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सुमित्रानंदन पन्त का साहित्यिक परिचय कृतियाँ
Class | 12th (class 12) Intermediate |
Subject | General Hindi (सामान्य हिंदी ) |
Chapter | Sumitranandan pant सुमित्रानंदन पन्त |
Topic | sahityik pariuchay jivan parichay साहित्यिक परिचय |
Board | UP BOARD |
By | Arunesh Sir |
Other | वीडियो के माध्यम से समझें |
जीवन परिचय
प्रकृति – चित्रण के अमर गायक कविवर सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म 20 मई , सन् 1900 ई ० ( संवत् 1957 ) को अल्मोड़ा के निकट कौसानी नामक ग्राम में हुआ था । जन्म के 6 घण्टे के बाद ही इनकी माता का देहान्त हो गया । पिता तथा दादी के वात्सल्य की छाया में इनका प्रारम्भिक लालन – पालन हुआ । पन्तजी ने सात वर्ष की अवस्था से ही काव्य – रचना आरम्भ कर दी थी । पन्तजी की शिक्षा का पहला चरण अल्मोड़ा में पूरा हुआ । यहीं पर उन्होंने अपना नाम गुसाईंदत्त से बदलकर सुमित्रानन्दन रख लिया ।
सन् 1919 ई ० में पन्तजी अपने मँझले भाई के साथ बनारस चले आए । यहाँ पर उन्होंने क्वीन्स कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की । सन् 1950 ई ० में वे ‘ ऑल इण्डिया रेडियो ‘ के परामर्शदाता के पद पर नियुक्त हुए और सन् 1957 ई ० तक वे प्रत्यक्ष रूप से रेडियो से सम्बद्ध रहे । सरस्वती के इस पुजारी ने 28 दिसम्बर , सन् 1977 ई ० ( संवत् 2034 ) को इस भौतिक संसार से सदैव के लिए विदा ले ली ।
साहित्यिक – परिचय
छायावादी युग के ख्याति प्राप्त कवि सुमित्रानन्दन पन्त सात वर्ष की अल्पायु से ही कविताओं की रचना करने लगे थे । उनकी प्रथम रचना सन् 1916 ई ० में सामने आई । ‘ गिरजे का घण्टा ‘ नामक इस रचना के पश्चात् वे निरन्तर काव्य – साधना में तल्लीन रहे । सन् 1919 ई ० में इलाहाबाद के ‘ म्योर कॉलेज ‘ में प्रवेश लेने के पश्चात् उनकी काव्यात्मक रुचि और भी अधिक विकसित हुई । सन् 1920 ई ० में उनकी रचनाएँ ‘ उच्छ्वास ‘ एवं ‘ ग्रन्थि ‘ प्रकाशित हुईं । सन् 1921 ई ० में उन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर कॉलेज छोड़ दिया और राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन में सम्मिलित हो गए , परन्तु अपनी कोमल प्रकृति के कारण सत्याग्रह में सक्रिय रूप से सहयोग नहीं कर पाए और सत्याग्रह छोड़कर पुन : काव्य – साधना में तल्लीन हो गए ।
उनके सन् 1927 ई ० में ‘ वीणा ‘ एवं सन् 1928 ई ० में ‘ पल्लव ‘ नामक काव्य – संग्रह प्रकाशित हुए । इसके पश्चात् सन् 1939 ई ० में कालाकांकर आकर इन्होंने मार्क्सवाद का अध्ययन प्रारम्भ किया और प्रयाग आकर ‘ रूपाभा ‘ नामक एक प्रगतिशील विचारोंवाली पत्रिका का सम्पादन – प्रकाशन प्रारम्भ किया । सन् 1942 ई ० के पश्चात् वे महर्षि अरविन्द घोष से मिले और उनसे प्रभावित होकर अपने काव्य में उनके दर्शन को मुखरित किया ।
इन्हें इनकी रचना ‘ कला और बूढ़ा चाँद ‘ पर ‘ साहित्य अकादमी ‘ , ‘ लोकायतन ‘ पर ‘ सोवियत ‘ और ‘ चिदम्बरा ‘ पर ‘ ज्ञानपीठ ‘ पुरस्कार मिला । सुमित्रानन्दन पन्त के काव्य में कल्पना एवं भावों की सुकुमार कोमलता के दर्शन होते हैं ।
इन्होंने प्रकृति एवं मानवीय भावों के चित्रण में विकृत तथा कठोर भावों को स्थान नहीं दिया है । इनकी छायावादी कविताएँ अत्यन्त कोमल एवं मृदुल भावों को अभिव्यक्त करती हैं । इन्हीं कारणों से पन्त को ‘ प्रकृति का सुकुमार कवि ‘ कहा जाता है । ।
कृतियाँ –
पन्तजी बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार थे ।
( a ) लोकायतन
( 2 ) वीणा – इस रचना में पन्तजी के प्रारम्भिक प्रकृति के अलौकिक सौन्दर्य से पूर्ण गीत संगृहीत है
( 3 ) पल्लव – इस संग्रह में प्रेम , प्रकृति और सौन्दर्य के व्यापक चित्र प्रस्तुत किए गए है ।
( 4 ) गुंजन – इसमें प्रकृति – प्रेम और सौन्दर्य से सम्बन्धित गम्भीर एवं प्रौढ़ ( रचनाएँ संकलित की गई है ।
( 5 ) ग्रंथि – काव्य – संग्रह में वियोग का स्वर प्रमुख रूप से मुखरित हुआ है । प्रकृति यहाँ भी कवि को सहचरी रही है ।
( 6 ) अन्य कृतियाँ – स्वर्णधूलि ‘ , ‘ स्वर्ण – किरण ‘ , ‘ युगपथ ‘ , ‘ उत्तरा ‘ ‘ अतिमा ‘ आदि में पन्तजी महर्षि अरविन्द के नवचेतनावाद से प्रभावित है ।
‘ युगान्त ‘ , ‘ युगवाणी ‘ और ‘ ग्राम्या ‘ में कवि समाजवाद और भौतिक दर्शन की ओर उन्मुख हुआ है ।