Bhartendu harishchandra- जीवन परिचय व साहित्यिक परिचय

भारतेंदु हरिश्चंद्र [ जीवन साहित्यिक परिचय ]

Bhartendu harishchandra sahityik

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भारतेंदु हरिश्चंद्र [ जीवन साहित्यिक परिचय ]

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जीवन परिचय –

       भारतेंदु जी का जन्म काशी के प्रसिद्ध वैश्य परिवार में सन् 1850 ई ० में हुआ था । इनके पिता गोपालचंद्र गिरिधर दास ब्रजभाषा के प्रसिद्ध कवि थे । 7 वर्ष की उम्र में ही इन्होने एक दोहा ” ले व्योढा ठाढे भए श्री अनिरुद्ध सुजान , बाणासुर की सैन को हनन लगे हनुमान । लिखकर पिता को दिखाया पिता जी ने महाकवि होने का आशीर्वाद दिया ।

बचपन में ही मातापिता के सुख से वंचित हो गये । – शोषण एवं वंचितों की आवाज को अपने साहित्य के माध्यम से उठाते रहे और 35 वर्ष की आल्पायु में सन 1985 ई में इनका देहावसान हो गया ।

साहित्यिक परिचय –

भारतेन्दु के वृहत साहित्यिक योगदान के कारण ही 1857 से 1900 ई ० तक के काल को भारतेन्दु युग के नाम से जाना जाता है । पंद्रह वर्ष की अवस्था से ही भारतेन्दु ने साहित्य सेवा प्रारम्भ कर दी थी । अठारह वर्ष की अवस्था में उन्होंने ‘ कविवचनसुधा ‘ नामक पत्रिका निकाली । बीस वर्ष की अवस्था में ऑनरेरी मैजिस्ट्रेट बनाए गए और आधुनिक हिन्दी साहित्य के जनक के रूप मे प्रतिष्ठित हुए । उन्होंने 1868 में ‘ कविवचनसुधा ‘ , 1873 में ‘ हरिश्चन्द्र मैगजीन ‘ और 1874 में स्त्री शिक्षा के लिए ‘ बाला बोधिनी ‘ नामक पत्रिकाएँ निकालीं । उन्होंने ‘ तदीय समाज ‘ की स्थापना की थी । अत : भारतेंदु एक महान कवि , सफल नाटककार , प्रतिष्ठित सम्पादक और कुशल लेखक के रुप में हिंदी साहित्य संसार में हमारे समक्ष उपस्थित हुए । अल्पायु में ही हिन्दी साहित्य को जो रूप प्रदान किया उसका हिन्दी साहित्य सदैव ऋणी रहेगा ।

प्रमुख कृतियाँ –

  • मौलिक नाटक
  • वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति
  • सत्य हरिश्चन्द्र
  • श्री चंद्रावली
  • विषस्य विषमौषधम्
  • भारत दुर्दशा
  • नीलदेवी
  • अंधेर नगरी
  • प्रेमजोगिनी
  • सती प्रताप

अनूदित नाट्य – रचनाएँ

  • विद्यासुन्दर
  • पाखण्ड विडम्बन
  • धनंजय विजय
  • कर्पूर मंजरी
  • भारत जननी
  • मुद्राराक्षस
  • दुर्लभ बंधु
निबंध संग्रह
  • नाटक
  • कालचक्र
  • लेवी प्राण लेवी
  • भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है ?
  • कश्मीर कुसुम 
  • स्वर्ग में विचार सभा

काव्यकृतियां

  • भक्तसर्वस्व
  • प्रेममालिका
  • प्रेम माधुरी
  • प्रेम तरंग
  • उत्तरार्द्ध
  • भक्तमाल
  • प्रेम प्रलाप
  • वर्षा विनोद
  • विनय प्रेम पचासा
  • फूलों का गुच्छा
खड़ीबोली काव्य 
  • प्रेम फुलवारी
  • नये ज़माने की मुकरी
  • बन्दर सभा ( हास्य व्यंग )
  • बकरी विलाप (हास्य व्यंग)
  •  कहानी अद्भुत अपूर्व स्वप्न
  • यात्रा वृत्तान्त 
  • सरयूपार की यात्रा
  • लखनऊ की यात्रा
  • आत्मकथा- एक कहानी- कुछ आपबीती , कुछ जगबीती
  • उपन्यास- पूर्णप्रकाश चन्द्रप्रभा
भाषा – शैली

भारतेन्दु ने लोकभाषाओं और फारसी से मुक्त उर्दू के आधार पर खड़ी बोली का विकास किया । उनके गद्य की भाषा सरल और व्यवहारिक है । मुहावरों का प्रयोग कुशलतापूर्वक हुआ है । भावात्मक , व्यंग्यात्मक , त्मक , व्यंग्यात्मक , उद्बोधनात्मक शैली के साथ रीतिकालीन रसपूर्ण आलंकारिक शैली का भी प्रयोग किया है । 

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