UP Board Class 10 Sanskrit Solution Chpater- 8 मदनमोहन मालवीय – Madanmohan Malviya (संस्कृत गद्य भारती)

UP Board Solutions of Class 10 Sanskrit Solution Chpater- 8 मदनमोहन मालवीय – Madanmohan Malviya (संस्कृत गद्य भारती)

Dear Students! यहाँ पर हम आपको कक्षा 10 संस्कृत – UP Board Solution of Class 10 Sanskrit Chapter -8, मदनमोहन मालवीय (sanksrit Bhashaya gauravam)   गद्य – भारती  in Hindi translation – हाईस्कूल परीक्षा हेतु  उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद् द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम।

Class 10 Sanskrit Chapter

Subject / विषयसंस्कृत (Sanskrit)
Class / कक्षा10th
Chapter( Lesson) / पाठChpter -8
Topic / टॉपिकमदनमोहन मालवीय
Chapter NameMadanmohan Malviya
All Chapters/ सम्पूर्ण पाठ्यक्रमकम्पलीट संस्कृत बुक सलूशन

 

गौरं कान्तिमयं वपुः, धवलं परिधानं, गले लम्बितमुत्तरीयं, शिरसि धवलोष्णीषम्, ललाटे कुङ्कुमगर्भित- धवलचन्दनतिलकं, धवले चोपानहौ एतत्सर्वं मदनमोहन मालवीयस्य भारतीयचारित्र्यं हृदयस्य च विमलत्वं निदर्शयन्ति स्म। वस्तुतस्तु, भारतीय संस्कृतिस्तस्मिन् रूपायिता जाता।

शब्दार्थ – वपुः -शरीर। धवलं -सफेद। परिधानम् -वस्त्र, कपड़े। उत्तरीयं -दुपट्टा । धवलोष्णीषम् – सफेद पगड़ी। निदर्शयन्ति स्म -दिखलाते थे। रूपायिता -साकार ।

सन्दर्भ – प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत गद्य भारती’ के ‘ मदनमोहन मालवीयः ‘ नामक पाठ से लिया गया है।

हिन्दी  अनुवाद गोरा कान्तिमय शरीर, सफेद वस्त्र, गले में लटकता हुआ दुपट्टा, सिर पर सफेद पगड़ी, माथे पर कुंकुम से युक्त सफेद चन्दन का तिलक, सफेद जूते, ये सभी मदन मोहन मालवीय के भारतीय चरित्र एवं हृदय को पवित्रता को प्रकट करते थे। वास्तव में भारतीय संस्कृति उनमें साकार हो गयी थी।

पण्डितमदनमोहनमालवीयस्य जन्म एकषष्टयुत्तराष्टादशशततमे ख्रिष्टाब्दे दिसम्बरमासस्य पञ्चविंशति दिनाङ्के (25- 12-1861) तीर्थराज प्रयागे एकस्मिन् ब्राह्मणकुलेऽभवत्। अस्य जनकः पण्डितव्रजनाथचतुर्वेदः संस्कृतभाषायाः विश्रुतो विद्वानासीत्। निर्धनोऽपि धर्मकर्मणि सततरतोऽयं विद्वान् समाजे समादृत आसीत्। एतस्य पूर्वजा मालवदेशादागत्योत्तरभारते न्यवसन्नतस्ते ‘मालवीय’ इति पदेन सम्बोध्या अभवन्।

शब्दार्थविश्रुतः -प्रसिद्ध। सततरतः -सदा लगे हुए। सम्बोध्या अभवन् -पुकारे गये।

हिन्दी  अनुवाद – पण्डित मदनमोहन मालवीय का जन्म 25 दिसम्बर, सन् 1861 ई० में तीर्थराज प्रयाग में एक ब्राह्मण कुल में हुआ था। इनके पिता पण्डित ब्रजनाथ चतुर्वेदी संस्कृत भाषा के प्रसिद्ध विद्वान् थे। गरीब होने पर भी धर्म के कार्य में सदा लगे रहनेवाले ये समाज में प्रतिष्ठित थे। इनके पूर्वज मालवा देश से आकर उत्तर भारत में बस गये, इसलिए वे मालवीय पद से सम्बोधित हुए।

मदनमोहनमालवीयस्य प्रारम्भिकी शिक्षा प्रयागे एवैकस्यां संस्कृतपाठशालायां जाता। संस्कृताध्ययनेन बाल्य एव तस्य मनसि भारतीयादर्शचरितानां कृते भारतीयसंस्कृतेश्च कृते बह्वादरः समजायत। स्मृतिपुराणमहाभारत-भागवतादिभारतीयग्रन्थानामनुशीलनेन भारतदेशं प्रति तस्य हृदि श्रद्धा समुत्पन्ना । दुःखतप्तानां प्राणिनामर्तिनाशनं स कामयते स्म। अतः बाल्यकाले एव तस्य हृदि देशभक्तेः मानवसेवायाः मानवजीवनस्याभ्युदयस्य बीजान्युप्तानि जातानि यानि काले विकसितभूतानि फलितानि।

शब्दार्थ – समजायत – उत्पन्न हो गया था। आर्तिनाशनम् – दुःख दूर करना। कामयते स्म- चाहते थे।

उदतरत् – उत्तीर्ण की। अर्थकार्श्वम्- निर्धनता। उपावेशयत् – बैठा दिया।

हिन्दी  अनुवाद – मदनमोहन मालवीय जी की प्रारम्भिक शिक्षा प्रयाग में ही एक संस्कृत पाठशाला में हुई। संस्कृत के अध्ययन से बचपन में ही उनके मन में भारत के आदर्श चरित्रों के लिए और भारतीय संस्कृति के लिए बहुत आदर उत्पन्न हो गया था। स्मृति, पुराण, महाभारत, भागवत आदि ग्रन्थों के अध्ययन से भारत देश के प्रति उनके हृदय में श्रद्धा उत्पन्न हो गयी। वे दुःख से पीड़ित प्राणियों का दुःख-नाश करना चाहते थे; अतः बचपन में ही उनके हृदय में देश-भक्ति, मानव-सेवा और मानव जीवन की उन्नति के बीज उग गये थे, जो समय आने पर विकसित और फलित हो गये।

कालान्तरे सः प्रयागे प्रथमसंस्थापिते राजकीय हाईस्कूल नाम्नि विद्यालये पठन् ‘इन्ट्रेन्स’ परीक्षामुदतरत्। ततः म्योर सेन्ट्रल कालेजेऽधीयानः बी० ए० परीक्षायाः पारं गतः। अग्रे पठितुमिच्छन्तमप्यर्थकार्यं तमबाधत। कर्त्तव्यसंघाते किं पूर्वं करणीयमिति विशिष्टकर्त्तव्यनिर्धारणमेव विवेकशालिनां वैशिष्ट्यम्। अतः जीवननिर्वाहार्थं तेनाध्यापनवृत्तिः स्वीकृता ।

हिन्दी  अनुवाद – कुछ समय बाद उन्होंने प्रयाग में सबसे पहले स्थापित राजकीय हाईस्कूल नाम के विद्यालय में पढ़ते हुए इण्ट्रेन्स परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद म्योर सेण्ट्रल कालेज में पढ़ते हुए बी० ए० की परीक्षा पास की। आगे पढ़ना चाहते हुए भी उन्हें आर्थिक कमजोरी ने बाधा डाली। कर्तव्यों के समूह में पहले क्या करना है’ यह विशेष कर्त्तव्य का निश्चय करना ही विवेकशील पुरुषों की विशेषता है; अत: जीवन निर्वाह के लिए उन्होंने अध्यापन की जीविका स्वीकार की।

तदैव कलिकातानगरे अखिलभारतीयकांग्रेसदलस्य अधिवेशनमभूत्। मालवीयमहोदयस्तत्र गतः। व्यवस्थापिकासभावीषयमवलम्ब्यातीव गम्भीरं विचारपूर्ण भाषणं चाकरोत्। पञ्चविंशतिवर्षीयस्य यूनः मालवीयस्य मनोहारिण्या शैल्या विशदविचारान् संसृत्य नेतार इतरे चोपस्थिता जनाः देशसेवकाश्च चकिता अभवन्। एकेनैव भाषाणेनासौ राष्ट्रञ्चस्थानां नेतृणां पड्क्तौ स्वमुपावेशयत्। तस्याध्ययनस्य तस्य सदाशयतादिगुणानां तस्य च विनयस्येदं प्रतिफलमासीत्। तत्रैव प्रतापगढस्थकालाकाँकरस्य देशभक्तो राजारामपालसिंहस्तस्य वैशिष्ट्येनाकृष्टः ‘हिन्दुस्तान’ दैनिकपत्रस्य सम्पादनायानुरोधं कृतवान्।

हिन्दी  अनुवाद- तभी कलकत्ता नगर में अखिल भारतीय कांग्रेस दल का अधिवेशन हुआ। मालवीय जी वहाँ गये। व्यवस्थापिका सभा के विषय को लेकर अत्यन्त गम्भीर और विचारपूर्ण भाषण किया। पचीस वर्षीय युवा मालवीय जी की मनोहर शैली में विशद विचारों को सुनकर नेता और दूसरे उपस्थित लोग और देपासेयक चकित हो गये। एक ही भाषण से उन्होंने राष्ट्रीय मंच पर बैठनेवाले नेताओं की श्रेणी में अपने को ला दिया। उनके अध्ययन का, उनकी सदाशयता आदि गुणों का और उनके विनय का यह परिणाम था। वहीं पर प्रतापगढ़ के कालाकाँकर के देशभक्त राजा रामपाल सिंह ने उनकी विशेषता से आकृष्ट होकर ‘हिन्दुस्तान’ दैनिक पत्र दे सम्पादन के लिए अनुरोध किया।

‘हिन्दुस्तान’ पत्रस्य सम्पादनं कुर्वता मालवीयमहोदयेन तदानीम् आङ्गलशासकैराक्रान्ते देशे चाङ्गलभाषायाऽऽक्रान्तायां शिक्षायां राष्ट्रियभावस्य हिन्दी-भाषायाश्च दृढतया प्रचारः कृतः। हिन्दुस्तानपत्रमतिरिच्येतरेषामनेकपत्राणामपि सम्पादनं तेन कृतम् परं सर्वत्र राष्ट्रसेवा हिन्दी भाषासेवा च तस्य मुख्यलक्ष्ये आस्ताम्। न्यायालयेषु हिन्दीभाषायाः प्रयोगनिर्णये मालवीयमहोदयस्य विशिष्टमवदानं विद्यते ।

शब्दार्थ – तदानीम् – उस समय। अतिरिच्य – अतिरिक्त या छोड़कर। अवदानम् – योगदान । युक्तियुक्ताः – युक्तियों से युक्त (पूर्ण)। प्रशंसन्ति स्म प्रशंसा करते थे। न दैन्यम् न पलायनम् न दीनता (और) न भागना। जीवनसूत्रम् – जीवन का मुख्य उद्देश्य। नारमत- नहीं रमा, नहीं लगा। अनुसृत्य अनुसरण करके, मानकर। अधिवक्तृकर्म – वकालत का काम। अहोभिः- दिनों में। अवाप- प्राप्त किया। मृषावादान् = झूठे मुकदमे । संतिष्ठते- ठहरा है या स्थिर है।

हिन्दी  अनुवाद– ‘हिन्दुस्तान’ पत्र का सम्पादन करते हुए मालवीय जी ने उस समय के आँग्ल (अंग्रेज) शासकों द्वारा आक्रान्त देश और आँग्ल (अंग्रेजी) भाषा द्वारा आक्रान्त शिक्षा में राष्ट्रीय भाव और हिन्दी भाषा का दृढ़ता से प्रचार किया। ‘हिन्दुस्तान’ पत्र के अतिरिक्त दूसरे अनेक पंत्रों का भी सम्पादन उन्होंने किया, किन्तु सब जगह राष्ट्र-सेवा और हिन्दी-सेवा उनके मुख्य लक्ष्य रहे। न्यायालयों में हिन्दी भाषा के प्रयोग के निर्णय में मालवीय जी का विशिष्ट योगदान है।

पत्राणां सम्पादनावसरे प्रकटिता अस्य विचाराः सुस्पष्टा, गम्भीरा, युक्तियुक्ताश्चाभवन्। अतः विरोधिनोऽपि तं प्रशंसन्ति स्म। आङ्ग्लशासनस्यालोचनां कुर्वन् मालवीयमहोदयो न भयमनुभूतवान् नाऽपि संकोचं कृतवान्। न दैन्यं, न पलायनमिति तस्य जीवनसूत्रमासीत्। पत्रसम्पादनकर्मणि तस्य मनो नारमत। गुरुजनानां परामर्शमनुसृत्यासौ एल-एल०बी० कक्षायां पठितुमारब्धवान् स-सम्मानं च तां परीक्षामुदतरत्। एल-एल० बी० पदव्या विभूषितः सन् प्रयागस्थोच्चन्यायालये अधिवक्तृकर्म कर्तुं प्रारभत। स्वल्यैरेवाहोभिः न्यायालये न्यायक्षेत्रे च परां ख्यातिमवाप । मृषावादानसौ न स्वीकरोति स्म, अतः सत्यं प्रति तस्य दृढो विश्वासः अधिवक्तृकर्मनिरतानां कृतेऽद्यापि आदर्शभूतः संतिष्ठते।

हिन्दी  अनुवाद – पत्रों के सम्पादन के अवसर पर प्रकट हुए उनके विचार भली प्रकार स्पष्ट और युक्तिसंगत होते थे। इसलिए विरोधी भी उनकी प्रशंसा करते थे। अंग्रेजी शासन की आलोचना करते हुए मालवीय जी ने न तो भय का अनुभव किया और न संकोच (ही) किया। दीनता न दिखाना, कर्त्तव्य पथ से न भागना, उनके जीवन के उद्देश्य थे। पत्र सम्पादन कार्य में उनका मन नहीं लगता था। (अतः अपने से) बड़े लोगों के परामर्श को मानकर उन्होंने एल-एल० बी० की परीक्षा सम्मानपूर्वक उत्तीर्ण की। एल-एल० बी० पदवी से विभूषित होते (ही). प्रयोग के उच्च न्यायालय में वकालत का काम प्रारंभ कर दिया। थोड़े ही दिनों में न्यायालय और न्यायक्षेत्र में अत्यन्त ख्याति प्राप्त कर ली। वे झूठे मुकदमों को स्वीकार नहीं करते थे। इसलिए सत्य के प्रति उनका दृढ़ विश्वास वकालत करनेवालों के सम्मुख आज भी आदर्श रूप में स्थित है।

मदनमोहनमालवीयोऽध्यापकोऽभवत्, पत्रकारकर्म चानुष्ठितवान् परं सः सन्तुष्टिं शान्तिं च नालभत। देशस्य पारतन्त्र्येण तस्य मनः भृशमदूयत। कथं वा देशः पारतन्त्र्यशृङ्खलामुच्छिद्य स्वतन्त्रो भविष्यतीति चिन्ताचिन्तितः सन् मालवीयः अखिलभारतीयकांग्रेसदलमाध्यमेन पृथग्रूपेण मातृभूमेः मुक्तिकर्मणि संलग्नो जातः। स्वकार्येण स्वविचारेण चासौ कांग्रेसदलस्य त्रिवारं सभापतिपदमलङ्कृतवान्। हिमगिरिमिव तस्योत्तुङ्ग मनो दृष्ट्वा महात्मा गान्धी तं ‘महामना’ इत्यवोचत्। एकत्रिंशदुत्तरैकोनविंशतिशततमे वर्षे (1931) आङ्ग्लशासकैः सह सन्धिवार्ता कर्तुं महात्मना गान्धिना सह अयमपि इंग्लैण्ड-देशं जगाम। आङ्ग्लभाषायां व्यक्तान् तस्य विचारान् संश्रुत्य इंगलैण्डवासिनः अपि मुग्धा अभवन्।

शब्दार्थ – पारतन्त्र्येण – परतन्त्रता से। भृशमदूयतं अत्यन्त दुःखी हुआ। श्रृंखलामुच्छिद्य जंजीर को काटकर । सन्धिवार्ताम् – समझौते की बात को ।

हिन्दी  अनुवाद– मदनमोहन मालवीय अध्यापक हुए और उन्होंने पत्रकार कर्म किया, किन्तु उन्होंने सन्तोष और शान्ति प्राप्त न की। देश की परतन्त्रता से उनका हृदय अत्यन्त दुःखी हुआ। देश परतन्त्रता की, जंजीरों को काटकर किस प्रकार स्वतन्त्र होगा? इसी चिन्ता से चिन्तित रहते हुए मालवीय जी ‘अखिल भारतीय कांग्रेस दल’ के माध्यम से अलग रूप में मातृभूमि के मुक्ति कर्म में संलग्न हो गये। अपने कार्य और अपने विचार से उन्होंने तीन बार कांग्रेस के सभापति पद को सुशोभित किया। उनके हिमालय पर्वत–जैसे ऊँचे मन को देखकर महात्मा गान्धी ने उन्हें ‘महामना’ कहा। सन् 1931 ई० में अंग्रेज शासकों से समझौता वार्ता करने के लिए महात्मा गान्धी के साथ ये भी इंग्लैण्ड गये थे। उनके अंग्रेजी भाषा में व्यक्त किये गये विचारों को सुनकर इंग्लैण्ड देशवासी भी मुग्ध हो गये।

राष्ट्रसेवाकर्मणि निरतोऽपि महामना मालवीयोऽन्येष्वपि रचनात्मककर्मसु प्रवृत्त आसीत्। प्रयागे जनान् धनं याचित्वा मैक्डॉनलहिन्दूछात्रावासस्य निर्माणमसौ अकारयत् । तस्यैवोद्योगेन प्रयागस्य प्रख्यातस्य मिण्टोपार्क इत्यस्यापि निर्माणं जातम्। समग्रे च देशे शिक्षायाः ह्रासदशामवलोक्याशिक्षैवास्माकं पारतन्त्र्यस्य हेतुरिति सोऽमन्यत। अतो देशस्योन्नत्यै क्रियमाणैरन्यैरुद्योगैः सह शिक्षायाः विकासायापि प्रयत्नो विधेय इति तस्य दृढा मतिरासीत्। सततं चिन्तयन् सः काशीहिन्दूविश्वविद्यालयस्य संस्थापनायाः संकल्पं हृदि निदधौ।

शब्दार्थनिरतः = लगा हुआ। क्रियमाणैः = किये जाते हुए। निदधौ रख लिया। संवृत्तम् = हुआ। द्योतकं = सूचक । नाह्लादते आनन्दित नहीं होता। इयति – इतने ।

हिन्दी  अनुवाद – राष्ट्र-सेवा के कार्यों में लगे हुए महामना मालवीय जी दूसरे रचनात्मक कार्यों में भी संलग्न थे। प्रयाग में लोगों से धन माँगकर उन्होंने मैक्डानल हिन्दू छात्रावास का निर्माण कराया। उन्हीं के प्रयास से प्रयाग के प्रसिद्ध मिण्टो पार्क का निर्माण भी हुआ। सम्पूर्ण देश में शिक्षा की हीन दशा को देखकर वे मानते थे कि अशिक्षा ही हमारी परतन्त्रता का कारण है। इसलिए देश की उन्नति के लिए किये जानेवाले अन्य उद्योगों के साथ शिक्षा के विकास के लिए भी प्रयत्न करना चाहिए, यह उनका दृढ़ विचार था। निरन्तर चिन्तन करते हुए उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना का संकल्प अपने मन में रख लिया।

षोडशोत्तरैकोनविंशतिशततमे वर्षे (1916) वसन्तपञ्चमीपर्वदिने काश्यां पुण्यसलिलायाः गङ्गायास्तटे लोकोत्तरमिदं कार्य संवृत्तम्। भिक्षावृत्त्या जनान्, श्रेष्ठिनो, राज्ञो, महाराजान्, वैदेशिकशासनमपि धनं याचित्वा विश्वविद्यालयस्य संस्थापनं तस्यापूर्वमनोबलस्य संकल्पदृढतायाश्च द्योतकं वर्तते। पञ्चक्रोशपरिमिते क्षेत्रेऽभिव्याप्ते विश्वविद्यालयपरिसरे निर्मितानि विविधविद्या-महाविद्यालयभवनानि दृष्ट्वा कस्य वा भारतीयस्य मनो नाऽह्लादते को वा वैदेशिको विस्मितो न जायते। इयति विस्तृत भूखण्डे कस्यचिदपि विश्वविद्यालयस्य जगति स्थितिः न श्रूयते।

हिन्दी  अनुवाद- सन् 1916 ई० में वसन्त पंचमी के पर्व के दिन काशी में पवित्र जलवाली गंगा के तट पर यह अलौकिक कार्य प्रारम्भ हुआ। भिक्षावृत्ति से लोगों, • सेठों, राजा-महाराजाओं और विदेशी शासन से भी धन माँग-माँगकर विश्वविद्यालय की स्थापना करना उनके अपूर्व मनोबल और दृढ़ संकल्प का सूचक है। पाँच कोस में फैले हुए क्षेत्र में समाये हुए विश्वविद्यालय के परिसर में बने हुए अनेक प्रकार की विद्याओं के महाविद्यालय के भवनों को देखकर किस भारतीय का मन आनन्दित नहीं होता होगा और कौन विदेशी चकित नहीं हो जाता होगा? इतने विस्तृत ‘भूखण्ड में किसी भी विश्वविद्यालय की स्थिति संसार में नहीं सुनी जाती ।

अस्मिन् विश्वविद्यालयेऽध्ययनरताश्छात्राः वैदेशिकभाषा-विज्ञान-कला-कौशलप्रभृतिविषयेषु निष्णाताः सन्तः भारतीयां संस्कृतिं धर्मदर्शनमितिहासं च न विस्मरेयुरिति तस्य प्रयासोऽभूत्। अतोऽध्यापनावसरे भारतीयाचारान् स छात्रानशिक्षयत्। विभिन्नपर्वावसरेषु च भारतस्य प्राणभूतभागवतमहापुराणस्य कथां सुललितभाषया मधुरेण च स्वरेण छात्रान् प्राध्यापकांश्चाश्रावयत्। विविधविषयज्ञानसम्पादनसममेव छात्राः भारतीयाचारविचारेण च परिचितास्तिष्ठेयुरिति तस्य लक्ष्यमासीत्। स भारतीयस्वातन्त्र्यमपि भारतीयतामधिकृत्यैव भवेदिति कामयते स्म। सः पूर्णभारतीय आसीत्।

शब्दार्थ – निष्णाता – पूर्ण स्नान किये हुए, पूर्ण विद्वान् । विस्मरेयुः भूल जायँ। सुललित भाषया = बहुत सुन्दर मधुर भाषा में। परिचिताः जानकार। अधिकृत्य = अधिकार करके, पाकर।

हिन्दी  अनुवाद – इस विश्वविद्यालय में अध्ययनरत छात्र विदेशी भाषा, विज्ञान, कला-कौशल आदि विषयों में पूर्ण ज्ञाता होते हुए भी भारतीय संस्कृति, धर्म, दर्शन और इतिहास को न भूलें- ऐसा उनका प्रयास था। इसलिए अध्यापन के अवसर पर वे छात्रों को भारतीय आचारों की शिक्षा देते थे। विभिन्न पर्वों के अवसरों पर वे भारत की प्राणभूत भागवत महापुराण की कथा अति सुन्दर भाषा में मधुर स्वर में छात्रों और अध्यापकों को सुनाते थे। विविध विषयों का ज्ञान प्राप्त करने के साथ-साथ ही छात्र भारतीय आचार-विचारों से भी परिचित रहें – यही उनका लक्ष्य था। भारतीय स्वतन्त्रता भी भारतीयता को पाकर ही हो- यह उनकी कामना थी। वे पूर्ण रूप से भारतीय थे।

विश्वविद्यालयस्य स कुलपतिपदमपि अलङकृतवान्। कुलपतिपदमलंकुर्वन् स छात्रान् प्रियपुत्रानिवामन्यत। अर्थसंकटे देहसंकटे वा ग्रस्तः कश्चित् छात्र इति ज्ञात्वा तस्य संकटमचिरमसौ पितृवदपानयत् कुलपतिस्तु स पदेनासीत् व्यवहारेण च कुलपिता अभवत्।

शब्दार्थ – अलंकुर्वन् – सुशोभित करते हुए। अचिरम् शीघ्र, तुरन्त । अपानयत् = दूर करते थे।

हिन्दी  अनुवाद – विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद ही उन्होंने कुलपति के पद को सुशोभित किया। कुलपति के पद को सुशोभित करते हुए वे छात्रों को प्रिय पुत्र की तरह मानते थे। वे किसी छात्र को अर्थसंकट या शरीर संकट में पड़ा जानकर उसके कष्ट को शीघ्र ही पिता की तरह दूर करते थे, कुलपति तो वे पद से थे, किन्तु व्यवहार से वे कुलपिता थे।

काशीहिन्दूविश्वविद्यालयस्य विकासाय सततं प्रयत्नरतोऽपि मालवीयमहोदयः देशस्यासहायजनानां महान्तंक्लेशं दर्श दर्श परमः खिन्नो अभवत्। भारतस्याखण्डतायाः तस्यैकत्वस्य च निदर्शनं विश्वविद्यालयरूपेण तेन पुरः कृतम्। तन्निमित्तं तेन गुरुः प्रयासो विहितः। चत्वारिंशदुत्तरैकोनविंशतिशततमे वर्षे (1944) साम्प्रदायिको झञ्झावातः समुत्थितः । देशस्यानेकेषु भागेषु प्रज्वलितः साम्प्रदायिकताग्निः भारतस्य सांस्कृतिकं प्रासादं भस्मसादकरोत्।

शब्दार्थ – निदर्शनं = उदाहरण । पुरः स्थापितः = सामने उपस्थित किया। गुरुः = भारी । विहितः = किया । भस्मसात् अकरोत् = नष्ट कर दिया। विकृतम् = बिगाड़ना । भ्रान्ताः = भटके हुए। हुताः = जल गये। अतर्व्यम् = अकल्पनीय । सोढुम् = सहने के लिए। शाश्वतम् = सदा, चिरन्तन ।

हिन्दी  अनुवाद – काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विकास के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहते हुए मालवीय जी देश के असहाय लोगों के महान् कष्टों को देखते-देखते अत्यन्त दुःखी हो गये। भारत की. अखण्डता और उसकी एकता का उदाहरण विश्वविद्यालय के रूप में उन्होंने सामने रखा। उसके लिए उन्होंने भारी प्रयास किया। 1944 में साम्प्रदायिक आन्दोलन शुरू हो गया। देश के अनेक भागों में जलती हुई साम्प्रदायिक आग ने भारत के सांस्कृतिक महल को जलाकर राख कर दिया।

ब्रिटिशशासनप्रयुक्तकुटिलनयेनोत्थितो झञ्झावातो मालवीयमहोदयस्य मनःस्थित भारतस्य चित्रं विकृतमकरोत्। कुटिलराजनीतिमुग्धा धर्मम्प्रति भ्रान्ताः नेतारो यथा ताण्डवमरचयन् तत्स्मृत्वाऽद्यपि हृदयं प्रकामं प्रकम्पते। सहस्त्रशः प्राणास्तदनलेहुताः। सहस्रशो जना गृहहीनाः जाताः। लक्षाधिकाः शरणार्थिनोऽभवन्। मालवीयमहोदयस्य चित्तमतर्यं तदुःखं सोढुं नाशक्नोत्। विश्वविद्यालयस्थे कुलपतिभवने स प्राणानत्यजत्। मालवीयमहोदयस्य विपुलं यशः विश्वविद्यालयरूपेण जगति शाश्वतं स्थास्यति।

हिन्दी  अनुवाद- ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रयुक्त कुटिल नीति से उत्पन्न आन्दोलन (आँधी) ने मालवीय जी के मन में स्थित भारत के स्वरूप को खराब कर दिया। कुटिल राजनीति से मोहित हुए धर्म के प्रति भ्रान्त (भटके) हुए नेताओं ने जैसा ताण्डव रचाया, उसे याद करके हृदय आज भी अत्यधिक काँप जाता है। उस अग्नि में हजारों प्राण स्वाहा हो गये। हजारों लोगों के घर बर्बाद हो गये। लाखों से अधिक शरणार्थी हो गये। मालवीय जी का चित्त उस कल्पनातीत दुःख को सहन न कर सका। हिन्दू विश्वविद्यालय में स्थित मालवीय जी की अतुलित कीर्ति विश्वविद्यालय के रूप में संसार में सदा स्थित है।

         मदनमोहनमालवीयः [ पाठ का सारांश ]

भारतीय संस्कृति के प्रतीक पण्डित मदनमोहन मालवीय का जन्म 25 दिसम्बर, 1861 ई० को प्रयाग के एक ब्राह्मण कुल में हुआ था। इनके पिता पण्डित ब्रजनाथ चतुर्वेदी संस्कृत के प्रसिद्ध विद्वान् थे। इनके पूर्वज मालवा से आकर यहाँ बस गये थे।

मदनमोहन मालवीय की प्रारम्भिक शिक्षा प्रयाग में एक संस्कृत पाठशाला में हुई थी। बाद में राजकीय हाईस्कूल, इलाहाबाद से इन्होंने हाईस्कूल परीक्षा पास की। म्योर सेन्ट्रल कालेज से बी० ए० पास कर इन्होंने अध्यापन कार्य प्रारम्भ किया। उसी समय ये कांग्रेस अधिवेशन में गये और अपने भाषण से सबको प्रभावित कर लिया। वहीं कालाकांकर के देशभक्त राजा रामपाल सिंह ने इनसे ‘हिन्दुस्तान’ दैनिक पत्र के सम्पादन के लिए आग्रह किया।

इन्होंने ‘हिन्दुस्तान’ पत्र का सम्पादन बड़ी विद्वत्ता एवं लगन से किया और हिन्दी के प्रचार और प्रसार का कार्य तन, मन, धन से किया।

इसके बाद गुरुजनों के परामर्श से इन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से विधि परीक्षा (एल० एल० बी०) उत्तीर्ण कर वहीं उच्च न्यायालय में वकालत करना प्रारम्भ किया, किन्तु महात्मा गाँधी से प्रभावित होकर इन्होंने वकालत छोड़ दिया और देश-सेवा के कार्य में संलग्न हो गये।

अपने अपूर्व कार्य से वे तीन बार कांग्रेस अध्यक्ष निर्वाचित हुए। अपनी विद्वत्ता और देश-सेवा के कारण वे गाँधी जी के साथ सन् 1931 में अंग्रेजों के साथ संधिवार्ता में सम्मिलित होने के लिए इंग्लैण्ड भी गये।

राष्ट्र सेवा करते हुए मालवीय जी ने अनेक रचनात्मक कार्य किया। शिक्षा के विकास के लिए उन्होंने सन् 1916 में काशी विश्वविद्यालय की स्थापना कर एक अद्भुत कार्य किया।

मदनमोहन मालवीयः (MCQ)

नोट : प्रश्न-संख्या 1 एवं 2 गद्यांश पर आधारित प्रश्न हैं। गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और उत्तर का चयन करें।

पण्डितमदनमोहनमालवीयस्य जन्म एकषष्टयुत्तराष्टादशशततमे खिष्टाब्दे दिसम्बरमासस्य पञ्चविंशति दिनाङ्के (25-12-1861) तीर्थराज प्रयागे एकस्मिन् ब्राह्मणकुलेऽभवत्। अस्य जनकः पण्डितव्रजनाथचतुर्वेदः संस्कृतभाषायाः विश्रुतो विद्वानासीत्। निर्धनोऽपि धर्मकर्मणि सततरतोऽयं विद्वान् समाजे समादृत आसीत्। एतस्य पूर्वजा मालवदेशादागत्योत्तरभारते न्यवसन्नतस्ते ‘मालवीय’ इति पदेन सम्बोध्या अभवन्।

1.प्रस्तुत गद्यांशस्य पाठनाम् किम् ?

(क) नैतिकमूल्यानि

(ख) मदनमोहन मालवीयः

(ग) संस्कृतभाषायाः गौरवम्

(घ) लोकमान्यः तिलकः

उत्तर-(ख) मदनमोहन मालवीयः

2- मदनमोहनमालवीयस्य जन्म कदा अभवत् ?

(क) 25 दिसम्बर, 1859

(ख) 25 दिसम्बर, 1860

(ग) 25 दिसम्बर, 1861

(घ) 25 दिसम्बर, 1862

उत्तर-(ग) 25 दिसम्बर, 1861

  1. पण्डितमदनमोहनमालवीयस्य पितुः नाम किम् आसीत् ?

(क) पण्डितदीनानाथचतुर्वेदः

(ख) पण्डितरामनाथचतुर्वेदः

(ग) पण्डितब्रजनाथचतुर्वेदः

(घ) पण्डितस्वामीनाथचतुर्वेदः

उत्तर-(ग) पण्डितब्रजनाथचतुर्वेदः

  1. मदनमोहनमालवीयस्य पूर्वजाः कुतः आगत्य उत्तरभारते न्यवसन् ?

(क) मालवदेशात्

(ख) बङ्गदेशात्

(ग) केरलदेशात्

(घ) कुरुदेशात्

उत्तर-(क) मालवदेशात्

  1. मालवीयः कस्य विश्वविद्यालयस्य स्थापनायाः सङ्कल्पं हृदि निदधौ ?

(क) कानपुरविश्वविद्यालयस्य

(ख) लखनऊविश्वविद्यालयस्य

(ग) इलाहाबादविश्वविद्यालयस्य

(घ) काशीहिन्दूविश्वविद्यालयस्य

उत्तर-(घ) काशीहिन्दूविश्वविद्यालयस्य

  1. काशीहिन्दूविश्वविद्यालयस्य संस्थापना कस्याः नद्याः तटे अभवत् ?

(क) गोदवर्याः

(ख) गङ्गायाः

(ग) कावेर्याः

(घ) यमुनायाः

उत्तर-(ख) गङ्गायाः

  1. मिण्टोपार्क इति उद्यानस्य निर्माणं कुत्र अभवत् ?

(क) काश्याम्

(ख) प्रयागे

(ग) प्रतापगढे

(घ) कौशाम्ब्याम्

उत्तर-(ख) प्रयागे

  1. मालवीयः कुत्राधीयानः बी० ए० इति परीक्षायाः पारं गतः ?

(क) राजकीय हाईस्कूलनाम्नि विद्यालये

(ख) म्योरसेन्ट्रलकॉलेज इति महाविद्यालये

(ग) काशीहिन्दूविश्वविद्यालये

(घ) पुणेविश्वविद्यालये

उत्तर-(ख) म्योरसेन्ट्रलकॉलेज इति महाविद्यालये

  1. मालवीयः काशीहिन्दूविश्वविद्यालयस्य………….. अलङ्कृतवान् ?

(क) अध्यापकपदम्

(ख) कुलपतिपदम्ने

(ग) मार्गदर्शकपदम्

(घ) कुलानुशासकपदम्

उत्तर-(ख) कुलपतिपदम्

  1. पण्डित मदनमोहन मालवीयस्य जन्म कुत्र अभवत् ?

(क) प्रयागनगरे

(ख) काशीनगरे

(ग) मथुरानगरे

(घ) कानपुरनगरे

उत्तर – (क) प्रयागनगरे

  1. पण्डित मदनमोहन मालवीयस्य प्रारम्भिकी शिक्षा कुत्र अभवत् ?

(क) काशीनगरे

(ख) प्रयागनगरे

(ग) कानपुरनगरे

(घ) सहारनपुरनगरे

उत्तर- (ख) प्रयागनगरे

12 . ‘हिन्दुस्तान’ पत्रस्य सम्पादकः कोऽस्ति आ‌ङ्गलशासने?

(क) लोकमान्यतिलकः

(ख) मदनमोहनमालवीयः

(ग) विश्वकविः रवीन्द्रः

(घ) दीनबन्धुः ज्योतिबाफुले

उत्तर- (ख) मदनमोहनमालवीयः

 

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