Class 10th Sanskrit Chapter 3 Veera Veeren Pujyate
Class 10th Up Board Sanskrit Chapter 9th Jeevan Sutrani जीवन – सूत्राणि ka Hindi Translation: संस्कृत हिंदी पाठ्य-पुस्तक Class 10th Anivarya Sanskrit के प्रथम पाठ Chapter 8th Jeevan Sutrani जीवन – सूत्राणि के Chapter 9 के आधार पर पाठ 9th का संस्कृत से हिंदी में अनुवाद सरल भाषा में दिए जा रहे है , यूपी बोर्ड की कक्षा 10 के पाठयक्रम के आधार पर सम्पूर्ण पाठ का अनुवाद दिया जा रहा है , विगत वर्षों में आये हुए प्रश्नों का बेहतरीन संकलन है , सभी विद्यार्थी Sanskrit Chapter Varanasi का लाभ उठायें|

आवश्यक बात – इस पाठ का अनुवाद हर वाक्य अलग कर के किया गया है |यदि कोई समस्या हो तो नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर के वीडियो के माध्यम से समझें|
Book Name / पाठ्य पुस्तक का नाम | Scert |
Class / कक्षा | Class 10th / कक्षा -10 |
Subject / विषय | Hindi /हिंदी |
Chapter Number / पाठ संख्या | Chapter 9 पाठ -9 |
Name of Chapter / पाठ का नाम | Jeevan Sutrani जीवन – सूत्राणि |
Board Name / बोर्ड का नाम | यूपी बोर्ड 10th हिंदी/up board 10th Hindi |
Book Name / पाठ्य पुस्तक का नाम | Non NCERT / एन सी आर टी |
Class / कक्षा
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Class 10th / कक्षा -10 |
Up board non NCERT textbook for Class 10 Hindi explanations
जीवन – सूत्राणि नवमः पाठः
सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य – पुस्तक के ‘ सस्कृत-भाग ‘ के ‘ जीवन – सूत्राणि ‘ नामक पाठ से अवतरित है ।
यहाँ यक्ष द्वारा पूछे गए प्रश्न और युधिष्ठिर द्वारा दिए गए उत्तर संगृहीत हैं ।
यक्ष प्रश्न पूछते हैं –
किंस्विद् गुरुतरं भूमेः किंस्विदुच्चतरं च खात् ? भूमि से ( भी ) भारी क्या है ? आकाश से ( भी ) ऊँचा क्या है ? किंस्वित् शीघ्रतरं वातात् किंस्विद् बहुतरं तृणात् ? ।। 1 ।। वायु से ( भी ) शीघ्रगामी क्या है ? तिनकों से ( भी ) अधिक ( असंख्य ) क्या है ? |
युधिष्ठिर उत्तर देते है –
माता गुरुतरा भूमेः खात् पितोच्चतरस्तथा । माता भूमि से ( भी ) भारी है । पिता आकाश से ( भी ) ऊँचा है । मनः शीघ्रतरं वातात् चिन्ता बहुतरी तृणात्।।2 ।। मन वायु से ( भी ) शीघ्रगामी है । चिन्ता तिनकों से ( भी ) अधिक ( दुर्बल बनानेवाली ) है । |
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यक्ष प्रश्न पूछते हैं –
किंस्वित् प्रवसतो मित्रं किंस्विन् मित्रं गृहे सतः ? प्रवासी का मित्र कौन है ? गृह में निवास करते हुए अर्थात् गृहस्थ का मित्र कौन है ? आतुरस्य च किं मित्रं किंस्विन् मित्रं मरिष्यतः ? ।। 3 ।। रोगी का मित्र कौन है और मरनेवाले का मित्र कौन है ? |
युधिष्ठिर उत्तर देते है –
सार्थः प्रवसतो मित्रं भार्या मित्रं गृहे सतः । सहयात्रियों का समूह प्रवासी का मित्र है । गृह में निवास करनेवाले अर्थात् गृहस्थ की पत्नी मित्र है । आतुरस्य भिषक् मित्रं दानं मित्रं मरिष्यतः।।4 ।। रोगी का मित्र वैद्य है और मरनेवाले का मित्र दान है । |
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यक्ष प्रश्न पूछते हैं –
किंस्विदेकपदं धर्म्यम् किंस्विदेकपदं यशः ? धर्म का मुख्य स्थान क्या है ? यश का मुख्य स्थान क्या है ? किंस्विदेकपदं स्वय॑म् किंस्विदेकपदं सुखम् ? ।। 5 ।। स्वर्ग का मुख्य स्थान क्या है ? और सुख का मुख्य स्थान क्या है ? |
युधिष्ठिर उत्तर देते है –
दाक्ष्यमेकपदं धर्म्यम् दानमेकपदं यशः । धर्म का मुख्य स्थान उदारता है , यश का मुख्य स्थान दान है , सत्यमेकपदं स्वयं शीलमेकपदं सुखम्।।6 ।। स्वर्ग का मुख्य स्थान सत्य है और सुख का मुख्य स्थान शील है । |
यक्ष प्रश्न पूछते हैं –
धान्यानामुत्तमं किंस्विद् धनानां स्यात् किमुत्तमम् ? अन्नों में उत्तम ( अन्न ) क्या है ? धन में उत्तम ( धन ) क्या है ? लाभानामुत्तमं किं स्यात् सुखानां स्यात् किमुत्तमम् ? ।। 7 ।। लाभों में उत्तम ( लाभ ) क्या है ? सुखों में उत्तम ( सुख ) क्या है ? |
युधिष्ठिर उत्तर देते है –
धान्यानामुत्तमं दाक्ष्यं धनानामुत्तमं श्रुतम् । अन्नों में उत्तम ( अन्न ) चतुरता है । धनों में उत्तम ( धन ) शास्त्र है । लाभानां श्रेय आरोग्यं सुखानां तुष्टिरुत्तमा।।8 ।। लाभों में उत्तम ( लाभ ) आरोग्य है । सुखों में उत्तम ( सुख ) सन्तोष है । |
यक्ष प्रश्न पूछते हैं –
किं नु हित्वा प्रियो भवति ? किन्नु हित्वा न शोचति । क्या त्यागकर ( मनुष्य ) प्रिय हो जाता है ? क्या त्यागकर शोक नहीं करता ? किं नु हित्वार्थवान् भवति ? किन्नु हित्वा सुखी भवेत्।।9 ।। क्या त्यागकर धनवान् होता है ? क्या त्यागकर सुखी हो जाता है ? |
युधिष्ठिर उत्तर देते है –
मानं हित्वा प्रियो भवति क्रोधं हित्वा न शोचति । अभिमान छोड़कर ( मनुष्य ) प्रिय हो जाता है , क्रोध त्यागकर शोक नहीं करता है , कामं हित्वार्थवान् भवति लोभं हित्वा सुखी भवेत्।।10 ।। कामना ( इच्छा ) त्यागकर धनवान् होता है और लोभ छोड़कर सुखी होता है । |