UP Board Solutions of Class 10 Sanskrit Chapter 4 विश्वकविः रवीन्द्रः (Vishvkavi Ravindra) hindi anuvad

UP Board Solutions of Class 10 Sanskrit Chapter 4 कक्षा 10 संस्कृत चतुर्थ: पाठ: विश्वकविः रवीन्द्रः (Vishvkavi Ravindra) hindi anuvad Question Answer

Dear Students! यहाँ पर हम आपको कक्षा 10 संस्कृत – UP Board Solution of Class 10 Sanskrit Chapter -4   विश्वकविः रवीन्द्रः  गद्य – भारती  in Hindi translation – हाईस्कूल परीक्षा हेतु  उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद् द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम।

Class 10 Sanskrit Chapter

Subject / विषयसंस्कृत (Sanskrit)
Class / कक्षा10th
Chapter( Lesson) / पाठChpter 1
Topic / टॉपिक विश्वकविः रवीन्द्रः 
Chapter NameVishvakavi Rabindra:
All Chapters/ सम्पूर्ण पाठ्यक्रमकम्पलीट संस्कृत बुक सलूशन

आङ्ग्लवाङ्मये काव्यधनः शेक्सपियर इव, संस्कृतसाहित्ये कविकुलगुरुः कालिदास इव, हिन्दीसाहित्ये महाकवितुलसीदास इव बङ्गसाहित्ये कवीन्द्रो रवीन्द्रः केनाविदितः स्यात्। आधुनिकभारतीयशिल्पिषु रवीन्द्रस्य स्थानं महत्त्वपूर्णमास्ते इति सर्वैः ज्ञायत एव । तस्य बहूनि योगदानानि पार्थक्येन वैशिष्ट्यं लभन्ते। न केवलमाध्यात्मिक- सांस्कृतिकक्षेत्रेषु तस्य योगदानं महत्त्वपूर्णमपि तु रचनात्मकसाहित्यकारतयापि तस्य नाम लोकेषु सुविदितमेव सर्वैः।

सन्दर्भ – प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक ‘संस्कृत गद्य भारती’ के ‘विश्वकविः रवीन्द्रः’ शीर्षक पाठ से अवतरित है।

हिंदी अनुवाद –  अंग्रेजी साहित्य में काव्य के धनी शेक्सपीयर की तरह, संस्कृत साहित्य में कविश्रेष्ठ कालिदास की तरह, हिन्दी साहित्य में महाकवि तुलसीदास की तरह, बँगला साहित्य के कवियों में श्रेष्ठ रवीन्द्रनाथ टैगोर को कौन नहीं जानता? आधुनिक भारतीय कलाओं में रवीन्द्र का स्थान महत्त्वपूर्ण है, यह सभी लोग जानते हैं। उनके बहुत से योगदान अलग से विशिष्टता प्राप्त करते हैं। न केवल आध्यात्मिक, सांस्कृतिक क्षेत्रों में उनका योगदान महत्त्वपूर्ण है, बल्कि रचनात्मक साहित्यकारिता के कारण भी उनका नाम संसार में अविस्मरणीय है।

सांस्कृतिक क्षेत्रे

संगीतविधासु नृत्यविधासु च सः नूतनां शैलीं प्राकटयत्। सा शैली ‘रवीन्द्र संगीत’ नाम्ना ख्यातिं लभते। एवं नृत्यविधासु परम्परागतशैलीमनुसरताऽनेन शिल्पिना नवीना नृत्यशैली आविष्कृता। अन्यक्षेत्रेष्वपि शिक्षाविद्रूपेण नवीनानां विचाराणां सूत्रपातो विहितः। तेषां प्रयोगात्मकविचाराणां पुञ्जीभूतः निरुपमः प्रासादः ‘विश्व भारती’ रूपेण सुसज्जितशिरस्कः राजते। यत्र आश्रमशैल्याः नवीनशैल्या साकं समन्वयो वर्तते।

हिंदी अनुवाद –  संगीत की विधाओं में और नृत्य विधाओं में उन्होंने नवीन शैली को प्रकट किया। वह शैली ‘रवीन्द्र संगीत’ नाम से प्रसिद्ध है। इसी प्रकार नृत्य की विधाओं में प्रम्परा से चली आनेवाली शैली का अनुसरण करते हुए इस शिल्पी (कलाकार) ने नवीन नृत्य शैली का आविष्कार किया। अन्य क्षेत्रों में भी शिक्षाविद् के रूप में नवीन विचारों को प्रारम्भ किया। उनके प्रयोगात्मक विचारों का समन्वित रूप अद्वितीय महल विश्वभारती के रूप में सुसज्जित शिखरवाला सुशोभित होता है, जहाँ आश्रमशैली का नवीन शैली के साथ समन्वय है। 

दीनानां दलितवर्गाणां दशासुधारकरूपेणाऽसौ अस्माकं भारतीयानां पुरः प्रस्तुतोऽभवत्। रवीन्द्रनाथस्य जन्म कलिकातानगरे एकषष्ट्यधिकाष्टादशशततमे ख्रिष्टाब्दे मईमासस्य सप्तमे दिवसे (7 मई, 1861) अभवत् । अस्य जनकः देवेन्द्रनाथः, जननी शारदा देवी चास्ताम्। रवीन्द्रस्य जन्म एकस्मिन् सम्भ्रान्ते समृद्धे ब्राह्मणपरिवारे जातम्। यस्य सविधे अचला विशाला सम्पत्तिरासीत्। अतो भृत्यबहुलं भृत्यैः परिपुष्टं संरक्षितं जीवनं वन्दिपूर्णमन्वभवत्। अतः स्वच्छन्दविचरणाय, क्रीडनाय सुलभोऽवकाशः नासीत्तेन मनः खिन्नमेवास्त। 

हिंदी अनुवाद – दीनों एवं दलित वर्गों की दशा सुधारक के रूप में वह भारतीयों के सामने प्रस्तुत हुए रवीन्द्रनाथ का जन्म कलकत्ता नगर में सन् 1861 ईस्वी में मई मास की 7 तारीख को हुआ था। इनके पिता देवेन्द्रनाथ और माता शारदादेवी थीं। रवीन्द्र का जन्म एक सम्भ्रान्त और समृद्ध ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पास विशाल अचल सम्पत्ति थी; अतः उन्होंने नौकरों की अधिकता से पूर्ण, सेवकों से पुष्ट किये गये, देखभाल किये गये जीवन को बन्दीपूर्ण अनुभव किया। इसलिए स्वच्छन्द विचरण के लिए और खेलने के लिए उनके पास समय नहीं था, इस कारण उनका मन दुःखी रहता था।।

वैभवशालिभवनस्य पृष्ठभागे एकं कमनीयं सरः आसीत्। यस्य दक्षिणतटे नारिकेलतरूणां पङ्क्तिः राजते स्म। पूर्वस्मिन् तटे जटिलस्तपस्वी इव महान् जीर्णः पुरातनः एकः वटवृक्षोऽनेकशाखासम्पन्नोऽन्तरिक्षं परिमातुमिव समुद्यतः आसीत्। भवनस्य वातायने समुपविष्टः बालकः दृश्यमिदं दर्श दर्श परां मुदमलभत।

हिंदी अनुवाद – वैभवपूर्ण भवन के पिछले हिस्से में एक सुन्दर तालाब था, जिसके दक्षिण किनारे पर नारियल के वृक्षों की पंक्ति सुशोभित थी। पूर्वी किनारे पर जटाधारी तपस्वी के समान बहुत पुराना एक वट का पेड़ अनेक – शाखाओं से सम्पन्न था, जो मानो आकाश को मापने के लिए तैयार था। भवन को खिड़की में बैठा हुआ बालक (रवीन्द्र) इस दृश्य को देख-देखकर अत्यन्त प्रसन्नता प्राप्त करता था। 

अस्मिन्नेव सरसि तत्रत्याः निवासिनः यथासमयं स्नातुमागत्य स्नानञ्च कृत्वा यान्ति स्म। तेषां परिधानानि विविधाः क्रियाश्च दृष्ट्वा बालः किञ्चितकालं प्रसन्नः अजायत। मध्याह्नात् पश्चात् सरोवरः शून्यतां भजति स्म। सायं पुनः बकाः हंसाः जलकृकवाकवः विहंगाः कोलाहलं कुर्वाणाः स्थानानि लभन्ते स्म। तस्मिन् काले इदमेव कस्रं सरः बालकस्य मनोरञ्जनमकरोत्।

हिंदी अनुवाद – इसी सरोवर में वहाँ के निवासी समयानुसार स्नान के लिए आते और स्नान करके जाते थे। उनके वस्त्रों और विविध क्रियाओं को देखकर बालक कुछ समय तक प्रसन्न हो जाता था। दोपहर के बाद सरोवर निर्जन हो जाता था। शाम को फिर बगुले, हंस, जलमुर्गे, पक्षी कोलाहल करते हुए स्थान प्राप्त करते हैं। उस समय यही सुन्दर सरोवर बालक का मनोरञ्जन करता था।

शिक्षा

रवीन्द्रस्य प्राथमिकी शिक्षा गृहे एव जाता। शिक्षणं बङ्गभाषायां प्रारभत । प्रारम्भिकं विज्ञानम्, संस्कृतम्, गणितमिति त्रयो पाठ्यविषयाः अभूवन्। प्रारम्भिकगृहशिक्षायां समाप्तायां बालकः उत्तरकलिकातानगरस्य ओरिएण्टल सेमिनार विद्यालये प्रवेशमलभत्। तदनन्तरं नार्मलविद्यालयं गतवान् परं कुत्रापि मनो न रमते स्म। सर्वत्र अध्यापकानां स्वेच्छाचरणं सहपाठिनां तुच्छा रुचीः अप्रियान् स्वभावांश्च विलोक्य मनो न रेमे। अतः शून्यायां घटिकायां मध्यावकाशेऽपि च ऐकान्तिकं जीवनम् बालकाय रोचते स्म। बालकस्य मनः विद्यालयेषु न रमते इति विचिन्त्य जनको देवेन्द्रनाथः त्रिसप्तत्यधिकाष्टादशशततमे खिष्टाब्दे (1873) सूनोरुपनयनसंस्कार विधाय तं स्वेन सार्धमेव हिमालयमनयत्।

हिंदी अनुवाद –   रवीन्द्रनाथ ‘टैगोर’ की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई थी। शिक्षा बंगला भाषा में प्रारम्भ हुई थी। प्रारम्भिक विज्ञान, संस्कृत और गणित ये तीन पाठ्य विषय थे। प्रारम्भिक घर की शिक्षा समाप्त होने पर बालक (रवीन्द्र) ने उत्तरी कलकत्ता नगर के ‘ओरिएण्टल सेमिनार विद्यालय’ में प्रवेश लिया। इसके बाद ‘नॉर्मल विद्यालय’ गया, किन्तु वहाँ भी (इनका) मन नहीं लगता था। सर्वत्र अध्यापकों के स्वेच्छाचरण (और) सहपाठियों की तुच्छ रुचि और अप्रिय स्वभावों को देखकर (इनका) मन नहीं लगा; अतः खाली घण्टों में और मध्यावकाश (इण्टरवल) में एकान्त का जीवन (ही) बालक (रवीन्द्र) को रुचता था। बालक का मन विद्यालयों में नहीं लगता है, यह सोचकर पिता देवेन्द्रनाथ सन् 1873 ई० में पुत्र का उपनयन संस्कार कराकर उसे अपने साथ हिमालय पर ले गये। 

तत्र पितुः सम्पर्केण बालकस्य मनः स्वच्छतामभजत्। तत्रत्यस्य भवनस्य पृष्ठभागे हिमाच्छादिताः पर्वतश्रेणयः आसन्। भवनाभिमुखं शोभनानि सुशाद्वलानि क्षेत्राणि राजन्ते स्म। अत्रत्यं प्राकृतिकं जीवनं बालकस्य मनो नितरामरमयत्। जनको देवेन्द्रनाथः प्रतिदिवसं नवीनया पद्धत्या पाठयति स्म। पितुः पाठनशैली बालकाय रोचते स्म। कालान्तरं हिमालयात् प्रतिनिवृत्य पुनः विद्यालयीयां शिक्षां लेभे।

हिंदी अनुवाद – वहाँ पिता के सम्पर्क से बालक के मन ने स्वतन्त्रता का अनुभव किया। वहाँ के भवन के पिछले भाग में बर्फ से ढकी पर्वत श्रेणियाँ थीं। भवन के सामने सुन्दर हरे अन्नों से लहलहाते खेत सुशोभित थे। यहाँ के प्राकृतिक जीवन ने बालक के मन को बहुत रमाया। पिता देवेन्द्रनाथ प्रतिदिन नवीन पद्धति द्वारा पढ़ाते थे। पिता की पढ़ाई की शैली बालक को रुचती थी। कुछ समय बादू हिमालय से लौटकर फिर विद्यालयीय शिक्षा प्राप्त की। 

सप्तदशवर्षदेशीयो रवीन्द्रनाथः अष्टसप्तत्यधिकाष्टादशशततमे ईस्वीयाब्दे सितम्बरमासे भ्रात्रा न्यायाधीशेन सत्येन्द्रनाथेन सार्ध विधिशास्त्रमध्येतुं लन्दननगरं गतवान्। दैवयोगाद् रवीन्द्रस्य वैरिस्टरपदवी पूर्णतां नागात्। सः पितुराज्ञया भ्रात्रा सत्येन्द्रनाथेन साकम् अशीत्यधिकाष्टादशशततमे ईस्वीयाब्दे (1880) फरवरीमासे लन्दननगरात् कलिकातानगरमायातः। इंग्लैण्डदेशस्य वर्षद्वयावासे पाश्चात्यसंगीतस्य सम्यक् परिचयस्तेन लब्धः।

हिंदी अनुवाद – सत्रह वर्षीय रवीन्द्रनाथ सन् 1878 ई० में सितम्बर मास में न्यायाधीश भाई सत्येन्द्रनाथ के साथ न्यायविद्या- शास्त्र की शिक्षा लेने लन्दन नगर गये। दैवयोग से रवीन्द्र की बैरिस्टर पदवी पूरी नहीं हुई। वह पिता की आज्ञा से भाई सत्येन्द्रनाथ के साथ सन् 1880 ई० के फरवरी मास में लन्दन नगर से कलकत्ता नगर लौट आये। इंग्लैण्ड देश के दो वर्षीय आवासकाल में उन्होंने पाश्चात्य संगीत से अच्छा परिचय प्राप्त कर लिया।

साहित्यिकप्रतिभायाः विकासः रवीन्द्रस्य साहित्यिकरचनायां नैसर्गिकी नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा तु प्रधानकारणमासीदेव। परं तत्रत्या पारिवारिकपरिस्थितिरपि विशिष्टं कारणमभूत्। यथा- गृहे प्रतिदिनं साहित्यिकं वातावरणं कलासाधनायाः गतिविधयः, नाटकानां मञ्चनानि, संगीतगोष्ठ्यः, चित्रकलानां प्रदर्शनानि, देशसेवाकर्माणि सदैव भवन्ति स्म। शोरावस्थायामेव रवीन्द्रः अनेकाः कथाः निबन्धाश्च लिखित्वा पारिवारिकपत्रिकासु भारती-साधना-तत्वबोधिनीषु मुद्रयति स्म।

हिंदी अनुवाद – रवीन्द्र की साहित्यिक रचना में (उनकी) स्वाभाविक, नयी-नयी उन्मेषशालिता (विकास) तो प्रधान कारण थी ही, परन्तु वहाँ की पारिवारिक परिस्थिति भी विशिष्ट कारण थी। यथा-घर में प्रतिदिन साहित्यिक वातावरण, कला साधना की गतिविधियाँ, नाटकों का मंचन, संगीत की गोष्ठियाँ, चित्रकलाओं के प्रदर्शन, देश सेवा कार्य सदा ही होते थे। किशोरावस्था में ही रवीन्द्र ने अनेक कथाएँ और निबन्ध लिखकर पारिवारिक पत्रिकाओं – भारती, साधना और तत्त्व बोधिनी में छपवाये।

तेन च शैशवसंगीतम्, सान्ध्यसंगीतम्, प्रभातसंगीतम्, नाटकेषु रुद्रचण्डम्, वाल्मीकिप्रतिभागीतिनाट्यम्, विसर्जनम्, राजर्षिः चोखेरवाली, चित्राङ्गदा, कौड़ी ओकमलः, गीताञ्जलिः इत्यादयो बहवः ग्रन्थाः विरचिताः। गीताञ्जलिः वैदेशिकैः नोबुलपुरस्कारेण पुरस्कृतश्च। एवं बहूनि प्रशस्तानि पुस्तकानि बङ्गसाहित्याय प्रदत्तानि। कवीन्द्ररवीन्द्रस्य प्रतिभा कथासु, कवितासु, नाटकेषु, उपन्यासेषु, निवन्धेषु समानरूपेण उत्कृष्टा दृश्यते। सत्यमेव गीताञ्जलिः चित्राङ्गदा कलादृष्ट्या महाकवेरुभेऽपि रचने वैशिष्ट्यमावहतः।

हिंदी अनुवाद –  उन्होंने ‘शैशव संगीत’, ‘सान्ध्य संगीत’, ‘प्रभात संगीत’, नाटकों में ‘रुद्रचण्ड’, वाल्मीकि प्रतिभा गीति नाट्य’, ‘विसर्जनम्’, ‘राज़र्षि चोखेरवाली’, ‘चित्राङ्गदा’, ‘कोड़ी ओकमल’, ‘गीताञ्जलि’ इत्यादि बहुत-से ग्रन्थ रचे । ‘गीताञ्जलि’ वैदेशिकों द्वारा ‘नोबेल पुरस्कार’ से पुरस्कृत हुई। इस प्रकार बहुत-सी उत्तम कोटि की पुस्तकें बँगला साहित्य के लिए भी दीं। कवीन्द्र रवीन्द्र की प्रतिभा कथाओं, कविताओं, नाटकों, उपन्यासों और निबन्धों में समान रूप से दिखायी देती है। सचमुच ही ‘गीताञ्जलि’ और ‘चित्राङ्गदा’ कला की दृष्टि से महाकवि की दो कृतियाँ विशेषता को वहन करती हैं।

यस्य ब्रिटिशशासकाः अनुसूचितजातीयानां सवर्णहिन्दूजातीयेभ्यः पृथक् निर्वाचनाय प्रयत्नशीलाः आसन्। स्पष्टमुद्देश्यं हिन्दूजातीयानां परस्परं विभाजनमासीत्। बहुविरोधे कृतेऽपि ब्रिटिशशासकाः शातिं न लेभिरे विभाजयितुं च प्रयतमाना एवासन्। तदा महात्मागान्धी हिन्दुजातिष्वैक्यं स्थापयितुं कारागारे आमरणम् अनशनं प्रारभत। गुरुदेवस्य रवीन्द्रनाथस्य चानुमोदनमैच्छत्। यतश्च महात्मागान्धी गुरुदेवस्य रवीन्द्रस्य केवलमादरमेव नाकरोत् अपि तु यथाकालं समीचीनसम्मत्यै मुखमपि ईक्षते स्म।

हिंदी अनुवाद –   ब्रिटिश शासक (अंग्रेज) अनुसूचित जाति और सवर्ण हिन्दू जातियों से अलग चुनाव के लिए प्रयत्नशील थे जिसका स्पष्ट उद्देश्य हिन्दू जाति का आपस में बँटवारा करना था। बहुत विरोध करने पर भी ब्रिटिश शासक शान्त नहीं हुए और बँटवारे के लिए प्रयत्न करते ही रहे। (तब महात्मा गान्धी ने हिन्दू जातियों में एकता स्थापित कराने के लिए जेल में आमरण अनशन शुरू किया और गुरुदेव रवीन्द्रनाथ की स्वीकृति चाहते थे, क्योंकि मुहात्मा गान्धी गुरुदेव रवीन्द्र का केवल आदर ही नहीं करते थे, बल्कि समयानुसार उचित राय के लिए उनका मुख भी देखते थे। 

महात्मा एनं कवीन्द्रं रवीन्द्रं गुरुममन्यत। रवीन्द्रनाथः तन्त्रीपत्रे “भारतस्य एकतायै सामाजिकाखण्डतायै च अमूल्य जीवनस्य बलिदानं सर्वथा समीचीनम्, परं जनाः दारुणायाः विपत्तेः गान्धिनः जीवनमभिरक्षेयुः” इति लिखित्वा प्रत्युदतरत्। रवीन्द्रः आमरणस्य अनशनस्य समर्थनमेव न कृतवानपि तु प्रायोपवेशने प्रारब्धे पुणे कारागारञ्चागतवान्।द्वयधिकत्रिंशदधिकैकोनविंशे शततमे ईस्वीयाब्दे महात्मागान्धी पुणे कारागारेऽवरुद्धः आसीत्।

हिंदी अनुवाद – महात्मा गान्धी कवीन्द्र रवीन्द्र को गुरु भी मानते थे। रवीन्द्रनाथ ने तार पत्र पर “भारत की एकता और सामाजिक अखण्डता के लिए अमूल्य जीवन का बलिदान सर्वथा उचित है, लेकिन लोगों को कठिन विपत्ति से गान्धी के जीवन की रक्षा करनी चाहिए” ऐसा लिखकर जवाब दिया था। रवीन्द्र ने केवल आमरण अनशन का समर्थन ही नहीं किया, बल्कि आमरण अनशन शुरू हो जाने पर पुणे के जेल में भी आये। सन् 1932 ई० में महात्मा गान्धी पुणे जेल में बन्द थे।


एवं बहुवर्णिकं, गरिमामण्डितं, साहित्यिकं, सामाजिकं, दार्शनिकं, लोकतान्त्रिकं जीवनं तस्य काव्यमिव मनोहारि सर्वेभ्यः कल्याणकारि प्रेरणादायि चाभूत्। एकचत्वारिंशदधिकैकोनविंशे शततमे ईस्वीयाब्देऽगस्तमासस्य सप्तमे दिनांके (7 अगस्त, 1941) रवीन्द्रस्य पार्थिवं शरीरम् वैश्वानरम् प्राविशत्। अद्यापि गुरुदेवस्य रवीन्द्रस्य वाक् काव्यरूपेण अस्माकं समक्षं स्रोतस्विनी इव सततं प्रवहत्येव । अधुनापि करालस्य कालस्य करोऽपि वाचं मूकीकर्तु नाशकत्।

हिंदी अनुवाद –  इस प्रकार बहुरंगी, गौरव से सुशोभित, साहित्यिक, सामाजिक, दार्शनिक, लोकतान्त्रिक उनका जीवन काव्य की तरह मनोहर, सबके लिए कल्याणकारी और प्रेरणा देनेवाला था। सन् 1941 ई० के अगस्त 16 की सात तारीख (7 अगस्त, सन् 1941 ई०) को रवीन्द्र का पार्थिव शरीर अग्नि में प्रविष्ट हो गया। आज भी गुरुदेव रवीन्द्र की वाणी काव्य के रूप में हमारे सम्मुख नदी की तरह निरन्तर बहती ही रहती है। इस समय भी भयंकर काल का हाथ भी वाणी को मौन नहीं कर सका।

जयन्ति ते सुकृतिनो रससिद्धाः कवीश्वराः।

नास्ति येषां यशः काये जरामरणजं भयम्।।

हिंदी अनुवाद – ‘वे उत्तम रचना करनेवाले, रससिद्ध कवीश्वर सबसे उत्तम हैं, जिनके यश रूपी शरीर को वृद्धावस्था तथा मृत्यु का भय नहीं होता।’

विश्वकविः रवीन्द्रः[ पाठ का सारांश ]

प्रसिद्ध महाकवि – श्री रवीन्द्रनाथ अंग्रेजी साहित्य में शेक्सपीयर के समान, संस्कृत साहित्य में कविकुलगुरु कालिदास के समान, हिन्दी-साहित्य में तुलसीदास के समान व बंगला-साहित्य के प्रसिद्ध महाकवि थे। उनका नाम आधुनिक भारतीय कलाकारों में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। वे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में ही नहीं, वरन् रचनात्मक साहित्यकार के रूप में भी विख्यात हैं।

वैभव में जन्म – रवीन्द्रनाथ का जन्म कलकत्ता (कोलकाता) नगर में 7 मई, 1861 ई0 को एक सम्पन्न परिवार में हुआ। उनके पास विपुल अचल सम्पत्ति थी। उनका जीवन नौकर-चाकरों की देख-रेख में बीता। खेल और स्वच्छन्द विहार का समय न मिलने से उनका मन उदास रहता था।

शिक्षा – रवीन्द्र की प्रारम्भिक शिक्षा घर में ही हुई। वे घर पर गणित, विज्ञान और संस्कृत पढ़ते थे। इसके बाद उन्होंने कलकत्ता (कोलकाता) के ओरियण्टल सेमिनार स्कूल और नॉर्मल स्कूल में प्रवेश लिया, लेकिन वहाँ अध्यापकों के स्वेच्छाचरण और सहपाठियों की हीन मनोवृत्तियों और अप्रिय स्वभाव को देखकर उनका मन नहीं लगा। सन् 1873 में पिता देवेन्द्रनाथ अपने साथ हिमालय पर ले गये। वहाँ भवन के पीछे हिमाच्छादित पर्वत श्रेणियों और सामने हरे- भरे खेतों को देखकर उनका मन प्रसन्न हो गया। पिता देवेन्द्रनाथ उन्हें प्रतिदिन नवीन शैली में पढ़ाते थे। कुछ समय बाद हिमालय से लौटकर विद्यालय में शिक्षा प्राप्त की। साहित्यिक प्रतिभा के धनी – रवीन्द्रनाथ में साहित्य रचना की स्वाभाविक प्रतिभा थी। उनके परिवार में घर पर प्रतिदिन गोष्ठियाँ, चित्रकला की • प्रदर्शनी, नाटक-अभिनय और देश-सेवा के कार्य होते रहते थे। उन्होंने अनेक कथाएँ और निबन्ध लिखकर उनको भारती, साधना, तत्त्वबोधिनी आदि पारिवारिक पत्रिकाओं में प्रकाशित कराया।

रचनाएँ – उन्होंने शैशव संगीत, प्रभात संगीत, सान्ध्य संगीत (नीति काव्य) नाटकों में रुद्रचण्ड, वाल्मीकि प्रतिभा (गीतिनाट्य), विसर्जन, राजर्षि, चोखेरवाली, चित्राङ्गदा, कौड़ी ओकमल, गीताञ्जलि आदि अनेक रचनाएँ कीं। उनकी प्रतिभा कथा, कविता, नाटक, उपन्यास, निबन्ध आदि में समान रूप से उत्कृष्ट थी। गीताञ्जलि पर इन्हें ‘नोबेल’ पुरस्कार प्राप्त हुआ था।

 

               विश्वकविः रवीन्द्रः (बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर) 

नोट : प्रश्न-संख्या 1 एवं 2 गद्यांश पर आधारित प्रश्न हैं। गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और उत्तर का चयन करें। .

रवीन्द्रनाथस्य जन्म कलिकातानगरे एकषष्ट्यधिकाष्टादशशततमे ख्रिष्टाब्दे मईमासस्य सप्तमे दिवसे (7 मई, 1861) अभवत्। अस्य जनकः देवेन्द्रनाथः, जननी शारदा देवी चास्ताम्। रवीन्द्रस्य जन्म एकस्मिन् सम्भ्रान्ते समृद्धे ब्राह्मणपरिवारे जातम्। यस्य सविधे अचला विशाला सम्पत्तिरासीत्। अतो भृत्यबहुलं भृत्यैः परिपुष्टं संरक्षितं जीवनं वन्दिपूर्णमन्वभवत्। अतः स्वच्छन्दविचरणाय, क्रीडनाय सुलभोऽवकाशः नासीत्तेन मनः खिन्नमेवास्त।

1. उक्त गद्यांश का शीर्षक है-

(क) आदिशङ्कराचार्यः

(ख) मदनमोहन मालवीयः

(ग) विश्वकविः रवीन्द्रः

(घ) दीनबन्धुः ज्योतिबाफुले

उत्तर-(ग) विश्वकविः रवीन्द्रः

2. रवीन्द्रनाथस्य जन्म कस्मिन् नगरे अभवत् ?

(क) चेन्नईनगरे

(ख) बेंग्लूरुनगरे

(ग) कलिकातानगरे

(घ) मुम्बईनगरे

उत्तर-(ग) कलिकातानगरे

3. रवीन्द्रनाथस्य जनकः कः आसीत् ?

(क) देवेन्द्रनाथः

(ख) सत्येन्द्रनाथः

(ग) यतीन्द्रनाथः

(घ) महेन्द्रनाथः

उत्तर- (क) देवेन्द्रनाथः

4. रवीन्द्रनाथस्य जननी का आसीत् ?

(क) सरस्वती देवी

(ख) सुशीला देवी

(ग) शारदा देवी

(घ) सुभद्रा देवी

उत्तर- (ग) शारदा देवी

5. रवीन्द्रनाथस्य कस्मै रचनायै वैदेशिकैः नोबुलपुरस्कारेण पुरस्कृतः ?

(क) चित्राङ्गदा

(ख) सान्ध्यसंगीतम्

(ग) प्रभातसंगीतम्

(घ) गीताञ्जलिः

उत्तर-(घ) गीताञ्जलिः

6. रवीन्द्रनाथ प्राथमिकी शिक्षा कुत्र जाता?

(क) विद्यालये

(ख) गृहे

(ग) शान्तिनिकेतने

(घ) न किमपि

उत्तर-(ख) गृहे

7. रवीन्द्रस्य शिक्षणं कस्मिन् भाषायां प्रारभत ?

(क) वङ्गभाषायां

(ख) आंग्लभाषायां

(ग) हिन्दीभाषायां

(घ) उर्दूभाषायां

उत्तर- (क) वङ्गभाषायां

8. रवीन्द्रः संस्कृतसाहित्ये कः इव अस्ति?

(क) माघः इव

(ख) बाणभट्टः इव

(ग) कालिदासः इव

(घ) भासः इव

उत्तर-(ग) कालिदासः इव

9. ‘गीताञ्जलि’ कस्य रचना अस्ति?

(क) व्यासस्य

(ख) रवीन्द्रस्य

(ग) विवेकानन्दस्य

(घ) देवेन्द्रनाथस्य

उत्तर-(ख) रवीन्द्रस्य

10. रवीन्द्रस्य सङ्गीतशैली केन नाम्ना ख्यातिं लभते ?

(क) बाङ्गलासङ्गीतम्

(ख) भारतीयसङ्गीतम्

(ग) बौद्धसङ्गीतम्

(घ) रवीन्द्रसङ्गीतम्

उत्तर-(घ) रवीन्द्रसङ्गीतम्

11. रवीन्द्रः आङ्गलवाङ्मये कः इव अस्ति?

(क) शेक्सपियर इव

(ख) मैक्स इव

(ग) क्रीड्स इव

(घ) अब्राहम इव

उत्तर- (क) शेक्सपियर इव

12. देवेन्द्रनाथः कं स्वेन सार्धं हिमालयम् अनयत् ?

(क) रवीन्द्रम्

(ख) सत्येन्द्रनाथम्

(ग) सोमनाथम्

(घ) रघुनाथम्

उत्तर- (क) रवीन्द्रम्

 

error: Content is protected !!