up board class 10 syllabus 2022-23- Up Board solution of class 10 Hindi – जय सुभाष (खण्डकाव्य) (jai subhas) charitr chitran sarans kathavastu- gyansindhu

up board class 10 syllabus 2022-23– Up Board solution of class 10 Hindi – जय सुभाष (खण्डकाव्य) (jai subhas) charitr chitran sarans kathavastu.

up board class 10 syllabus 2022-23- Class 10 Hindi Chapter 5  जय सुभाष (खण्डकाव्य)- विनोदचन्द्र पाण्डेय ‘विनोद’ – जय सुभाष -खंडकाव्य-सभी-सर्ग-10th, charitr chitran sarans kathavastu. अग्रपूजा खण्डकाव्य के आधार पर पात्रों का चरित्र-चित्रण कीजिए जय सुभाष खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए। UP Board Solution Class 10 Hindi Chapter Question Answer. jai subhas. सर्गों का सरांश. jay subhas- सुभाष चन्द्र बोस का चरित्र चित्रण.

जय सुभाष

प्रश्न 1. ‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग का सारांश (कथानक) लिखिए।

(अथवा) ‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के किसी एक सर्ग की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, सन् 1897 ई० को कटक में हुआ था । इनके पिता श्री जानकीदास एवं माता प्रभावती थीं। इनके पिता एक प्रतिष्ठित व्यक्ति एवं माता साध्वी प्रवृत्ति की थीं। बचपन में इन पर माता-पिता का गहन प्रभाव पड़ा। माता उन्हें वीरता की कहानियाँ सुनाया करती थीं तथा प्राचीन संस्कृति के विषय में बतलाती थीं; अत: सुभाष का हृदय स्वदेश-प्रेम के भावों से भर गया। सुभाषचन्द्र बोस बचपन से ही बुद्धिमान एवं अति साहसी थे । वे अपने गुरु वेणीमाधव के सम्पर्क में आये तथा समाजसेवा के कार्य में जुट गये। वे बड़े ही मेधावी छात्र थे। उन्होंने मैट्रिक परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की फिर कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश प्राप्त किया। तभी उनका परिचय सुरेश बनर्जी से हुआ। उनके आश्रम में जाकर उन्होंने मातृभूमि की सेवा का व्रत लिया। यहीं एक दिन विवेकानन्द जी ने सत्यशोधन का आदेश दिया। सुभाष इससे अति प्रभावित हुए तथा सत्य की खोज में निकल पड़े। वे वापस आकर इण्टरमीडिएट परीक्षा में बैठे तथा प्रथम श्रेणी में परीक्षा उत्तीर्ण की। प्रेसीडेंसी कॉलेज में ओटन नामक अध्यापक भारतीयों का अपमान करता था। सुभाष ने उसके मुख पर एक चाँटा जड़ दिया। इस पर उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया । अन्य विद्यालय में प्रवेश प्राप्त कर उन्होंने बी०ए० किया। माता की इच्छानुसार कैम्ब्रिज जार आई०सी०एस० किया लेकिन इस स्वदेशप्रेमी ने उस पद को त्याग दिया तथा मातृभूमि की रक्षा हेतु भारत लौट आये। सुभाषचन्द्र बोस का जीवन-लक्ष्य अति महान था । अतः उन्होंने स्वतन्त्रता के मार्ग का अनुसरण किया।

प्रश्न 2. ‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – अँग्रेजों के अत्याचार चरम सीमा पर थे। सामान्य भारतीय जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी। देश की इस दीन दशा को देखकर सुभाषचन्द्र बोस ने भारत को स्वतन्त्र कराने का निश्चय किया था। सन् 1921 में महात्मा गाँधी ने असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ किया। भारत के धनी निर्धन, श्रमिक- किसान, छात्र – अध्यापक आदि सभी वर्ग एवं जातियों के लोग इस आन्दोलन में कूद पड़े। वकीलों ने न्यायालयों का बहिष्कार कर दिया, छात्र एवं अध्यापक कालेज छोड़कर बाहर आ गये। लोगों ने सरकारी उपाधियाँ लौटा दीं।

देशबन्धु चितरंजनदास ने नेशनल कालेज की स्थापना की। सुभाषचन्द्र बोस को उसका प्राचार्य नियुक्त किया गया। उन्होंने छात्रों के हृदय में देशभक्ति की गंगा बहायी और उनके हृदय में क्रान्ति की ज्वाला सुलगाई। उन्होंने स्वयंसेवकों की टोलियाँ गठित कीं तथा स्वयं सेनानायक बन गये। उन्होंने स्वयंसेवकों की एक छोटी-सी टोली को लेकर अँग्रेजों को ललकारा। अतः देशबन्धु सुभाष को जेल में डाल दिया गया।

जेल से मुक्त होने पर अंग्रेजों के प्रति उनके मन में अत्यधिक रोष बढ़ गया। उन्होंने जनसेवा एवं स्वतंत्रता प्राप्ति के प्रयत्नों को गति प्रदान की। उसी समय बंगाल में भयंकर बाढ़ आ गयी, सुभाष बाबू बाढ़ पीड़ितों की सेवा में जी-जान से जुट गये। वे कांग्रेस के कार्यक्रमों में भी बढ़-चढ़कर भाग लेते रहे। पं० मोतीलाल ने स्वराज्य पार्टी बनायी, चितरंजन दास के साथ सुभाषचन्द्र बोस भी इस पार्टी में सम्मिलित हुए।

कौंसिल में सुभाष ने अपने दल के प्रतिनिधियों को विजय दिलाई। देशबन्धु नगर प्रमुख एवं सुभापचन्द्र अधिशासी अधिकारी के पद पर आसीन हुए। सुभाष ने आधा वेतन ग्रहण किया तथा शेष आधे को दीन-दुखियों की सेवा में लगाया। सुभाष की ख्याति को सरकार सहन न कर सकी और उन्हें अलीपुर जेल में डाल दिया गया। सुभाष की गिरफ्तारी से जनता भड़क उठी। जनता की संगठित एवं सशक्त आवाज के सामने अंग्रेजों को उन्हें मुक्त करना पड़ा। प्रश्न 3. ‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग की कथा संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर—सन् 1928 ई० में कांग्रेस का अधिवेशन कलकत्ता में हुआ था। भारत के कोने-कोने से नेतागण आये हुए थे । नर नारियों के हृदय में प्रसन्नता के भाव जग रहे थे। पं० मोतीलाल नेहरू इस अधिवेशन के अध्यक्ष बनाये गये थे। स्वयंसेवकों के दल के नेता बने हुए थे। उन्होंने अधिवेशन के आयोजन के लिए कठोर श्रम किया था । अधिवेशन को अपूर्व सफलता मिली। इसका सारा श्रेय सुभाषचन्द्र बोस को प्राप्त हुआ। सब ओर उनकी जय-जयकार हुई।

अधिवेशन का आरम्भ हुआ। राष्ट्रगान के साथ राष्ट्रध्वज फहराया गया। भारत माता के जयकार से आकाश गूँज उठा । अध्यक्ष पद मे भाषण करते हुए पं० मोतीलाल ने सुभाष की भूरि-भूरि प्रशंसा की और उन्हें अपने पुत्र के समान बताया। सुभाष की वीरता, साहस और देशभक्ति से पं० मोतीलाल ऐसे प्रभावित हुए कि उन्होंने अपना सारा जीवन देशसेवा में समर्पित किया।

तत्पश्चात सुभाष को कलकत्ता का मेयर चुना गया। उनकी भव्य शोभायात्रा निकली। इस शोभायात्रा को रोकने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज किया। सुभाष के शरीर पर काफी चोटें आयीं, उन्हें नौ महीने के कारावास का दण्ड देकर अलीपुर जेल भेज दिया गया। जेल से छूटने पर सुभाष ने और अधिक क्रान्तिकारी कदम उठाये। अंग्रेज सरकार उनसे भयभीत होने लगी। उन्हें भिवानी जेल भेज दिया गया। जेल में स्वास्थ्य बिगड़ जाने पर सुभाष को विदेश भेज दिया गया। पिता की बीमारी का समाचार पाकर वे स्वदेश आये किन्तु पिता की मृत्यु हो गयी।

वे वियना लौट गये। वियना में रहते हुए ही उन्होंने ‘इण्डियन स्ट्रगल’ नामक पुस्तक लिखी जिससे इन्हें पर्याप्त ख्याति प्राप्त हुई लखनऊ के कांग्रेस अधिवेशन में इन्हें अध्यक्ष बनाने की मांग की गयी किन्तु पूर्ण स्वस्थ न होने के कारण इन्होंने इस पद को स्वीकार नहीं किया। बाद में इन्हें हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन का अध्यक्ष चुना गया।

प्रश्न 4. ‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के चतुर्थ सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए।

उत्तर – (चतुर्थ सर्ग) ताप्ती नदी के तट पर विट्ठल नगर स्थित है। इसी नगर में कांग्रेस का इक्यावनवाँ अधिवेशन हुआ । सुभाषचन्द्र बोस का जोशीला भाषण सुनकर जनता में देशप्रेम का सागर उमड़ पड़ा। नवयुवकों के हृदयों में नवचेतना ने अंगड़ाई ली। स्वतन्त्रता की बलिवेदी पर आत्माहुति चढ़ाने का उन्माद भभक उठा। इसके पश्चात काँग्रेस का अधिवेशन त्रिपुरा में हुआ ।

त्रिपुरा काँग्रेस अधिवेशन में इक्यावन द्वार बनाये गये, इक्यावन ध्वज फहराये गये और अध्यक्षता के लिए सुभाष को इक्यावन बैलों के रथ में शोभायात्रा निकाल कर लाया गया। अधिवेशन में गांधीजी पट्टाभि सीतारमैया को अध्यक्ष बनाना चाहते थे। अनेक कॉंग्रेसजन सुभाष को अध्यक्ष बनाना चाहते थे। परिणामस्वरूप चुनाव हुआ और गांधी जी द्वारा समर्थित पट्टाभि सीतारमैया पराजित हो गये । सुभाष जीत गये।

गांधीजी ने इस पर रोष प्रकट किया। कॉंग्रेस दल में विभाजन की सम्भावना देख कर सुभाष ने अध्यक्ष पद से त्याग पत्र दे दिया। उन्होंने काँग्रेस छोड़ दी और ‘फारवर्ड ब्लाक’ नामक दल का गठन किया। इस नवीन दल के माध्यम से वे देश और जनता की सेवा में जुट गये। अपने ओजस्वी भाषणों से उन्होंने जनता में उत्साह भरा।

सुभाष ने कठोर संघर्ष करके कलकत्ता में अँग्रेजों द्वारा स्थापित ‘ब्लैक हाल’ नामक स्मारक को हटवाया, जो भारतीयों के लिए कलंक था। उस स्मारक में अनेक अँग्रेजों को जीवित ही जला दिया गया था। तब सुभाष को जेल में डाल दिया गया। जेल से मुक्त होने पर उन्हें घर में ही नजरबन्द रखा गया। इस प्रकार सुभाष को निरन्तर अंग्रेजों द्वारा दी गयी यन्त्रणाएँ सहन करनी पड़ीं।

प्रश्न 5. ‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के पंचम सर्ग की कथा अपने शब्दों में संक्षेप में लिखिए।

उत्तर — सुभाषचन्द्र बोस नजरबन्द थे। घर के चारों ओर अंग्रेजों का कठोर पहरा था। सुभाष चिन्तित थे-अपने लिए नहीं, देश की स्वतन्त्रता के लिए। वे किसी प्रकार जेल से निकलने की योजना बनाने लगे। वे अपनी योजना में सफल हुए। उन्होंने कमरे के अन्दर बन्द रहते हुए दाढ़ी बढ़ा ली और उन मौलाना का रूप बना लिया जो उनके घर में पढ़ाने आते थे। यह 15 जनवरी, 1941 ई० का दिन था। सुभाष पहरेदारों की आँखों में धूल झोंक कर साफ निकल गये। पहरेदारों को उन पर सन्देह भी नहीं हुआ। मौलाना जियाउद्दीन नाम से वे काबुल पहुँचे और काबुल से जर्मनी पहुँच गये। वहाँ हिटलर से उनका सम्पर्क हुआ तथा उनका काफी सम्मान किया गया।

जर्मनी से सुभाष जापान पहुँचे। जापान में उन्होंने ‘आजाद हिन्द फौज की स्थापना की। उनके भाषणों से प्रभावित होकर ब्रिटिश सेना के अनेक भारतीय सैनिक आजाद हिन्द फौज में सम्मिलित हो गये। सिंगापुर पहुँचने पर रासबिहारी बोस ने सुभाष का हार्दिक स्वागत किया। सुभाष ने अपने भाषणों से जनता में नवचेतना जगायी। सुभाष ने अपनी आजाद हिन्द फौज के चार ब्रिगेड बनाये-नेहरू, गाँधी, बोस तथा आजाद। इनमें सभी जातियों के लोग प्रेमपूर्वक कार्य करते थे । सम्पूर्ण सेना ब्रिटिश शासन का अन्त करने के लिए उत्सुक थी।

प्रश्न 6. ‘जय सुभाष’ के षष्ठ सर्ग की कथा संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए।

(अथवा) ‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य की जो घटना आपको सबसे अधिक प्रभावित करती है, उसे संक्षेप में लिखिए।

‘(अथवा) ‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य की किसी एक घटना को संक्षेप में लिखिए।

उत्तर—आजाद हिन्द फौज का नेतृत्व करते हुए सुभाष ने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। उन्होंने नारा दिय “दिल्ली चलो!” सेना में जोश पैदा करने के लिए उन्होंने भाषण करते हुए कहा- “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।” इस घोषणा को सुनकर सेना में नया उत्साह भर गया । ‘भारत माता की जय’, ‘नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की जय इस प्रकार जय जय का उदघोष करती हुई सेना आगे बढ़ी। बन्दूकों, तोपों और बमों की परवाह किये बिना आजाद हिन्द फौज के मनिका ने दिल्ली की ओर प्रस्थान कर दिया। दिल्ली के लालकिले पर तिरंगा झण्डा फहराना उनका लक्ष्य था। 18 मार्च, सन 1944 ६० को यह सेना ‘कोहिमा’ पहुँची और वहाँ विजय पताका फहरा दी। सुभाष तथा गाँधीजी का जय-जयकार गूंज उठा। मेना ने ‘मोटाई’, ‘टिड्डिम’ और ‘हाफा’ आदि कई स्थानों पर अधिकार कर लिया। ‘अराकान’ पर भी तिरंगा फहरा दिया गया। उन करते हुए सन् 1945 का नववर्ष का उत्सव अत्यन्त उत्साह और उमंगों के साथ मनाया गया।

प्रश्न 7. ‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के सप्तम सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर- आजाद हिन्द फौज के विजय घोष को सुनकर अंग्रेजों के हृदय में निराशा का अन्धकार समा रहा था । इसे भारत का दुर्भाग्य ही समझना चाहिए कि उसी समय जापान में भयंकर दुर्घटना घटी। जापान के ‘हिरोशिमा’ और ‘नागासाकी’ दो प्रसिद्ध नगरों पर अमेरिका ने अणु बम गिरा दिये । बम इतने शक्तिशाली थे कि दोनों नगर धूल में मिल गये । अनेक नर-नारी काल के गाल में समा गये, अनेक विकलांग हो गये। जनहित के लिए जापानी सेना ने हथियार डाल दिये। इस घटना से आजाद हिन्द फौज में निराशा छा गयी। सेना की व्याकुलता को देख कर सुभाष भी चिन्तित थे। उन्होंने आत्मसमर्पण का निश्चय कर लिया । उन्होंने सेना को उचित समय पर पुनः युद्ध का आश्वासन दिया और विमान द्वारा ‘टोकियो’ के लिए प्रस्थान कर दिया जहाँ उन्हें ‘हिरोहितों से मिलना था ।

दुर्भाग्य 18 अगस्त 1945 ई० को सुभाष का जहाज ताइहोक में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। जापान रेडियो द्वारा अप्रिय सूचना प्रसारित की गयी कि सुभाषचन्द्र बोस अब इस संसार में नहीं रहे। भारतवासियों की आशाओं पर तुषारापात हो गया। परन्तु सुभाष भारत की जनता के लिए अनन्त काल तक अमर बन कर रहेंगे।

प्रश्न 8. ‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य का कथानक ( कथावस्तु) संक्षेप में अपनी भाषा में लिखिए ।

‘(अथवा) ‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य का सारांश स्पष्ट लिखिए।

(अथवा) ‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर- ‘जय सुभाष’ श्री विनोदचन्द्र पाण्डेय की देशभक्ति पूर्ण वीर रस की श्रेष्ठ रचना है। इस काव्य के नायक सुभाषचन्द्र बोस का चरित्र एक उत्साही, महान वीर तथा देशभक्त का चरित्र है । स्वतन्त्रता की अभिलाषा उनके हृदय में कूट-कूट कर भरी थी। कथा इस प्रकार है

बाल्यकाल तथा शिक्षा – सुभाष का जन्म 23 जनवरी सन् 1897 ई० को कटक नगर में हुआ था। इनकी माता का नाम प्रभावती तथा पिता का नाम जानकीनाथ था। सुभाष बचपन से ही बुद्धिमान, साहसी तथा देशभक्त थे। प्रथम श्रेणी में मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की। स्वामी विवेकानन्द की प्रेरणा से सत्य की खोज के लिए हरिद्वार, वृन्दावन, गया, प्रयाग आदि तीर्थो का भ्रमण किया किन्तु कहीं शान्ति न मिली। पुनः घर लौटकर इण्टर तथा स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से आई०सी० एस० की परीक्षा पास की किन्तु अंग्रेजी सरकार की नौकरी करने से इन्कार कर दिया।

स्वतन्त्रता के लिए प्रयत्न – सन् 1921 ई० में गाँधी जी का असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ हुआ। उस समय सुभाष नेशनल कालेज के प्राचार्य थे और देशबन्धु के साथ देशसेवा के कार्य में रत थे। उन्होंने छात्रों में देशभक्ति की भावना फूंकी, छात्रों में से स्वयंसेवकों की एक टोली तैयार की। परिणामस्वरूप देशबन्धु समेत उन्हें जेल में डाल दिया गया। जेल से लौट कर सुभाष ने स्वतन्त्रता के प्रयत्नों तथा देशसेवा के कार्यों को और तेज कर दिया। उनकी ख्याति को अंग्रेजी सरकार सहन न कर सकी और उन्हें अलीपुर की जेल में डाल दिया। उन्हें बहरपुर और माँडले की जेलों में भी रखा गया।

स्वतन्त्रता के लिए कठोर यातनाएँ – सन् 1928 में कलकत्ता में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। इस अधिवेशन के सफल आयोजन का श्रेय सुभाषचन्द्र बोस को प्राप्त हुआ। सुभाषचन्द्र बोस को कलकत्ता का मेयर चुना गया। उनका विशाल जुलूस निकाला गया। जुलूस पर पुलिस द्वारा लाठी चार्ज किया गया, सुभाष के शरीर पर काफी चोटें आयीं। अंग्रेजों ने नौ मास जेल में रखा। अस्वस्थ सुभाष को जेल में ही पिता की बीमारी का पता चला अतः वे स्वदेश लौट आये। सन् 1936 ई० में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में उन्हें अध्यक्ष बनाने की माँग की गयी. अस्वस्थ होने के कारण उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया। जेल में रहते हुए उन्होंने ‘इण्डियन स्ट्रगल’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी ।

फारवर्ड ब्लाक की स्थापना – कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में अधिकांश नेता सुभाष को अध्यक्ष बनाना चाहते थे किन्तु गाँधी जी पट्टाभि सीतारमैया को अध्यक्ष बनाने के पक्ष में थे। सर्वसम्मत अध्यक्ष न चुने जाने पर चुनाव हुआ और इस चुनाव में सुभाष को अध्यक्ष चुन लिया गया। इस पर गाँधीजी ने रोष प्रकट किया। कांग्रेस दल की एकता की रक्षा के लिए सुभाष अध्यक्ष पद से त्याग पत्र दे दिया। तत्पश्चात उन्होंने ‘फारवर्ड ब्लाक’ नामक दल की स्थापना की। उन्होंने अंग्रेजों के ‘ब्लैक हाल’ नामक स्मारक को कठोर संघर्ष करके हटवाया। तत्पश्चात सुभाष को घर में ही नजरबन्द कर दिया गया।

आजाद हिन्द फौज का संगठन – सुभाषचन्द्र पहरेदारों की आँखों में धूल झोंक कर कठोर पहरे से निकल गये। वे भारत काबुल और काबुल से जर्मनी पहुँचे। जर्मनी में ये हिटलर से मिले। जर्मनी से वे जापान गये । जापान में उन्होंने ‘आजाद हिन्द से फौज’ का गठन किया।

स्वतन्त्रता के लिए युद्ध – सुभाषचन्द्र बोस ने ‘दिल्ली चलो’ के घोष के साथ अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। उनका नारा था- तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।” तोपों और बमों का सामना करते हुए सेना ने प्रस्थान किया। दिल्ली के लालकिले पर तिरंगा फहराना उनका लक्ष्य था। कोहिमा, मोराई, टिड्डिम और हाफ़ा पर अधिकार कर लिया। ‘अराकान पर भी तिरंगा झण्डा फहरा दिया गया। सन् 1945 ई० में नववर्ष का उत्सव अत्यन्त उत्साह के साथ मनाया गया।

सुभाष का बलिदान – दुर्भाग्य से जापान की पराजय हो गयी। अमेरिका ने जापान के ‘हिरोशिमा’ और ‘नागासाकी’ नामक दो नगरों को परमाणु बम गिरा कर तहस-नहस कर दिया । जनहित का ध्यान कर जापानियों ने पराजय स्वीकार कर आत्म-समर्पण कर दिया, फलस्वरूप ‘आजाद हिन्द फौज’ की भी पराजय हुई। सुभाष को विमान द्वारा टोकियो ले जाया गया। मार्ग में ‘ताइहोक’ नामक स्थान पर विमान में आग लग गयी। 18 अगस्त 1945 ई० को जापान रेडियो ने घोषणा की कि नेताजी सुभाषचन्द्र बोस इस संसार नहीं रहे।

प्रश्न 9. ‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के नायक (सुभाषचन्द्र बोस ) का चरित्र चित्रण कीजिए ।

(अथवा) ‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र (नायक) की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए ।

 उत्तर – नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र हैं। वे इस काव्य के नायक हैं। सुभाषचन्द्र के चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं

  1. धीरोदात्त नायक – सुभाषचन्द्र उच्च कुलीन, श्रेष्ठ गुणों से युक्त धीरोदात्त नायक हैं। उनकी वीरता, साहस तथ देशप्रेम आदि गुण उनके चरित्र को बहुत ऊँचा उठा देते हैं।
  2. प्रतिभाशाली व्यक्तित्व – सुभाष का व्यक्तित्व अत्यन्त प्रतिभाशाली है। उनकी बुद्धि भी अत्यन्त प्रखर है। उन्होंने मैट्रिक से बी०ए० तक सभी परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी में पास कीं। उन्होंने अत्यन्त सम्मानपूर्ण आई०सी एस० की परीक्षा पास कर देश का गौरव बढ़ाया।
  3. सच्चे समाज सेवक – सुभाषचन्द्र बोस सच्चे और निःस्वार्थ समाज सेवक थे। उन्होंने जाजपुर गाँव के रोगियों की सेवा करके उनके कष्टों को दूर किया। सन् 1922 ई० में बंगाल में भयंकर बाढ़ आयी। उन्होंने अपना जीवन खतरे में डालकर भी बाढ़ पीड़ितों की सहायता की।
  4. राष्ट्रीयता की भावना – सुभाष की नस नस में राष्ट्रप्रेम समाहित था। वे राष्ट्र के लिए अनेक बार जेल गये, अनेक यातनाएँ सहीं। उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया जिसके कारण विदेश जाना पड़ा किन्तु यह सब सहकर भी उन्होंने अपना सारा जीवन राष्ट्रसेवा के लिए अर्पित कर दिया। उनकी देशभक्ति अडिग थी।
  5. महान स्वतन्त्रता सेनानी – सुभाषचन्द्र बोस ने आजीवन स्वतन्त्रता के लिए कठोर संघर्ष किया। जब वे देशबन्धु द्वारा स्थापित नेशनल कालिज में प्राचार्य थे, उन्होंने स्वयंसेवकों की टोली बनाकर स्वयं उसका नेतृत्व किया। वे स्वतन्त्रता माँगकर नहीं अपितु लड़कर लेना चाहते थे। इसी उद्देश्य से उन्होंने आजाद हिन्द फौज का गठन किया और अंग्रेजी शासन की सशस्त्र सेनाओं के साथ डटकर युद्ध किया। उन्होंने भारतीयों को संगठित होकर स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी। स्वयं भी उन्होंने एक महान योद्धा की तरह कई स्थानों पर युद्ध में विजय प्राप्त की ।
  6. साम्प्रदायिकता के विरोधी – सुभाष जातिवाद, छुआछूत के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने हिन्दू, मुसलमान, ईसाई आद सभी धर्मों को मानने वाले सभी जातियों के लोगों को संगठित किया। आजाद हिन्द फौज में सभी धर्मो को मानने वाले नौजवान सम्मिलित थे।
  7. युवाशक्ति के प्रतीक- सुभाषचन्द्र बोस ने देश के नवयुवकों में जागृति पैदा की। युवकों को क्रान्ति के लिए प्रेरित किया। सुभाष ने ही भारत में संगठित युवा आन्दोलन का प्रारम्भ किया। उन्होंने अपने प्रयत्नों से ‘नव जवान सभा’ की स्थापना की। वे युवाओं के आदर्श थे।

प्रश्न 10. “ ‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य हमें राष्ट्रीयता की प्रेरणा देता है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए ।

उत्तर- ‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य से हमें निम्नलिखित प्रेरणा प्राप्त होती है

दीन-दु:खियों की सेवा की शिक्षा – सुभाष के जीवन से हमें जनसेवा की शिक्षा मिलती है । जाजपुर में सुभाष ने रोगियों की जो सेवा की और सन् 1922 ई० में बंगाल की भयंकर बाढ़ में अपने जीवन को खतरे में डालकर भी बाढ़ पीड़ितों की जो सहायता की, उससे हमें भी दुःखियों की सेवा करने की शिक्षा मिलती है।

त्याग व बलिदान का सन्देश – सुभाष के जीवन से हमें त्याग एवं बलिदान का सन्देश मिलता है। हमें प्रेरणा मिलती है कि देश की स्वतन्त्रता की रक्षा तथा सम्मान के लिए हमें बड़े से बड़ा त्याग करने को भी तैयार रहना चाहिए। मूल भाव हमें प्रस्तुत खण्डकाव्य से राष्ट्रीयता की प्रेरणा मिलती है।

इसके अतिरिक्त इस खण्डकाव्य तथा सुभाषचन्द्र बोस के चरित्र से राष्ट्रीय एकता, स्वाभिमान, सहनशीलता और मानव-प्रेम का सन्देश मिलता है।]

 

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