UP Board Solutions of Class 10 Sanskrit Padya Piyusham Chapter 5 – पंचम: पाठ: विद्यार्थिचर्या [ Vidyarthicharya ] Hindi Anuvad MCQ

UP Board Solutions of Class 10 Sanskrit Padya Piyusham Chapter 5 – पंचम: पाठ: विद्यार्थिचर्या [ Vidyarthicharya ] Hindi Anuvad (Objective) MCQ Suktiyo ki Vykhya

प्रिय विद्यार्थियों! यहाँ पर हम आपको कक्षा 10 यूपी बोर्ड संस्कृत पद्य पीयूषम के 5 – पंचम: पाठ: विद्यार्थिचर्या [ Vidyarthicharya ] का हिंदी अनुवाद Hindi Anuvad बहुविकल्पीय प्रश्न – MCQ तथा Suktiya (सूक्तियों की व्याख्या) प्रदान कर रहे हैं। आशा है आपको अच्छा ज्ञान प्राप्त होगा और आप दूसरों को भी शेयर करेंगे।

लक्ष्य-वेध-परीक्षा

Subject / विषयसंस्कृत (Sanskrit) पद्य पीयूषम 
Class / कक्षा10th
Chapter( Lesson) / पाठChpter -5
Topic / टॉपिकविद्यार्थिचर्या 
Chapter NameVidyarthichary
All Chapters/ सम्पूर्ण पाठ्यक्रमकम्पलीट संस्कृत बुक सलूशन

विद्यार्थिचर्या पाठ के श्लोकों का हिंदी व संस्कृत अर्थ/अनुवाद 

ब्राह्मे मुहूर्ते बुध्येत, धर्मार्थों चानुचिन्तयेत्।

कायक्लेशाँश्च तन्मूलान्, वेदतत्त्वार्थमेव च।।

संस्कृतार्थ :-  अस्मिन् श्लोके कवि कथयति यत्- ब्राह्मे मुहूर्ते बुध्येत। धर्मार्थों च अनुचिन्तयेत् कायक्लेशान् तन्मूलान् वेद तत्वार्थम् च ।

शब्दार्थब्राह्येमुहूर्ते – बहुत सवेरे तड़के। बुध्येत जागना चाहिए। अनुचिन्तयेत्– विचार करना चाहिए। कायक्लेशान् – शरीर के कष्टों को। तन्मूलान् शारीरिक कष्टों के कारणों को। वेदतत्त्वार्थम्– वेद के तत्त्वार्थ को।

सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक ‘मनुस्मृति’ नामक सुप्रसिद्ध ग्रन्थ से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत पद्य पीयूषम्’ में संगृहीत ‘विद्यार्थिचर्या’ नामक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस श्लोक में विद्यार्थियों के लिए कुछ उपयोगी बातों की ओर संकेत किया गया है।

हिन्दी व्याख्या – विद्यार्थी को ब्रह्म मुहूर्त (बहुत सवेरे) में जागना चाहिए और धर्म तथा अर्थ का विचार करना चाहिए। शरीर के कष्टों एवं कष्ट के कारणों एवं वेद के तत्त्वार्थ का चिन्तन करना चाहिए।

 

न स्नानमाचरेद् भुक्त्वा, नातुरो न महानिशि।

न वासोभिः सहाजस्रं, नाविज्ञाते जलाशये ।।

संस्कृतार्थ :-  अस्मिन् श्लोके कवि कथयति यत्- भुक्त्वा स्नानं च आचरेत्। आतुरः न, महानिशि न, वासोभिः सह, अजस्त्रं नः अविज्ञाते जलाशयेन स्नानम् आचरेत् ।

शब्दार्थआचरेत् करना चाहिए। भुक्त्वा भोजन करके। आतुर: रोगी होने पर। महानिशि आधी रात में। वासोभिः सह-वस्त्रों के साथ। अजस्त्रम् लगातार । अविज्ञाते अपरिचित ।

हिन्दी व्याख्याइस श्लोक में कवि यह बतला रहा है कि मानव को किन अवस्थाओं में स्नान नहीं करना चाहिए। विद्यार्थी को भोजन करके स्नान नहीं करना चाहिए। अस्वस्थ होने पर तथा घोर रात्रि में भी स्नान नहीं करना चाहिए। वस्त्र पहने हुए भी निरन्तर स्नान नहीं करना चाहिए तथा अनजान (अज्ञात) जलाशय (तालाब) में भी स्नान नहीं करना चाहिए।

नोच्छिष्टं कस्यचिद् दद्यान्नाद्याच्चैव तथान्तरा।

न चैवात्यशनं कुर्यान्न चोच्छिष्टः क्वचिद् व्रजेत् ।।

संस्कृतार्थ :-  अस्मिन् श्लोके कवि कथयति यत्- कस्यचिद् उच्छिष्टं न दद्यात् तथा अन्तरा च न अद्यात्। अत्यशनं च न एव कुर्यात्। उच्छिष्टः च क्वचित् न व्रजेत् ।

शब्दार्थउच्छिष्टम् – जूठा। अद्यात् खाना चाहिए। अन्तरा बीच में। अत्यशनम् अधिक भोजन। व्रजेत्– जाना चाहिए।

हिन्दी व्याख्या– इस श्लोक में कचि जूठे भोजन के बारे में बतला रहा है- किसी को जूठा नहीं देना चाहिए, बीच-बीच में खाना नहीं खाना चाहिए और बहुत अधिक भोजन नहीं करना चाहिए तथा जूठा मुँह कहीं नहीं जाना चाहिए।

 

अभिवादनशीलस्य, नित्यं वृद्धोपसेविनः ।

चत्वारि तस्य वर्धन्ते, आयुर्विद्या यशो बलम्।।

संस्कृतार्थ :-  अस्मिन् श्लोके कवि कथयति यत् – अभिवादनशीलस्य, नित्यं वृद्धोपसेविनः तस्य आयुः विद्या यशः बलम्- (एतानि) वर्धन्ते ।

शब्दार्थअभिवादनशीलस्य प्रणाम करने के स्वभाववाले की। वृद्धोपसेविनः बड़े-बूढ़ों की सेवा करनेवाले की। चत्वारि = चार चीजें ।

इस श्लोक में कवि बतला रहा है कि अभिवादन तथा वृद्ध सेवा से मनुष्य को क्या प्राप्त होता है- जो व्यक्ति नित्य (बड़ों से) अभिवादन करते हैं, सदैव वृद्धों की सेवा करते हैं उनकी आयु, विद्या, यश तथा बल ये चारों चीजें बढ़ती हैं।

 

आर्द्रपादस्तु भुञ्जीत, नार्द्रपादस्तु संविशेत्।

आर्द्रपादस्तु भुञ्जानो, दीर्घमायुरवाप्नुयात् ।।

संस्कृतार्थ :-  अस्मिन् श्लोके कवि कथयति यत् – आर्द्रपादः तु भुञ्जीत। आर्द्रपादः न संविशेत्। आर्द्रपादः तु भुञ्जानः दीर्घम् आयुः अवाप्नुयात्

शब्दार्थआर्द्रपादः गीले पाँववाला, धोने के पश्चात् बिना पोंछे। भुञ्जीत भोजन करना चाहिए। संविशेत् – सोना चाहिए। अवाप्नुयात् प्राप्त करता है।

हिन्दी व्याख्या – इस श्लोक में कवि पैर धोने के लाभ बतला रहा है- गीले पाँव (धोने के बाद बिना पोंछे) भोजन करना चाहिए। गीले पैर नहीं सोना चाहिए। गीले पैर भोजन करता हुआ दीर्घ आयु को प्राप्त करता है।

 

सत्यं ब्रूयात्प्रियं ब्रूयान्न ब्रूयात्सत्यमप्रियम्।

प्रियं च नानृतं ब्रूयादेष धर्मः सनातनः ।।

संस्कृतार्थ :-  अस्मिन् श्लोके कवि कथयति यत् – सत्यं ब्रूयात्, प्रियं ब्रूयात्, अप्रियं सत्यं न ब्रूयात्, प्रियं च अनृतं न ब्रूयात् एष सनातनः धर्मः (अस्ति)।

शब्दार्थब्रूयात् बोलना चाहिए। अप्रियम् बुरा लगनेवाला। अनृतम् झूठ । सनातनः रहनेवाला, शाश्वत -सदा

हिन्दी व्याख्या- इस श्लोक में कवि सत्य बोलने के विषय में परामर्श दे रहा है-  सत्य बोलना चाहिए। प्रिय बोलना चाहिए। बुरा लगनेवाला सत्य नहीं बोलना चाहिए। अच्छा लगनेवाला झूठ नहीं बोलना चाहिए। यह शाश्वत धर्म है।

न पाणिपादचपलो, न नेत्रचपलोऽ नृजुः ।

न स्याद्वाक्चपलश्चैव, न परद्रोहकर्मधीः ।।

संस्कृतार्थ :-  अस्मिन् श्लोके कवि कथयति यत् – पाणिपादचपलः न (स्यात्) । नेत्रचपलः न, अनृजुः (स्यात्), वाक्वपलः न (स्यात्), परद्रोहकर्मधीः न स्यात् ।

शब्दार्थपाणिपादचपलः चंचल हाथ-पैरवाला। नेत्रचपलः नेत्रों से चंचल। अनृजुः कठोर स्वभाववाला। वाक्चपलः वाणी से चञ्चल। परद्रोहकर्मधीः दूसरों के साथ द्रोह करने में बुद्धि रखनेवाला।

हिन्दी व्याख्या – चंचल हाथ-पैरवाला नहीं होना चाहिए। चंचल नेत्रोंवाला, कठोर स्वभाववाला, चंचल वाणीवाला, दूसरों से द्रोहकर्म में बुद्धि रखनेवाला नहीं होना चाहिए।

 

सर्वलक्षणहीनोऽपि, यः सदाचारवान्नरः ।

श्रद्दधानोऽनसूयश्च शतं वर्षाणि जीवति ।।

संस्कृतार्थ :-  अस्मिन् श्लोके कवि कथयति यत् – सर्वलक्षणहीनः अपि यः नरः सदाचारवान्, श्रद्दधानः अनसूयः च अस्ति, स शतं वर्षाणि जीवति ।

 शब्दार्थसर्वलक्षणहीनोऽपि सभी शुभ लक्षणों से हीन होता हुआ भी। श्रद्दधानः श्रद्धा रखनेवाला। अनसूयः – निन्दा न करनेवाला।

हिन्दी व्याख्या – इस श्लोक में कवि बता रहा है कि जो मनुष्य सदाचारी होते हैं वे सौ वर्ष की आयु प्राप्त करते हैं- सभी शुभ लक्षणों से हीन हुआ भी जो मनुष्य सदाचारी, श्रद्धा रखनेवाला और दूसरों की निन्दा न करनेवाला होता है, वह सौ वर्ष तक जीवित रहता है।

 

सर्वं परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम्।

एतद्विद्यात् समासेन, लक्षणं सुखदुःखयोः ।।

संस्कृतार्थ :-  अस्मिन् श्लोके कवि कथयति यत् – परवशं सर्वं दुःखम् (अस्ति)। आत्मवशं सर्वं सुखम् (अस्ति)। एतद् समासेन सुख-दुःखयोः लक्षणं विद्यात् ।

शब्दार्थपरवशं – पराधीनता। आत्मवशम् स्वाधीनता। विद्यात् जानना चाहिए। समासेन = संक्षेप में।

हिन्दी व्याख्या -इस श्लोक में कवि सुख और दुःख के लक्षणों को बतला रहा है-  जो दूसरे के अधीन है, वह सब दुःख है, जो अपने अधीन है, वह सब सुख है। इसे संक्षेप में सुख-दुःख का लक्षण समझना चाहिए। श्रेयोऽधिगच्छति ।

 

एकाकी चिन्तयेन्नित्यं, विविक्ते हितमात्मनः ।

एकाकी चिन्तयानो हि, परं श्रेयोऽधिगच्छति ।।

संस्कृतार्थ :-  अस्मिन् श्लोके कवि कथयति यत्- विविक्ते एकाकी (सन्) नित्यम् आत्मनः हितं चिन्तयेत्। हि एकाकी चिन्तयानः (पुरुषः) परं श्रेयः अधिगच्छति ।

शब्दार्थविविक्ते – एकान्त में। एकाकी अकेला। परं श्रेयः परम कल्याण को। अधिगच्छति – प्राप्त करता है।

हिन्दी व्याख्या -इस श्लोक में कवि एकान्त चिन्तन के लिए परामर्श दे रहा है-  एकान्त में अकेला होते हुए सदा अपने हित के विषय में विचार करना चाहिए; क्योंकि अकेले ही (अपने हित का) चिन्तन करनेवाला पुरुष परम कल्याण को प्राप्त करता है।

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