UP Board Class 10 sanskrit Katha Natak Kaumudi- Chapter -3 तृतीय: पाठ:  धैर्यधनाः हि साधवः Dhairyadhana hi sadhava

UP Board Class 10 sanskrit Katha Natak Kaumudi- Chapter –3 तृतीय: पाठ:  धैर्यधनाः हि साधवः Dhairyadhana hi sadhava चरित्र चित्रण एवं प्रश्नोत्तर (बहुविकल्पीय प्रश्न- MCQs)

प्रिय विद्यार्थियों! यहाँ पर हम आपको कक्षा 10 यूपी बोर्ड संस्कृत कथा नाटक कौमुदी के chapter 3  धैर्यधनाः हि साधवः Dhairyadhana hi sadhava के सभी पत्रों के चरित्र चित्रण, लघु उत्तरीय संस्कृत में प्रश्न उत्तर तथा  बहुविकल्पीय प्रश्न उत्तर – MCQs  प्रदान कर रहे हैं। आशा है आपको अच्छा ज्ञान प्राप्त होगा और आप दूसरों को भी शेयर करेंगे।

Subject / विषय संस्कृत (Sanskrit) कथा नाटक कौमुदी
Class / कक्षा 10th
Chapter( Lesson) / पाठ Chpter -3
Topic / टॉपिक धैर्यधनाः हि साधवः
Chapter Name Dhairyadhana hi sadhava
All Chapters/ सम्पूर्ण पाठ्यक्रम कम्पलीट संस्कृत बुक सलूशन

धैर्यधनाः हि साधवः’  चरित्र-चित्रण

प्रश्न 2. ‘धैर्यधनाः हि साधवः’ पाठ के आधार पर सुपारग (बोधिसत्त्व) का चरित्र-चित्रण हिन्दी में कीजिए।

सुपारग (बोधिसत्त्व) का चरित्र-चित्रण

परिचय – शक्तिशाली, बुद्धिमान् सुपारग ने बोधिसत्त्व के रूप में नाविक के घर जन्म लिया। ‘धैर्यधनाः हि साधवः’ नामक पाठ के अनुसार इसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

कुशल नाविक – सुपारग एक कुशल साहसी नाविक था। वह जिस बेड़े का नाविक होता था उसकी सब नावें सुरक्षित अपने गन्तव्य पर पहुँच जाती थीं। इसी कारण इसका नाम सुपारग पड़ा। वह समुद्र की दिशाओं के ज्ञान में कुशल, आगत आपत्तियों का समाधान करने के उपाय में निपुण, कष्टसहिष्णु, प्रमादरहित, जितेन्द्रिय और धैर्यशाली नाविक था।

व्यापारियों में लोकप्रिय – वह व्यापारियों में अत्यधिक लोकप्रिय था। व्यापारी इसका बहुत सम्मान करते थे और उसे अपने बेड़े के साथ ले जाना मङ्गलकारी मानते थे। वृद्धावस्था के कारण जब ये नौका खेने में असमर्थ हो गये, तब भी यात्रा की सफलता चाहनेवाले व्यापारी उसे आदरपूर्वक अपनी नौका पर चढ़ाकर ले जाते थे।

सहयोगी एवं परम दयालु – वह सहयोगी स्वभाववाला परम दयालु नाविक था। वृद्धावस्था के कारण जलयान संचालन में समर्थ नहीं था, फिर भी आग्रह एवं प्रार्थना करने पर मार्ग-दर्शन हेतु तैयार हो जाता था। एक बार सुवर्णभूमि के कुछ व्यापारियों ने उससे अपनी नौका पर सवार होने की प्रार्थना की। वृद्धावस्था की अधिकता के कारण उसने अपनी असमर्थता प्रकट कर दी किन्तु व्यापारियों द्वारा जब अत्यधिक आग्रह किया गया तो सामर्थ्य के अभाव में भी सुपारग उन पर दया करने के लिए नौका पर सवार हो गया।

धैर्यवान् – सुपारग अत्यधिक धैर्यशालीं था। समुद्र की विपत्तियों को देखकर वह विचलित नहीं होता था। वह धैर्यपूर्वक उन विपत्तियों को दूर करने के लिए कोई-न-कोई उपाय खोज लेता था। साथ ही वह अपने साथियों को भी धैर्य धारण करने की प्रेरणा देता था।

सागरों से सुपरिचित – सुपारग सागरों से भली प्रकार परिचित था। सुवर्णभूमि के व्यापारी जब गहरे समुद्र में पहुँचे तब सुपारग ने बताया कि यह खुरमाली नाम का सागर है। आगे बढ़ने पर उसने बताया कि यह क्षीरसागर है। उसे पार करके आगे पहुँचने पर सुवर्ण-जैसे प्रकाश से रँगे सागर को देखकर कहा कि अब हम अग्निमाली सागर में हैं। उसे भी किसी प्रकार पार करके सुपारग ने कहा कि यह कुशमाली नाम का सागर है। उससे भी आगे जाने पर कहा कि यह नलमाली नाम का समुद्र है जो हमारे लिये काल के समान है। इससे स्पष्ट है कि सुपारग को सागरों के विषय में पूर्ण ज्ञान था और वह सागरों से भली प्रकार परिचित था।

पुण्य एवं अहिंसा में विश्वास-बड़वामुख सागर के विषय में जानकर व्यापारियों और नाविकों को अपने जीवित रहने की आशा नहीं रही, वे ऊँचे स्वर से रोने लगे। उनके दुःख को देखकर सुपारग ने उन्हें धैर्य बँधाया तथा तथागतों को प्रणाम करके बोले -नाविक! सागर और आकाश में स्थित विशिष्ट देवगण सुनें! मेरे पुण्य और अहिंसा के बल से यह नौका निर्विघ्न सकुशल लौट चले। उसकी सत्यनिष्ठा और पुण्य के तेज से उसी समय ऐसी हवा चलने लगी कि नौका अपने-आप पीछे की ओर मुड़ चली। वायु के अनुकूल होने के कारण अपने-आप चलती हुई वह नौका प्रात:काल होते ही भरुकच्छ में आ गयी ।

रत्नों का ज्ञानी – सुपारग को सागर के रत्नों आदि का पूर्ण ज्ञान था। बड़वामुख सागर से लौटते समय सुपारग ने व्यापारियों से कहा कि इस नलमाली से जितना नौका में सम्भव हो सके उतना बालुका पाषाण भर लो। उन नाविकों ने उसके द्वारा दिखाये गये स्थानों से लेकर बालुका पाषाण को नौका में भर लिया। प्रात:काल होने पर व्यापारियों में आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, जब उन्होंने देखा कि उनकी नौका में चाँदी, नीलम, वैदूर्य तथा सोना भरा हुआ है। व्यापारियों ने प्रेमपूर्वक सुपारग की अर्चना की।

धैर्यधनाः हि साधवः पाठ के वस्तुनिष्ठ/ बहुविकल्पीय प्रश्न उत्तर – MCQs

निम्न चार विकल्पों में से सही विकल्प का चयन कीजिए-

1- जातकमाला……………. रचना अस्ति ।

(क) आर्यशूरस्य

(ख) हर्षस्य

(ग) वल्लालसेनस्य

(घ) अम्बिकादत्तस्य

2- सुपारगः………….. “.आसीत्।

(क) कृषकः

(ख) नवयुवकः

(ग) नौसारथिः

(घ) वणिकः

3- अयं……………. नाम समुद्रः ।

(क) कुशमाली

(ख) सुपारगः

(ग) कृषकः

(घ) बोधिसत्त्वः

4- पूर्व जन्मनि सुपारगः आसीत् ।

(क) इन्द्रः

(ख) बोधिसत्त्वः

(ग) नृपः

(घ) अर्जुनः

 5- सुपारगः……………….”ज्ञाता आसीत्।

(क) वेदानां शास्त्राणां

(ख) रत्नानां समुद्राणां

(ग) वनस्पतीनां फलानां

(घ) संगीत शास्त्राणां

6- सुपारगः नाम बभूव ।

(क) वणिजः

(ख) पत्तनस्य

(ग) ग्रामस्य

(घ) नौसारथे

7- ‘धैर्यधनाः हि साधवः’ शीर्षकः उद्धृतः ।

(क) जातकमालायाः

(ख) नागानन्दनाटकात्

(ग) महाभारतात्

(घ) रामायणात्

  अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर 

प्रश्न 1.: कोऽयं सुपारगः कस्मात्तस्यायं नाम?

अथवा सुपारगः कः आसीत् ?

उत्तर : सुपारगः नौसारथिः आसीत्। तेनाधिष्ठताः नावः सुगमतया पारं गच्छन्ति, तस्मात् तस्य इदं नाम  सार्थकम् ।

प्रश्न 2. :सुपारगः वणिक् साहाय्ये कथं असमर्थो जातः?

उत्तर : सुपारगः जराधिक्यात् वणिक् साहाय्ये असमर्थः जातः।

प्रश्न 3. : वणिजः कीदृशं समुद्रं अवजगाहिरे?

उत्तर : वणिजः अप्रमेयतोयं समुद्रम् अवजगाहिरे।

प्रश्न 4. : वणिजः कान् कान् समुद्रान् ददृशुः?

उत्तर : ते खुरमालिनम्, क्षीरार्णवम्, अग्निमालिनं, कुशमालिनं, नलमालिनं, वडवामुखम् एतान् समुद्रान् ददृशुः।

प्रश्न 5. : सायाह्नसमये वणिजः कीदृशीम् समुद्रध्वनिमश्रौषुः?

उत्तर : सायं समये वणिजः श्रुतिहृदयविदारिणीम् ध्वनिम् अश्रौषुः।

प्रश्न 6. : सुपारगः वणिग्जनान् किमुवाच?

उत्तर : सुपारगः वणिग्जनान् उवाच ‘अस्यापि नः कश्चित् प्रतीकार विधिः प्रतिभाति’ इति।

प्रश्न 7. : सुपारगः नावमधिष्ठाय तथागतेभ्यः प्रणम्य सांयात्रिकान् किमुवाच?

उत्तर : सुपारगः नावम् अधिष्ठाय उवाच-‘मम पुण्यबलेन अहिंसा बलेन च इयं नौः स्वस्ति- विनिवर्तताम्।’

प्रश्न 8. : नलमालिसमुद्रेभ्योप्राप्त बालुकापाषाणाश्च प्रभाते कीदृशा जाताः?

उत्तर : प्राप्ताः बालकापाषाणाश्च प्रभाते रजतेन्द्र-नील-वैदूर्य-हेमाः संजाताः।

प्रश्न 9. : धर्माश्रयं सत्यवचनमापदं कथं नुदति?

उत्तर : सुपारगः प्रभावेन वडवामुखसागरात् नौका विनिवर्तनं इव।

 

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