UP Board Class 12 Hindi-अशोक के फूल(Ashok ke Phool)

UP Board Class 12 Hindi-अशोक के फूल(Ashok ke Phool) गद्यांश के प्रश्रोत्तर

UP Board Class 12 Hindi-अशोक के फूल(Ashok ke Phool)- अशोक के फूल – हजारी प्रसाद द्विवेदी Ashok Ke Phoolअशोक के फूल  निबंध का सारांश – हजारी प्रसाद द्विवेदी:Class 12 Sahityik Hindi गद्य Chapter 4 अशोक के फूल. Ashok ke phool gadyansh adharit prashnottar.

Board UP Board (UPMSP)Subject Hindi Sahityik & Samanya
Class12th (Intermediate Hindi Gadya Garima)Topic & Video Lecture Ashok Ke Phool 

ashok ke ful

गद्यांश-1

अशोक के फूल(Ashok ke Phool)- पुष्पित अशोक को देखकर मेरा मन उदास हो जाता है । इसलिए नहीं कि सुन्दर वस्तुओं को हतभाग्य समझने में मुझे कोई विशेष रस मिलता है । कुछ लोगों को मिलता है । वे बहुत दूरदर्शी होते हैं ! जो भी सामने पड़ गया उसके जीवन के अन्तिम मुहूर्त तक का हिसाब वे लगा लेते हैं । मेरी दृष्टि इतनी दूर तक नहीं जाती । फिर भी मेरा मन इस फूल को देखकर उदास हो जाता है । असली कारण तो मेरे अन्तर्यामी ही जानते होंगे , कुछ थोड़ा – सा मैं भी अनुमान कर सकता हूँ ।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।
(i) प्रस्तुत गद्यांश के लेखक व पाठ का नाम स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर-प्रस्तुत गद्यांश के लेखक हजारीप्रसाद द्विवेदी जी हैं तथा पाठ का नाम ‘ अशोक के फूल ‘ है ।

( ii ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- व्याख्या प्रस्तुत गद्यांश में लेखक कहता है कि जब भी वह पुष्पित अशोक अर्थात् अशोक के खिले हुए फूलों को देखता है , तो वह उदास हो जाता है । लेखक अपनी उदासी का कारण स्पष्ट करते हुए कहता है कि वह इसलिए उदास नहीं है कि अशोक के पुष्प अत्यधिक सुन्दर हैं या उनकी सुन्दरता से उसे कोई ईर्ष्या हो रही है और वह न ही उसकी कमियों का अन्वेषण कर उसे अभागा बताकर उससे सहानुभूति प्रदर्शित करने का प्रयास करते हुए स्वयं को उससे सुन्दर अथवा सर्वगुणसम्पन्न बताकर अपने मन को सुखी बना रहा है । यद्यपि संसार में सुन्दर वस्तुओं को दुर्भाग्यशाली या कम समय के लिए भाग्यवान समझकर ईर्ष्यावश उससे आनन्द की प्राप्ति करने वाले लोगों की कमी नहीं है ।

( iii ) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने स्वयं के विषय में क्या कहा है ?
उत्तर- लेखक ने स्वयं को अन्य लोगों से कम दूरदर्शी बताकर अपनी उदारता एवं महानता का परिचय दिया है । लेखक अशोक के फूल के सम्बन्ध में अपनी मनः स्थिति एवं सोच को स्पष्ट कर रहा है ।
( iv ) ” वे बहुत दूरदर्शी होते हैं पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- ‘ वे बहुत दूरदर्शी होते हैं ‘ पंक्ति का आशय यह है कि कुछ लोग बहुत दूर तक देखने वाली गहन दृष्टि रखते हैं वे बहुत आगे तक विचार करते हैं । वे सामने वाले व्यक्ति के जीवन के अन्तिम मुहूर्त तक का हिसाब लगा लेते हैं ।

( v ) ‘ हतभाग्य ‘ तथा ‘ दूरदर्शी ‘ शब्दों के शब्दार्थ लिखिए ।
उत्तर- हतभाग्य – भाग्यहीन , अभागा
दूरदर्शी – भविष्य की घटनाओं को समझने वाला ।

 

गद्यांश-2

अशोक को जो सम्मान कालिदास से मिला , वह अपूर्व था । सुन्दरियों के आसिंजनकारी नूपुरवाले चरणों के मृदु आघात से वह फूलता था , कोमल कपोलों पर कर्णावतंस के रूप में झूलता था और चंचल नील अलकों की अचंचल शोभा को सौ गुना बढ़ा देता था । वह महादेव के मन में क्षोभ पैदा करता था , मर्यादा पुरुषोत्तम के चित्त में सीता का भ्रम पैदा करता था और मनोजन्मा देवता के एक इशारे पर कन्धों पर से ही फूट उठता था ।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।
( i ) प्रस्तुत गद्यांश के लेखक व पाठ का नाम स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश के लेखक हजारीप्रसाद द्विवेदी जी हैं तथा पाठ का नाम ‘ अशोक के फूल ‘ है ।
( ii ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- उनका मानना था कि अशोक पर तभी पुष्प आते थे , जब कोई अत्यन्त सुन्दर युवती अपने कोमल और संगीतमय नूपुरवाले चरणों से उस पर प्रहार करती थी । अशोक के फूलों की सुन्दरता के कारण सुन्दरियाँ उन्हें अपने कानों का आभूषण बनाती थीं । यह कर्णफूल जब उनके सुन्दर गालों पर झूलता था तो उनकी सुन्दरता और भी अधिक बढ़ जाती थी । जब वे अशोक के फूलों को अपनी काली – नीली चोटी में गूंथती थीं , तो उनकी चंचल लटाओं की सुन्दरता सौ गुना बढ़ जाती थी और तब देखने वालों की दृष्टि उनसे हटती ही नहीं थी ।

( iii ) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक का उद्देश्य क्या है ?
उत्तर-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने अशोक के फूल का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया है । यहाँ लेखक कहना चाहता है कि साहित्यकारों में मुख्य रूप से संस्कृत के महान् कवि कालिदास ने अशोक के फूल का जो मादकतापूर्ण वर्णन किया है , ऐसा किसी अन्य ने नहीं किया है ।
( iv ) ‘ अशोक को जो सम्मान कालिदास से मिला , वह अपूर्व था ’ पंक्ति का फूल आशय स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- ‘ अशोक को जो सम्मान कालिदास से मिला , वह अपूर्व था ‘ पंक्ति का आशय यह है कि कालिदास ने अपने साहित्य में अशोक के को अत्यन्त सम्मान दिया । अशोक के फूल की मादकता का अनुभव करने की दृष्टि कालिदास के पास थी , ऐसा वर्णन अपूर्व ( पहले किसी ने नहीं किया ) था ।

( v ) निम्न शब्दों का शब्दार्थ लिखिए –
आसिजनकारी तथा कर्णावतंस ।
उत्तर- आसिंजनकारी – अनुरागोत्पादक
कर्णावतंस – कर्णफूला

गद्यांश-3

कहते हैं , दुनिया बड़ी भुलक्कड़ है ! केवल उतना ही याद रखती है , जितने से उसका स्वार्थ सधता है । बाकी को फेंककर आगे बढ़ जाती है । शायद अशोक से उसका स्वार्थ नहीं सधा । क्यों उसे वह याद रखती ? सारा संसार स्वार्थ का अखाड़ा ही तो है ।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।
( i ) प्रस्तुत गद्यांश के लेखक व पाठ का नाम स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर -प्रस्तुत गद्यांश के लेखक हजारीप्रसाद द्विवेदी जी हैं तथा पाठ का नाम ‘ अशोक के फूल ‘ है ।

( ii ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- व्याख्या लेखक द्विवेदी जी कहते हैं कि यह संसार बड़ा ही स्वार्थी है । यह केवल उन्हीं बातों को याद रखता है , जिससे उसके स्वार्थ की सिद्धि होती है । जिन लोगों या वस्तुओं से उसका स्वार्थ नहीं सधता है , वह उन्हें शीघ्र ही भुला देता है । वह व्यर्थ में लोगों या वस्तुओं को याद करके बोझिल नहीं होता । समय की गति के साथ जो प्रासंगिक नहीं रह जाता , वह उन्हें भूलता जाता है ।
( iii ) प्रस्तुत गद्यांश में किस प्रसंग की चर्चा की गई है ?
उत्तर -प्रस्तुत गद्यांश में लेखक आचार्य द्विवेदी जी ने रचनाकारों अर्थात् साहित्यकारों द्वारा अशोक के फूल को भूल जाने की आलोचना की है ।

( iv ) लेखक ने गद्यांश में किस प्रकार के लोगों को स्वार्थी कहा है ?
उत्तर- लेखक ने गद्यांश में उन रचनाकारों या साहित्यकारों को स्वार्थी कहा है जिन्होंने साहित्यकारों द्वारा ‘ अशोक के फूल ‘ के भूल जाने की गलती की है । लेखक के अनुसार यह संसार बड़ा स्वार्थी है । यह केवल उन्हीं बातों को याद रखता है जिससे उसके स्वार्थ की सिद्धि होती है ।
( v ) ” सारा संसार स्वार्थ का अखाड़ा ही तो है । ” पंक्ति का क्या आशय है ?
उत्तर -लेखक कहना चाहता है कि यह संसार स्वार्थी व्यक्तियों से भरा पड़ा है ! यहाँ हर व्यक्ति अपने ही स्वार्थ को साधने में लगा हुआ है । उसे अपने ही स्वार्थ को सिद्ध करने से फुरसत नहीं है , तो वह अशोक के फूल की क्या परवाह करेगा , जो शायद उसके लिए किसी काम का नहीं है ।

गद्यांश-4

मुझे मानव – जाति की दुर्दम – निर्मम धारा के हजारों वर्ष का रूप साफ दिखाई दे रहा है । मनुष्य की जीवनी – शक्ति बड़ी निर्मम है , वह सभ्यता और संस्कृति के वृथा मोहों को रौंदती चली आ रही है । न जाने कितने धर्माचारों , विश्वासों , उत्सवों और व्रतों को धोती – बहाती सी जीवन – धारा आगे बढ़ी है । संघर्षों से मनुष्य ने नई शक्ति पाई है । हमारे सामने समाज का आज जो रूप है , वह न जाने कितने ग्रहण और त्याग का रूप है । देश और जाति की विशुद्ध संस्कृति केवल बाद की बात है ।

सब कुछ में मिलावट है , सब कुछ अविशुद्ध है । शुद्ध केवल मनुष्य की दुर्दम जिजीविषा ( जीने की इच्छा ) है । वह गंगा की अबाधित – अनाहत धारा के समान सब कुछ को हजम करने के बाद भी पवित्र है । सभ्यता और संस्कृति का मोह क्षण – भर बाधा उपस्थित करता है , धर्माचार का संस्कार थोड़ी देर तक इस धारा से टक्कर लेता है , पर इस दुर्दम धारा में सब कुछ बह जाता है ।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।
( i ) प्रस्तुत गद्यांश के लेखक व पाठ का नाम स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश के लेखक हजारीप्रसाद द्विवेदी जी हैं तथा पाठ का नाम ‘ अशोक के फूल ‘ है ।

( ii ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर – छल – छद्म से परिपूर्ण वर्तमान जीवन में व्यक्ति के आचरण और सभ्यता से लेकर दैनिक उपभोग तक की प्रत्येक वस्तु में किसी – न – किसी प्रकार की मिलावट अवश्य है । संसार में आज यदि कुछ अपने शुद्ध रूप में विद्यमान है तो वह है मनुष्य की प्रत्येक विषम परिस्थिति में भी जीवित रहने की इच्छा । वह इच्छा आज भी उतनी ही बलवती और आडम्बरहीन है , जितनी कि अपने आदिकाल में थी । यह इच्छा आज भी उसी प्रकार उतनी ही पवित्र है , जिस प्रकार गंगा की धारा अनादिकाल से अपने मार्ग की बाधाओं को समाप्त करके अपने पहले जैसे प्रवाह के साथ निरन्तर गतिशील है और पहले जितनी ही पवित्र है । सभ्यता और संस्कृति का मोह एवं धर्माचार संस्कार कुछ समय के लिए ही इससे टक्कर लेता है , किन्तु मनुष्य की इस दुर्दम जिजीविषा में सब कुछ बह जाता है ।

( iii ) मानव जाति किस मोह को रौंदती चली आ रही है ?
उत्तर- मनुष्य की जीवन – शक्ति बड़ी निर्मम है , वह सभ्यता और संस्कृति के वृथा मोहों को रौंदती चली आ रही है । अब तक न जाने उसने कितनी जातियों एवं संस्कृतियों को अपने पीछे छोड़ दिया है ।( iv ) मानव का व्यवहार किस प्रकार परिवर्तित होता है ?
उत्तर- मानव कभी भी वर्तमान स्थिति से सन्तुष्ट नहीं रहता । अतः हमेशा ही उसके व्यवहार एवं संस्कृति में परिवर्तन होता रहता है । इसके लिए वह हमेशा प्रयत्नशील रहा है ।
( v ) “ मनुष्य की जीवनी शक्ति बड़ी निर्मम है पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- ‘ मनुष्य की जीवनी शक्ति बड़ी निर्मम है ‘ पंक्ति का आशय यह है कि व्यक्ति का अपने प्राणों से बहुत मोह होता है । वह सदैव अपने प्राणों की रक्षा के लिए प्रयास करता रहता है । यदि अपने प्राणों के लिए उसे किसी की हत्या भी करनी पड़े तो वह पीछे नहीं हटता , इसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार हो जाता है तब उसे उचित – अनुचित का ध्यान भी नहीं रहता ।

गद्यांश-5

मुझे मानव जाति की दुर्दम – निर्मम धारा के हजारों वर्ष का रूप साफ दिखाई दे रहा है । मनुष्य की जीवनी शक्ति बड़ी निर्मम है , वह सभ्यता और संस्कृति के वृथा मोहों को रौंदती चली आ रही है । न आने कितने धर्माचारी विश्वासों , उत्सवों और व्रतों की धोती – बहाती या जीवन धारा आगे बढ़ी है । संघर्षों से मनुष्य ने नई शक्ति पाई है । हमारे सामने समाज का आज को रूप है , वह न जाने कितने ग्रहण और त्याग का रूप है । देश की जाति की विशुद्ध संस्कृति केवल बाद की बात कुछ मिलावट है , सब कुछ अविशुद्ध है । शुद्ध केवल मनुष्य जिजीविषा ( जीने की इच्छा ) । वह गंगा की अबाधित – अनाहत धारा के समान सब कुछ को हजम करने के बाद भी पवित्र है ।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।

( i ) मनुष्य की जीवन शक्ति कैसी है ?
उत्तर- मनुष्य की जीवन शक्ति बड़ी निर्मम है , क्योंकि व्यक्ति का अपने प्राणों से मोह होता है । वह सदैव अपने प्राणों की रक्षा के लिए प्रयास करता रहता है । अपने प्राणों की रक्षा के लिए वह कुछ भी करने को तैयार हो जाता है , यहाँ तक कि वह कितना भी घृणित , निर्मम और क्रूर कार्य भी कर सकता है अर्थात् माना । के प्रति मोह ही व्यक्ति की सबसे बड़ी शक्ति होती है , जिसे ‘ जीवनी शक्ति ‘ कहा जा सकता है ।

( ii ) हमारे सामने आज समाज का स्वरूप कैसा है ?
उत्तर- हमारे सामने समाज का जो रूप है , वह अनेक ग्रहण व त्याग का रूप है अर्थात् हमें अनेक संघर्षों से प्राप्त हुआ है । आपसी सामंजस्य वस्तुतः अनके परम्पराओं एवं मूल्यों के बीच समन्वय एवं सन्तुलन का परिणाम है । यह सामंजस्य कई संस्कृतियों की अनेक परम्पराओं एवं उनके मूल्यों को ग्रहण करके तथा अपनी परम्पराओं एवं मूल्यों को त्यागकर स्थापित हुआ है ।

( iii ) लेखक ने मनुष्य की जिजीविषा को किस रूप में प्रस्तुत किया है ?
उत्तर -लेखक ने मनुष्य की जिजीविषा को विशुद्ध रूप में प्रस्तुत किया है । लेखक का मानना है कि दुनिया की सारी चीजें मिलावट से पूर्ण हैं । कोई भी वस्तु अपने विशुद्ध रूप में उपलब्ध नहीं है । इसके पश्चात् केवल एक ही चीज विशुद्ध है और वह है मनुष्य की दुर्दम जिजीविषा ।

( iv ) मनुष्य की जीवन – शक्ति कैसी है ?
उत्तर -मनुष्य की जीवन – शक्ति अत्यन्त निर्मम है ।
( v ) हमारे सामने आज समाज का स्वरूप कैसा है ?
उत्तर -हमारे सामने आज के समाज का स्वरूप विभिन्न सभ्यता एवं संस्कृतियों के ग्रहण और त्याग का रूप है ।
( vi ) मनुष्य ने नई शक्ति किससे पाई है ?
उत्तर – मनुष्य ने संघर्ष से नवीन शक्ति को प्राप्त किया है ।
( vii ) ‘ धर्माचारों ‘ और ‘ विश्वासों का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर -‘ धर्माचारों का अर्थ है – धार्मिक परम्परा तथा ‘ विश्वासों ‘ का अर्थ है – निश्चित धारणा । अशोक का वृक्ष जितना भी मनोहर हो , जितना भी रहस्यमय हो , जितना भी अलंकारमय हो , परन्तु है वह उस विशाल सामंत
( viii ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर – इस संसार में व्यक्ति को यदि सबसे प्रिय कोई वस्तु है तो वह उसके प्राण हैं । अपने प्राणों को सुरक्षित बनाये रखने की लालसा के कारण ही वह संसार चल रहा है । व्यक्ति सदैव अपने प्राणों की रक्षा के लिए प्रयत्नशील रहता है । इसकी रक्षा के लिए वह कितना भी क्रूर , निर्मम , पापपूर्ण , घृणित कार्य कर सकता है ।

उसका अपने प्राणों के प्रति यही मोह उसकी सबसे बड़ी शक्ति है , जिसे जीवन शक्ति कहा जाता है । लेखक आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी कहते हैं कि आज व्यक्ति का जीवन छल – छद्म से परिपूर्ण हो गया है , इसलिए उसके अपने आचरण से लेकर दैनन्दिन के कार्यों में कोई पवित्रता अथवा शुद्धता नहीं रह गयी है ।

यही कारण है कि आज प्रत्येक वस्तुत में मिलावट मिलती है । व्यक्ति का चरित्र भी उससे अछूता नहीं रह गया है । लूट – पाट , रिश्वतखोरी , छेड़छाड़ , कदाचार आदि के दिनोदिन बढ़ते जाने का कारण भी यही है । हाँ , व्यक्ति के जीवन में यदि कहीं शुद्धता शेष है तो वह है उसकी दुर्दम जिजीविषा अर्थात् किसी भी परिस्थिति में उसकी जीने की लालसा । वह अपने जीने की रक्षा पूरी ईमानदारी , शुद्धता और पवित्रता से करता है ।

गद्यांश-6
अशोक का वृक्ष जितना भी मनोहर हो , जितना भी रहस्यमय हो , जितना भी अलंकारमय हो , परन्तु है वह उस विशाल सामंत सभ्यता की परिष्कृत रुचि का ही प्रतीक , जो साधारण प्रजा परिश्रमों पर पली थी , उसके रक्त के संसार – कणों को खाकर बड़ी हुई थी और लाखों – करोड़ों की उपेक्षा से जो समृद्ध हुई थी । वे सामन्त उखड़ गये , समाज ढह गए , और मदनोत्सव की धूमधाम भी मिट गयी ।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।

( i ) सामन्त सभ्यता की परिष्कृत रुचि का प्रतीक कौन है ?
उत्तर- ( सामन्त सभ्यता की परिष्कृत रुचि का प्रतीक ‘ अशोक का वृक्ष ‘ है ।
( ii ) लाखों – करोड़ों की उपेक्षा से कौन समृद्ध हुई थी ?
उत्तर- लेखक के अनुसार लाखों – करोड़ों ( व्यक्तियों ) की उपेक्षा से सामंतवाद समृद्ध हुआ था ।

( iii ) आज उस सामंती सभ्यता की क्या स्थिति है ?
उत्तर- लेखक के अनुसार आज उस सामंती सभ्यता की स्थिति यह है कि वे उखड़ गये हैं , उनका समाज ढह गया है और उनके विलासितापूर्ण जीवन की धूमधाम मिट गयी ।
( iv ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या – लेखक का कहना है कि संसार का नियम है कि जो वस्तु अथवा परम्परा है , वह समय के साथ परिवर्तन होता ही है । कुछ समय पश्चात् उसके स्वरूप में आमूल – चूल परिवर्तन होकर वह एक भिन्न रूप में हमारे सामने होती है । यही बात संस्कृति के सन्दर्भ में भी होती है । यही कारण है कि कभी सम्राटों और सामन्तों ने जिस विलासी और चाटुकार संस्कृति को जन्म दिया था , वह मन को लुभानेवाली और व्यक्ति को उन्मत्त करने वाली संस्कृति धीरे – धीरे समाप्त हो गई ।

( v ) पाठ का शीर्षक तथा लेखक का नामोल्लेख कीजिए ।
उत्तर- पाठ के शीर्षक का नाम ‘ अशोक के फूल ‘ तथा लेखक का नाम डॉ ० हजारी प्रसाद द्विवेदी है । (
( vi ) अशोक का वृक्ष किसका प्रतीक है ?
उत्तर- अशोक सामंत सभ्यता की परिष्कृत रुचि का प्रतीक था

( vii ) सामंत सभ्यता किसके आधार पर पली – बढ़ी ?
उत्तर- सामन्त सभ्यता साधारण प्रजा के परिश्रमों पर पली थी , उसके रक्त के संसार – कणों को खाकर बड़ी हुई थी और लाखों – करोड़ों की उपेक्षा से समृद्ध हुई थी ।
( viii ) सन्तान – कामनियों को किसका वरदान प्राप्त होने लगा ?
उत्तर- सन्तान – कामनियों को गंधर्वो से अधिक शक्तिशाली देवताओं का वरदान मिलने लगा ।

( ix ) यक्षों की प्रतिष्ठा किसने घटा दी ?
उत्तर- यक्षों की प्रतिष्ठा पीरों , भूत – भैरवों एवं काली दुर्गा ने घटा दी ।
( x ) अशोक के वृक्ष की क्या विशेषताएँ हैं ?
उत्तर- अशोक का वृक्ष मनोहर , रहस्यमय एवं अलंकारमय है।

( xi ) सामन्त सभ्यता से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर- सामन्त सभ्यता से तात्पर्य है – सामन्तों का शासन
( xii ) सन्तान कामनियों को किसका शक्तिशाली वरदान मिलने लगा ?
उत्तर- सन्तान कामनियों को देवताओं का शक्तिशाली वरदान मिलने लगा ।

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