए जनसाधारण ने उन वाक्यों को कण्ठस्थ कर लिया। संस्कृत साहित्य में अनेक नीति-ग्रन्थ उपलब्ध हैं। उनमें चाणक्य नीति, विदुर नीति, शुक्र नीति, पंचतन्त्र आदि प्रमुख हैं। संसार के समस्त विद्वानों ने काव्य का मुख्य प्रयोजन नैतिक विकास ही माना है।

नैतिक मूल्यों से व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है। मानव-कल्याण के लिए नैतिकता आवश्यक है। नैतिकता के आचरण से व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और विश्व का कल्याण होता है, जीवन सुख-शान्तिमय रहता है। नैतिकता से सामाजिक जीवन में दृढ़ता आती है। नैतिकता के आचरण का मुख्य उद्देश्य अपना और दूसरों का कल्याण करना है। परोपकार ही नैतिकता का प्राण होता है।

 

                नैतिकमूल्यानि पाठ के बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQ)

नोट: प्रश्न-संख्या 1-2 गद्यांश पर आधारित प्रश्न हैं। गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और उत्तर का चयन करें।

(क) नयनं नीतिः, नीतेरिमानि मूल्यानि नैतिकमूल्यानि। यया सरण्या कार्यकरणेन मनुष्यस्य जीवनं सुचारु सफलञ्च भवति सा नीतिः कथ्यते। इयं नीतिः केवलस्य जनस्य समाजस्य कृते एव न भवति, अपितु जनानां, नृपाणां समेषां च व्यवहाराय भवति। नीत्या चलनेन, व्यवहरणेन, प्रजानां शासकानां समस्तस्य लोकस्यापि कल्याणं भवति ।

1. नैतिकमूल्यानि शब्दस्य कः अर्थः ?

(क) अनीतिसम्बन्धिमूल्यानि

(ख) अधर्मसम्बन्धिमूल्यानि

(ग) अज्ञानसम्बन्धिमूल्यानि

(घ) नीतिसम्बन्धिमूल्यानि

उत्तर-(घ) नीतिसम्बन्धिमूल्यानि

2. नीत्या कार्यकरणेन मनुष्यस्य जीवनं भवति –

(क) अनैतिकम्

(ख) सफलम्

(ग) अज्ञानमयम्

(घ) असफलम्

उत्तर- (ख) सफलम्

 

(ख) इदन्तु सम्यक् वक्तुं शक्यते यत् नैतिकताचरणस्य, नैतिकतायाश्च मुख्यमुद्देश्यं स्वस्य अन्यस्य च कल्याणकरणं भवति। कदाचित् एवमपि दृश्यते यत् परेषां कल्याणं कुर्वन् मनुष्यः स्वीयाम् हानिमपि कुरुते। एवंविधं नैतिकाचरणं विशिष्टं महत्त्वपूर्ण च मन्यते। परेषां हितं नैतिकतायाः प्राणभूतं तत्त्वम्।

3. उक्त गद्यांश का शीर्षक है-

(क) विश्वकविः रवीन्द्रः

(ख) आदिशङ्कराचार्यः

(ग) नैतिकमूल्यानि

(घ) गुरुनानकदेवः

उत्तर-(ग) नैतिकमूल्यानि

4. नैतिकतायाः प्राणभूतं तत्वं किम् ?

(क) स्वस्य-हितम्

(ख) परेषां हितम्

(ग) विदेशीयानां

(घ) पशूनां हितम्

उत्तर-(ख) परेषां हितम्

5. पञ्चतन्त्रस्य रचनाकारः कः अस्ति ?

(क) जयदेवः

(ख) विष्णुशर्मा

(ग) नारायण पण्डितः

(घ) गुणाढ्य

उत्तर- (ख) विष्णुशर्मा

6. घटकर्परस्य रचनाऽस्ति –

(क) नीतिसारः

(ख) बल्लालशतकम्

(ग) दृष्टान्तशतकम्

(घ) भल्लाटशतकम्

उत्तर- (क) नीतिसारः

7. मनुस्मृतौ धर्मस्य कति स्वरूपाः वर्णिताः ?

(क) पञ्च

(ख) सप्त

(ग) अष्ट

(घ) दश

उत्तर-(घ) दश

8. नीतिः किम् अस्ति ?

(क) नयनं

(ख) पठनं

(ग) लिखनं

(घ) गमनं

उत्तर- (क) नयनं

9. ‘नीतिद्विषष्टिका’ रचनाकारः कः अस्ति?

(क) विश्वेश्वर पाण्डेयः

(ख) सुन्दर पाण्डेयः

(घ) श्रीधर पाण्डेयः

(ग) राममुनि पाण्डेयः

उत्तर-(ख) सुन्दर पाण्डेयः

10. नीतिसम्बन्धिनी रचना अस्ति?

(क) रामायणम्

(ख) रघुवंशम्

(ग) नीतिसारः

(घ) मेघदूतम्

उत्तर-(ग) नीतिसारः

11. भतृहरेः कृतिरस्ति?

(क) विदुलोपाख्यानम्

(ग) पञ्चतन्त्रम्

(ख) नीतिशतकम्

(घ) शुक्रनीतिः

उत्तर-(ख) नीतिशतकम्

12. भतृहरिप्रणीतं नीतिशतकं कस्यां भाषायां समुपलभ्यते ?

(क) आङ्गलभाषायाम्

(ख) हिन्दीभाषायाम्

(ग) संस्कृते

(घ) तमिभले

उत्तर-(ग) संस्कृते

error: Content is protected !!