UP Board Class 10 Sanskrit Chapter 11 गुरुनानकदेव [Guru Nanak Deva] संस्कृत- गद्य-भारती
Dear Students! यहाँ पर हम आपको कक्षा 10 संस्कृत – UP Board Solution of Class 10 Sanskrit Chapter 11 गुरुनानकदेव (Guru nanakdev) गद्य – भारती in Hindi translation – हाईस्कूल परीक्षा हेतु उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद् द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम।
Subject / विषय | संस्कृत (Sanskrit) |
Class / कक्षा | 10th |
Chapter( Lesson) / पाठ | Chpter -10 |
Topic / टॉपिक | गुरुनानकदेव |
Chapter Name | GuruNanak dev |
All Chapters/ सम्पूर्ण पाठ्यक्रम | कम्पलीट संस्कृत बुक सलूशन |
सिक्खधर्मस्याद्यसंस्थापकः गुरुर्नानकः पंजाबप्रदेशे तलवंडीनाम्नि स्थाने षड्विंशत्युत्तरपञ्चदशशततमे वैक्रमे वर्षे वैशाखमासस्य शुक्ल पक्षे तृतीयायान्तिथौ (वै० शु०-3, वि० 1526) क्षत्रियवंशस्य वेदीकुले जन्म लेभे। तस्य जन्मस्थानं ‘ननकानासाहेब’ इति नाम्ना ख्यातमद्यत्वे पाकिस्तानदेशेऽस्ति । अस्य मातुर्नाम तृप्तादेवी, पितुश्च मेहता कल्याणदासः कालूमेहतेति नाम्ना ख्यातः।
शब्दार्थ – आद्य संस्थापकः -सर्वप्रथम स्थापना करनेवाले। अद्यत्वे -आजकल लेभे -लिया।
सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत गद्य भारती’ के ‘गुरुनानकदेव:’ नामक पाठ से लिया गया है।
हिंदी अनुवाद – सिख धर्म की सर्वप्रथम स्थापना करनेवाले गुरुनानक ने पंजाब प्रदेश में तलवण्डी नामक स्थान पर वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया की संवत् 1526 में क्षत्रिय वंश वेदीकुल में जन्म लिया था। उनका जन्म-स्थान ‘ननकानी साहब’ नाम से प्रसिद्ध है, जो आजकल पाकिस्तान देश में है। इनकी माता का नाम तृप्ता देवी तथा पिता मेहता कल्याणदास कालू मेहता नाम से प्रसिद्ध थे।
गुरुनानकदेव (Guru nanakdev) गद्य – भारती
गुरुनानकः स्वपित्रोरेक एव पुत्र आसीत्। अतस्तस्य जन्मनाऽऽह्लादातिशयं तानुभवन्तौ स्नेहातिशयेन तस्य लालनं पालनं च कृतवन्तौ । बाल्यकालादेव तस्मिन् बालके लोकोत्तराः गुणाः प्रकटिता अभवन्। रहसि एकाकी एवोपविश्य नेत्रेऽअधोंन्मीत्य किञ्चिद् ध्यातुमिव दृश्यते स्म।
शब्दार्थ – आह्लादातिशयं- अत्यधिक प्रसन्नता। अर्धोन्मील्य आधी बन्द करके। ध्यातुमिव ध्यान करते हुए की तरह। रहसि एकान्त में।
हिंदी अनुवाद – गुरुनानक अपने माता-पिता के अकेले पुत्र थे। इसलिए उनके जन्म से उन्होंने अत्यन्त आनन्द का अनुभव करते हुए बड़े स्नेह से उनका लालन-पालन किया। बचपन से ही उस बालक में अद्भुत गुण प्रकट होने लगे थे। एकान्त में अकेले ही बैठकर आँखों को आधी बन्द कर कुछ ध्यान करते हुए की तरह दिखायी देते थे।
यथाकाले पित्रा विद्याध्ययनाय पाठशालायाम् स प्रेषितः । अन्यैः सहपाठिभिः सह विद्यालये पठन्नेकदा स्वलेखनपट्टिकायां किञ्चिदुल्लिख्य शिक्षकं प्रादर्शयत्। तल्लेखं दृष्ट्वा शिक्षको विस्मितो जातः। पट्टिकायां परमात्मनो माहात्म्यं तेन वर्णितमासीत्। तथैव यज्ञोपवीतसंस्कारावसरे आचार्येण प्रदत्तं कार्पासं यज्ञोपवीतमनित्यमिति प्रतिपादयन् न तज्जग्राह । तस्य पिता कालूमेहता जगत्प्रति तस्याप्रवृत्तिं दृष्ट्वा भूयसा चिन्तितोऽभवत्। वाणिज्यकर्मणि लिप्तस्तत्पिता कथमपि स जगत्कर्मणि प्रवृत्तो भवेदिति प्रायतत । किं च वह्नि पत्रजालैर्पिधातुमाचकाङ्क्ष।
एकदा तस्य जनकः विंशतिरूप्यकाणि तस्मै दत्वा वाणिज्यार्थं तं प्रेषितवान्। पथि क्षुत्पिपासादिभिः क्लिश्यमानान् दुर्बलान् क्षीणकायान् साधून् सोऽपश्यत्। तेषां क्लेशातिशयतापसंतप्तां दशामवलोक्य तस्य हृदयं नवनीतमिव द्रवीभूतं जातम्। ताभिः मुद्राभिरत्नं क्रीत्वा तेभ्यः समर्ण्य परां शान्तिमनुभूयमानः गृहं प्रत्याजगाम । पित्रा लाभाय रूप्यकाणि प्रदत्तानि । मया तु पूर्णलाभः लब्धः। तस्यादेशस्यानुपालनमेव मया कृतामिति सोऽचिन्तयत्।
शब्दार्थ – यथाकाले यथासमय। स्वलेखनपट्टिकायाम् अपने लिखने की तख्ती पर। प्रादर्शयत् – दिखाया। यज्ञोपवीतसंस्कारसमये जनेऊ धारण करने के संस्कार के समय। कार्पासम् = कपास का, कपास से कते सूत का। न तज्जग्राह उसे ग्रहण नहीं किया। भूयसा अत्यधिक। प्रायतत प्रयत्न किया। आचकांक्ष इच्छा की। क्षुत्पिपासादिभिः क्लिश्यमानान् भूख-प्यास आदि से क्लेश पाये हुए। नवनीतमिव = मक्खन की तरह। अनुभूयमानः अनुभव किये हुए। प्रत्याजगाम वापस आ गये।
हिंदी अनुवाद – पिता ने उचित समय पर विद्या पढ़ने के लिए पाठशाला भेजा। दूसरे सहपाठियों के साथ विद्यालय में पढ़ते हुए एक बार अपनी तख्ती पर कुछ लिखकर शिक्षक को दिखाया। उस लेख को देखकर शिक्षक चकित हो गया। तख्ती पर उसने परमात्मा की महिमा लिखी थी। उसी प्रकार यज्ञोपवीत संस्कार के समय आचार्य के द्वारा दिये गये सूत के यज्ञोपवीत को ‘यह अनित्य है’ ऐसा कहते हुए ग्रहण नहीं किया था। इनके पिता कालू मेहता पुत्र की जगत् के प्रति अरुचि को देखकर अत्यन्त चिन्तित रहने लगे। व्यापार के कर्म में लगे हुए हुए इनके पिता ने किसी प्रकार वे (नानक) जगत् के कर्म में प्रवृत्त हो जायें ऐसे प्रयत्न किये और आग को पत्तों से ढकने जैसी इच्छा की।
एक दिन उनके पिता ने बीस रुपये (उन्हें) देकर व्यापार करने हेतु भेज दिया। उन्होंने रास्ते में भूख-प्यास से दुःखी, दुर्बल देहवाले साधुओं को देखा (तो वे) उनके कष्ट और अत्यधिक दुःखभरी दशा को देखकर हृदय में मक्खन के समान द्रवित हो उठे। (तुरन्त) उन रुपयों से अन्न खरीदकर उन्हें देकर (मन में) असीम शान्ति का अनुभव करते हुए घर वापस आ गये। पिता ने लाभ के लिए रुपये दिये थे। ‘मैंने तो पूरा लाभ प्राप्त कर लिया। (ऐसा करके), मैंने उनकी आज्ञा का पालन ही किया है।’ उन्होंने इस प्रकार अपने मन में सोचा।
गुरुनानकदेव (Guru nanakdev) गद्य – भारती
गुरुनानकदेवः (गुरुनानकदेव) पिता तस्य तवृत्तं संश्रुत्य खिद्यमानः भृशं चुकोप। तदानीमेव नानकस्य भगिनीपतिः जयराम आगत। तमखिलमुदन्तं ज्ञात्वा तं स्वनगरं सुलतानपुरमनयत्। तत्रत्यः शासकः नवाबदौलतखाँ युवकनानकस्य व्यवहारकौशलेन शीलेन मधुरया वाचा सन्तुष्टः सन् तं स्वान्नभाण्डागारे नियुक्तवान्। स्वनिष्पृहवृत्या श्रमेण कर्मणा च नानकः स्वस्वामिनं दौलतखाँमहाशयं तुतोष।
शब्दार्थ – संश्रुत्य सुनकर। भृशम् अत्यधिक। भगिनीपतिः बहनोई। उदन्तम् समाचार। दोषदिदृक्षुभिः = दोषों को देखनेवालों की इच्छा के द्वारा। कर्णेजपैः चुगलखोरों से। आदिवसम् दिनभर । सातत्येन लगातार ।
हिंदी अनुवाद – पिता उनके उस समाचार को सुनकर दुःखी होते हुए बहुत क्रुद्ध हुए। उसी समय नानक के बहनोई जयराम आ गये। उस समस्त समाचार को जानकर उसे (नानक को) अपने नगर सुलतानपुर ले गये। वहाँ के शासक नवाब दौलत खाँ ने युवक नानक के व्यवहारकुशलता, शील और मधुर वाणी से सन्तुष्ट होते हुए उसे अपने अन्न भाण्डारागार पर नियुक्त कर दिया। अपने निःस्वार्थ व्यवहार, परिश्रम और कार्य से नानक ने अपने स्वामी दौलत खाँ को सन्तुष्ट कर लिया।
नानकः तेन समादृतो जातः। तद्यशोऽसहमानैः बहुभिः दोषदिदृक्षुभिः राजपुरुषैः कर्णेजपैः बोधितोऽपि दौलतखांमहाशयः नानके दोषं नाऽपश्यत्। महत्सु दोषदर्शनं राजकुलस्य सहजा रीतिः। आदिवसं स्वकार्य सम्पादयन्नसौ संध्याकालेऽन्यैः युवकैः सह एकत्रोपविश्य परमात्मचिन्तनं तन्नामकीर्तनञ्च करोति स्म। दानादिकं च तस्य कर्म तत्रापि सातत्येन चलति स्म। युवकस्य नानकस्य तथाविधां प्रवृत्तिमवेक्ष्य तस्य भगिनीपतिः जयरामः चिन्तितः सन् विवाहबन्धनेन तस्य तां प्रवृत्तिं नियन्तुमियेष। ऊनविंशवर्षे वयसि गुरुदासपुरमण्डलान्तर्गत बहालाग्रामनिवासिनः बाबामूलामहोदयस्य सुलक्षणया ‘सुलक्खिनी’ नाम्न्या कन्यया सह तस्योद्वाहो जातः।
शब्दार्थ – अवेक्ष्य देखकर। नियन्तुमियेष- रोकने की इच्छा की। ऊनविंश उनीस। उद्वाहः – विवाह।
हिंदी अनुवाद – नानक ने उससे (अपने स्वामी से) आदर प्राप्त किया। उसके यश को सहन न करनेवाले, दोषों को देखने की इच्छा रखनेवाले बहुत-से चुगलखोर राजकर्मचारियों के द्वारा बहकाये जाने पर भी दौलत खाँ ने नानक में दोष नहीं देखा। महान् पुरुषों में दोष निकालना राजकुल का स्वाभाविक रिवाज है। दिनभर अपने कार्य को पूरा करते हुए वे शाम के समय दूसरे युवकों के साथ एक जगह बैठकर परमात्मा का चिन्तन और उसके नाम का उच्चारण करते थे। उसका दान आदि का काम वहाँ भी लगातार चलता था। युवक नानक की इस प्रकार की प्रवृत्ति को देखकर उनके बहनोई जयराम ने चिन्तित होते हुए विवाह के बन्धन से उसकी उस प्रवृत्ति को रोकने की इच्छा की। उन्नीस वर्ष की आयु में गुरुदासपुर जिले के ‘बहाला’ ग्राम के रहनेवाले बाबामूला की गुणवती ‘सुलक्खिनी’ नाम की कन्या के साथ उनका विवाह हो गया।
गुरुनानकदेव (Guru nanakdev) गद्य – भारती
एकदा सः स्नानाय नदीं प्रति सेवकेनैकेन सह प्रस्थितः। स्ववस्त्रादीनि सेवकाय समर्थ्य सः नद्यामवतीर्णः। बहुकाले व्यतीते स न निष्क्रान्तस्तदा तस्य सेवकः तं नद्याम् निमग्नमित्यनुमाय गृहं प्रतिनिवृत्य वृत्तमिदं सर्वानश्रावयत्। सर्वे विस्मिताः तद्विरहतापसंतप्ताः परं का गतिरिति चिन्तयन्तो सर्वथा स्तब्धाः जाताः। तस्य भगिनी ‘नानकी’ तु न विश्वसिति स्म। संसारसागराज्जनानुद्धर्तु जगति यस्य जनिः कथं वा नदीजले निमग्नोभवेदिति तस्या दृढो विश्वास आसीत्।
शब्दार्थ – अवतीर्णः जनिः जन्म। उतारा। परावर्तितः लौटा, वापस आया। स्तब्धाः – सन्न रह गये।
हिंदी अनुवाद – एक दिन वे सेवक के साथ स्नान करने के लिए नदी पर गये। अपने वस्त्र आदि सेवक को देकर वे नदी में उत्तर गये। बहुत समय बीत जाने पर भी जब वह लौटकर नहीं आये, तब उनके सेवक ने यह अनुमान करके कि वह नदी में डूब गये, घर वापस आकर सबको यह समाचार सुनाया। सभी लोग सुनकर चकित तथा उनके विरह के दुःख से दुःखी हुए। परन्तु इस विषय में चारा ही क्या है, यह सोचकर सब सत्र रह गये। परन्तु उनकी बहन नानकी को इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था। संसार सागर से लोगों का उद्धार करने के लिए संसार में जिसका जन्म हुआ, वह नदी के जल में कैसे डूब सकता है, यह उसका दृढ़ विश्वास था।
दिनत्रयान्तरं नानकः प्रकटितोऽभूत्। परमाह्लादिताः जनाः ज्योतिषा देदीप्यमानं तस्य मुखमण्डलं दर्श दर्श विस्मिता अभूवन्। मनसो बुद्धेरगोचरं किञ्चिद् दिव्यत्वं तस्मिन् प्रतिष्ठितमिति सर्वेऽन्वभवन्। तस्य मुखादेव दिनत्रयानुपस्थितिरहस्यं जना अश्रृण्वन्। नदीजले निमग्नं तं परमात्मनो दूताः परमात्मनः समीपमनयन्। जगतः विधाता तस्मैऽमृतोपदेशं प्रादात्
दुःखदैन्यतप्तानां क्लेशान् अपहर्तु सदुपदेशेन परमात्मतत्त्वं सत्स्वरूपं च व्याख्यातुं जगति पुनः तस्यादेशात् आगतः इति तेनोक्तम्। भक्तः नानकः गुरुः जातः। लोकरक्षायै दीनानामुद्धाराय मानवजातिषु जातान् वर्णजातिधर्मरूपान् भेदान्अपनेतुं सर्वेषु साम्यं प्रतिष्ठापयितुं त्रिविधतापसंतप्तं लोकममृतोपदेशेन शीतलयितुं गुरुर्नानकः भारतभ्रमणाय मतिं चकार।
शब्दार्थ – परमाह्लादिता अतिप्रसत्र। देदीप्यमानं चमकते हुए। अगोचर अनुभव न होनेवाला। प्रतिष्ठितम् – स्थित । अशृण्वन् सुनते थे, सुना था। अपहर्तुम् दूर करने के लिए।
हिंदी अनुवाद – गुरु नानक की बहन को पूर्ण विश्वास हो गया था कि नानक नदी के जल में डूब गया होगा, किन्तु तीन दिन के बाद गुरु नानक प्रकट हुए। लोग उन्हें देखकर बहुत प्रसत्र थे। अत्यन्त ज्योति से कान्तिमान् उनके मुखमण्डल को देख-देख लोक विस्मित थे। सबने ही उस दिन अनुभव किया कि निश्चित ही इनमें कुछ ऐसा तथ्य स्थित है जो मन और बुद्धि से अगोचर है। उनके तीन दिन तक उपस्थित न रहने का रहस्य लोगों ने उन्हीं के मुख से सुना। नदी के जल में डूबे हुए उनको परमात्मा के दूत परमात्मा के पास ले गये। संसार की रचना करनेवाले ने उन्हें अमृत सदृश उपदेश दिया।
दुःखों और दीनता से संतप्त लोगों के क्लेशों को हरण करने के लिए तथा सुन्दर उपदेशों से परमात्मतत्त्व तथा वस्तुतत्त्व की व्याख्या करने के लिए परमात्मा के आदेश से वे पुनः संसार में आये हैं, ऐसा उन्होंने बताया। अब भक्त नानक गुरु बन गये। लोगों की रक्षा के लिए, दोनों के उद्धार के लिए, मानव जाति में उत्पत्र हुए लोगों का जिनमें वर्ण, जाति और धर्म के रूप में भेद फैले हुए हैं, उनके भेदों को दूर करने के लिए, सब में समता की स्थापना करने के लिए तथा तीनों प्रकार के सन्तापों से पीड़ित लोगों को अपने अमृत तुल्य उपदेश से शीतल करने के लिए गुरुनानक ने भारत भ्रमण का विचार किया।
स्वमातापितरौ स्वपत्नीं स्वसुतौ स्वभगिनीं नानकीं स्वमित्राणि च साधु समाश्वास्य स सुलतानपुरनगरान्निर्जगाम। नगरान्त्रनगरं ग्रामाद्याममटन् धर्मस्य बाह्यचारानाडम्बरभूतान् व्यापारान् विखण्डयन् धर्मस्य सत्स्वरूपं स्थापयन् सर्वस्मिन् तदेकमिति प्रतिपादितवान्। “नेह नानास्ति किञ्चन” इति जनान् सम्यक् बोधयन् जातिवर्णधर्मजनितोच्चावचभेदानपनयन् देशस्योत्तरदक्षिण-पूर्व-पश्चिमभागानां भ्रमणमसौ कृतवान्। सर्वत्र दलितानां पतितानां अपहृताधिकारणां दैन्यग्रस्तानां दुःखतप्तहृदयानां जनानामन्तिकं गत्वा स्वप्रेम्णा मधुरया वाचा अमृतोपदेशेन च तान् सान्त्वयामास। भ्रमणकाले दुःखदैन्यग्रस्तानामुपेक्षितानामेवातिथ्यं तेनाङ्गीकृतम्। परपरिश्रमेणार्जितधनेन जनाः धनिनो जायन्ते अतः ऐश्वर्यवतो निमन्त्रणमपि तस्मै न रोचते स्म। स्वश्रमेणोपार्जित वित्ते विद्यमाना पवित्रता परपरिश्रमार्जितवित्ते कुत्र इत श्रमं प्रति प्रशस्यभावः तेनोदाहृतः।
शब्दार्थ – उच्चावचभेदान् ऊँच-नीच के भेदों को। अपहृताधिकारणां जिनके अधिकार छीन लिये गये। अन्तिक पास में। अङ्गीकृतम् स्वीकार किया। अर्जित वित्ते कमाये हुए धन में।
हिंदी अनुवाद – नानकदेव अपने माता-पिता, दोनों पुत्रों, बहन नानकी तथा अपने मित्रों को आश्वासन देकर सुलतानपुर नगर से निकल गये। एक नगर से दूसरे नगर, एक गाँव से दूसरे गाँव में भ्रमण करते हुए बाह्य आचारों और आडम्बर के कार्यों का खण्डन करते हुए, धर्म के सत्य स्वरूप का प्रतिपादन करते हुए उन्होंने बताया कि सबमें वह एक ही आत्मा है।’ इस संसार में नाना (अनेक) कुछ भी नहीं’ यह लोगों को समझाते हुए जाति, वर्ण और धर्म से उत्पन्न ऊँच-नीच के भेदों को दूर करते हुए उन्होंने देश के उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम भागों का – भ्रमण किया। उन्होंने सब जगह दलितों, पतितों, जिनके अधिकार छीन लिये गये थे दीनता से पीड़ितों, दुःख से पीड़ित हृदयवाले लोगों के पास जाकर अपने प्रेम, मधुर भाषा तथा अमृत के समान उपदेशों से उन्हें शान्त किया। भ्रमण के समय में दुःख और दीनता से पीड़ित तथा उपेक्षित लोगों का ही अतिथि सत्कार उन्होंने स्वीकार किया। दूसरों के परिश्रम से कमाये हुए धन से लोग धनवान् बनते हैं, इस कारण धनवानों का निमन्त्रण भी उन्हें पसन्द न था। स्वपरिश्रम से कमाये हुए धन में जो पवित्रता है, वह दूसरों के कमाये हुए धन में कहाँ? इस प्रकार उन्होंने श्रम के प्रति अच्छी भावना बतायी।
विंशतिवर्ष यावद् तेन समग्रदेशस्य भ्रमणं कृतम्। भ्रमता तेन देशस्य चिन्तनीया दशा दृष्टा। देशचिन्ताचिन्तितः स देशस्योन्नत्यै श्रमस्य प्रतिष्ठां दैन्यपरित्यागमपरिग्रहं सेवाभावादिभावान् प्रसारयामास। समग्रदेशमेकसूत्रे आबद्धं प्रयतमानः स प्रथमो भारतीयो महापुरुषः आसीत्। यवनशासकैः कृतानत्याचारान् वीक्ष्य भृशं खिद्यमानः परमात्मानमुपालम्भितवान्। तेनैव महात्मना भारतं ‘हिन्दुस्तान’ इति नाम्ना संबोधितवान्।
शब्दार्थ – आबद्धम् बाँधने के लिए। उपालम्भितवान् उलाहना दिया, कोसा। खिद्यमानः – खित्र होते हुए।
हिंदी अनुवाद – बीस साल तक उन्होंने सारे देश का भ्रमण किया। घूमते समय उन्होंने देश की चिन्तनीय दशा देखी। उन्होंने देश की चिन्ता से चिन्तित, उन्नति के लिए श्रम की प्रतिष्ठा, दीनता का परित्याग, अपरिग्रह, सेवा भाव इत्यादि भावों का प्रसार किया। सारे देश को एकता के सूत्र में बाँधने के लिए प्रयास करनेवाले वे पहले भारतीय महापुरुष पुरुष थे। मुसलमान शासकों द्वारा। किये गये अत्याचारों को देखकर अत्यधिक खिन्न होकर परमात्मा को उलाहना देने लगे। उन्हीं महात्मा ने भारत को ‘हिन्दुस्तान’ नाम से सम्बोधित किया
गुरुनानकदेव (Guru nanakdev) गद्य – भारती
अथ स स्वविचारान् यथातथ्ये परिणेतुं पंजाबप्रदेशे कर्तारपुरे स्ववसतिं चकार। स्वानुयायिभिः सह कृषिक्षेत्रे कृषिकर्म कुर्वन् वृद्धपितेव तेषु स्थितः परमात्मतत्वं चिन्तयन् विदेह इव सुस्थिरं स्थितः। गुरुणा नानकेन ज्ञानयोगस्य कर्मयोगस्य चाद्भुतं सामञ्जस्यं स्थापितम्। निष्काम कर्मणा सेवावृत्या करुणया सच्छीलेन च गुणैः सच्चारित्र्यस्य सृष्टिर्जायते । सच्चारित्र्यमेव परमात्मनो प्राप्तिहेतुरिति तेन प्रतिपादितम्। तत्रैवासौ ‘लंगर’ इति नाम्नीं सहभोजप्रथां प्रारब्धवान्। तत्र स्वेन निर्मितं भोजनमाबालवृद्धम् नराः नार्यः जातिधर्मवर्णनिर्विशेषाः सर्वेषु सहैवोपविश्य भुञ्जते स्म। एषा प्रथाऽधुनापि गुरुद्वारेषु प्रचलिता दृश्यते।
शब्दार्थ – यथातथ्ये परिणेतुम् सत्य में बदलने के लिए। स्ववसतिं अपना निवास स्थान। विदेह इव ” जनक की तरह। सच्छीलेन अच्छे स्वभाव से। आबालवृद्धम् बच्चों से लेकर बूढ़ों तक
हिंदी अनुवाद – इसके बाद वह अपने विचारों को वास्तविकता में बदलने के लिए पंजाब प्रान्त में कर्तारपुर में अपना निवास-स्थान बनाया। अपने अनुयायियों के साथ खेत में खेती का काम करते हुए उनमें बूढ़े पिता की तरह स्थित परमात्मा के स्वरूप का चिन्तन करते हुए विदेह (जनक की तरह, देहरहित) की तरह अच्छी तरह स्थिर होकर रहने लगे। गुरुनानक ने ज्ञान-योग और कर्म-योग का विचित्र समन्वय (मेल) स्थापित किया। निःस्वार्थ कर्म, सेवाभाव, करुणा और उत्तम चरित्र के गुणों से सच्चरित्रता उत्पन्न होती है। सच्चरित्र का पालन ही परमात्मा के प्राप्ति का कारण होता है, ऐसा उन्होंने प्रतिपादित किया। वहीं पर उन्होंने ‘लंगर’ नाम के सहभोज प्रथा (सबके साथ में भोजन करने का रिवाज) शुरू किया। वहाँ अपने हाथ से बनाये हुए भोजन को बालक से लेकर बूढ़े तक स्त्री-पुरुष, जाति, धर्म, वर्ण को छोड़कर (भूलकर) सब साथ ही बैठकर खाते थे। यह प्रथा इस समय भी गुरुद्वारों में प्रचलित दिखायी देती है।
षण्णवत्युत्तरपञ्चदशशततमे वैक्रमे वर्षे आश्विनमासस्य कृष्णपक्षे दशम्यान्तिथौ (आ०कृ०-10, वि0 1596) गुरोरात्मतत्त्वं परमात्मतत्त्वे विलीनम्।
गुरुः सप्ततिवर्ष यावद् धरामलङ्कुर्वाणः सेवाभावस्य, परस्परं प्रेम्णः राष्ट्रभक्तेः देशानुरागस्य देशस्याखण्डतायाः परमात्मनः करुणायाश्च गीतं जिगाय। गुरुर्नानकोऽस्माकमितिहासपृष्ठेषु स्वर्णाक्षरैरङ्कितः सदा स्थास्यति ।
हिंदी अनुवाद – आश्विन (कुवार) कृष्ण दशमी संवत् 1596 को गुरु की आत्मा परम तत्त्व में विलीन हो गयी। गुरु ने सत्तर वर्ष तक पृथ्वों को सुशोभित करते हुए सेवाभाव, आपस में प्रेम, राष्ट्र-भक्ति, देश-प्रेम, देश की अखण्डता और ईश्वर की करुणा का गीत गाया। गुरुनानक हमारे इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में सदा अंकित रहेंगे।
गुरुनानक देवः [ पाठ का सारांश ]
सिख धर्म के आदि संस्थापक गुरुनानक का जन्म पंजाब प्रदेश के तलवण्डी नामक स्थान में वैशाख सुदी तृतीया वि0 1526 को क्षत्रिय वंश के वेदी कुल में हुआ था। इनकी माता का नाम तृप्ता देवी और पिता का नाम कालू मेहता था। इनका पालन-पोषण बड़े स्नेह से हुआ था किन्तु बचपन से ही एकान्त में बैठकर ध्यानमग्न देखे जाते थे।
जब ये पढ़ने के लिए पाठशाला में भेजे गये, तब वहाँ पट्टी पर उन्होंने जो कुछ लिखा उसे देखकर अध्यापक चकित हो गया। उन्होंने उस पर परमात्मा की महिमा का वर्णन किया था। यज्ञोपवीत के समय उन्होंने उसे निरर्थक बतलाया। उनकी इस प्रवृत्ति को देखकर उनके पिता बहुत चिन्तित हुए और उन्हें बीस रुपये देकर व्यापार करने के लिए भेज दिया। रास्ते में भूखे-प्यासे गरीबों को देखकर उनका मन द्रवित हो गया और उसका अन्न खरीद कर उन्हें देकर घर खाली हाथ वापस लौट आये।
इस वृत्तान्त को सुनकर उनके पिता बहुत दुःखी हुए। इसके बाद उनके बहनोई उन्हें सुल्तानपुर ले आये। वहाँ उनके व्यवहार और मधुर वाणी से प्रसन्न होकर वहाँ का शासक नवाब दौलत खाँ ने उन्हें अपने अन्न भण्डार में नियुक्त कर दिया। इसके बाद उनके जीजा नेसुलक्खिनी नाम की कन्या से उनका विवाह कर दिया।
एक दिन वह नौकर के साथ नदी में नहाने गये और नदी में उतरने के बाद बहुत समय तक बाहर नहीं आये। लोगों ने समझा वे डूब गये, किन्तु उनकी बहन ‘नानकी’ को विश्वास नहीं हुआ। तीन दिन बाद वे पुनः प्रकट हुए और बताया कि परमात्मा के दूत उन्हें उनके पास ले गये थे। अब मैं लोक-रक्षा के लिए, दीनों के उद्धार के लिए, मानव जाति के भेद-भावों को दूर करने के लिए उनका सन्देश लेकर आया हूँ। इस प्रकार नानक गुरु हो गये और भारत का भ्रमण कर धर्म के सच्चे रूप को बताते हुए जाति, वर्ण, धर्म आदि के आपसी भेदों को दूर करने में लग गये। वे दीन-दुःखियों के सच्चे सेवक थे। सदा उनकी सहायता में लगे रहते थे।
बीस वर्ष तक उन्होंने भारत भ्रमण किया और देश की दयनीय दशा को देखकर खिन्न होकर परमात्मा को भी उलाहना दिया। उन्होंने ही भारत को ‘हिन्दुस्तान’ नाम से सम्बोधित किया।
गुरुनानक देवः (MCQ)
नोट : प्रश्न-संख्या 1 एवं 2 गद्यांश पर आधारित प्रश्न हैं। गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और उत्तर का चयन करें।
एकदा तस्य जनकः विंशतिरूप्यकाणि तस्मै दत्वा वाणिज्यार्थं तं प्रेषितवान् । पथि क्षुत्पिपासादिभिः क्लिश्यमानान् दुर्बलान् क्षीणकायान् साधून् सोऽपश्यत्। तेषां क्लेशातिशयतापसंतप्तां दशामवलोक्य तस्य हृदयं नवनीतमिव द्रवीभूतं जातम्। ताभिः मुद्राभिरत्नं क्रीत्वा तेभ्यः समर्य्य परां शान्तिमनुभूयमानः गृहं प्रत्याजगाम। पित्रा लाभाय रूप्यकाणि प्रदत्तानि। मया तु पूर्णलाभः लब्धः ।
1. उक्त गद्यांश का शीर्षक है-
(क) गुरुनानक देवः
(ख) लोकमान्यतिलकः
(ग) ज्ञानं पूततरं सदा
(घ) वयं भारतीयाः
उत्तर- (क) गुरुनानक देवः
2. जनकः तस्मै कति रुप्यकाणि अददात् ?
(क) पञ्चाशत्
(ख) विंशतिः
(ग) एकादश
(घ) शतम्
उत्तर- (ख) विंशतिः
3. सः कुत्र साधून् अपश्यत् ?
(क) नगरे
(ख) ग्रामे
(ग) पथि
(घ) आपणे
उत्तर- (ग) पथि
4 . गुरुनानकदेवस्य जन्म कस्मिन् ईसवीये वर्षे अभवत् ?
(क) 1526
(ख) 1496
(ग) 1596
(घ) 1539
उत्तर- (क) 1526
5. ‘ननकानासाहेब’ कस्मिन् देशे अस्ति ?
(क) भारते
(ख) पाकिस्तानदेशे
(ग) नेपाले
(घ) लङ्कायाम्
उत्तर- (ख) पाकिस्तानदेशे
6. नानकस्य भगिनीपतिः तं कुत्र अनयत् ?
(क) प्रयागराजम्
(ख) सुल्तानपुरम्
(ग) मथुराम्
(घ) जौनपुरम्
उत्तर- (ख) सुल्तानपुरम्
7. नानकी नानकस्य………आसीत् ?
(क) माता
(ख) भगिनी
(ग) गुरुमाता
(घ) मातामही
उत्तर-(ख) भगिनी
8. कति वर्षाणि यावत् नानकेन समग्रदेशस्य भ्रमणं कृतम् ?
(क) दश
(ख) द्वादश
(ग) विंशतिः
(घ) नव
उत्तर-(ग) विंशतिः
9. गुरुनानकदेवस्य जन्म कुत्र अभवत् ?
(क) पंजाब प्रान्ते
(ख) सिन्धु प्रान्ते
(ग) मध्य प्रान्ते
(घ) हरियाणा प्रान्ते
उत्तर- (क) पंजाब प्रान्ते
10. सिखधर्मस्य संस्थापकः कः ?
(क) गुरुनानकदेवः
(ख) गुरुगोविन्दसिहः
(ग) गुरुतेगबहादुरः
(घ) ऊधमसिंहः
उत्तर- (क) गुरुनानकदेवः
11. गुरुनानक देवस्य पितुर्नाम किम् आसीत् ?
(क) मेहता रामदासः
(ख) मेहता भगवानदासः
(ग) मेहता कल्याणदासः
(घ) मेहता मोहनदासः
उत्तर-(ग) मेहता कल्याणदासः
12. गुरुनानक देवस्य जनकः वाणिज्यार्थं कति रुप्यकाणि अददात् ?
(क) विंशति
(ख) पञ्चविंशतिः
(ग) त्रिंशत्
(घ) पञ्चत्रिशत्
उत्तर- (क) विंशति
13. नानकस्य भगिनीपतिः किं नाम् आसीत् ?
(क) रामनाथः
(ख) जयरामः
(ग) सियारामः
(घ) दयारामः
उत्तर- (ख) जयरामः
14. गुरुनानक देवस्य मातुर्नाम का?
(क) तृप्तादेवी
(ख) सुभद्रा
(ग) कल्याणी
(घ) छविमति देवी
उत्तर- (क) तृप्तादेवी