Class 10th Up Board Sanskrit Chapter 6th Ken Kim Vardhate केन किं वर्धते ? का हिंदी अनुवाद

Class 10th  Sanskrit Chapter 6 Ken Kim Vardhate (केन किं वर्धते ?)

Class 10th Up Board Sanskrit Chapter 6th Ken Kim Vardhate केन किं वर्धते ? का हिंदी अनुवाद: संस्कृत हिंदी पाठ्य-पुस्तक Class 10th  Anivarya Sanskrit  के प्रथम पाठ Chapter 6th Ken Kim Vardhate /केन किं वर्धते ?  के Chapter 6 के आधार पर पाठ 6 का संस्कृत से हिंदी में अनुवाद सरल भाषा में दिए जा रहे है , यूपी बोर्ड की कक्षा 10 के पाठयक्रम के आधार पर सम्पूर्ण पाठ का अनुवाद दिया जा रहा है , विगत वर्षों में आये हुए प्रश्नों का बेहतरीन संकलन है , सभी विद्यार्थी Sanskrit Chapter Varanasi  का लाभ उठायें|

Class 10th Up Board Sanskrit Chapter 6th Ken Kim Vardhate केन किं वर्धते ? का हिंदी अनुवाद
Up Board Sanskrit Chapter 6th Ken Kim Vardhate केन किं वर्धते ? का हिंदी अनुवाद

आवश्यक बात – इस पाठ का अनुवाद हर वाक्य अलग कर के किया गया है |यदि कोई समस्या हो तो नीचे  दिए गए लिंक पर क्लिक कर के वीडियो के माध्यम से समझें|

 Book Name / पाठ्य पुस्तक का नामScert
Class / कक्षाClass 10th / कक्षा -10
Subject / विषयHindi /हिंदी
Chapter Number /  पाठ संख्याChapter 6 पाठ -6
Name of Chapter / पाठ का नामKen Kim Vardhate /केन किं वर्धते ?
Board Name /  बोर्ड का नामयूपी बोर्ड 10th हिंदी/up board 10th Hindi
 Book Name / पाठ्य पुस्तक का नामNon NCERT / एन सी आर टी
Class / कक्षा

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Class 10th / कक्षा -10

Vedio

       Up  board non NCERT textbook for Class 10 Hindi explanations

                                केन किं वर्धते  (किससे क्या बढ़ता है?)

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य – पुस्तक के ‘ संस्कृत खंड  ‘के  ‘ केन किं वर्धते ? ‘ नामक पाठ से लिया गया है ।

संस्कृत वाक्यहिंदी अनुवाद
सुवचनेन मैत्री ,सुन्दर वचनों से मित्रता (बढ़ती है)
इन्दुदर्शनेन समुद्रः । चन्द्रमा के दर्शन से समुद्र , (बढ़ता है)
शृङ्गारेण रागः , शृंगार से प्रेम
विनयेन गुणः ।विनम्रता से गुण
 दानेन कीर्तिः , दान से यश
उद्यमेन श्रीः । उद्यम/परिश्रम से लक्ष्मी ,
सत्येन धर्मः , सत्य से धर्म ,
पालनेन उद्यानम् । पालन – पोषण करने से उद्यान ,
सदाचारेण विश्वासः ,सदाचार से विश्वास ,
अभ्यासेन विद्या । अभ्यास से विद्या ,
न्यायेन राज्यम् , न्याय से राज्य ,
औचित्येन महत्त्वम् । उचित व्यवहार से महत्त्व ( बड़प्पन )
औदार्येण प्रभुत्वम् , उदारता से प्रभुत्व,
क्षमया तपः । क्षमा से तप ,
लाभेन लोभः । लाभ से लोभ ( लालच )
पूर्ववायुना जलदः , पूर्वी हवा ( पुरवैया ) से वादल ,
पुत्रदर्शनेन हर्षः , पुत्र – दर्शन से हर्ष ,
मित्रदर्शनेन आह्लादः । मित्र – दर्शन से आनन्द
दुर्वचनेन कलहः , बुरे वचनों से कलह ,
तृणैः वैश्वानरः । तिनकों से अग्नि ,
नीचसङ्गेन दुश्शीलता , नीच व्यक्ति की संगति से दुष्टता ,
उपेक्षया रिपुः । उपेक्षा से शत्रु ,
कुटुम्बकलहेन दुःखम् , पारिवारिक कलह से दुःख ,
दुष्टहृदयेन दुर्गतिः । दुष्ट – हृदय से दुर्गति ,
अशौचेन दारिद्र्यम् , अपवित्रता से दरिद्रता
अपथ्येन रोगः । अपथ्य ( परहेज न करने ) से रोग ,
असन्तोषेण तृष्णा , असन्तोष से तृष्णा
व्यसनेन विषयः ।और व्यसन ( बुरी आदत से विषय – वासना बढ़ती है ।)

 

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