Up board solution of class 10 Hindi – ‘मातृभूमि के लिए’ (खण्डकाव्य) (Matribhumi ke liye) charitr chitran sarans -up board class 10 syllabus 2022-23

Up board solution of class 10 Hindi –मातृभूमि के लिए’ (खण्डकाव्य) (Matribhumi ke liye) charitr chitran sarans -up board class 10 syllabus 2022-23

up board class 10 syllabus 2022-23- Class 10 Hindi Chapter – मातृभूमि के लिए (खण्डकाव्य)- डॉ० जयशंकर त्रिपाठी – मातृभूमि के लिए -खंडकाव्य-सभी-सर्ग-10th, charitr chitran sarans kathavastu. मातृभूमि के लिए खण्डकाव्य के आधार पर पात्रों का चरित्र-चित्रण कीजिए मातृभूमि के लिए खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए। UP Board Solution Class 10 Hindi Chapter Question Answer. matribhumi ke liye. सर्गों का सरांश. Matrbhoomi ke liye.

मातृभूमि के लिए

प्रश्न 1. ‘मातृभूमि के लिए’ खण्डकाव्य के प्रथम (संकल्प) सर्ग का सारांश लिखिए।

उत्तर- ‘मातृभूमि के लिए डॉ० जयशंकर त्रिपाठी का देशभक्ति से पूर्ण खण्डकाव्य है। इस काव्य के कथानक को तीन स में बाँटा गया है। कथा संक्षेप में इस प्रकार है

अंग्रेजों की दमन नीति तथा असहयोग आन्दोलन – जिस समय अंग्रेज भारत में अपना पूरा दमन चक्र चला रहे थे, उद्योग-धन्धे छीन लिए गये, किसानों को साधनहीन कर दिया गया, जनता भूखों मरने लगी, कितने ही भूख की आग में कर मर गये, उस विकट परिस्थिति में यदि किसी ने अंग्रेजों के विरुद्ध आवाज उठाई तो उसे जेल में बन्द कर दिया गया। इस दुःखमय स्थिति से छुटकारा पाने के लिए ही गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन शुरू किया और जनता को असहयोग के लिए प्रेरित किया। तुलस

रौलट एक्ट – अंग्रेजों के अत्याचार चरम सीमा पर पहुँच गये थे। यदि कोई व्यक्ति मुख से ‘वन्देमातरम’ कहता तो उस पर कोड़े बरसाये जाते थे। न कोई मातृभूमि की सेवा कर सकता था, न सेवा भावों को मन में स्थान दे सकता था। सन् 1918 ई० में बना ‘रौलट एक्ट’ सन् 1919 में लागू हुआ। इस एक्ट के अनुसार किसी भी व्यक्ति को किसी भी समय बिना उसका अपराध बताये गिरफ्तार किया जा सकता था। इस एक्ट का सीधा अर्थ था- सभी देशभक्तों को जेल में डालना। इस एक्ट के पीछे भावना थी कि जो क्रान्तिकारी सम्मुख आये, उसे दण्ड दिया जाये। न उसकी कहीं अपील, न सुनवाई । जमानत भी कोई नहीं कर पायेगा । स्वतन्त्रता के विषय में यदि कोई बात भी करता मिल जाये तो उसे तुरन्त जेल भेज दिया जाये ।

जलियाँवाला बाग की घटना– इसी समय जलियाँवाला बाग की दुःखद घटना घटी। जनता में रौलट एक्ट के विरुद्ध रोष था। अमृतसर के जलियाँवाला बाग नामक स्थान पर 14 अप्रैल, सन् 1919 को रौलट एक्ट एवं सरकार के दमन के विरोध में विशाल जनसभा का आयोजन किया गया था। लाखों की संख्या में जनता उपस्थित थी जिसमें स्त्री-पुरुष, बूढ़े बच्चे सभी सम्मिलित थे। सरकार की नीतियों के खिलाफ नेताओं के भाषण हो रहे थे। अचानक जनरल डायर के पचास सिपाहियों के द्वारा सोलह सौ पचास राउंड गोलियाँ बरसा दी गयीं। अनेक लोग मारे गये।

चन्द्रशेखर की प्रतिज्ञा- देश की परिस्थितियाँ विकट थीं। उस समय काशी में शिक्षा पा रहा था, भारत माता का एक सपूत जिसका जन्म हुआ था अलीराजपुर स्टेट में झाबुआ जिले के ‘भावना’ नामक गाँव में नाम था चन्द्रशेखर ! चन्द्रशेखर ने जलियाँवाला बाग की नृशंस घटना को अखबारों में पढ़ा। उसका हृदय चीख उठा । हृदय में मातृभूमि का प्रेम प्रवाहित हो चला। उसने देश को स्वतन्त्र कराने की प्रतिज्ञा की।

चन्द्रशेखर की वीरता – जलियाँवाला बाग की घटना का समाचार देशभर में फैल गया। जनता में अँग्रेजों के खिलाफ रोष उमड़ पड़ा। छात्रों ने विद्यालयों पर, कर्मचारियों ने कार्यालयों पर धरना दिया। पुलिस ने अश्रुगैस छोड़ी, लाठियाँ बरसायीं । अनेक विद्यार्थियों को बन्दी बनाया गया। इन्हीं विद्यार्थियों में 15 वर्ष का किशोर चन्द्रशेखर भी था। अभियोग की सुनवाई की मैजिस्ट्रेटश्रखरे ने । चन्द्रशेखर से पूछा – ‘तुम्हारा नाम ?’ चन्द्रशेखर ने उत्तर दिया- ‘आजाद’। पिता का नाम ? उत्तर मिला- ‘स्वतन्त्र । तुम्हारा घर कहाँ है? चन्द्रशेखर ने कहा- ‘बलिदानी वीरों का घर जेलखाना होता है।’ चन्द्रशेखर के इस साहस को देखकर मजिस्ट्रेट भौंचक्का रह गया। सोलह बेंतों का कठोर दण्ड सुनाया गया और सोलह बेंत खाकर जब खून से लथपथ शरीर वाला चन्द्रशेखर भारत माता की जय बोलता हुआ बाहर आया तो जेल के दरवाजे पर ‘चन्द्रशेखर आजाद की जय बोलते हुए विशाल जनसमूह ने उसका स्वागत किया। फूल मालाओं से उसे लाद दिया गया। उसके स्वागत में विशाल जनसभा का आयोजन हुआ। तभी से

उसे ‘आजाद’ कहकर पुकारा जाने लगा। उसका फोटो और भाषण अखबारों में छापे गये। इसके पश्चात आजाद क्रान्ति की नवीन पद्धति की खोज करने में लग गये।

प्रश्न 2. ‘मातृभूमि के लिए’ खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग (संघर्ष सर्ग) की कथा अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर- द्वितीय सर्ग (संघर्ष सर्ग) – क्रान्तिकारी नीति-सोलह बेंतों की सजा पाकर ‘आजाद’ वास्तव में आजाद हो गया। उसमें असीम साहस का संचार हो गया और वह जनता की दृष्टि में चढ़ गया। उसने क्रान्तिकारी नीति अपनायी और घर-परिवार सब कुछ छोड़कर अँग्रेजी शासन से टक्कर लेने का साहस किया।

संघर्ष की तैयारी – क्रान्तिकारी मार्ग को स्वीकार कर आजाद ने स्वतन्त्रता संग्राम की तैयारियाँ शुरू कर दीं। उन्होंने बम और पिस्तौलों का निर्माण शुरू कराया। आर्थिक दशा ठीक करने के लिए सरकारी कोषों पर धावा बोलना शुरू किया। उन्होंने मोटर चलाना सीखा। धनसंग्रह के लिए वे मठाधीशों के शिष्य तक बने ।

काकोरी काण्ड – आजाद ने 9 अगस्त, 1925 ई० को काकोरी स्टेशन के पास रेलगाड़ी से जाते हुए सरकारी खजाने को लूटा। बाद में कई साथी पकड़े गये। रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खाँ को फाँसी की सजा दी गयी। बख्शी को आजन्म कारावास की सजा मिली, पन्द्रह को तीन-तीन वर्ष का कारावास मिला। लेकिन सरदार भगतसिंह बचकर निकल गये।

साइमन कमीशन का आगमन – अंग्रेजी शासन के अत्याचार बढ़ते जा रहे थे। लार्ड इरविन के शासनकाल में भारत में शासन सुधार की जाँच के लिए साइमन कमीशन भारत आया । इस कमीशन के सभी सदस्य अंग्रेज थे। भारतीय नेता चाहते थे कि इसमें भारतीय सदस्य भी शामिल हों किन्तु उनकी बात नहीं मानी गयी। इसलिए भारतीयों ने इस कमीशन का बहिष्कार किया। परिणामस्वरूप बम्बई में पुलिस ने लाठी चार्ज किया। लखनऊ में लाठी लगने से जवाहरलाल नेहरू नीचे गिर पड़े। उन्हें बचाने के लिए पन्तजी उनके ऊपर गिर पड़े। लाहौर में कमीशन के विरोध में काले झण्डे दिखाते हुए लाला लाजपतराय पर इतनी लाठियाँ बरसायी गयीं कि कुछ समय बाद उनकी मृत्यु हो गयी। लालाजी पर लाठी चार्ज करने वाला पुलिस अधिकारी स्काट था । लालाजी की मृत्यु से सारे देश में शोक छा गया और राष्ट्रप्रेमियों के हृदय में प्रतिहिंसा की आग भड़क उठी।

सांडर्स की हत्या – क्रान्तिकारी दल लाला लाजपतराय की हत्या का प्रतिशोध लेना चाहता था। चन्द्रशेखर आजाद, बटुकेश्वर, यतीन्द्र, सरदार भगतसिंह और सुखदेव आदि ने मन्त्रणा की। उन्होंने सन् 1928 ई० के सितम्बर मास में दिल्ली के फिरोजशाह मेले में ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी की स्थापना की गयी। इस आर्मी के कमाण्डर इन चीफ पद पर ‘आजाद’ को चुना गया। अब आजाद ने लाजपतराय के ऊपर लाठी चार्ज का बदला लेने के लिए स्काट को मारने का पक्का संकल्प कर लिया था। योजना बनायी गयी। अपने साथियों के साथ पुलिस कार्यालय के बाहर आजाद उपस्थित थे। सांडर्स कार्यालय से बाहर निकला। उसी को स्काट समझ कर भगतसिंह और राजगुरु ने उसे गोली का निशाना बनाया। इस प्रकार स्काट के बदले सांडर्स मारा गया। सरदार भगतसिंह के पीछे एक सिपाही भागा किन्तु आजाद ने गोली चलाकर उसका काम समाप्त कर दिया।

एसेम्बली बमकाण्ड – राष्ट्रप्रेमियों की इस प्रकार की कार्यवाहियों से परेशान होकर शासन ने ‘जनता रक्षा बिल’ एसेम्बली में प्रस्तुत किया किन्तु अध्यक्ष श्री विट्ठल भाई पटेल ने अपना निर्णायक मत देकर इसे पारित नहीं होने दिया। 8 अप्रैल, सन् 1928 ई० को भगतसिंह ने एसेम्बली में बम फेंका। एसेम्बली में अनेक सदस्यों की मृत्यु हो गयी। एसेम्बली के दरवाजे पर ‘इन्कलाब जिन्दाबाद’ के नारे लगाये जा रहे थे। सरदार भगतसिंह गिरफ्तार हो गये। बाद में भगतसिंह के कई साथी भी गिरफ्तार कर लिए गये। परिणाम यह हुआ कि सरदार भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी की सजा सुना दी गयी। आजाद इस निर्णय से बड़े चिन्तित हुए ।

प्रश्न 3. ‘मातृभूमि के लिए’ खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग (बलिदान सर्ग) की कथा अपने शब्दों में लिखिए ।

उत्तर – तृतीय सर्ग (बलिदान सर्ग) – दल का पुनर्गठन – आजाद के प्रमुख साथी फाँसी पर लटक चुके थे या जेल में बन्द थे। अब दल का पुनर्गठन करने का दायित्व केवल उन्हीं पर था। इसी प्रयत्न में उन्होंने पंजाब से बंगाल तक पूरे उत्तर भारत की यात्रा की। सूर्यसेन आदि नेताओं से मिलकर उन्होंने चटगाँव तक अपनी सेना का जाल-सा बिछा दिया था। अब अपने मित्र रुद्र नारायण के साथ उन्होंने जवाहरलाल नेहरू और पुरुषोत्तमदास टंडन से मिलने के लिए प्रयाग की ओर प्रस्थान किया।

अन्तिम बलिदान – सन् 1931 ई० का फरवरी मास था। वे इलाहाबाद के एल्फ्रेड पार्क में बैठे अपने कुछ साथियों की प्रतीक्षा कर रहे थे। प्रतीक्षा की अवधि से भी एक घण्टा अधिक समय हो गया था। अचानक वहाँ पुलिस की गाड़ियाँ आ पहुँची। आजाद ने अपने साथियों को भगा दिया और अकेले ही पुलिस का सामना करना उचित समझा। पुलिस ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया था। एक पेड़ की आड़ में होकर उन्होंने पुलिस के अनेक जवानों को मार डाला, और जब केवल एक गोली रह गयी तो उसे अपनी कनपटी पर दाग कर स्वयं बलिदान हो गये। अंग्रेज अधिकारी नाट बावर आजाद से इतना भयभीत हो चुका था कि उसने मरने के उपरान्त भी आजाद के पैर में गोली मारकर यह देखा कि कहीं आजाद जीवित तो नहीं है।

प्रश्न 4. ‘मातृभूमि के लिए’ खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए।

(अथवा) चन्द्रशेखर आजाद के जीवन की दो प्रेरक वीरतापूर्ण घटनाओं का उल्लेख कीजिए ।

(अथवा) ‘मातृभूमि के लिए’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर- असहयोग आन्दोलन- बालक चन्द्रशेखर में देशप्रेम की भावना तो जन्म से ही थी किन्तु सोलह बेंतों की कठोर यातना से उनकी देशभक्ति प्रखर से प्रखरतर हो उठी। इस घटना ने ही उन्हें वास्तव में ‘आजाद’ बनाया था। उनके हृदय में असीम साहस का संचार हो गया। स्वदेश-प्रेम से प्रेरित होकर चन्द्रशेखर ने पढ़ाई छोड़ दी और गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन में सम्मिलित हो गये ।

क्रान्तिकारी नेता- जब असहयोग आन्दोलन की गति मन्द पड़ गयी तब चन्द्रशेखर आजाद ने क्रान्ति का मार्ग अपनाया। राष्ट्र के हित में उन्होंने माता-पिता और भाई-बन्धुओं को छोड़ा और अंग्रेजी शासन से जूझने की तैयारी में लग गये। उन्होंने म और पिस्तौल आदि शस्त्रास्त्रों का निर्माण शुरू किया और शक्ति संगठन एवं धन का संग्रह भी आरम्भ किया ।

संघर्ष की तैयारी – स्वदेश-प्रेम से प्रेरित होकर आजाद ने अंग्रेजों की असीम शक्ति से टकराने का निश्चय किया। उन्होंने मोटर चलाना सीखा। धन प्राप्ति के लिए एक मठाधीश के शिष्य बने और काकोरी स्टेशन पर रेलगाड़ी में जाते हुए सरकारी खजाने को लूटा। इसी काण्ड में उनके दो साथियों रामप्रसाद बिस्मिल तथा अशफाक उल्ला को बाद में पकड़ लिया गया और फाँसी की सजा दे दी गयी। एक साथी को आजीवन कारावास और पन्द्रह को तीन-तीन वर्ष के कारावास का दण्ड मिला।

हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी की स्थापना – हिन्दुस्तान में सन् 1928 ई० में साइमन कमीशन आया। भारत के नेताओं ने इस कमीशन का विरोध किया और काले झण्डे दिखाये । फलस्वरूप जहाँ-जहाँ कमीशन गया, पुलिस द्वारा नेताओं पर लाठियाँ बरसायी गयीं। लाहौर में लाला लाजपतराय पर ऐसा लाठी प्रहार किया गया कि उनकी मृत्यु हो गयी। इस घटना से देशप्रेमियों के हृदय में प्रतिहिंसा की ज्वाला भड़क उठी। चन्द्रशेखर आजाद और उनके साथियों ने मन्त्रणा की। देश को स्वतन्त्र कराने के उद्देश्य से ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी की स्थापना दिल्ली के फिरोजशाह मेले में की गयी। इस आर्मी का कमाण्डर इन चीफ चन्द्रशेखर आजाद को बनाया गया।

सांडर्स की हत्या – आजाद और उनके साथियों ने लाला लाजपतराय की हत्या का बदला लेने की योजना बनायी। उन्होंने सांडर्स को स्काट समझकर उसकी हत्या कर दी।

एसेम्बली बमकाण्ड – 8 अप्रैल, 1928 ई० को भगतसिंह ने एसेम्बली में बम फेंका। इस काण्ड में चन्द्रशेखर आजाद के मुख्य साथियों को फाँसी की सजा सुनायी गयी। अब आजाद अकेले रह गये थे। किन्तु उन्होंने हिम्मत नहीं हारी, वे पुनः संगठन करने के कार्य में जुट गये।

बलिदान — चन्द्रशेखर इलाहाबाद में थे। एल्फ्रेड पार्क में एक पेड़ के नीचे बैठे कुछ साथियों के साथ योजना बना रहे थे। उनके किसी साथी ने धोखा दिया और पुलिस को सूचना दे दी। पुलिस ने आजाद को घेर लिया। आजाद ने अपने सब साथियों को भगा दिया और अकेले पुलिस के साथ कठोर संघर्ष किया। अन्त में जब उनकी पिस्तौल में केवल एक गोली बची थी तो उसे उन्होंने अपनी ही कनपटी पर दाग दी तथा आत्मबलिदान कर दिया ।

‘प्रश्न 5. ‘मातृभूमि के लिए’ खण्डकाव्य के नायक ‘चन्द्रशेखर आजाद’ का चरित्र चित्रण कीजिए।

(अथवा) ‘मातृभूमि के लिए’ खण्डकाव्य का नायक कौन है? उसके चरित्र की विशेषताएँ लिखिए |

(अथवा) ‘मातृभूमि के लिए’ खण्डकाव्य के आधार पर चन्द्रशेखर आजाद के त्याग और बलिदान का वर्णन कीजिए।

(अथवा) ‘मातृभूमि के लिए ‘ खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए ।

उत्तर- ‘मातृभूमि के लिए’ खण्डकाव्य डॉ० जयशंकर त्रिपाठी का वीर रस प्रधान काव्य है। इस काव्य का नायक ‘चन्द्रशेखर आजाद है जो धीरोदात्त गुणों से युक्त है। चन्द्रशेखर आजाद के जीवन में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं

गुरुभक्त – चन्द्रशेखर गुरुओं में पूर्ण श्रद्धा रखता था विद्यालय में पहुँचते ही वह अपने गुरु को प्रणाम करता था, तत्पश्चात पाठ याद करता था।

देशभक्त – चन्द्रशेखर आजाद को अपने देश और मातृभूमि से अटूट अनुराग है। वह मातृभूमि का अपमान सहन नहीं कर सकता। अखबारों में उसने ‘जलियाँवाला बाग में अंग्रेजों द्वारा किये गये अत्याचारों का समाचार पढ़ा तो उसका देशप्रेम एकदम जाग उठा उसने अपने साथियों को प्रेरित किया कि वे भारत माता की सेवा में लग जायें। चन्द्रशेखर का जीवन ही मातृभूमि के लिए थी – वह उसी के लिए जिया, उसी के लिए मरा।

दृढ़-प्रतिज्ञा – चन्द्रशेखर आजाद अपनी प्रतिज्ञा का पक्का था। वह जो निश्चय करता अथवा जो कहता, उसे प्राणपण से पूरा करता था। मातृभूमि पर अत्याचार देखकर उसने प्रतिज्ञा की थी कि वह मातृभूमि को स्वतन्त्र करायेगा। अपने अन्तिम श्वास तक वह इसी प्रयत्न में लगा रहता है और प्रतिज्ञा की पूर्ति के हेतु ही अपने प्राणों का उत्सर्ग कर देता है ।

निर्भीक – चन्द्रशेखर आजाद अत्यन्त निर्भीक नवयुवक है। मजिस्ट्रेट के प्रश्नों के वह जो उत्तर देता है, उनसे उसकी निर्भीकता प्रमाणित होती है।

सहनशील—चन्द्रशेखर आज़ाद अत्यन्तं सहनशील तथा साहसी है । वह भयंकर से भयंकर परिस्थितियों में भी साहस नहीं छोड़ता । भारी से भारी कष्ट को भी वह चुपचाप जहर के घूँट की तरह पी जाता है। मजिस्ट्रेट के सामने उसे जोर से 16 बेंत लगायी जाती हैं। शरीर लहुलुहान हो जाता है किन्तु वह एक बार भी सी नहीं करता और भारत माता की जय बोलता बाहर आता है।

क्रान्तिकारी – चन्द्रशेखर आजाद महान क्रान्तिकारी नेता था। एक साधारण विद्यार्थी से वह क्रान्तिकारियों का नेता बन जाता है। ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी का वह कमांडर-इन-चीफ चुना जाता है। काकोरी काण्ड, सांडर्स की हत्या, एसेम्बली बम विस्फोट आदि क्रान्तिकारी घटनाएँ उसी के नेतृत्व में घटित हुईं। उसने बन्दूकें, राइफलें और बम भी बनवा कर तैयार करा लिए थे। अपने प्रमुख साथियों के मर जाने पर भी वह निराश नहीं हुआ बल्कि पुनः दल का गठन करने की तैयारी करता रहा और इस तैयारी में ही उसकी मृत्यु हो गयी ।।

महान वीर—चन्द्रशेखर महान वीर भी था। कई क्रान्ति योजनाओं में उसने वीरता का परिचय दिया। एल्फ्रेड पार्क में पुलिस से घिर जाने पर अपने साथियों को भगाकर अकेले ही पुलिस का मुकाबला किया। उसने अकेले ही पुलिस के बहुत से सिपाहियों को मार दिया। अन्त में जब उसके पास गोलियाँ ही समाप्त हो गयीं तब भी पुलिस की गोली से नहीं बल्कि अपनी ही गोली से मरा। संक्षेप में आजाद महान देशभक्त, वीर और बलिदानी थे। उनमें बचपन से ही साहस, दृढ़ निश्चय एवं क्रान्तिकारिता आदिगुण कूटकूटकर भरे हुए उल्लिखित रहेगा। थे। उनमें असीम त्याग, साहस एवं देशप्रेम था। भारत के इतिहास में उसका नाम अमर बलिदानियों में उल्लिखित रहेगा!

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