UP Board Solution of Class 10 Sanskrit Chapter 12 दीनबन्धुः ज्योतिबाफुले [Deenbandhu Jyotiba Fule] Sanskrit Gady Bharati

UP Board Solution of Class 10 Sanskrit Chapter 12 दीनबन्धुः ज्योतिबाफुले [Deenbandhu Jyotiba Fule] Sanskrit Gady Bharati  दीनबन्धुः ज्योतिबाफुले

Subject / विषयसंस्कृत (Sanskrit)
Class / कक्षा10th
Chapter( Lesson) / पाठChpter -10
Topic / टॉपिकदीनबन्धुः ज्योतिबाफुले
Chapter NameDeenbandhu Jyotiba Fule
All Chapters/ सम्पूर्ण पाठ्यक्रमकम्पलीट संस्कृत बुक सलूशन

ज्योतिरावगोविन्दराव इत्याख्यस्य जन्म अप्रैल मासस्य एकादश दिनांके सप्तविंशत्यधिक अष्टादश ख्रीष्टाब्दे (11 अप्रैल, 1827) पुणे नामके स्थाने ऽभवत्। अयं महात्मा फुले एव ज्योतिबाफुले नाम्ना प्रचलितो एको महान भारतीय विचारकः, समाज सेवकः, लेखकः, दार्शनिकः, क्रान्तिकारी, कार्यकर्ता च आसीत्। त्र्यधिकसप्ततिः अष्टादशशततमे ख्रीष्टाब्दे (1873) अयं महाराष्ट्र सत्यशोधकसमाजनामकीं संस्थां संगठितवान्। नारीणां दलितानाञ्चोत्थानायायमनेकानि कार्याण्यकरोत् । भारतीयाः मानवाः सर्वे शिक्षिताः स्युः अस्य एतत् चिन्तनमासीत्। तस्य पूर्वजाः पूर्वं सतारातः आगत्य पुणे नगरं प्रत्यागत्य पुष्पमालां गुम्फयन् स्वजीवनं निर्वापयामास । परिणामस्वरूपे मालाकारस्य कार्ये संलग्नाः इमे ‘फुले’ नाम्ना विख्याताः अभवन्।

सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत गद्य भारती’ के ‘दीनबन्धु ज्योतिबा फुले’ शीर्षक पाठ से अवतरित है। इस गद्यांश में ज्योतिबा फुले द्वारा किये गये कार्यों का वर्णन है।

हिंदी अनुवाद – ज्योतिराव गोविन्दराव का जन्म 11 अप्रैल, 1827 ई0 को पुणे नामक स्थान पर हुआ था। ये महात्मा फुले एवं ज्योतिबा फुले नाम से प्रसिद्ध एक महान भारतीय विचारक, समाज सेवक, लेखक, दार्शनिक, क्रांतिकारी कार्यकर्त्ता थे। 1873 ई० में इन्होंने महाराष्ट्र में सत्यशोधक समाज नामक संस्था का गठन किया। स्वियों एवं दलितों के उत्थान के लिए अनेक कार्य किये। सभी भारतीय शिक्षित हो, उनका ऐसा विचार था। इनके पूर्वज सतारा से पुणे आकर फूलों की माला बनाकर अपना जीवनयापन करने लगे। फलस्वरूप माला कार्य में संलग्न होने से ये फुले नाम से प्रसिद्ध हुए।

महानुभावोऽयं प्रारम्भिक काले मराठी भाषां अपठत् किन्तु दैववशात् अस्य शिक्षा मध्येऽवरुद्धा संजाता। सः पुनः पठितुं मनसि विचार्य एकविंशति वर्षस्यावस्थायां आँग्लभाषायाः सप्तम्याः कक्षायाः शिक्षां पूरितवान्।  चत्वारिंशत् अधिका ष्टादशशततमे (1840) ख्रीष्टाब्दे अस्य विवाहः सावित्री नाम्नाः कन्यया साकमभवत्। अस्य भार्यापि स्वयमपि एका प्रसिद्धा समाजसेविका संजाता। समाजस्योन्त्रतये स्वभार्यया सह मिलित्वाऽयं दलितोत्थानाय स्त्रीशिक्षायै च कार्यमकरोत्।

हिंदी अनुवाद –  इस महोदय ने प्रारम्भिक काल में मराठी को पढ़ा किन्तु भाग्यवश इनकी शिक्षा बीच में ही रुक गयी। उन्होंने पुनः पढ़ने का विचार करके इक्कीस वर्ष की अवस्था में अंग्रेजी भाषा से सातवीं कक्षा की शिक्षा पूरी की। सन् 1840 ई० में इनका विवाह सावित्री नाम की कन्या के साथ हुआ। इनकी पत्नी भी स्वयं ही एक प्रसिद्ध समाजसेविका हुईं। समाज की उन्नति के लिए अपनी पत्नी के साथ मिलकर इन्होंने दलितों के उत्थान और स्त्री-शिक्षा के लिए कार्य किए।

ज्योतिबा फुले भारतीय समाजे प्रचलितजात्याधारितविभाजनस्य पक्षे नासीत्। सः वैधव्ययुक्तानां नारीणां एवं अपराणांनारीणां कृते महत्त्वपूर्णं कार्यं कृतवान्। कृषकाणां दशां वीक्ष्य दुःखितोऽयं तेषां उद्धाराय सतत् प्रयत्नशीलः आसीत्। स्त्रीणांमसफलतायाः कारणं तेषामशिक्षैव विद्यते इति विचार्य सः अष्ट चत्वारिंशत् अधिकाष्टादश ख्रीष्टाब्दे (1848 ई.) एकः विद्यालयः संचालितवान्। अस्य कार्याय देशस्यायं प्रथमो विद्यालयः आसीत्। बालिका शिक्षायै शिक्षिकायाः स्वल्पता दृष्ट्वा सः स्वयमेव शिक्षकस्य भूमिकां अनिर्वहत्। अनन्तरं स्वभार्या शिक्षिकारूपेण नियुक्तवान्।

हिंदी अनुवाद – ज्योतिबा फुले भारतीय समाज में प्रचलित जाति विभाजन के पक्ष में नहीं थे। इन्होंने विधवा स्वियों एवं अन्य स्वियों के लिये महत्त्वपूर्ण कार्य ‘किया। कृषकों की दशा देखकर ये दुःखी थे। उनके उद्धार के लिये ये निरन्तर प्रयत्नशील थे। स्त्रियों की असफलता का कारण अशिक्षा है ऐसा विचार करके उन्होंने 1848 ई. में एक विद्यालय का संचालन किया। यह देश का प्रथम बालिका विद्यालय था। लड़कियों की शिक्षा के लिए शिक्षिकाओं की कमी को देखकर इन्होंने स्वयं शिक्षक की भूमिका का निर्वहन किया। इसके बाद इनकी पत्नी शिक्षिका के रूप में नियुक्त हुईं।

उच्चसंवर्गीयाः जनाः प्रारम्भ कालाद् एव तस्य कार्ये बाधां स्थापयितुं कटिबद्धाः आसन्। परञ्च अयं स्वकार्ये प्रयतमानः अग्रगण्यः अभवत्। तं अग्रे गतिशीलं दृष्ट्वा ते दुर्जनाः तस्य पितरं प्रति अशोभनीयं कथनम् अकथयन् । ते दुर्जनाः एव दम्पतिं स्वगृहात् बहिः प्रेषितवन्तः। स्वगृहात् बहिर्गमने सति तथ्य कार्यावरुद्धं संजातम् परञ्च शीघ्रातिशीघ्रमेव सः बालिकाशिक्षार्यं त्रयो विद्यालयाः उद्घाटित्तवान् ।

हिंदी अनुवादउच्चवर्गीय लोग प्रारम्भिक काल से ही उनके कार्य में बाधा डालने के लिए कटिबद्ध थे। परन्तु ये अपने कार्य में निरन्तर अग्रगण्य रहे। उनकी आगे बढ़ने की गतिशीलता को देखकर उन दुर्जनों ने उनके पिता के प्रति अशोभनीय बातें भी कहीं। पति-पत्नी को अपने घर से बाहर भेज दिया। अपने घर से बाहर निकलने से उनका कार्य रुक गया, परन्तु अति शीघ्र ही उन्होंने बलिकाओं की शिक्षा के लिए तीन विद्यालय खोल दिए।


अस्य हृदि सन्तमहात्मानं प्रति बहुरुचिरासीत्। तस्य विचारेषु ईश्वरस्य सम्मुखे नर-नारी सर्वे समानाः सन्ति। तेषु श्रेष्ठता लघुता अशोभनीया विद्यते। दलितजनानामसहायानाञ्च न्यायार्थं महापुरुषोऽयं ‘सत्यशोधक समाजम्’ स्थापितवान्। अस्य सामाजिकसेवाकार्यं विलोक्य अष्टाशीति अधिकाष्टादशशततमे ख्रीष्टाब्दे (1888 ई.) मुम्बई नगरस्य एका विशाल सभा तं ‘महात्मा’ इत्युपाधिना अलंकृतवान्। ज्योतिबा महोदयेन ब्राह्मण पुरोहितेन बिनैव विवाह संस्कारमकारयत्। अस्य संस्कारस्य मुम्बई न्यायालयात् मान्यता सम्प्राप्ता। स तु बालविवाहस्य विरोधी एवञ्च विधवा विवाहस्य समर्थकः आसीत्।

हिंदी अनुवाद –-इनके हृदय में सन्त-महात्माओं के प्रति बहुत रुचि थी। उनके विचार में ईश्वर के समक्ष नर-नारी सभी समान हैं। उनमें उच्च-निम्न का भाव अशोभनीय है। दलित लोगो की सहायता एवं न्याय के लिए इन्होंने ‘सत्य शोधक समाज’ की स्थापना की। इनके सामाजिक कार्य को देखकर 1888 ई० में मुम्बई नगर की एक विशाल सभा में इन्हें महात्मा की उपाधि से अलंकृत किया गया। ज्योतिबा महोदय ने बिना ब्राह्मण के ही विवाह संस्कार कराया। इस संस्कार को मुम्बई न्यायालय से मान्यता प्राप्त हुई। वे बाल विवाह के विरोधी एवं विधवा विवाह के समर्थक थे।

स्वजीवनकाले स तु अनेकानि पुस्तकानि अलिखत् यथा-तृतीय रत्नं, छत्रपति शिवाजी, राजाभोसले इत्याख्यस्य पँवाडा, ब्राह्मणानां चातुर्यम्, कृषकस्य कशा (किसानों का कोड़ा) अस्पृश्यानां समाचारं (अछूतों की कैफियत) इत्यादयः। महात्मा ज्योतिबा एवं तस्य संगठनस्य संघर्ष कारणात् सर्वकारेण ‘एग्रीकल्चरएक्ट’ इति स्वीकृतम्। धर्मसमाजस्य परम्परायाः सत्यं सर्वेषां सम्मुखमानेतुं तेन अन्यानि अपराणि पुस्तकानि रचितानि। ज्योतिबा बुद्धिमान्, महान् क्रान्तिकारी, भारतीय विचारकः, समाज सेवकः, लेखकः दार्शनिकश्चासीत्। महाराष्ट्रनगरे धार्मिक संशोधनमान्दोलनं प्रचलनासीत्।

हिंदी अनुवाद – अपने जीवन काल में इन्होंने अनेक पुस्तकें लिखीं, यथा-तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी राजा भोंसले पवाडा, ब्राह्मणों की चतुरता, किसानों का कोड़ा, अछूतों की कैफियत आदि। महात्मा ज्योतिबा फुले एवं उनके संगठन के संघर्ष के कारण ‘एग्रीकल्चर एक्ट’ स्वीकृत हुआ। धर्म समाज की परम्परा के सत्य को सभी के सम्मुख लाने के लिए उन्होंने अनेक पुस्तकों की रचना की। ज्योतिबा बुद्धिमान, महान् क्रांतिकारी, भारतीय विचारक, समाज सेवक, लेखक और दार्शनिक थे। महाराष्ट्र नगर में धार्मिक संशोधन आन्दोलन प्रचलित था।

जातिप्रथामुन्मूलनार्थमेकेश्वरवादं स्वीकर्तुं ‘प्रार्थना समाजस्य’ स्थापना संजाता। अस्य प्रमुखः गोविन्द रानाडे आरजी भण्डारकरश्चासीत्। अयं महान् समाजसेवकः अस्पृश्यानां उद्धाराय सत्यशोधक समाजस्य स्थापनां अकरोत्। महात्मा ज्योतिबा फुले (ज्योतिराव गोविन्द राव फुले) महोदयस्य मृत्युः नवम्बर मासस्य अष्टविंशति दिनांके नवत्यधिक अष्टादशशततमे खीष्टाब्दे (28 नवम्बर, 1890 ई.) पुणे नगरे अभवत्।

हिंदी अनुवाद – जाति प्रथा के उन्मूलन हेतु एकेश्वरवाद को स्वीकार करने के लिए प्रार्थना समाज की स्थापना हुई। इसके प्रमुख गोविन्द रानाडे एवं आर० जी० भण्डारकर थे। इस महान समाज सेवक ने अस्पृश्यों के उद्धार के लिए सत्य सेवक समाज की स्थापना की। महात्मा ज्योतिबा फुले महोदय की मृत्यु, 28 नवम्बर, 1890 ई0 को पुणे नगर में हुई।


अस्पृश्यानां दुःखोन्मूलने अस्य भूमिका अकथनीया विद्यते। पुणे नगरे दलितानां गतिः शोचनीयासीत्। उच्च जातीनां कूपात् जलं नेतुं ते मुक्ताः नासन्। ते दलिताः सन्ति। अतः तेषां तस्मात् कूपात् जलं आनेतुं नाधिकारः । दलितानामेतादृशीं दुर्दशां दृष्ट्वा तस्य हृदयं विदीर्णो जातः। तदैव सः स्वमनसि विचारयामास यत् एषाम् दुःखम् दूरी करणीयम्। अयं महानुभावः तेषां अमानवीयं व्यवहारं दृष्ट्वा सः स्व गृहस्य जल संचय कूपं अस्पृश्यानां कृते मुक्तं कृतवान्। सः नगरपालिकायाः सदस्यः आसीत्। अतः तेषां कृते सार्वजनिक स्थाने जल सञ्चय कूपम् स्यात् एतत् प्रबन्धनं कृतम्। मालाकार समाजस्य महात्मा ज्योतिबा फुले एव एतादृशः महामानवः आसीत्। यः निम्न जातीनां जानानां कृते समानतायाः अधिकारस्य आजीवनं कार्यमकरोत्।

हिंदी अनुवाद –अस्पृश्यों के दुःख उन्मूलन में इनकी भूमिका अकथनीय है। पुणे नगर में दलितों की दशा शोचनीय थी। उच्च जातियों के कुएँ से वे जल लेने के लिए स्वतंत्र नहीं थे। दलितों की ऐसी दुर्दशा देखकर उनका हृदय विदीर्ण हो गया। तभी उन्होंने अपने मन में विचार किया कि इस प्रकार का दुःख दूर करने योग्य है। ये महानुभाव उनके अमानवीय व्यवहार को देखकर अपने घर के कुएँ को अस्पृश्यों के लिए मुक्त कर दिया। वे नगरपालिका के सदस्य थे। इसलिए उनके (दलितों) लिए सार्वजनिक स्थानों पर जल संग्रह एवं कुओं का प्रबन्ध किया। महात्मा ज्योतिबा फुले माली समाज के महामानव थे। इन्होंने निम्न जातियों के लोगों के समानता के अधिकार के लिए आजीवन कार्य किया।


अस्य सहधर्मचारिणी सावित्रीबाई अस्य कार्येण प्रभाविता आसीत्। अतः सा नारी शिक्षेतुं कटिबद्धासीत्। यदा सा नारीं पाठयितुं प्रारब्धवती तदैव दलितविरोधिनः उच्चस्वरैः विरोधं प्रकटयन् उक्तवन्तः। यत् एका हिन्दूनारी शिक्षिका भूता समाजस्य धर्मस्य च विरोधं कर्तुं शक्नोति। नारी जातेः पठन-पाठनं धर्मविरुद्धं वर्तते। सावित्रीबाई यदा विद्यालयं गच्छति स्म तदा तस्याः उपरि मृत्तिकां-गोमयं-प्रस्तरखण्डं नारी शिक्षा विरोधिनः प्रक्षेपयन्ति स्म। एवञ्च व्यंग्यवाणैः अपीडयन् तथापि सा स्वकर्त्तव्यात् विमुखा न संजाता। मराठी शिक्षकः शिवरामभवालकरः अस्याः प्रशिक्षकः आसीत्। इयं उपेक्षितानां दलित नारीणां कृते बहु विद्यालयं संचालितवती ।

हिंदी अनुवाद –इनकी पत्नी सावित्री बाई इनके कार्य से प्रभावित थीं। इसलिए ये नारी शिक्षा के लिए कटिबद्ध थीं। जब इन्होंने नारियों को पढ़ाना शुरू वि.या तो दलित विरोधी लोग उच्च स्वर में विरोध करते हुए कहते थे कि एक हिन्दू नारी शिक्षिका होकर समाज धर्म का विरोध करने के लिए क्या सक्षम है? नारी जाति का पठन-पाठन धर्मविरुद्ध है। सावित्री बाई जब विद्यालय जाती थीं तब विरोधी लोग उनके ऊपर कीचड़, गोबर और पत्थर के टुकड़े फेंकते थे और व्यंग्य करते थे। फिर भी वे अपने कर्तव्य से विमुख नहीं हुईं। मराठी शिक्षक, शिवराम भवालकर इनके प्रशिक्षक थे। ये उपेक्षित दलित नारियों के लिए उसी प्रकार बहुत से विद्यालयों का संचालन करती थी।

द्विपंचाशत् अधिकाष्टादशशततमे ख्रीष्टाब्दे फरवरी मासस्य सप्तदशदिनांके (17 फरवरी, 1852) अस्य विद्यालयस्य निरीक्षणं संजातम्। परिणामस्वरूपे अस्य अष्टादश विद्यालयाः संचालिताः अभवन्। नवम्बरमासस्य षोडश दिनांके विश्रामबाड़ा इत्यस्मिन् स्थाने सार्वजनिक अभिनन्दनसमारोहे अस्याः अभिनन्दनं सम्पन्नम्। अस्माकं देशस्य इतिहासे सावित्री फुले प्रथम दलित शिक्षिकायाः गौरवेणालंकृता।

हिंदी अनुवाद –  17 फरवरी, 1852 ई0 में विद्यालय की निरीक्षक हो जाने के परिणामस्वरूप इनके 18 विद्यालय संचालित हो गये। 16 नवम्बर को विश्रामबाड़ा स्थान पर सार्वजनिक अभिनन्दन समारोह में इनका अभिनन्दन सम्पन्न हुआ। हमारे देश के इतिहास में सावित्री फुले ने प्रथम दलित शिक्षिका के गौरव को सुशोभित किया।

        

              दीनबन्धु ज्योतिबा फुले [ पाठ का सारांश ]

ज्योतिराव गोविन्दराव का जन्म 11 अप्रैल, 1827 ई0 में पुणे नामक स्थान पर हुआ था। ये महात्मा फुले एवं ज्योतिबा फुले नाम से चर्चित थे। ये महान भारतीय विचारक, समाज सेवक, लेखक, दार्शनिक एवं क्रांतिकारी कार्यकर्त्ता थे। 1873 ई0 में इन्होंने महाराष्ट्र में ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की। स्त्रियों एवं दलितों के लिए उन्होंने अनेक कार्य किये। उनका विचार था कि सभी भारतीय शिक्षित हों।

इनके पूर्वज सतारा से पुणे आकर फूलों की माला बनाकर अपना जीवन- यापन करने लगे। फूल माला का कार्य करने के कारण ये फुले के नाम से प्रसिद्ध हुए। ज्योतिबा फुले की प्रारम्भिक शिक्षा मराठी भाषा में हुई किन्तु दुर्भाग्य से इनकी शिक्षा बीच में अवरुद्ध हो गयी। इक्कीस वर्ष की अवस्था में आंग्ल- भाषा से सातवीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1840 ई0 में इनका विवाह सावित्री नाम की कन्या के साथ हुआ। इनकी पत्नी भी स्वयं एक समाज सेविका हो गयीं। समाज की उन्नति के लिए अपनी पत्नी के साथ मिलकर इन्होंने दलित उत्थान एवं स्त्री शिक्षा के लिए कार्य किया। कृषकों की दयनीय देशा देखकर ये अत्यन्त दुःखी थे। ज्योतिबा फुले भारत में प्रचलित जाति विभाजन के पक्ष में नहीं थे। ये उनके उद्धार के लिए निरन्तर प्रयत्नशील थे। उनका विचार था कि स्त्रियों की असफलता का कारण अशिक्षा है। इसलिए इन्होंने 1848 ई0 में एक विद्यालय का संचालन किया। यह देश का प्रथम बालिका विद्यालय था। लड़कियों की शिक्षा के लिए शिक्षिकाओं की घोर कमी थी। इसे देखते हुए उन्होंने स्वयं शिक्षक की भूमिका का निर्वहन किया। इसके पश्चात् इनकी पत्नी शिक्षिका के रूप में नियुक्त हुईं। प्रारम्भ में उच्च वर्ग के लोगों ने इनके कार्य में बाधा डालने का प्रयत्न किया किन्तु ये निरन्तर प्रयत्नशील थे। शीघ्रातिशीघ्र इन्होंने तीन बालिका विद्यालयों की स्थापना की।

पुणे नगर में दलितों की दशा अत्यन्त शोचनीय थी। उच्च जातियों के कुएँ से उन्हें जल देने की मनाही थी। ऐसी स्थिति देखकर उनका हृदय विदीर्ण हो गया। उन्होंने अपने घर के कुएँ को अस्पृश्यों के लिए मुक्त कर दिया। इन्होंने निम्न जातियों के लोगों की समानता के अधिकार के लिए निरन्तर कार्य किया।

इनकी पत्नी सावित्री बाई इनके कार्य से प्रभावित थीं। सावित्री बाई ने जब स्त्रियों को पढ़ाना शुरू किया तो दलित विरोधी लोग घोर विरोध करते थे। सावित्री * बाई जब पढ़ाने के लिए विद्यालय जाती थीं तब विरोधी लोग उनके ऊपर कीचड़, गोबर और पत्थर के टुकड़े फेंकते थे और व्यंग्य कसते थे। फिर भी वे अपने कर्तव्य से विमुख नहीं हुईं। 17 फरवरी, 1852 ई0 में विद्यालय की निरीक्षक हो जाने के परिणामस्वरूप इनके 18 विद्यालय संचालित हो गये। 16 नवम्बर को विश्रामबाड़ा स्थान पर सार्वजनिक अभिनन्दन समारोह में इनका अभिनन्दन सम्पन्न हुआ।

ज्योतिबा के हृदय में सन्त महात्माओं के प्रति अगाध श्रद्धा थी। इनके विचार में ईश्वर के समक्ष सभी नर-नारी समान हैं। उनमें उच्च निम्न का भाव अशोभनीय है। इनके सामाजिक कार्यों को देखकर 1880 ई0 में मुम्बई नगर की एक विशाल सभा में इन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि से अलंकृत किया गया। ज्योतिबा फुले ने बिना ब्राह्मण के ही शादी-विवाह कराया और उसे मुम्बई उच्च न्यायालय से मान्यता भी दिलाई। ये बाल विवाह के घोर विरोधी थे एवं विधवा विवाह के प्रबल समर्थक थे। अपने जीवन काल में इन्होंने अनेक पुस्तकों की रचना की, जैसे-तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी राजा भोंसले पवाडा, ब्राह्मणों की चतुरता, किसानों का कोड़ा, अछूतों की कैफियत आदि। महात्मा ज्योतिबा एवं उनके संगठन के संघर्ष के कारण ‘एग्रीकल्चर एक्ट’ स्वीकृत हुआ। जाति प्रथा के उन्मूलन हेतु एकेश्वरवाद को स्वीकार करने के लिए प्रार्थना समाज की स्थापना हुई। इसके प्रमुख गोविन्द रानाडे एवं आर० जी० भण्डारकर थे। इस महान् समाज सेवक ने अस्पृश्यों के उद्धार हेतु सत्य सेवक समाज की स्थापना की। – दीनबन्धु ज्योतिबा फुले की मृत्यु 28 नवम्बर, 1890 ई0 को पुणे नगर में हुई।

दीनबन्धुः ज्योतिबाफुले (MCQ) 

नोट : प्रश्न-संख्या 1 एवं 2 गद्यांश पर आधारित प्रश्न हैं। गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और उत्तर का चयन करें।

ज्योतिरावगोविन्दराव इत्याख्यस्य जन्म अप्रैल मांसस्य एकादश दिनांके सप्तविंशत्यधिक अष्टादश ख्रीष्टाब्दे (11 अप्रैल, 1827) पुणे नामके स्थानेऽभवत्। अयं महात्मा फुले एवं ज्योतिबा फुले नाम्ना प्रचलितो एको महान भारतीय विचारकः, समाज सेवकः, लेखकः, दार्शनिकः, क्रान्तिकारी, कार्यकर्त्ता च आसीत्। त्रयोधिकसप्ततिः अष्टादशशततमे ख्रीष्टाब्दे (1873) अयं महाराष्ट्र सत्यशोधकसमाजनामकीं संस्थां संगठितवान्।

1. प्रस्तुतगद्यांशस्य पाठनाम किम् ?

(क) नैतिकमूल्यानि

(ख) मदन मोहन मालवीयः

(ग) दीनबन्धु ज्योतिबा फुले

(घ) गुरुनानक देवः

उत्तर-(ग) दीनबन्धु ज्योतिबा फुले

2. ज्योतिबाफुलेमहोदयस्य जन्मस्थानम्-

(क) सतारा

(ख) विदर्भ

(ग) पुणे

(घ) अमरावती

उत्तर-(ग) पुणे

3. ‘सत्यशोधकसमाजस्य’ स्थापना कदा अभवत् ?

(क) 1874

(ख) 1873

(ग) 1875

(घ) 1876

उत्तर- (ख) 1873

4. ज्योतिबाफुले ‘महात्मा’ इत्युपाधिना कदा अलङ्कृतः ?

(क) 1889

(ख) 1888

(ग) 1887

(घ) 1890

उत्तर- (ख) 1888

5. महात्माज्योतिबाफुलेमहोदयस्य मृत्युः कस्मिन् मासेऽभवत् ?

(क) सितम्बरमासे

(ख) नवम्बरमासे

(ग) अक्टूबरमासे

(घ) दिसम्बरमासे

उत्तर-(ख) नवम्बरमासे

6. ज्योतिबाफुले कति विद्यालयान् संचालितवान् ?

(क) द्वादश

(ख) षोडश

(ग) अष्टादश

(घ) एकादश

उत्तर-(ग) अष्टादश

7.कस्य विचारेषु ईश्वरस्य सम्मुखे नर-नार्यो समाने स्तः ?

(क) गोविन्द रानाडे

(ख) आर० जी० भण्डारकरः

(ग) ज्योतिबाफुले

(घ) मदनमोहनमालवीयः

उत्तर-(ग) ज्योतिबाफुले

8. अस्माकं देशस्य इतिहासे प्रथमदलितशिक्षिका इति गौरवेणालङ्कृता?

(क) सावित्रीबाईफुले

(ख) जावित्रीबाईफुले

(ग) कामायनी

(घ) गार्गी

उत्तर- (क) सावित्रीबाईफुले

9. स तु बालविवाहस्य विरोधी एवञ्च…….. समर्थकः आसीत् ?

(क) छत्रपतिशिवाजी

(ख) विधवाविवाहस्य

(ग) कृषकस्य

(घ) प्रार्थनासमाजस्य

उत्तर- (ख) विधवाविवाहस्य

10. अस्य भार्यापि स्वयमपि एका प्रसिद्धाः… संजाता?

(क) समाजसेविका

(ख) विचारिका

(ग) दार्शनिका

(घ) शिक्षिका

उत्तर- (क) समाजसेविका

11. सावित्रीबाई कस्य समाजसुधारकस्य पत्नी आसीत्?

(क) शङ्कराचार्यस्य

(ख) मदनमोहनमालवीयस्य

(ग) गुरुनानकस्य

(घ) ज्योतिरावगोविन्दराव इत्याखस्य

उत्तर-(घ) ज्योतिरावगोविन्दराव इत्याख्यस्य

12. ज्योतिरावगोविन्दराव इत्याख्यस्य पत्न्याः किं नाम?

(क) जीजाबाई

(ख) सावित्रीबाई

(ग) ज्योतिबाबाई

(घ) अपूर्वाबाई

उत्तर-(ख) सावित्रीबाई

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