UP Board Solutions of Class 10 Sanskrit Padya Piyusham Chapter 1 – प्रथम: पाठ: लक्ष्य-वेध-परीक्षा [ Lakshy Vedh Pariksha ] Hindi Anuvad MCQ Suktiya

UP Board Solutions of Class 10 Sanskrit Padya Piyusham Chapter 1 – प्रथम: पाठ: लक्ष्य-वेध-परीक्षा [ Lakshy Vedh Pariksha ] Hindi Anuvad MCQ Suktiyo ki Vyakhya  Sanskrit Anuvad

प्रिय विद्यार्थियों! यहाँ पर हम आपको कक्षा 10 यूपी बोर्ड संस्कृत पद्य पीयूषम के Chapter 1 प्रथम: पाठ: लक्ष्य-वेध-परीक्षा [Lakshy Vedh Pariksha ] श्लोकों का हिंदी अनुवाद Hindi Anuvad बहुविकल्पीय प्रश्न – MCQ तथा Suktiya (सूक्तियों की व्याख्या) प्रदान कर रहे हैं। आशा है आपको अच्छा ज्ञान प्राप्त होगा और आप दूसरों को भी शेयर करेंगे।

लक्ष्य-वेध-परीक्षा

Subject / विषय संस्कृत (Sanskrit) पद्य पीयूषम 
Class / कक्षा 10th
Chapter( Lesson) / पाठ Chpter -1
Topic / टॉपिक लक्ष्य वेध परीक्षा 
Chapter Name Laxy bedh pariksha 
All Chapters/ सम्पूर्ण पाठ्यक्रम कम्पलीट संस्कृत बुक सलूशन

श्लोकों का हिंदी अनुवाद (संस्कृत अनुवाद)

[1] तांस्तु सर्वान् समानीय सर्वविद्यास्त्रशिक्षितान्।

द्रोणः प्रहरणज्ञाने जिज्ञासुः पुरुषर्षभः ।

[2] कृत्रिम भासमारोप्य वृक्षाग्रे शिल्पिभिः कृतम्।

अविज्ञातं कुमाराणां लक्ष्यभूतमुपादिशत् ।। 

सन्दर्भ- प्रस्तुत श्लोक ‘संस्कृत पद्य पीयूषम्’ पुस्तक के ‘लक्ष्य- बेध-परीक्षा’ नामक पाठ से अवतरित है।

प्रस्तुत श्लोक में वर्णन किया गया है कि जब आचार्य द्रोण ने अपने शिष्य कौरव और पाण्डवों की अस्त्र विद्या की परीक्षा लेनी चाही तब उन्होंने सबको एकत्रित किया। कवि कहता है कि-

हिंदी अनुवाद/व्याख्या- अस्त्रज्ञान के विषय में जानने की इच्छा वाले पुरुषों में श्रेष्ठ द्रोण ने सभी विद्याओं और अस्त्रों में शिक्षित उन सबको लाकर (एकत्रित कर) पेड़ के ऊपर अग्रभाग में कारीगरों द्वारा बनाये गये बनावटी गीध को रखकर राजकुमारों को अनजाने में निशाना लगाने के लिए आदेश दिया।

[3] शीघ्रं भवन्तः सर्वेऽपि धनूंष्यादाय सत्वराः ।
भासमेतं समुद्दिश्य तिष्ठध्वं सन्धितेषवः ।।

 

मद्वाक्यसमकालं तु शिरोऽस्य विनिपात्यताम्।

एकैकशो नियोक्ष्यामि तथा कुरुत पुत्रकाः ।।4।।

 

ततो युधिष्ठिरं पूर्वमुवाचाङ्गिरसां वरः ।

सन्धत्स्व बाणं दुर्धर्ष मद्वाक्यान्ते विमुञ्च तम्।।5।।

 

ततो युधिष्ठिरः पूर्वं धनुर्गुह्य परन्तपः ।

तस्थौ भासं समुद्दिश्य गुरुवाक्यप्रणोदितः ।।6।।

 

ततो विततधन्वानं द्रोणस्तं कुरुनन्दनम्।

स मुहूर्त्तादुवाचेदं वचनं भरतर्षभ ।।7।।

शब्दार्थविततधन्वानं – चढ़ाये हुए धनुषवाले। कुरुनन्दनम् – कुरु वंश के लोगों को आनन्दित करनेवाले । हे भरतर्षभ भरतवंशियों में श्रेष्ठ।

व्याख्या – हे भरतवंश में श्रेष्ठ ! फिर धनुष ताने हुए उस कुरुनन्दन (युधिष्ठिर) से, थोड़ी देर बाद उन आचार्य द्रोण ने यह वचन कहा।

पश्यैनं त्वं द्रुमाग्रस्थं भासं पश्यामीत्येवमाचार्यं

प्रत्युवाच नरवरात्मज  युधिष्ठिरः ।।8।।

अन्वय – ‘हे नरवरात्मज ! त्वम् द्रुमाग्रस्थं एनं भासं पश्य। युधिष्ठिरः ‘पश्यामि’ इति एवं आचार्यम् प्रत्युवाच ।

शब्दार्थपश्यैनं – देखो इसको । नरवरात्मजः राजकुमार। दुमाग्रस्थं वृक्ष के चोटी पर स्थित । प्रत्युवाच = उत्तर दिया ।

व्याख्या – (द्रोणाचार्य कहते हैं) हे राजकुमार युधिष्ठिर! तुम वृक्ष के ऊपर स्थित इस गीध को देखो। युधिष्ठिर ने गुरु जी को उत्तर दिया- ‘देख रहा हूँ।’

स मुहूर्त्तादिव पुनर्दोणस्तं प्रत्यभाषत।

अथ वृक्षमिमं मां वा भ्रातृन् वाऽपि प्रपश्यसि ।।9।।

शब्दार्थ – मुहूर्त्तादिव = थोड़ी ही देर में। वा अथवा । प्रत्यभाषत उत्तर में कहा। भ्रातृन् = भाइयों को । प्रपश्यसि – देख रहे हो।

व्याख्या – उन द्रोणाचार्य जी ने थोड़ी देर बाद फिर पूछा- और इस वृक्ष को अथवा मुझको अथवा भाइयों को भी देख रहे हो?

तमुवाच स कौन्तेयः पश्याम्येनं वनस्पतिम् ।

भवन्तं च तथा भ्रातृन् भासं चेति पुनः पुनः ।।10।।

‘शब्दार्थकौन्तेयः = कुन्ती का पुत्र । भ्रातृन् भाइयों को। भवन्तम् = आपको। पुनः पुनः बार-बार ।

व्याख्या- उन कुन्ती पुत्र युधिष्ठिर ने उन द्रोणाचार्य जी से कहा- मैं इस वृक्ष को, आपको तथा भाइयों को और गीध को बार-बार देख रहा हूँ।

तमुवाचाऽ पसर्पेति द्रोणोऽप्रीतमना इव।

नैतच्छक्यं त्वया वेढुं लक्ष्यमित्येव कुत्सयन् ।।11।।

शब्दार्थअप्रीतमना = जिसका मन प्रसन्न नहीं है वे। कुत्सयन् = बुरा भला कहते हुए। अपसर्प = दूर हटो, भागो । एतत् लक्ष्यम् – यह लक्ष्य। वेद्धं न शक्यं नहीं वेधा जा सकता ।

व्याख्या – इस श्लोक में युधिष्ठिर की चंचल वृत्ति को देखकर द्रोणाचार्य द्वारा उन्हें फटकारे जाने का वर्णन है- अप्रसन्न से होते हुए आचार्य द्रोण ने उन युधिष्ठिर को फटकारते हुए इस प्रकार कहा- दूर हो। यह लक्ष्य तुमसे नहीं वेधा जा सकता।

ततो दुर्योधनादींस्तान् धार्तराष्ट्रान् महायशाः ।

तेनैव क्रमयोगेन जिज्ञासुः पर्यपृच्छत् ।। 12 ।।

अन्यांश्च शिष्यान् भीमादीन् राज्ञश्चैवान्यदेशजान्।

तथा च सर्वे तत्सर्वं पश्याम इति कुत्सिताः ।।13।।

शब्दार्थमहायशा = महान् यशस्वी । जिज्ञासु जानने के इच्छुक । धार्तराष्ट्रान् – धृतराष्ट्र के पुत्रों को। अन्यदेशजान् – दूसरे देशों में जन्मे । पर्यपृच्छत्- पूछा। कुत्सिताः = फटकार दिये।

व्याख्या -इस अवतरण में बताया गया है कि आचार्य द्रोण ने गलत उत्तर देने के कारण युधिष्ठिर, भीम आदि सबको फटकारकर अलग कर दिया-  इसके बाद छात्रों के ज्ञान का पता लगाने के इच्छुक महायशस्वी आचार्य द्रोण ने उन दुर्योधन आदि धृतराष्ट्र के पुत्रों से, अन्य भीम आदि शिष्यों से तथा अन्य देशों में जन्मे हुए राजकुमारों से उसी ढंग से पूछा और सभी के यह कहने पर कि हम सब कुछ देख रहे हैं उन्हें (आचार्य द्रोण) ने फटकारकर हटा दिया।

 

ततो धनञ्जयं द्रोणं स्मयमानोऽ भ्यभाषत।

त्वयेदानीं प्रहर्तव्यमेतल्लक्ष्यं विलोक्यताम्।।14।।

अन्वय – ततः स्मयमानः दोणः धनञ्जयम् अभ्यभाषत- इदानीम् त्वया प्रहर्तव्यम्। एतत् लक्ष्यं विलोक्यताम्।

शब्दार्थधनञ्जय = अर्जुन को। स्मयमानः = मुस्कराते हुए। अभ्यभाषत = कहा। त्वयेदानीं = (त्वया+इदानीं) अब तुम्हें। प्रहर्तव्यम् = प्रहार करना है। तल्लक्ष्यं = (तत+लक्ष्यं) इसलिए लक्ष्य को।

व्याख्या – जब अन्य कोई भी शिष्य सही निशाना न लगा सका तब द्रोणाचार्य ने मुस्कराते हुए अर्जुन से कहा–‘अब तुम्हें प्रहार करना है, इसलिए लक्ष्य ठीक से देख लो।’

एवमुक्तः सव्यसाची मण्डलीकृतकार्मुकः ।

तस्थौ भासं समुद्दिश्य गुरुवाक्यप्रणोदितः ।।15।।

शब्दार्थएवमुक्तः = इस प्रकार कहे हुए। सव्यसाची = अर्जुन। मण्डलीकृतकार्मुकः = धनुष को गोलाकार बनाकर अर्थात् जोर से खींचकर । तस्थौ = खड़ा हो गया। समुद्दिश्य – लक्ष्य बनाकर । गुरुवाक्यप्रणोदितः = गुरु के वचन से प्रेरित होकर।

सन्दर्भ- प्रस्तुत श्लोक ‘संस्कृत पद्य पीयूषम्’ पाठ्य-पुस्तक के ‘लक्ष्य-वेध-परीक्षा’ नामक पाठ से अवतरित है।

व्याख्या – जब द्रोणाचार्य जी ने अर्जुन को कहा, ‘अब तुम निशाना लगाओ’ उनके ऐसा कहने पर गुरु के वचन से प्रेरित होकर धनुष को जोर से खींचकर गोलाकार बनाते हुए अर्जुन उस गीध को निशाना बनाकर खड़ा हो गया।

मुहूर्त्तादिव तं द्रोणस्तथैव समभाषत।

पश्यस्येनं स्थितं भासं द्रुमं मामपि चार्जुन ।।16।।

 शब्दार्थमुहूर्त्तादिव – लगभग एक मुहूर्त के बाद। समभाषत कहा। द्रुमं = वृक्ष को। मामपि = मुझे भी।

व्याख्या – अर्जुन धनुष पर बाण चढ़ाकर खड़ा हो गया। लगभग मुहूर्त भर के बाद (थोड़ी देर बाद) द्रोणाचार्य जी ने उसको भी उसी प्रकार कहा-‘ हे अर्जुन ! इस गीध को, वृक्ष को और मुझे भी देख रहे हो।’

पश्याम्येकं भासमिति द्रोणं पार्थोऽ भ्यभाषत।

न तु वृक्षं भवन्तं वा पश्यामीति च भारत ।।17।।

व्याख्या – भरतवंशी अर्जुन ने ‘मैं केवल गीध को देख रहा हूँ, मैं न तो वृक्ष को अथवा न आपको देख रहा हूँ, ऐसा द्रोण से कहा।

 

ततः प्रीतमना द्रोणो मुहूर्त्तादिव तं पुनः।

प्रत्यभाषत दुर्धर्षः पाण्डवानां महारथम् ।।18।1

शब्दार्थदुर्धषः – किसी से न दबनेवाला।

व्याख्या – इसके बाद प्रसत्र मनवाले, प्रबल (किसी से न दबनेवाले) द्रोणाचार्य ने थोड़ी-सी देर बाद ही पाण्डवों में महान् बोद्धा उस अर्जुन से पुनः कहा।

 

भासं पश्यसि यद्येनं तथा ब्रूहि पुनर्वचः।

शिरः पश्यामि भासस्य न गात्रमिति सोऽब्रवीत् । । 19 ।।

शब्दार्थ- बहि= बताओ। गात्रम्- शरीर को।

व्याख्या- यदि (तुम) इस गीध को देख रहे हो तो वैसे वचन पुनः कहो। ‘मैं भास के सिर को देख रहा हूँ, शरीर को ‘नहीं’ ऐसा उस (अर्जुन) ने कहा।

 

अर्जुनेनैवमुक्तस्तु द्रोणो हृष्टर हृष्टतनूरुहः ।

मुञ्चस्वेत्यब्रवीत् पार्थं स मुमोचाविचारयन्।।20।।

शब्दार्थहृष्टतनूरुहः हर्षित रोमोंवाले। मुञ्चस्व (बाण) छोड़ो। अविचारयन् बिना विचार किये। मुमोच (बाण) छोड़ दिया।

सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक ‘संस्कृत पद्य पीयूषम्’ पाठ्य-पुस्तक के ‘लक्ष्य-वेध-परीक्षा’ नामक पाठ से अवतरित है।

व्याख्या – अर्जुन के द्वारा इस प्रकार कहे गये, हर्षित रोमोंवाले द्रोणाचार्य ने अर्जुन से ‘ (बाण) छोड़ दो’ ऐसा कहा। उस (अर्जुन) ने विना विचार किये ही (बाण) छोड़ दिया।

 

ततस्तस्य नगस्थस्य क्षुरेण निशितेन च।

शिर उत्कृत्य तरसा पातयामास पाण्डवः।

हर्षोद्रेकेण तं द्रोणः पर्यष्वजत पाण्डवम् ।। 21 ।।

शब्दार्थनिशितेन तीखे । क्षुरेण- बाण से । नगस्थस्य- वृक्ष पर स्थित । तरसा- शीघ्रता से। उत्कृत्य- काटकर । हर्षोद्रेकेण- अधिक प्रसन्नता से। पर्यष्वजत- हृदय से लगा लिया।

व्याख्या -इस श्लोक में अर्जुन द्वारा गीध का सिर काट डालने का वर्णन है-  इसके बाद अर्जुन ने तीखे बाण से वृक्ष पर स्थित उस गीध के सिर को शीघ्रता से काटकर गिरा दिया और द्रोणाचार्य ने अति प्रसन्नता से अर्जुन को हृदय से लगा लिया।

 

सूक्तियों की व्याख्या 

 

लक्ष्य-वेध परीक्षा श्लोकों से सम्बन्धित बहुविकल्पीय प्रश्न 

  1. महर्षिष्यासस्य कृतिः-

(A) रामायणम्                                                     (B) श्रीमद्भगवद्‌गीता

(C) कालिदासः                                                    (D) भासः

  1. द्रोणाचार्यः कस्मिन् गोत्रे उत्पन्नाः बभूव?

(A) कश्यप गोत्रे                                                   (B) अङ्गिरस गोत्रे

(C) वत्स गोत्रे                                                      (D) वशिष्ठ गोत्रे

  1. आचार्यः द्रोणः केषाम् अविज्ञातं लक्ष्यभूतमुपादिशत्?

(A) कुमाराणां                                                     (B) राज्ञाम्

(C) पुत्राणाम्                                                        (D) बाणानाम्

  1. ‘सर्वान्’ इति पदे विभक्तिः अस्ति-

(A) प्रथमा                                                           (B) द्वितीया

(C) तृतीया                                                          (D) चतुर्थी

  1. कृत्रिमं शिल्पिभिः कं कृतम् ?

(A) भासम्                                                         (B) कौरवम्

(C) पाण्डवम्                                                       (D) द्रोणम्

  1. एकैकशः इति पदे सन्धिः अस्ति –

(A) यण्सन्धिः                                                      (B) वृद्धिसन्धिः

(C) गुणसन्धिः                                                     (D) दीर्घसन्धिः

  1. “लक्ष्यवेधपरीक्षा’ इति पाठः कस्मात् महाकाव्यात् उद्धृतः?

(A) नैषधीयचरितात्                                             (B) रामायणात्

(C) महाभारतात्                                                 (D) रघुवंशमहाकाव्यात्

  1. शीघ्रं भवन्तः सर्वेऽपि धनुष्यादाय सत्वराः। भासमेतं समुद्दिश्य तिष्टच्वं सन्धितेषवः।। अस्य श्लोकस्य कः वक्ता?

(A) युधिष्ठिरः                                                       (C) अर्जुनः

(B) सुयोधनः                                                       (D) द्रोण:

  1. ततो विततधन्वानं द्रोणस्तं कुरुनन्दनम्। इति वाक्ये ‘विततधन्वानं’ कः आसीत्?

(A) युधिष्ठिरः                                                     (B) अर्जुनः

(C) सुयोधनः                                                       (D) द्रोण:

  1. कः प्रहरणज्ञाने जिज्ञासुः?

(A) युधिष्ठिरः                                                       (B) अर्जुनः

(C) द्रोणः                                                           (D) दुर्योधनः

  1. पश्यैनं त्वं द्रुमाग्रस्वं भासं नरवरात्मज। इति वाक्ये ‘नरवरात्मज’ कस्य विशेषणः अस्ति?

(A) सुयोधनः                                                       (B) अर्जुनः

(C) युधिष्ठिरः                                                     (D) द्रोणः

  1. ‘मुञ्चस्वेत्यब्रवीत् पार्थं स मुमोचाविचारयन्।’ अत्र किं मुज्यस्व?

(A) धनुम्                                                            (B) भासम्

(C) बाणम्                                                          (D) द्रोणम्

  1. शिरः पश्यामि भासस्य’ इति के प्रति अर्जुनः अवदत्?

(A) युधिष्ठिरं प्रति                                                 (B) नकुलं प्रति

(C) सुयोधनं प्रति                                                  (D) द्रोण प्रति

  1. 14. पार्थ: किं न अपश्यत्?

               (A) न वृक्षं भवन्तं वा                                         (B) केवल वृक्ष

(C) केवलं भवन्तम्                                               (D) द्रोणम्

  1. द्रोणः केन मनसा प्रत्यभाषत? (2023)

(A) द्वेषमना                                                         (B) दुग्धम् अप्रीतमना

(C) न द्वेषमना                                                      (D) प्रीतमना

  1. ‘मुक्तस्तु’ इति कः अवदत्?

(A) युधिष्ठिरः                                                       (B) अर्जुनः

(C) सुयोधनः                                                       (D) द्रोणः

  1. ‘महाभारतम्’ इति महाकाव्यं कः रचयिता? (2024)

(A) कालिदासः                                                   (B) वाल्मीकिः

(C) वेदव्यासः                                                    (D) भारविः

  1. ‘लक्ष्य-वेध परीक्षा’ इति पाठः महाभारतस्य कस्मात् पर्वणः उद्धृतः? (2024)

(A) सभापर्वणः                                                    (B) आदिपर्वणः

(C) विराटपर्वणः                                                  (D) वनपर्वणः

error: Content is protected !!