चैप्टर – 2 पद (मीराबाई) व्याख्या
{मीराबाई के पदों की व्याख्या}
Meera ke pad Class, 10th Hindi, CBSE NCERT Sparsh-2 chapter 2 explanation, explanation पद मीरा बाई,
[1]
हरि आप हरो जन री भीर ।
द्रोपदी री लाज राखी , आप बढ़ायो चीर ।
भगत कारण रूप नरहरि , धर्यो आप सरीर ।
बूढ़तो गजराज राख्यो , काटी कुण्जर पीर ।
दासी मीराँ लाल गिरधर , हरो म्हारी भीर ।।
व्याख्या/भावार्थ- मीराबाई अपने आराध्य देव से प्रार्थना करती हैं कि हे ईश्वर ! केवल आप ही अपनी इस दासी के कष्टों को दूर कर सकते हैं । आपने ही द्रौपदी की लाज बचाकर उसे अपमानित होने से बचाया था । जिस समय दुःशासन ने भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण करने का प्रयास किया था , तब आपने ही उसके चीर को बढ़ाया था । इसी प्रकार अपने प्रिय भक्त प्रहलाद को बचाने के लिए आपने भगवान नरसिंह का रूप धारण किया था । आपने ही डूबते हुए हाथी को मगरमच्छ के मुँह से बचाकर उसके जीवन की रक्षा की थी और उसकी पीड़ा को दूर किया था । दासी मीरा प्रार्थना करती है कि हे गिरिधर ! आप मेरे कष्टों को भी दूर कर मुझे ( आपकी दासी मीरा को ) भी हर प्रकार के सांसारिक बंधन से छुटकारा दिला दीजिए ।
काव्य सौंदर्य-
- भाषा में ब्रजभाषा के शब्दों के साथ – साथ राजस्थानी भाषा के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है ।
- ‘ काटी कुण्जर ‘ में अनुप्रास अलंकार है , जबकि पूरे पद में दृष्टांत अलंकार का प्रयोग हुआ है ।
[2]
स्याम म्हाने चाकर राखो जी ,
गिरधारी लाला म्हाँने चाकर राखोजी ।
चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरसण पास्यूँ ।
बिन्दरावन री कुंज गली में , गोविंद लीला गास्यूँ ।
चाकरी में दरसण पास्यूँ , सुमरण पास्यूँ खरची ।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ , तीनूं बाताँ सरसी । “
व्याख्या/भावार्थ- मीरा , श्रीकृष्ण से प्रार्थना करते हुए कहती हैं कि हे श्याम ! तुम मुझे अपनी दासी ( सेविका ) बनाकर रख लो । मीरा , श्रीकृष्ण से प्रार्थना करती हुई दोबारा कहती हैं । हे गिरिधारी लाल ! तुम मुझे अपने यहाँ सेविका के रूप में रख लो । मैं तुम्हारी सेविका के रूप में रहते हुए तुम्हारे लिए बाग – बगीचे लगाया करूँगी , जिसमें तुम घूम सको । जब तुम रोज़ सुबह यहाँ घूमने आओगे , तो मैं तुम्हारे दर्शन कर लिया करूँगी । मैं वृंदावन के बागों और गलियों में तुम्हारी लीलाओं के गीत गाया करूँगी । तुम्हारी सेवा करते हुए मुझे तुम्हारे दर्शन करने का अवसर भी मिल जाएगा । तुम्हारे नाम – स्मरण के रूप में मुझे जेब – खर्च भी प्राप्त हो जाया करेगा । इस प्रकार मुझे तुम्हारे दर्शन , स्मरण और भक्ति रूपी जागीर – तीनों आसानी से मिल जाएँगी , जिससे मेरा जीवन सफल हो जाएगा ।
काव्य सौंदर्य-
- ‘ भाव भगती ‘ में अनुप्रास अलंकार विद्यमान है ।
- संपूर्ण पद में माधुर्य गुण विद्यमान है ।
[3]
मोर मुगट पीताम्बर सौहे , गल वैजन्ती माला ।
बिन्दरावन में धेनु चरावे , मोहन मुरली वाला ।
ऊँचा ऊँचा महल बणावं बिच बिच राखू बारी ।
साँवरिया रा दरसण पास्यूँ , पहर कुसुम्बी साड़ी ।
आधी रात प्रभु दरसण , दीज्यो जमनाजी रे तीरां ।
मीराँ रा प्रभु गिरधर नागर , हिवड़ो घणो अधीराँ । “
भावार्थ- मीराबाई , श्रीकृष्ण के रूप – सौंदर्य पर अत्यंत मोहित हैं । वह उनके रूप – सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती हैं कि श्रीकृष्ण के माथे पर मोरपंखों से बना हुआ सुंदर मुकुट सुशोभित हो रहा है । उनके शरीर पर पीले वस्त्र शोभा पा रहे हैं । उनके गले में फूलों की वैजन्ती माला बहुत सुंदर लग रही है । मन को मोहित कर लेने वाले और मधुर – मधुर बाँसुरी बजाने वाले श्रीकृष्ण वृंदावन में गाय चराते हैं ।
वृंदावन में मेरे श्रीकृष्ण का भव्य और ऊँचा महल है । मैं इस महल के बीचों – बीच सुंदर फूलों से सजी फुलवारी बनवाऊँगी । इसके पश्चात् मैं लाल रंग की साड़ी पहनूँगी और अपने साँवले के दर्शन करूँगी । मीरा , श्रीकृष्ण से निवेदन करती हैं कि हे प्रभु ! तुम आधी रात को यमुना नदी के किनारे अपने दर्शन देने के लिए अवश्य आना , क्योंकि मेरा मन तुम्हारे दर्शन के लिए अत्यंत व्याकुल हो रहा है ।
काव्य सौंदर्य – ( i ) इसमें मुख्यतः राजस्थानी भाषा के शब्दों का प्रयोग किया गया है , जो भावाभिव्यक्ति में पूर्णतः सक्षम है । ( ii ) संपूर्ण पद में माधुर्य गुण विद्यमान है । ( iii ) इस पद में गेयात्मक शैली का प्रयोग किया गया है । ( iv ) ‘ मोर मुगट ‘ तथा ‘ मोहन मुरली ‘ में अनुप्रास अलंकार |