Class 10 Sanskrit Chapter 10 लोकमान्य: तिलक: [Lokmany Tilak] संस्कृत गद्य भारती

Class 10 Sanskrit Chapter 10 लोकमान्य: तिलक: [Lokmany Tilak] संस्कृत गद्य भारती

Dear Students! यहाँ पर हम आपको कक्षा 10 संस्कृत – UP Board Solution of Class 10 Sanskrit Chapter 10 ,लोकमान्य: तिलक: (lokmanya tilaka)   गद्य – भारती  in Hindi translation – हाईस्कूल परीक्षा हेतु  उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद् द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम।

Class 10 Sanskrit Chapter

Subject / विषयसंस्कृत (Sanskrit)
Class / कक्षा10th
Chapter( Lesson) / पाठChpter -10
Topic / टॉपिकलोकमान्य: तिलक:
Chapter NameLokmanya Tilak:
All Chapters/ सम्पूर्ण पाठ्यक्रमकम्पलीट संस्कृत बुक सलूशन

लोकमान्यो बालगङ्गाधर तिलको नाम मनीषी भारतीयस्वातन्त्र्ययुद्धस्य प्रमुखसेनानीष्वन्यतम आसीत्। ‘बालः’ इति वास्तविकं तस्याभिधानम्। पितुरभिधानं ‘गङ्गाधरः’ इति वंशश्च ‘तिलकः’ एवञ्च ‘बालगङ्गाधर तिलकः’ इति सम्पूर्णमभिधानम्, किन्तु ‘लोकमान्य’ विरुदेनासौ विशेषेण प्रसिद्धः। यद्यप्यस्य जन्मनाम ‘केशव राव’ आसीत् तथापि लोकस्तं ‘बलवन्त राव’ इत्यभिधया एव ज्ञातवान्।

शब्दार्थ मनीषी विचारक, विद्वान्। अभिधानम् नाम। विरुदेन प्रशंसा से। ज्ञातवान् जाना।

सन्दर्भ – प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत गद्य भारती’ के ‘लोकमान्यः तिलकः ‘ शीर्षक पाठ से अवतरित है।

हिंदी  अनुवाद – मनोषी लोकमान्य बाल गंगाधर भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के प्रमुख अद्वितीय सेनानी थे। इनका वास्तविक नाम ‘बाल’ था। पिता का नाम गंगाधर और वंश तिलक था। इस प्रकार ‘बाल गंगाधर तिलक’ इनका पूरा नाम था, किन्तु वे लोकमान्य की उपाधि से विशेष प्रसिद्ध थे। यद्यपि इनके जन्म का नाम ‘केशवराव’ या, फिर भी लोग उन्हें बलवन्त राव के नाम से जानते थे।

एष महापुरुषस्त्रयोदशाधिकनवदशशततमे विक्रमाब्दे (1913) अषाढमासे कृष्णपक्षे षष्ठ्यां तिथौ सोमवासरे महाराष्ट्रप्रदेशे रत्नगिरिमण्डलान्तर्गत ‘चिरवल’ संज्ञके ग्रामे जन्म लेभे। चितपावनः दाक्षिणात्यब्राह्मणकुलोत्पत्रस्य पितुर्नाम ‘श्री रामचन्द्रगङ्गाधर राव’ इत्यासीत्। सः कुशलोऽध्यापकः आसीत्। गङ्गाधरः स्वपुत्रं तिलकं बाल्ये एव गणितं मराठीभाषां संस्कृतञ्चापाठयत्। अस्य जननी ‘श्रीमती पार्वतीबाई’ परमसुशीला, पतिव्रतधर्मपरायणा, ईश्वरभक्ता, सूयोंपासनायाञ्च रता बभूव। येनायं बालस्तेजस्वी वभूव इति जनाश्चावदन्। अस्य कार्यक्षेत्रं महाराष्ट्र प्रदेशः विशेषेणासीत्। स महाराष्ट्र उग्रराष्ट्रियतायाः जन्मदाता वर्तते स्म। तिलको महाराष्ट्र-नवयुवकेषु देशभक्ति-आत्मबलिदान-आत्मत्यागस्य भावनां जनयितुं देशहितायानेकानि कार्याणि सम्पादितवान्। तस्य स्वभावः धीरः गम्भीरः निर्भयश्चासीत्। तस्य जीवने वीरमराठानां प्रभावः पूर्णरूपेणाभवत्।

शब्दार्थअपाठयत् – पढ़ाया। जनयितुम् उत्पन्न करने के लिए। सम्पादितवान् पूरा किया।

हिंदी  अनुवाद – यह महापुरुष संवत् 1913 में आषाढ़ कृष्णपक्ष षष्ठी तिथि सोमवार को महाराष्ट्र प्रान्त में रत्नगिरि जिले के ‘चिरवल’ नाम के गाँव में उत्पन्न हुए थे। चितपावन दाक्षिणात्य ब्राह्मण कुल में उत्पन्न पिता का नाम श्री रामचन्द्र गंगाधर राव था। वे कुशल अध्यापक थे। गंगाधर ने अपने पुत्र तिलक को बचपन में ही गणित, मराठी भाषा और संस्कृत पढ़ा दिया था। इनकी माता श्रीमती पार्वती भी परम सुशील, पतिव्रता, ईश्वर-भक्त और सूर्य की उपासना में लगी रहती थीं जिससे यह बालक तेजस्वी हुआ, ऐसा लोग कहते थे। इनका कार्य-क्षेत्र विशेष रूप से महाराष्ट्र था। वे महाराष्ट्र में उग्र राष्ट्रीयता के जन्मदाता थे। तिलक ने महाराष्ट्र के नौजवानों में देश-भक्ति, आत्मबलिदान और आत्म-त्याग की भावना को उत्पन्न करने के लिए देशहित के लिए अनेक कार्यों को पूरा किया। उनका स्वभाव धीर, गम्भीर और निर्भीक था। उनके जीवन में वीर मराठों का प्रभाव पूर्णरूप से था।

अस्य बाल्यकालोऽतिकष्टेन व्यतीतः। यदा स दशवर्षदेशीयोऽभूत् तदा तस्य जननी परलोकं गता। षोडशवर्षदेशीयो यदा दशम्यां कक्षायामधीते स्मतदा पितृहीनो जातोऽयं शिशुः। एवं नानाबाधाबाधितोऽपि सोऽध्ययनं नात्यजत्। विपद्वायुः कदापि तस्य धैर्य चालयितुं न शशाक। अस्मिन्नेव वर्षे तेन प्रवेशिका परीक्षा समुत्तीर्णा। इत्थमस्य जीवनं प्रारम्भादेव संघर्षमयम्भूत्।

शब्दार्थअधीते स्म पढ़ता था। विपद्वायुः विपत्तियों की हवा। प्रवेशिका परीक्षा – हाईस्कूल परीक्षा।

हिंदी  अनुवाद – इनका (तिलक) बचपन अत्यन्त कष्टों में बीता। जब वह दस वर्ष के थे, तब इनको माता का परलोकवास हो गया। सोलह वर्ष की आयु में जब वे दसवीं कक्षा में पढ़ते थे, तब वह बालक पितृहीन हो गया। इस प्रकार अनेक कष्टों से पीड़ित होकर भी इन्होंने पढ़ाई नहीं छोड़ी। विपत्तियों की वायु कभी भी इनके धैर्य को चंचल नहीं बना सकी। इसी वर्ष इन्होंने प्रवेशिका परीक्षा उत्तीर्ण की। इस प्रकार इनका जीवन प्रारम्भ से ही संघर्षमय था।

बाल्यकालादेवायं पठने कुशाग्रबुद्धिः स्वकक्षायाञ्च सर्वतोऽग्रणीरासीत्। संस्कृतगणिते तस्य प्रियविषयौ आस्ताम्। छात्रावस्थायां यदाध्यापकः, गणितस्य प्रश्नं पट्टिकायां लेखितुमादिशति तदा स कथयति स्म। कि पट्टिकायां लेखनेन, मुखेनैवोत्तरं वदिष्यामि। स गणितस्य कठिनप्रश्नानां मौखिकमेवोत्तरमवदत्। परीक्षायां पूर्वं क्लिष्टप्रश्नानां समाधानमकरोत्।

शब्दार्थकुशाग्रबुद्धिः बहुत तेज बुद्धिवाला। अग्रणी नायक। पट्टिकायां स्लेट पर। नूतनम् = नया ।

हिंदी  अनुवाद – बचपन से ही ये पढ़ने में बहुत तेज बुद्धिवाले और अपनी कक्षा में सबसे आगे रहनेवाले थे। संस्कृत और गणित, दोनों इनके प्रिय विषय थे। छात्रावस्था में जब अध्यापक गणित का प्रश्न स्लेट पर लिखने का आदेश देता था, तब ये कहते थे- स्लेट पर लिखने से क्या प्रयोजन! मैं तो मौखिक ही उत्तर बता दूँगा। वह गणित के कठिन प्रश्नों के मौखिक ही उत्तर बता देते थे। वे परीक्षा में पहले कठिन प्रश्नों को हल करते थे। दसवें वर्ष में ही इस बालक ने संस्कृत भाषा में नवीन श्लोक की रचना करने की शक्ति का प्रदर्शन किया था।

दशमे वर्षेऽयं शिशुः संस्कृतभाषायां नूतनश्लोकनिर्माणशक्ति प्रादर्शयत्। महाविद्यालये प्रवेशसमये स नितरां कृशगात्रः आसीत्। दुर्बलशरीरेण स्वबलं वर्धयितुं नदीतरणनौकाचालनादि- विविधक्रियाकलापेन स्वगात्रं सुदृढं सम्पादितवान्। सहजैव चास्यमहाप्रणताऽविर्वभूव। तत आजीवनं नीरोगतायाः निरन्तरमानन्दमभजत्।

शब्दार्थकृशगात्रः – दुबले-पतले शरीरवाले। महाप्रणता – बहुत बल, शक्ति। आविर्बभूव – उत्पन्न हो गया।

हिंदी  अनुवाद – महाविद्यालय में प्रवेश के समय वे अत्यधिक दुबले शरीर के थे। कमजोर शरीर से अपना बल बढ़ाने के लिए नदी में तैरने, नाव चलाने आदि अनेक कार्यों से अपने शरीर को मजबूत बनाया। स्वाभाविक रूप से इनमें महान् शक्ति उत्पन्न हो गयी। इसके बाद जीवन भर नीरोगता का निरन्तर आनन्द लिया।

विंशतितमे वर्षे बी० ए० ततश्च वर्षत्रयानन्तरम् एल-एल० बी० इत्युभे परीक्षे सबहुमानं समुत्तीर्य देशसेवानुरागवशाद् राजकीयां सेवानिवृत्तिं अधिवक्तुः (वकालत) वृत्तिञ्च विहाय लोकसेवाकायें संलग्नोऽभवत्। भारतभूमेः पीडितानां भारतीयानाञ्च कृतेऽयं स्वजीवनमेव समर्पयत्। पीडितानां करुणारवं श्रुत्वा स नग्नपादाभ्यामेवाधावत्। एतादृशा एव महोदया ऐश्वर्यशालिनो भवन्ति। पठनादारभ्याजीवनं स स्वधियं सर्वसत्त्वोद्धृतौ निदधे। प्रिययाप्रियया वा कयापि घटनया स स्वमार्गच्युतो न बभूव। ‘सम्पत्ती च विपत्तौ च महतामेकरूपता’ इति तस्य आदर्शः।

शब्दार्थसमुत्तीर्थ उत्तीर्ण करके। विहाय छोड़कर। निदधे लगाया।

हिंदी  अनुवाद – बीसवें वर्ष में बी० ए०, इसके पश्चात् तीन वर्ष में एल-एल० बी०, इस प्रकार दोनों परीक्षाएँ बड़े सम्मान से उत्तीर्ण कर देश-सेवा के अनुराग के कारण, राजकीय नौकरी और वकालत को छोड़कर लोक- सेवा के कार्य में संलग्न हो गये। भारतभूमि में पीड़ित भारतीयों के लिए इन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया। पौड़ितों के करुण क्रन्दन को सुनकर ये नंगे पैरों ही दौड़ पड़ते थे। इसी प्रकार के महानुभाव ऐश्वर्यशाली हुआ करते हैं। पढ़ने से लेकर अपने जीवन में उन्होंने अपनी बुद्धि को महान् कायर्यों में लगाया। प्रिय या अप्रिय किसी भी घटना के द्वारा वह अपने मार्ग से अलग नहीं हुए। ‘सम्पत्ति और विपत्ति में महान् लोग एक-से रहते हैं’ यह उनका आदर्श था।

सोऽस्मान् स्वतन्त्रतायाः पाठमपाठयत् ‘स्वराज्यमस्माकं जन्मसिद्धोऽधिकारः’ इति घोषणामकरोत्। स्वराज्यप्राप्त्यर्थं घोरमसौ क्लेशमसहत। लोकमान्यो राजनीतिकजागर्तेरुत्पादनार्थ देशभक्तैः सह मिलित्वा मराठीभाषायां ‘केसरी’ आङ्ग्लभाषायाञ्च ‘मराठा’ साप्ताहिकं पत्रद्वयं प्रकाशयामास । तेन स्वप्रकाशितपत्रद्वयद्वारा आङ्गलशासनस्य सत्यालोचनं राष्ट्रियशिक्षणं वैदेशिकवस्तूनां बहिष्कारः स्वदेशीयवस्तूनामुपयोगश्च प्रचालिताः।

शब्दार्थ उत्पादनार्थम् उत्पन्न करने के लिए। मात्सर्येण ईर्ष्या से।

हिंदी  अनुवाद – उन्होंने हमको स्वतन्त्रता का पाठ पढ़ाया। ‘स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ यह घोषणा उन्होंने की। स्वराज्य प्राप्ति के लिए इन्होंने बड़े कष्ट सहे। लोकमान्य तिलक ने राजनीतिक जागृति पैदा करने के लिए देशभक्तों के साथ मिलकर मराठी भाषा में ‘केसरी’ और अंग्रेजी भाषा में ‘मराठा’ ये दो साप्ताहिक पत्र प्रकाशित किये। इन्होंने अपने प्रकाशित पत्रों द्वारा अंग्रेजी शासन की सच्ची आलोचना, राष्ट्रीय शिक्षा, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और अपने देश की वस्तुओं के उपयोग करने का प्रचार किया। उन्होंने । ‘स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ इस सिद्धान्त का प्रचार किया।

स स्वराज्यमस्माकं जन्मसिद्धोऽधिकार इति सिद्धान्तञ्च प्रचारयामास। एतयोः साप्ताहिकपत्रयोः सम्पादने सञ्चालने चायं यानि दुःखानि सहते स्म तेषां वर्णनं सुदुष्करम्। शासनस्य तीव्रालोचनेन पुनः पुनरवं शासकैर्दण्डयते स्म। कदापि कथमपि लोभेन भयेन मदेन मात्सर्येण वा सत्पक्षस्यानुसरणं नात्यजत्। एवं शासकैः कृतानि स बहूनि कष्टानि असहत।

हिंदी  अनुवाद  – इन दो साप्ताहिक पत्रों के सम्पादन और संचालन में उन्होंने जिन दुःखों को सहन किया उनका वर्णन अत्यन्त कठिन है। शासन की तीव्र आलोचनाओं के कारण वे बार-बार शासकों के द्वारा दण्डित किये जाते थे। लोभ, भय, अपमान तथा ईर्ष्या के कारण उन्होंने कभी भी कैसे भी सत्य के पक्ष का अनुसरण नहीं त्यागा। इस प्रकार शासकों द्वारा दिये गये अनेक कष्टों को उन्होंने सहन किया।

‘केसरी’ पत्रस्य तीक्ष्णैलेंखैः कुपिताः शासकाः तिलकमष्टादशमासिकेन सश्रमकारावासस्य दण्डेनादण्डयन्। अस्य दण्डस्य विरोधाय भारतवर्षे अनेकेषु स्थानेषु सभा संजाता। देशस्य सम्मान्यैः पुरुषैः लोकमान्यस्य मुक्तये बहूनि प्रार्थनापत्राणि प्रेषितानि। अयं सर्वप्रयासः विफलो जातः। शासकः पुनश्च (1908) खिष्टाब्दे तिलकमहोदयं राजद्रोहस्यापराधे दण्डितं कृतवान्। षड्वर्षेभ्यः दण्डितः स द्वीपनिर्वासनदण्डं बर्मादेशस्य मण्डले कारागारे कठोरकष्टानि सोढ्वा न्याय्यात् पथो न विचचाल।

शब्दार्थतीक्ष्णैः – तीखे। मुक्तये छुटकारे के लिए। न्याय्यात् पथः न्याय के मार्ग से। न विचचाल – विचलित नहीं हुए।

हिंदी  अनुवाद -‘केसरी’ पत्र के तीखे लेखों से क्रुद्ध हुए शासकों ने तिलक जी को अठारह मास के सश्श्रम कारावास के दण्ड से दण्डित किया। इनके दण्ड के विरोध के लिए भारत में अनेक स्थानों पर सभा हुई। देश के सम्मानित लोगों ने लोकमान्य जी की मुक्ति के लिए बहुत-से प्रार्थना-पत्र भेजे। यह सारा प्रयास विफल हो गया। शासकों ने फिर से सन् 1908 ईस्वी में तिलक जी को राजद्रोह के अपराध में दण्डित किया। छह वर्षों के लिए दण्डित वे (भारत) द्वीप से निकालने (निर्वासन) के दण्ड को बर्मा देश की माण्डले जेल में कठोर कष्टों को सहकर भी न्याय के मार्ग से विचलित नहीं हुए।

अत्रैव निर्वासनकाले तेन विश्वप्रसिद्धं गीतारहस्यं नाम गीतायाः कर्मयोग-प्रतिपादकं नवीनं भाष्यं रचितम्। कर्मसु कौशलमेव कर्मयोगः, गीता तमेव कर्मयोगं प्रतिपादयति। अतः सर्वे जनाः कर्मयोगिनः स्युः इति तेन उपदिष्टम्। कारागारात् विमुक्तोऽयं देशवासिभिरभिनन्दितः। तदनन्तरं स ‘होमरूल’ सत्याग्रहे सम्मिलितवान्। इत्थं पुनः स देशसेवायां संलग्नोऽभूत्। ‘गीता रहस्यम्’ वेदकालनिर्णयः, आर्याणां मूलवासस्थानमित्येतानि पुस्तकानि तस्याध्ययनस्य गाम्भीर्य प्रतिपादयन्ति।

शब्दार्थगाम्भीर्यम् गम्भीरता को। प्रतिपादयन्सि – बतलाती है।

हिंदी  अनुवाद – यहीं पर निर्वासन के समय में उन्होंने ‘गीता-रहस्य’ नाम का कर्मयोग का प्रतिपादन करनेवाला गीता का नया भाष्य रचा। कर्मों में कुशलता ही कर्मयोग है। गीता उसी कर्मयोग का प्रतिपादन करती है। अतः सब लोगों को कर्मयोगी होना चाहिए, ऐसा उन्होंने उपदेश दिया। कारागार से छूटने के पश्चात् इनका (लोकमान्य तिलक) देशवासियों ने अभिनन्दन किया। इसके बाद वे ‘होम रूल’ सत्याग्रह में शामिल हुए। इस प्रकार पुनः वह देश-सेवा में लग गये। गीता-रहस्य, वेदों का काल-निर्णय, आर्यों का मूल निवास स्थान, ये पुस्तकें उनके अध्ययन की गम्भीरता को बताती हैं।

देशोद्धारकारणामग्रणीः स्वराष्ट्रायानेकान् क्लेशान् सहमानः लोकमान्यः सप्तसप्तत्यधिकनवदशशततमे विक्रमाब्दे (1977) चतुष्षष्टिवर्षावस्थायामगस्तमासस्य प्रथमदिनाङ्के नश्वरं शरीरं परित्यज्य दिवमगच्छत्। एवं कर्तव्यनिष्ठो निर्भयः तपस्विकल्पो महापुरुषो लोकमान्यः तिलको भारतदेशस्योद्धरणाय यदकरोत् तत्तु वृत्तं स्वर्णाक्षरलिखितं भारतस्वातन्त्र्येतिहासे सदैव प्रकाशयिष्यते।

शब्दार्थ नश्वरं – नाशवान्। दिवमगच्छत् स्वर्ग चले गये। तपस्विकल्पः तपस्वी की तरह। वृत्तं – घटना। सुकृताय – सत्कर्म के लिए। परावबोधाय- दूसरों के ज्ञान के लिए।

हिंदी  अनुवाद – देश का उद्धार करनेवालों में सबसे आगे अपने राष्ट्र के लिए अनेक कष्टों को सहते हुए लोकमान्य तिलक संवत् 1977 में 64 वर्ष की अवस्था में अगस्त महीने की पहली तारीख को नाशवान् शरीर को छोड़कर स्वर्ग चले गये। ऐसे कर्तव्यनिष्ठ, निडर, तपस्वियों के समान महापुरुष लोकमान्य तिलक ने भारत देश के उद्धार के लिए जो कुछ किया, वह स्वर्णाक्षरों में लिखा वृत्तान्त भारत की स्वतन्त्रता के इतिहास में हमेशा प्रकाशित रहेगा। किसी कवि ने ठीक कहा है-

केनापि कविना सूक्तम-
दानाय लक्ष्मीः सुकृताय विद्या, चिन्ता परेषां सुखवर्धनाय ।

परावबोधाय वचांसि यस्य, वन्द्यस्त्रिलोकी तिलकः स एव।।

हिंदी  अनुवाद / श्लोकार्थ –“जिसकी लक्ष्मी दान के लिए, विद्या सत्कर्म के लिए और चिन्ता दूसरों के सुख को बढ़ाने के लिए एवं वाणी दूसरों को ज्ञान देने के लिए थी, वे तीनों लोकों में वन्दनीय तिलक ही थे।”

                                      लोकमान्य तिलकः [ पाठ का सारांश ]

जीवन-परिचय – लोकमान्य तिलक भारत के एक महान् पुरुष थे। इनके पिता का नाम श्री गंगाधर राव था। तिलक का जन्म संवत् 1913 विक्रमी में आषाढ़, कृष्ण पक्ष छठ सोमवार को महाराष्ट्र के चिरबल नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता ने बाल्यकाल से ही इन्हें संस्कृत और गणित की अच्छी शिक्षा दी। इनके प्रिय विषय गणित और संस्कृत ही थे। इनका प्रारम्भिक जीवन बड़ा कष्टमय था। जब ये मात्र दस वर्ष के ही थे कि इनकी माता का स्वर्गवास हो गया तथा जब ये सोलह वर्ष ही के थे और दसवीं कक्षा में ही पढ़ रहे थे कि इनके पिता जी का भी स्वर्गवास हो गया। जिन्दगी के साथ संघर्ष करते हुए बीस वर्ष की अवस्था में इन्होंने बी० ए० पास कर लिया। इसके बाद आपने एल-एल० बी० की परीक्षा पास की।

राष्ट्रसेवा – तिलक बचपन से ही स्वतन्त्र विचारों के थे। उनके हृदय में स्वतन्त्रता की उमंग थी। वकालत पास करने के बाद भारत- भूमि ने इन्हें अपनी ओर खींचा, अतः वकालत छोड़ दी और देशसेवा में. लग गये। ‘स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ यह इनकी घोषणा थी। इन्होंने मराठी भाषा में ‘केसरी’ तथा अंग्रेजी भाषा में ‘मराठा’ पत्र निकाला।

साहित्य सृजन – लोकमान्य तिलक अच्छे विचारक, अच्छे सम्पादक, निर्भीक नेता और अच्छे साहित्यकार भी थे। आपने जेल में रहकर भी साहित्य सृजन किया। इनका प्रसिद्ध ग्रन्थ है ‘गीता कर्मयोग भाष्य’ जो जेल में रहकर ही लिखा गया था। इनकी अन्य रचनाएँ हैं- ‘वेद काल निर्णय’ तथा ‘आर्यों का मूल निवास स्थान’ । स्वर्गारोहण – लोकमान्य तिलक देश की जनता को योग का पाठ पढ़ाकर, आजादी के अधिकार का ज्ञान कराकर, संघर्ष की शिक्षा देकर संवत् 1977 विक्रमी में, 64 वर्ष की आयु में स्वर्ग सिधार गये।

 

              लोकमान्यः तिलकः (MCQ) 

नोट : प्रश्न-संख्या 1 एवं 2 गद्यांश पर आधारित प्रश्न हैं। गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और उत्तर का चयन करें। 1 सोऽस्मान् स्वतन्त्रतायाः पाठमपाठयत् ‘स्वराज्यमस्माकं जन्मसिद्धोऽधिकारः’ इति घोषणामकरोत्। स्वराज्यप्राप्त्यर्थं घोरमसौ क्लेशमसहत। लोकमान्यो राजनीतिकजागर्तेरुत्पादनार्थं देशभक्तैः सह मिलित्वा मराठीभाषायां ‘केसरी’ आङ्ग्लभाषायाञ्च ‘मराठा’ साप्ताहिकं पत्रद्वयं प्रकाशयामास।

1. ‘स्वराज्यमस्माकं जन्मसिद्धोऽधिकारः’ इति केन घोषितम् ?

(क) तिलकेन

(ख) स्वराजेन

(ग) देशभक्तेन

(घ) ग्रामीणेन

उत्तर- (क) तिलकेन

2. ‘मराठा’ इत्याख्यं पत्रं कस्यां भाषायां प्रकाशितम् ?

(क) हिन्दीभाषायाम्

(ख) संस्कृतभाषायाम्

(ग) आंग्लभाषायाम्

(घ) मराठीभाषायाम्

उत्तर- (ग) आंग्लभाषायाम्

3. ‘केसरी’ इति पत्रं कस्यां भाषायां प्रकाशितम् ?

(क) हिन्दीभाषायाम्

(ख) संस्कृतभाषायां

(ग) आंग्लभाषायाम्

(घ) मराठीभाषायाम्

उत्तर- (घ) मराठीभाषायाम्

4. लोकमान्यः कस्य विरुदः ?

(क) तिलकस्य

(ख) चन्द्रशेखरस्य

(ग) रामचन्द्रस्य

(घ) गङ्गाधरस्य

उत्तर- (क) तिलकस्य

5. लोकमान्यतिलकस्य मातुः किं नाम?

(क) पुतलीबाई

(ख) जीजाबाई

(ग) पार्वतीबाई

(घ) सुशीला

उत्तर- (ग) पार्वतीबाई-

6. तिलकेन रचितस्य गीताभाष्यस्य नाम किम् ?

(क) यथार्थगीता

(ख) गीतारहस्यम्

(ग) गीतामृतम्

(घ) गीतगोविन्दम्

उत्तर- (ख) गीतारहस्यम्

7. तिलकस्य प्रियविषयौ आस्ताम् ?

(क) गणितसंस्कृते

(ख) कलाविज्ञाने

(ग) चिकित्सागणिते

(घ) हिन्दीसंस्कृते

उत्तर- (क) गणितसंस्कृते

8. बालगङ्गाधर तिलकस्य जन्म कुत्र अभवत् ?

(क) नागपुरमण्डलान्तर्गते

(ख) रत्नगिरिमण्डलान्तर्गते

(ग) मुम्बईमण्डलान्तर्गते

(घ) पूनामण्डलान्तर्गते

उत्तर- (ख) रत्नगिरिमण्डलान्तर्गते

9. बालगङ्गाधर तिलकस्य जन्मनाम किम् आसीत् ?

(क) केशव राव

(ख) माधव राव

(ग) गङ्गा राव

(घ) बालाजी राव

उत्तर- (क) केशव राव

10. बालगङ्गाधरतिलकस्य पितुर्नाम किम् आसीत् ?

(क) कृष्णचन्द्र राव

(ख) नारायण राव

(ग) रामचन्द्र गङ्गाधर राव

(घ) माधव नारायण राव

उत्तर- (ग) रामचन्द्र गङ्गाधर राव

11. ‘स्वराज्यमस्माकं जन्मसिद्धोऽधिकारः’ कस्य उद्घोषः ?

(क) चन्द्रशेखर आजादेन

(ख) सरदार भगतसिंहेन

(ग) सुभाषचन्द्र बोस महोदयेन

(घ) बालगङ्गाधर तिलकेन

उत्तर- (घ) बालगङ्गाधर तिलकेन

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