Class 12 Samanya Hindi कथा भारती Chapter ध्रुवयात्रा सारांश चरित्र चित्रण | UP Board Dhruvayatra

UP Board Class 12 Samanya Hindi कथा भारती Chapter  ध्रुवयात्रा कहानी कथावस्तु सारांश चरित्र चित्रण

Class 12 Samanya Hindi कथा भारती Chapter ध्रुवयात्रा सारांश चरित्र चित्रण | UP Board Dhruvayatra – इसमें यूपी बोर्ड हिंदी साहित्यिक /सामान्य हिंदी 12 हेतु पाठ UP Board Class 12 Samanya Hindi कथा भारती Chapter ध्रुवयात्रा सारांश चरित्र चित्रण | Dhruvayatra kahani Saransh Charitra Chitran दिया जा रहा है, बोर्ड परीक्षा की दृष्टि को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। प्रिय मित्रों! panchlight kahani summary up board प्रस्तुत है जैनेंद्र कुमार द्वारा रचित कहानी ध्रुव यात्रा सामान्य हिंदी कक्षा 12 पर आधारित प्रश्न उत्तर।

In this post, UP Board Hindi Literary & General Hindi lesson for class 12 UP Board Class 12 Samanya Hindi कथा भारती Chapter ध्रुवयात्रा सारांश चरित्र चित्रण | Dhruvayatra kahani Saransh Charitra Chitran  is being solved, which has been prepared keeping in mind the point of view of the board examination.

Subject / विषयGeneral /सामान्य हिंदी
Class / कक्षा12th
Chapter( Lesson) / पाठChpter -12   Hindi Katha Bharati  (हिंदी कथा भारती)
Topic / टॉपिक

ध्रुवयात्रा  Dhruvayatra 

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 ‘ ध्रुवयात्रा ‘ कहानी के कथानक की विवेचना कीजिए – ( शब्द सीमा :  80 शब्द )ध्रुवयात्रा कहानी सारांश चरित्र चित्रण

  ‘ ध्रुवयात्रा ‘ के कथानक की विवेचना

‘ ध्रुवयात्रा ‘ हिन्दी के सुप्रसिद्ध कहानीकार जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखित मनोवैज्ञानिक और मार्मिक कहानी है । जैनेन्द्र ने इस कहानी में मानवीय संवेदना को मनोवैज्ञानिक तथा दार्शनिक दृष्टिकोण में समन्वित करके एक नवीन विचारधारा को जन्म दिया । कहानी की कथावस्तु में जैनेन्द्र ने एक सुसंस्कारित युवती के उत्कट प्रेम की पराकाष्ठा को दर्शाया है , जिसमें ‘ प्रेम ‘ को नारी से अलग एवं उच्चस्थान दिया है । यह कहानी मनोवैज्ञानिकता के साथ – साथ दार्शनिकता से ओत – प्रोत है । कहानी का प्रत्येक पात्र कर्त्तव्यनिष्ठा एवं नैतिकता के प्रति सचे दिखाई पड़ता है , जिसकी पूर्णता के लिए वे जीवन अर्पण करने से भी नहीं कतराते हैं । प्रेम की पवित्रता को आदर्शवाद की कसौटी पर कसना कहानी का प्रतिपाद्य रहा है । अपने प्रतिपाद्य को व्यक्त करने में कहानीकार को सफलता तो अवश्य मिल गई , किन्तु वास्तविक जीवन में उस आदर्शवाद का मिलना दुर्लभ है ।

बनने वाले प्रश्न इस प्रकार हैं –

  • जैनेन्द्र की कहानी ‘ ध्रुवयात्रा ‘ की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए ।
  • ध्रुव यात्रा कहानी की कथावस्तु लिखिए ।

धुवयात्रा ‘ की कथावस्तु सारांश 

जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखित ध्रुवयात्रा कहानी एक मनोवैज्ञानिक और मार्मिक कहानी है । जैनेन्द्र जी ने मनोवैज्ञानिक कहानियाँ लिखकर हिन्दी कहानी कला के क्षेत्र में एक नवीन आयाम स्थापित किया है । इस कहानी में मानवीय संवेदना को मनोवैज्ञानिक तथा दार्शनिक दृष्टिकोण में समन्वित करके एक नवीन विचारधारा को जन्म दिया ।

ध्रुवयात्रा ‘ कहानी का सारांश ( कथानक )

कहानी का प्रारंभ कुछ यूं होता है – राजा रिपुदमन बहादुर उत्तरी ध्रुव को जीतकर योरूप के नगर – नगर से बधाइयाँ लेते हुए हिन्दुस्तान आ रहे हैं । यह अखबारों ने पहले पेज पर मोटे अक्षरों में प्रकाशित की । इसके बाद प्रतिदिन उनके सन्देश , जीवन के उद्देश्य और आगामी कार्यक्रमों के विषय में जोर – शोर से अखबारों में छपता रहता है । अब वे बम्बई होते हुए दिल्ली आ गए हैं । उनकी प्रेयसी उर्मिला प्रतिदिन उनसे सम्बन्धित खबरे बड़े मन से पढ़कर अपने शिशु के लालन – पालन पर अपना ध्यान लगाए हैं ।

चौथे दिन एक बड़ा मोटा लिफाफा उसे प्राप्त हुआ , जिसमें एक संक्षिप्त खत था । उर्मिला ने उसको भी पढ़कर लिफाफे को मोड़कर उसी प्रकार रख दिया , जिस प्रकार अखबार में उनकी खबर पढ़कर रख देती है । राजा रिपुदमन को स्वयं से शिकायत है कि उन्हें नींद कम आती है और मन काबू में नहीं रहता । योरूप में उन्होंने मानसोपचार के सम्बन्ध में आचार्य मारुति की ख्याति सुनी थी । फुर्सत मिलते ही वे उनकी शरण में पहुँचे । आचार्य विजेता के रूप में राजा का अभिवादन करते हैं । रिपुदमन अपनी विजय को एक छल मानते हैं , वह आचार्य को अपनी परेशानी बताते हैं । आचार्य . राजा को डायरी लिखने का आदेश देकर कल मिलने के लिए कहते हैं और शारीरिक रूप से राजा को स्वस्थ बताते हैं । आचार्य उन्हें उनके पिता की चिन्ता के विषय में बताते हैं कि आप अपने पिता की इच्छा के अनुरूप विवाह कर लें ।

रिपुदमन विवाह को बन्धन मानकर उससे इंकार करते हैं किन्तु प्रेम को ‘ सत्य मानते हैं । आचार्य किसी भी प्रकार परिजनों से मिलकर परसों मिलने के लिए कहते हैं | समय बीतते – बीतते राजा ने एक दिन उर्मिला से सिनेमा के बॉक्स में भेंट की । उर्मिला बच्चे को साथ लाई थी । बॉक्स में केवल बच्चे के नाम को लेकर चर्चा हुई , फिर दोनों जमुना किनारे पहुँच गए । राजा ने कहा- “ अब कहो , मुझे क्या कहती हो ? ” उर्मिला राजा को अपनी तथा बच्चे की जिम्मेदारियों से मुक्त करती हुई अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है । वह कहती है कि तुम्हारी प्रत्येक सफलता पर मुझे गर्व है और मैं उसी के लिए जीवित हूँ । राजा उर्मिला से आचार्य मारुति की विवाह की बात को बताते हैं ।

वह मारुति को ढोंगी बताती हुई कहती है कि “ जानती हूँ , वह स्त्री को चूल्हे के आदमी को हल के लिए पैदा हुआ समझता है । वह महत्व का शत्रु और साधारणता का अनुचर है । ” उर्मिला सिद्धि के लिए राजा को दक्षिणी ध्रुव जाने के लिए कहती है – “ राजा ! मैं तुम्हें पाने के लिए भेजती हूँ , और तुम मुझे पाने के लिए हो , यही तो मिलने की राह है । ” राजा कहता है- ” देखो तुम रो रही हो । ” इस पर उर्मिला कहती है— “ हाँ , स्त्री रो रही है , प्रेमिका प्रसन्न है । स्त्री की मत सुनना , मैं भी पुरुष की नहीं सुनूँगी । दोनों जने प्रेम कीसुनेंगे । प्रेम जो सिवा किसी दया को , किसी कुछ को नहीं जानता । ” निश्चित समयानुसार राजा रिपुदमन डायरी के साथ आचार्य से मिलते हैं । आचार्य उनसे उनके तथा उर्मिला के सम्बन्धों के विषय में पूछते हैं । वे बताते हैं कि उर्मिला की प्रेरणा से ध्रुवयात्रा पर गया । उससे पहले वह विवाह के लिए उद्यत थी , मैं तैयार नहीं था । गर्भ के बाद मैंने विवाहपूर्वक साथ रहने का निश्चय किया , किन्तु उसने ध्रुवयात्रा पर जाने का आग्रह किया और मैं चला गया । लौटने पर वह शायद प्रसन्न हुई , लेकिन अब रुकने से  अप्रसन्न है ।

वह कहती है कि जाओ । जय यात्रा की कहीं समाप्ति नहीं । सिद्धि तक जाओ जो मृत्यु के पार है । आचार्य मारुति रहस्योद्घाटन करते हैं कि वह मेरी सगी बेटी है । आचार्य राजा से पूछते हैं कि अब क्या कहते हैं ? राजा कहते हैं- मेरे लिए सब उर्मिला से पूछिए ।

आचार्य राजा से कहते हैं- “ सुनो रिपुदमन , तुम अच्छे लड़के हो ? उर्मिला मुझसे बाहर न होगी । पुत्र की व्यवस्था हो जाएगी और तुम लोग विवाह करके यहीं रहोगे । रिपुदमन ने हाथों से मुँह ढककर कहा – “ मैं कुछ नहीं जानता । उर्मि कहे , वही मेरी होनहार है । ” आचार्य के बुलावे पर उर्मिला पिता के पास पहुँचती है ।। आचार्य उससे कहते हैं कि तुम रिपु के साथ विवाह करके दोनों साथ रहो । वह अपनी बात पर अडिंग रहती है- ” मुझे पाने के लिए उन्हें जाना होगा , उन्हें पाने के लिए मुझे भेजना होगा यह आपको कैसे समझाऊँ ? “

मारुति अपने अन्त समय में पुत्री उर्मिला से कहते हैं कि वह रिपु से विवाह करके उन्हें सन्तोष सकती है । यह कहकर मारुति रोने लगते हैं । किन्तु उर्मिला यह कहती हुई उनके पास से चली जाती है – “ मुझ अभागिन के भाग्य में आज्ञापालन तक का सुख , हाय , विधाता क्यों नहीं लिख सका ? जाती हूँ इस हतभागिन को भूल जाइएगा । ” रिपुदमन उर्मिला से पूछते हैं कि मुझे कब जाना है ? उर्मिला उत्तर देती है जब हवाई जहाज मिल जाय । राजा उसी समय शटलैण्ड के लिए पूरा जहाज बुक कर देते हैं । जहाज परसों जाएगा । परसों जाने की बात सुनकर उर्मिला कहती है कि तुम परसों नहीं जाओगे क्योंकि यह तो बहुत जल्दी है । यह कहते – कहते उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं और वह रिपु का हाथ पकड़ लेती है । इस पर राजा कहते हैं- ” मैं स्त्री की बात नहीं सुनूँगा ; मुझे प्रेमिका के मन्त्र का वरदान है । ”

रिपुदमन के दक्षिणी ध्रुव जाने की खबर से दुनिया के अखबारों में धूम मच गई । लोगों की उत्कण्ठा का ठिकाना न था । राजा की विभिन्न कोणों से ली गई असंख्य तस्वीरें छपीं । उर्मिला अखबार पढ़ती और रख देती । अनन्तर शून्य में देखती रह जाती नहीं तो बच्चे में डूबती । आज उसके जाने की अन्तिम सन्ध्या है , वह सोच रही है– राष्ट्रपति की ओर से दिया गया भोज हो रहा होगा । सब राष्ट्रदूत होंगे , सब नायक , सब दलपति । तीसरे दिन उर्मिला ने अखबार उठाया । खबर अखबार की सुख है और बॉक्स में खबर है- राजा रिपुदमन सवेरे खून में भरे पाए गए ।

गोली का कनपटी के आर – पार निशान है । खबर छोटी थी , जल्दी पढ़ गई अखबार में विवरण और विस्तार के साथ दूसरी सूचनाएँ थीं , खासकर राष्ट्रपति भोज का पूरा विवरण था , जिसे दुनिया का एक महत्वपूर्ण समारोह कहा गया था । उर्मिला रस की एक बूँद नहीं छोड़ सकी । उसने अक्षर – अक्षर सब पढ़ा । उसी दिन अखबारों ने अपने खास अंक में मृत व्यक्ति के तकिये के नीचे से मिला जो पत्र छापा था , वह इस प्रकार था – ‘ सब के प्रति बन्धुओ ‘ , मैं दक्षिणी ध्रुव जा रहा था सब तैयारियाँ थीं ध्रुव में मुझे महत्व नहीं है ।  फिर भी मैं जाना चाहता था । कारण इस बार मुझे वापस आना नहीं था । ध्रुव के एकान्त में मृत्यु सुखकर होती ।

ध्रुव – यात्रा मेरी व्यक्तिगत बात थी , उसे सार्वजनिक महत्व दिया गया , यह अन्याय है । इसी शाम राष्ट्रपति और राष्ट्रदूतों ने मुझे बधाइयाँ दीं , मेरे पराक्रम को सराहा पर उन्हें छल हुआ है । मैं यह श्रेय नहीं ले सकता । यह चोरी होगी उस भ्रम में लोगों को रखना मेरे लिए गुनाह है । क्या अच्छा होता कि ध्रुव मैं जा सकता , लेकिन लोगों ने सार्वजनिक रूप से जो श्रेय मुझ पर डाला , उसका स्वल्पांश भी किसी तरह अपने साथ लेकर मैं नहीं बढ़ सकता हूँ । यात्रा एकदम निजी कारणों से थी । मुझे बहुत खेद है कि मैं किसी से मिले आदेश और उसे दिये अपने वचन को पूरा नहीं कर पा रहा हूँ , लेकिन ध्रुव पर भी मुझे बचना था नहीं । इसलिए बचना अब नहीं है । मुझे सन्तोष है कि किसी की परिपूर्णता में काम आ रहा हूँ । मैं पूरे होश – हवाश में अपना काम तमाम कर रहा हूँ । भगवान् मेरे प्रिय के अर्थ मेरी आत्मा की रक्षा करो । ।

 

  • कहानी के प्रमुख पात्र का चरित्र चित्रण कीजिए ।
नायक रिपुदमन का चरित्र चित्रण

जैनेन्द्र की ‘ ध्रुवयात्रा ‘ कहानी का नायक राजा रिपुदमन बहादुर है । उसके चरित्र की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

स्वयं से असन्तुष्ट राजा – राजा रिपुदमन उर्मिला से प्रेम करता है । उनका बिना विवाह किये ही कुमारी उर्मिला से लगभग एक वर्ष से कुछ अधिक अवस्था का पुत्र है । गर्भधारण से पूर्व उर्मिला रिपुदमन से विवाह के लिए उद्यत थी किन्तु रिपुदमन अपनी स्थिति और माता – पिता के कारण विवाह करने से बचता रहा । उर्मिला के गर्भधारण करने पर वह उर्मिला के साथ विवाहपूर्वक रहना चाहता था परन्तु तब उर्मिला ने विवाह से इनकार कर दिया और रिपुदमन को उसकी इच्छा के अनुरूप उत्तरी ध्रुव की यात्रा को प्रेरित किया । वह ध्रुवयात्रा कर आये पर दमित इच्छाओं के कारण स्वयं से असन्तुष्ट रहने लगे , उन्हें नींद नहीं आती , मन पर काबू नहीं रहता , जो नहीं चाहते वह मन के अन्दर घटित होता रहता है , ध्रुव पर बहुत काम बाकथा , फिर भी भारत लौट आये ( शायद पत्नी – पुत्र के प्रेम के कारण ) ।

भीरु स्वभाव वाला – रिपुदमन उर्मिला से प्रेम करते थे परन्तु उसके आग्रह पर भी विवाह के लिए बचते रहे । उनकी सोच थी कि “ विवाह व्यक्ति को बाँधता है । तब वह सबका नहीं हो सकता , अपना एक कोल्हू बना कर उसमें जुता हुआ चक्कर में घूम सकता है । ” –

अतृप्त प्रेम का पिपासु– उर्मिला के गर्भधारण के बाद रिपुदमन के मन में साथ रहने और विवाह करने की लालसा तो जागी , पर वह पूरी नहीं हुई , अतृप्त ही रह गयी । प्रेमिका उर्मिला की प्रेरणा से उत्तरी ध्रुव जाना पड़ा । वहाँ से लौटा और अपनी प्रेमिका की नाराजी दूर करते हुए अपने किये पर खेद व्यक्त किया किन्तु उर्मिला ने कहा कि अब दक्षिणी ध्रुव की यात्रा पर जाओ । मेरी और बच्चे की चिन्ता न करो , “ भविष्य के प्रति यह तुम्हारा दान है राजा तुमको रुकना नहीं है , सिद्धि तक जाओ ……. जो मृत्यु के पार है । ”

तब रिपुदमन उर्मिला की प्रेरणा से दक्षिणी ध्रुवयात्रा के लिए जहाज तय करा लेता है और घर से चल पड़ता है । तीसरे दिन वह अपनी कनपटी पर गोली मार कर आत्महत्या कर लेता

  • ‘ ध्रुवयात्रा ‘ कहानी के शीर्षक पर प्रकाश डालिए ।
  • ध्रुव यात्रा कहानी के शीर्षक के औचित्य पर प्रकाश डालिए।
  • यात्रा कहानी का शीर्षक ध्रुवयात्रा क्या उचित है ?

ध्रुवयात्रा ‘ कहानी का शीर्षक ” ध्रुवयात्रा ‘ शीर्षक की दृष्टि से एक उच्चस्तरीय कथा है , जिसमें पात्रों का चयन भी जैनेन्द्र ने उच्चकालीन वर्ग से किया है । निःसन्देह ध्रुवयात्रा जनसामान्य की सोच के परे की बात है । प्रत्येक पात्र ध्रुवयात्रा की पूर्णता में ही अपने जीवन को सफल मानता है ।

कहानी के कथानक का आरम्भ और अन्त ध्रुव – यात्रा के सन्दर्भ के साथ ही होता है । कहानी के नायक और नायिका दोनों की ध्रुवयात्रा को अपने प्रेम की पराकाष्ठा और कसौटी मानते हैं ; जिस पर दोनों अपने को प्रमाणित करने का प्रयास करते हैं ।

यद्यपि शीर्षक प्रतीकात्मक है तथापि सब प्रकार से सार्थक और कहानी के कथानक के उपयुक्त है ।

‘ ध्रुवयात्रा ‘ कहानी के उद्देश्य
  • कहानी ध्रुव यात्रा का उद्देश्य क्या है ध्रुव यात्रा कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।

कहानी ‘ ध्रुवयात्रा ‘ का मूल उद्देश्य प्रेम की पवित्रता और पराकाष्ठा की विवेचना एवं वचन – पालन के महत्व को प्रतिष्ठित करना है । कहानीकार के अनुसार वैयक्तिक सुखों की अपेक्षा सार्वभौमिक और आलौकिक उपलब्धि श्रेयस्कर है । निष्कर्ष रूप से मनोवैज्ञानिक कहानी है ।

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