UP Board Class 10 sanskrit Katha Natak Kaumudi- Chapter -4 चतुर्थ: पाठ:  यौतुकः पापसञ्चयः Yautuka papsanchay

UP Board Class 10 sanskrit Katha Natak Kaumudi- Chapter –4 चतुर्थ: पाठ:  यौतुकः पापसञ्चयः Yautuka papsanchay चरित्र चित्रण एवं प्रश्नोत्तर (बहुविकल्पीय प्रश्न- MCQs)

प्रिय विद्यार्थियों! यहाँ पर हम आपको कक्षा 10 यूपी बोर्ड संस्कृत कथा नाटक कौमुदी के chapter 4 चतुर्थ: पाठ:  यौतुकः पापसञ्चयः Yautuka papsanchay  के सभी पत्रों के चरित्र चित्रण, लघु उत्तरीय संस्कृत में प्रश्न उत्तर तथा  बहुविकल्पीय प्रश्न उत्तर – MCQs  प्रदान कर रहे हैं। आशा है आपको अच्छा ज्ञान प्राप्त होगा और आप दूसरों को भी शेयर करेंगे।

UP Board Class 10 sanskrit Katha Natak Kaumudi- Chapter -4 चतुर्थ: पाठ:  यौतुकः पापसञ्चयः Yautuka papsanchay

Subject / विषयसंस्कृत (Sanskrit) कथा नाटक कौमुदी
Class / कक्षा10th
Chapter( Lesson) / पाठChpter –4
Topic / टॉपिकयौतुकः पापसञ्चयः
Chapter NameYautuka papsanchay
All Chapters/ सम्पूर्ण पाठ्यक्रमकम्पलीट संस्कृत बुक सलूशन

यौतुकः पापसञ्चयः पात्रों के चरित्र चित्रण 

प्रश्न –  ‘यौतुकः पापसंचयः’ पाठ के आधार पर रम्भा का चरित्र-चित्रण कीजिए ।

परिचय – यह धनी रमानाथ की पत्नी है। सुमेधा और चपला की सास है। वह अधेड़ अवस्था और स्थूल शरीरवाली स्त्री है। ‘यौतुकः पापसंचयः’ नामक पाठ के अनुसार इसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं—

धन से प्रभावित होनेवाली – रम्भा धन की चकाचौंध से प्रभावित होनेवाली स्त्री है। पहले यह अपनी पुत्रवधू सुमेधा के सेवा-भाव एवं गुणों की बहुत प्रशंसा करती है किन्तु जबसे इनकी छोटी पुत्रवधू चपला अपने साथ बहुत दहेज तथा दो सेविकाएँ लाती है तब से इनकी दृष्टि में चपला का महत्त्व बढ़ जाता है और दहेज न लानेवाली, गुणवती ज्येष्ठ पुत्रवधू सुमेधा इनकी आँखों में खटकने लगती है। वह दहेज लानेवाली चपला के साथ आदर और प्रेम का व्यवहार करती है तथा दहेज न लानेवाली सुमेधा को अपमानित और उसके साथ दुर्व्यवहार करती है। यहाँ तक कि इनके कारण सुमेधा का जीवन कष्टपूर्ण और असुरक्षित हो जाता है।

वास्तविकता से परिचय – एक सामान्य घटना रम्भा को वास्तविकता से परिचय करा देती है। रम्भा के पति रमानाथ एक दुर्घटना में घायल होकर मिशन अस्पताल में भर्ती हो जाते हैं। यह सूचना प्राप्त होने पर रम्भा अपनी ज्येष्ठ पुत्रवधू सुमेधा के साथ अस्पताल जाने की तैयारी कर रही है। उसी समय सजी-धजी उसकी छोटी पुत्रवधू चपला वहाँ आकर अपने माँ के घर उत्सव में जाने की अनुमति माँगती है।

उपकार से दबी हुई – रम्भा को अस्पताल में पहुँचकर पता चलता है कि मेरे पति रमानाथ को रक्त की आवश्यकता है। बिना रक्त के उनके प्राण नहीं बचेंगे। जिस रक्त समूह की उन्हें आवश्यकता है वह रक्त समूह अस्पताल में उपलब्ध नहीं है। सुमेधा का रक्त समूह उनके रक्त समूह के समान था। सुमेधा प्रसन्नता एवं हठपूर्वक अपना रक्त देकर अपने श्वसुर रमानाथ के प्राण बचाती है। इस त्यागपूर्ण रक्त-दान की घटना से रम्भा अपनी पुत्रवधू सुमेधा का बहुत उपकार मानती है। वह सुमेधा को अपने सुहाग रमानाथ की रक्षिका एवं जीवनदायिका मानती है। इस घटना से उसके मन से धन की चकाचौंध का प्रभाव समाप्त हो जाता है। रम्भा की दृष्टि से स्वार्थिनी चपला का महत्त्व समाप्त हो जाता है और गुणवती सुमेधा का महत्त्व बढ़ जाता है।

कृतज्ञा – रम्भा स्वार्थी अवश्य है, किन्तु कृतघ्न नहीं है। वह दूसरों द्वारा किये गये उपकार को माननेवाली है। सुमेधा द्वारा अपने पति की प्राण-रक्षा करने पर वह उसके उपकार का गुणगान अपने पति तथा अपने समधी से करती है और सुमेधा को घर में उचित सम्मान देती है।

स्वार्थी – अपने पति रमानाथ की भाँति रम्भा भी स्वार्थी स्वभाव की है। वह अपनी पुत्रवधू पर दहेज न लाने के लिए अत्याचार करती है। ‘ममैव बुद्धिः भ्रमिता’ कथन उसकी इस स्वार्थी प्रवृत्ति की स्वीकारोक्ति का सूचक है।

पति को चाहनेवाली – रम्भा अपने पति को चाहनेवाली स्त्री है। जब वह दूरभाष पर अपने पति के दुर्घटनाग्रस्त होने का समाचार सुनती है तो रोने लगती है। अपनी पुत्रवधू चपला को भी वह अपने पति की शुश्रूषा के लिए रोकना चाहती है। पति को ही वह अपना सौभाग्य मानती है, यह उसके इस वाक्य-“तस्याः एव रक्तेन मम सौभाग्यलालिमा सुरक्षीकृता।” से स्पष्ट हो जाता है।

दहेज को पाप संचय समझनेवाली – पहले जो रम्भा अधिक दहेज लाने के कारण चपला का आदर करती थी एवं दहेज न लाने के कारण सुमेधा के साथ अनादर का व्यवहार करती थी वही अब दहेज को पाप का संचय समझने लगी है। वह अपने पति रमानाथ के दुर्घटनाग्रस्त होने के अवसर को, अपने विवेक-प्राप्ति का अवसर बताती हुई कहती है- चपला के दहेज ने मुझे स्वार्थिनी बना दिया और मेरी बुद्धि को भ्रमित कर दिया था जिसके कारण मैं यह भी न जान सकी कि कौन अपना और कौन पराया है? हितैषियों की परीक्षा आपत्ति काल में ही होती है। इस दुघर्टना ने मेरी आँखों की चकाचौंध को दूर कर दिया, साथ ही बुद्धि के भ्रम को समाप्त कर दिया है। अब मैं समझ गयी हूँ कि वास्तव में सद्गुण ही जीवन में काम आते हैं न कि दहेज। दहेज तो पाप से संचित किया गया धन है। यह कहती हुई स्पष्ट शब्दों में स्वीकार करती है कि गुणवती सुमेधा पुत्रवधू को पाकर हम धन्य हो गये हैं।

निष्कर्ष – इस प्रकार रम्भा में जहाँ स्त्री स्वभावोचित धनलोलुपता, स्वार्थीपन जैसे दुर्गुण हैं, वहीं उसमें पतिव्रता, लज्जाशीलता इत्यादि सद्गुणों का समावेश है।

रमानाथ का चरित्र – चित्रण

परिचय

इस नाटक के पुरुष पात्रों में रमानाथ का महत्त्वपूर्ण स्थान है। रमानाथ विनय का मित्र है, विनय की पुत्री की शादी रमानाथ के सबसे बड़े पुत्र के साथ हुई है। दूसरे पुत्र की शादी में अत्यधिक दहेज प्राप्त हो जाने पर रमानाथ की दहेज के प्रति इच्छा और बढ़ जाती है और वह अपने मित्र से दहेज न देने के कारण अशोभनीय व्यवहार करता है। पाठ के आधार पर उसकी चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं

धनार्थी स्वभाव का व्यक्ति

रमानाथ धनलोलुप स्वभाव का व्यक्ति है। वह अपने छोटे पुत्र के विवाह में प्राप्त हुए दहेजरूपी धन को लेकर अत्यधिक लालची प्रवृत्ति का हो जाता है। इसी के वशीभूत होकर वह अपनी ज्येष्ठ पुत्रवधू को प्रताड़ना देता है और दहेज की माँग करता है। हम कह सकते हैं कि रमानाथ धनलोलुप, क्रूर व स्वार्थी चरित्र के रूप में हमारे समक्ष प्रस्तुत होता है, किन्तु दुर्घटना के परिणामस्वरूप उसके विचारों में परिवर्तन हो जाता है और वह पश्चाताप के रूप में अपने अवगुणों का त्याग कर देता है।

स्वार्थी व्यवहार

रमानाथ अपनी पुत्रवधू सुमेधा पर स्वार्थवश अनेक अत्याचार करता है। अपने समधी तथा अपने मित्र विनय के साथ भी वह अशोभनीय व्यवहार करता है, किन्तु दुर्घटना में घायल होने के पश्चात् जब उसे अपने स्वार्थी होने का अनुभव होता है, तो वह बहुत प्रायश्चित्त करता है। अन्ततः वह अपनी पुत्रवधू सुमेधा एवं मित्र विनय से अपनत्वपूर्ण मृदु व्यवहार करता है।

क्रूर स्वभाव

धन के लोभ में अन्धा होकर रमानाथ क्रूर बन जाता है। पुत्रवधू सुमेधा उसके क्रूर व्यवहार से पीड़ित है। उसकी क्रूरता उस समय पराकाष्ठा पार कर चुकी होती है, जब वह अपने मित्र विनय की उस प्रार्थना को ठुकराता है कि वह निर्धन होने के कारण पुत्री का पालन नहीं कर पाएगा। उससे अपनी पुत्री को अपने घर ले जाने के लिए कहता है।

वैचारिक परिवर्तन

किसी समय रमानाथ धन को ही सब कुछ समझता था और वह मानवीय गुणों-शील, सेवा, परोपकार, अच्छे संस्कार व सभ्यता आदि सबको तुच्छ समझता है, तभी तो वह अपनी पुत्रवधू एवं समधी से अशोभनीय व्यवहार करता है, किन्तु कुछ समय पश्चात् रमानाथ की सोच बदल जाती है और तब वह मानवीय गुणों को ही श्रेष्ठ मानता है तथा धन को तुच्छ वस्तु मानता है। वैचारिक परिवर्तन का ही यह परिणाम है कि वह किसी समय उपेक्षित पुत्रवधू एवं समधी को अत्यधिक सम्मान देता है।

गुणों का पारखी एवं शान्ति का पक्षधर

रमानाथ को गुणों की अच्छी परख है। वह सुमेधा के गुणों को परख कर उसका आदर भी करता है। घर की शान्ति बनाए रखने के लिए ही सुमेधा का अपमान करने वाली अपनी पत्नी रम्भा को वह कुछ नहीं कहता है।

सुमेधा का चरित्र चित्रण

परिचय-  हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत कथा – नाटक कौमुदी’ में संकलित ‘यौतुकः पापसञ्चयः’ नामक पाठ की प्रमुख स्त्री पात्र सुमेधा है। वह विनय की पुत्री एवं रमानाथ की ज्येष्ठ पुत्रवधू है। पाठ के आधार पर सुमेधा के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

पतिपरायणता स्त्री- सुमेधा पतिपरायणा स्त्री है। वह अपने पति के घर को ही स्वर्ग मानती है। सास-ससुर द्वारा प्रताड़ना दिए जाने पर भी वह उनका आदर करती है। अपने पिता द्वारा भी वह अपने ससुर का अपमान सहन नहीं कर पाती है, जिससे उसके पतिपरायणा व आदर्श पत्नी होने का परिचय प्राप्त होता है।

प्रगतिशील विचारों वाली- सुमेधा इस नाटक की प्रमुख पात्र है। वह प्रगतिशील विचारों वाली भारतीय नवयुवती है। वह नवयुवतियों को प्रताड़ित किए जाने का कारण माता-पिता की महत्त्वाकांक्षा को मानती है। वर के माता-पिता विवाह में अत्यधिक दहेज लेकर समाज में सम्मान प्राप्त करना चाहते हैं और लड़की के माता-पिता भी अत्यधिक सम्पन्न परिवार में कन्या का विवाह करके समाज में सम्मान प्राप्त करना चाहते हैं।

धैर्यशालिनी एवं उदार हृदया- धैर्य व्यक्ति का एक ऐसा विशिष्ट गुण है, जो उसे विपत्तियों से उबारने में सक्षम है। यह कथन इस नाटक की स्त्री पात्र सुमेधा पर सटीक बैठता है। वह धैर्यपूर्वक जीवन में आने वाले प्रत्येक दुःख को सहन करती है और अशोभनीय व्यवहार किए जाने पर भी अपनी विनम्रता का परित्याग नहीं करती है। अपनी विनम्रता से वह अपने स्वार्थी, अहंकारी एवं निम्न स्तर के विचारों वाले, जो धन को ही सब कुछ मानता है, ससुर तथा सास का भी हृदय जीत लेती है और उनकी प्रिया बन जाती है। अपना खून देकर अपने ससुर की प्राणरक्षा करना उसके उदार हृदया होने का बड़ा प्रमाण है।

आदर्श भारतीय नारी-  सुमेधा इस नाटक की एक अकेली ऐसी स्त्री पात्र है, जिसने भारत की अन्य नारियों के लिए भी उदाहरण प्रस्तुत कर अक्षरश: उसको जीवन में उतारने का सन्देश ही नहीं दिया, बल्कि जीवन को सुखमय बनाने का एक आदर्श प्रस्तुत किया। वह सर्वगुणसम्पन्न एवं सर्वप्रिया वधू के रूप में चित्रित की गई है। भारतीय समाज के उत्थान के लिए सुमेधा जैसी ही सुयोग्य वधुओं एवं माताओं की वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आवश्यकता है।

सभ्य एवं विनम्र स्वभाव वाली- सुमेधा का सम्पूर्ण चरित्र उसकी सेवा भावना, आज्ञाकारिता, कर्त्तव्यपरायणता, विनम्रता, दया, परोपकार आदि गुणों के कारण ही मुखर हो उठा है। सास-ससुर के द्वारा विभिन्न प्रकार के कष्ट दिए जाने पर भी वह उन्हें कभी प्रत्युत्तर नहीं देती, बल्कि उनका आदर ही करती है। अपने पिता के द्वारा, अपने ससुर के विषय में अमर्यादित शब्द कहने पर वह उन्हें तुरन्त रोक देती है कि आप इस प्रकार मेरे ससुर का अपमान नहीं कर सकते। उसके सुसंस्कृत होने के प्रमाण तो पूरे नाटक में स्थान-स्थान पर मिलते हैं।

गुणवती एवं विदुषी – सुमेधा गुणग्राही स्त्री है। सुमेधा के गुणों व स्वभाव से प्रभावित होकर ही रमानाथ का ज्येष्ठ पुत्र उससे प्रेम विवाह करता है। समग्रतः हम कह सकते हैं कि प्रस्तुत नाटक में सुमेधा एक आदर्श भारतीय नारी के रूप में हमारे सम्मुख प्रस्तुत होती है, जिसमें पतिसेवा, उदारता, कर्त्तव्यपरायणता, सभ्यता व संस्कृति के समस्त गुणों का परिचय मिलता है।

यौतुकः पापसञ्चयः –  बहुविकल्पीय प्रश्न उत्तर – MCQs

1. सुमेधा……….. पुत्री आसीत्।

(क) रमानाथस्य

(ख) विनयस्य

(ग) रम्भायाः

(घ) शिवदासस्य

2. – नाटकस्य मुख्य चरित्रः का/कः ?

(क) रमानाथः

(ख) विनयः

(ग) रम्भा

(घ) सुमेधा

3. रमानाथाय रक्तं अददात्-

(क) सुमेधा

(ख) रम्भा

(ग) चपला

(घ) विनयः

4. समाजे………….. निन्दनीयः?

(क) यौतुकः

(ख) परोपकारः

(ग) अध्ययनः

(घ) सदाचारः

5. ‘यौतुकः पापसञ्चयः नाटकस्य ” “नायिका अस्ति ।

(क) चपला

(ख) सुमेधा

(ग) रम्भा

(घ) कमला

6. विनयः रमानाथस्य आसीत् –

(क) शत्रुः

(ख) मित्रः

(ग) पुत्रः

(घ) अनुजः

उत्तरमाला- 1. (ख), 2. (क), 3. (क), 4. (क), 5. (ख), 6. (ख)

अति लघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1. : सुमेधा कस्य तनया आसीत्?

उत्तर : सुमेधायां के गुणा: आसन?

प्रश्न 2. : तस्यां के गुणाः आसन् ?

उत्तर : सा विदुषी, सुसंस्कृता, सहनशीलापि आसीत् ।

प्रश्न 3. : रमानाथस्य गृहे कलहमूलम् किम्?

उत्तर : रमानाथस्य गृहे कलहमूलम् सुमेधाया निर्धन कुलागमनम् यौतुकधनलोभश्च आसीत् ।

प्रश्न 4. : रम्भायाः सुमेधया सह दुर्व्यवहारस्य किं कारणम् ?

उत्तर : रम्भायाः सुमेधया सह दुर्व्यवहारस्य कारणम् एकमेव आसीत् यत् सा आत्मना सह बहुधनम्  नानीतवती।

 

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