यूoपीo बोर्ड कक्षा – 12th हिन्दी एवं सामान्य हिन्दी( लोकोक्तियाँ)
Hindi Grammar Lokoktiyan|| लोकोक्तियाँ सामान्य हिंदी ||up board lokokti solution: लोकोक्ति शब्द दो शब्दो से निर्मित है = लोक + उक्ति । वह उक्ति जो किसी क्षेत्र विशेष में किसी विशेष अर्थ की ओर संकेत करती है ,लोकोक्ति कहलाती है । इसे कहावत, सूक्तियां आदि नामों से जाना जाता है। लोकोक्ति लोकभाषा और लोक अनुभवों पर आधारित ज्ञान होता है । Muhavre & Lokoktiyan लोकोक्तियाँ किसे कहते है? Proverbs in Hindi. प्रमुख लोकोक्तियाँ ( कहावतें ) और अर्थ |up board exam all pdf hindi class 12 sahity hindi and general hindi सामान्य हिंदी कक्षा 12 साहित्य हिंदी

Class | 12th (class 12 ) Intermediate |
Subject | General Hindi (सामान्य हिंदी ) |
Chapter | Lokoktiyan लोकोक्तियाँ |
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Board | UP BOARD |
By | Arunesh Sir |
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लोकोक्तियाँ एवं अर्थ
- अधजल गगरी छलकत जाय- -अधूरे ज्ञानवाला व्यक्ति ही डींगें हाँकता है ।
- अपना पैसा खोटा तो परखनेवाले का क्या दोष – अपने अन्दर अवगुण हों तो दूसरे बुरा कहेंगे ही ।
- अपनी – अपनी डफली , अपना – अपना राग – सबका अपनी – अपनी अलग बात करना
- अपनी करनी पार उतरनी – अपने बुरे कर्मों का फल भुगतना ही होता है ।
- अपना हाथ जगन्नाथ – अपना कार्य स्वयं करना ।
- अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता — अकेला व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता
- अशर्फियाँ लुटें और कोयलों पर मुहर – मूल्यवान् वस्तुओं की उपेक्षा करके तुच्छ वस्तुओं की चिन्ता करना ।
- आँख के अन्धे गाँठ के पूरे – मूर्ख और धनी ।
- आँखों के अन्धे , नाम नयनसुख – गुणों के विपरीत नाम होना ।
- आई मौज फकीर की दिया झोपड़ा फूंक – वह व्यक्ति , जो किसी भी वस्तु से मोह नहीं करता है ।
- आगे कुआँ पीछे खाई – विपत्ति से बचाव का कोई मार्ग न होना ।
- आगे नाथ न पीछे पगहा – कोई भी जिम्मेदारी न होना ।
- आटे के साथ घुन भी पिसता है — अपराधी के साथ निरपराधी भी दण्ड प्राप्त करता है ।
- आधी तज सारी को धाए , आधी मिले न सारी पाए – लालच में सब – कुछ समाप्त हो जाता है ।
- आप भला सो जग भला- अपनी नीयत ठीक होने पर सारा संसार ठीक लगता है ।
- आम के आम गुठलियों के दाम – दुहरा लाभ उठाना ।
- आसमान से गिरा खजूर पर अटका – एक विपत्ति से छूटकर दूसरी में उलझ जाना ।
- आदमी आदमी का अन्तर कोई हीरा कोई कंकर – हर आदमी का गुण और स्वभाव दूसरे से भिन्न होता है.
- उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे – अपना दोष स्वीकार न करके उल्टे पूछनेवाले पर आरोप लगाना ।
- उल्टे बाँस बरेली को – परम्परा के विपरीत कार्य करना ।
- एक तो करेला , दूसरे नीम चढ़ा – अवगुणी में और अवगुणों का आ जाना ।
- एक तो चोरी दूसरी सीनाजोरी – गलती करने पर भी उसे स्वीकार न करके विवाद करना ।
- एक पन्थ दो काज – एक ही उपाय से दो कार्यों का करना ।
- एकै साधे सब सधे , सब साधे सब जाय – प्रभावशाली एक ही व्यक्ति के प्रसन्न कर लेने पर सबको प्रसन्न करने की आवश्यकता नहीं रह जाती । सबको प्रसन्न करने के प्रयास में कोई भी प्रसन्न नहीं हो पाता ।
- ओछे की प्रीत बालू की भीत – नीच व्यक्ति का स्नेह रेत की दीवार की तरह अस्थायी ( क्षणभंगुर ) होता है
- करघा छोड़ तमाशा जाय , नाहक चोट जुलाहा खाय – अपना काम छोड़कर व्यर्थ के झगड़ों में फँसना हानिकर होता है ।
- कहाँ राजा भोज , कहाँ गंगू तेली – दो असमान स्तर की वस्तुओं
- कहीं की ईंट , कहीं का रोड़ा ; भानुमती ने कुनबा जोड़ा – इधर – उधर से उल्टे – सीधे प्रमाण एकत्र कर अपनी बात सिद्ध करने का प्रयत्न करना ।
- कागज की नाव नहीं चलती बिना किसी ठोस आधार के कोई कार्य नहीं हो सकता ।
- कागा चला हंस की चाल – अयोग्य व्यक्ति का योग्य व्यक्ति जैसा बनने का प्रयत्न करना ।
- का बरसा जब कृषि सुखाने – उचित अवसर निकल जाने पर प्रयत्न करने का कोई लाभ नहीं होता ।
- कोयले की दलाली में हाथ काले – कुसंगति से कलंक अवश्य लगता है ।
- खग जाने खग ही की भाषा — एकसमान वातावरण में रहनेवाले अथवा प्रवृत्तिवाले एक – दूसरे की बातों के सार शीघ्र ही समझ लेते हैं ।
- खरी मजूरी चोखा काम – नकद पैसे देने से काम भी अच्छा होता है ।
- खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे – दूसरे के क्रोध को अनुचित स्थान पर निकालना ; अपनी खीझ को अनुचित रूप से व्यक्त करना ।
- खोदा पहाड़ निकली चुहिया – अधिक परिश्रम करने पर भी मनोवांछित फल न मिलना ।
- गंगा गए गंगादास जमुना गए जमुनादास – देश – काल – वातावरण के अनुसार स्वयं को ढाल लेना ।
- गुरु कीजै जान , पानी पीजै छान – गुरु और पीने योग्य जल के चयन में सावधानी रखना ।
- गुड़ खाए , गुलगुलों से परहेज – किसी वस्तु से दिखावटी परहेज ।
- घर का भेदी लंका ढावै – अपना ही व्यक्ति धोखा देता है ।
- घर का जोगी जोगना , आन गाँव का सिद्ध – गुणवान् व्यक्ति के अपने स्थान पर प्रशंसा नहीं होती ।
- घर की मुर्गी दाल बराबर – घर की वस्तु का महत्त्व नह समझा जाती ।
- घर खीर तो बाहर खीर — यदि व्यक्ति अपने घर में सुखी और सन्तुष्ट है तो उसे सब जगह सुख और सन्तुष्टि का अनुभव होता है ।
- घी कहाँ गिरा , दाल में – व्यक्ति का स्वार्थ के लिए पतित होना |
- घोड़े को लात , आदमी को बात – घोड़े के लिए लात और सच आदमी के लिए बात का आघात असहनीय होता है ।
- चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए – लालची होना ।
- चलती का नाम गाड़ी – जिसका नाम चल जाए वही ठीक ।
- तेल देख तेल की धार देख – कार्य को सोच – विचारकर करना और अनुभव प्राप्त करना ।
- थोथा चना बाजे घना – कम गुणी व्यक्ति में अहंकार अधिक होता है ।
- दान की बछिया के दाँत नहीं देखे जाते — मुफ्त की वस्तु का अच्छा – बुरा नहीं देखा जाता ।
- दाल – भात में मूसलचंद – किसी कार्य में व्यर्थ टाँग अड़ाना ।
- दिन दूनी रात चौगुनी – गुणात्मक वृद्धि ।
- दीवार के भी कान होते हैं – रहस्य खुल ही जाता है ।
- दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम – दुविधाग्रस्त व्यक्ति को कुछ भी प्राप्त नहीं होता ।
- दूर के ढोल सुहावने होते हैं – प्रत्येक वस्तु दूर से अच्छी लगती है ।
- धोबी का कुत्ता घर का न घाट का लालची व्यक्ति कहीं का नहीं रहता / लालची व्यक्ति लाभ से वंचित रह ही जाता है ।
- न तीन में , न तेरह में — महत्त्वहीन होना , किसी काम का न होना ।
- न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी – झगड़े की जड़ काट देना ।
- नाच न जाने / आवै आँगन टेढ़ा – काम न आने पर दूसरों को दोष देना ।
- नाम बड़े , दर्शन छोटे – प्रसिद्धि के अनुरूप निम्न स्तर होना ।
- न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी – न इतने अधिक साधन होंगे और न काम होगा ।
- नीम हकीम खतरा – ए – जान – अप्रशिक्षित चिकित्सक रोगी के लिए जानलेवा होते हैं ।
- नौ नकद न तेरह उधार — नकद का विक्रय कम होने पर भी उधार के अधिक विक्रय से अच्छा है ।
- नौ दिन चले अढ़ाई कोस – धीमी गति से कार्य करना ।
- पढ़े फारसी बेचे तेल , यह देखा कुदरत का खेल – भाग्यवश योग्य व्यक्ति द्वारा तुच्छ कार्य करने के लिए विवश होना ।
- बगल में छोरा , नगर में ढिंढोरा – वाँछित वस्तु की प्राप्ति के लिए अपने आस – पास दृष्टि न डालना ।
- बड़े मियाँ सो बड़े मियाँ छोटे मियाँ सुभानअल्लाह – छोटे का बड़े से भी अधिक धूर्त होना ।
- बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद – मूर्ख व्यक्ति गुणों के महत्त्व को नहीं समझ सकता ।
- बाप ने मारी मेंढकी , बेटा तीरंदाज – कुल – परम्परा से निम्न कार्य करते चले आने पर भी महानता का दम्भ भरना ।
- भइ गति साँप छछून्दति केरी – दुविधा की स्थिति ।
- चादर के बाहर पैर पसारना – हैसियत से अधिक खर्च करना ।
- चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात – सुख क्षणिक ही होता है ।
- चिड़िया उड़ गई फुर्र – अभीष्ट व्यक्ति अथवा वस्तु का प्राप्ति से पूर्व ही गायब हो जाना / मृत्यु हो जाना ।
- चिराग तले अँधेरा – अपना दोष स्वयं को दिखाई नहीं देता ।
- चींटी के पर निकलना – विनाश की स्थिति तक पहुँचना ।
- चोर – चोर मौसेरे भाई – समाजविरोधी कार्य में लगे हुए व्यक्ति समान होते हैं ।
- चूहे का जाया बिल ही खोदता है – बच्चे में पैतृक गुण आते ही हैं ।
- जैसी करनी : वैसी भरनी – कर्मों के अनुसार फल की प्राप्ति होना ।
- ढाक के वही तीन पात – कोई निष्कर्ष ( हल ) न निकलना ।
- तेली का तेल जले , मशालची का दिल – व्यय कोई करे , दुःख किसी और को हो ।
- गंजेड़ी यार किसके , दम लगाया खिसके – स्वार्थी मित्र हमेशा स्वार्थ देखता है , जैसे ही उसका स्वार्थ सिद्ध होता है , वह मुँह फेर लेता है ।
- मेरी तेरे आगे , तेरी मेरे आगे – चुगलखोरी करना ।
- यथा नाम तथा गुण – नाम के अनुरूप गुण ।
- शौकीन बुढ़िया चटाई का लहँगा – शौक पूरे करते समय अपनी आर्थिक स्थिति की अनदेखी करना ।
- साँप निकल गया लकीर पीटते रहे कार्य का अवसर हाथ से निकल जाने पर भी परम्परा का निर्वाह करना ।
- साँप भी मरे और लाठी भी न टूटे – काम भी बन जाए और कोई हानि भी न हो ।
- सावन हरे न भादों सूखे – सदैव एक – सी स्थिति में रहना ।
- सब धान बाइस पसेरी – गुणी – अवगुणी को एक ही श्रेणी में रखना ।
- समरथ को नहिं दोष गोसाई – सामर्थ्यवान लोगों का कोई दोष
- हाथ कंगन को आरसी क्या – प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती ।
- हाथी के पाँव में सबका पाँव – ओहदेदार व्यक्ति की हाँ में ही सबकी हाँ होती है ।
- होनहार बिरवान के होत चीकने पात – प्रतिभाशाली व्यक्ति के लक्षण आरम्भ से ही दिखाने लगते हैं ।
- हाथी निकल गया , दुम रह गई सभी मुख्य काम हो जाने पर कोई मामूली – सी अड़चन रह जाना ।