UP Board Solutions of Class 10 Sanskrit Padya Piyusham Chapter 7 – सप्तम: पाठ: 7- जीव्याद् भारतवर्षम् [ Jivyad Bharatvarssham ] Hindi Anuvad (Objective) MCQ Suktiyo ki Vykhya
प्रिय विद्यार्थियों! यहाँ पर हम आपको कक्षा 10 यूपी बोर्ड संस्कृत पद्य पीयूषम के 7 – सप्तम: पाठ: 7- जीव्याद् भारतवर्षम् [ Jivyad Bharatvarssham ] का हिंदी अनुवाद Hindi Anuvad बहुविकल्पीय प्रश्न – MCQ तथा Suktiya (सूक्तियों की व्याख्या) प्रदान कर रहे हैं। आशा है आपको अच्छा ज्ञान प्राप्त होगा और आप दूसरों को भी शेयर करेंगे।
Subject / विषय | संस्कृत (Sanskrit) पद्य पीयूषम |
Class / कक्षा | 10th |
Chapter( Lesson) / पाठ | Chpter -7 |
Topic / टॉपिक | जीव्याद् भारतवर्षम् |
Chapter Name | Jivyad Bharatvarssham |
All Chapters/ सम्पूर्ण पाठ्यक्रम | कम्पलीट संस्कृत बुक सलूशन |
जीव्याद् भारतवर्षम् [ Jivyad Bharatvarssham ] का हिंदी अनुवाद
सन्दर्भ – प्रस्तुत गीत डॉ० चन्द्रभानु त्रिपाठी द्वारा रचित ‘गीताली’ से हमारी पाठ्य पुस्तक ‘संस्कृत पद्य पीयूषम्’ में संकलित ‘जीव्याद् भारतवर्षम्’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इस पद में भारत की मनोरमता और भव्यता का सुन्दर चित्र अंकित किया गया है।
भारतवर्ष राष्ट्रं जीव्याच्चिर-कालं स्वाधीनम्।
सन्मित्रं भूयाच्च समृद्धम् जीयाच्छत्रु-विहीनम्।।
हिमगिरिरस्य किरीटो मौलेररुण-किरण-मणि-माली।
कर- कल्लोलैर्जलधिर्विलसति पादान्त-प्रक्षाली ।।
सरितो वक्षसि हारा विन्ध्यो भाति मेखला-मानम्।
पल्लव-लसिता निबिड-वनाली रुचिरं नव-परिधानम्।
आस्ते कविकुलमस्य मनोरम-रूप-वर्णन लीनम्।।1।।
संस्कृत अर्थ – अस्मिन् श्लोके कवि कथयति यत् भारतवर्ष राष्ट्र चिरकालं स्वाधीनं जीव्यात्, सन्मित्रं समृद्धं च भूयात्, शत्रु विहीनं जीयात् । अरुण-किरण-मणिमाली हिमगिरिः अस्य मौलेः किरीटः अस्ति। जलधिः कर-कल्लोलैः (अस्य) पादान्त प्रक्षाली सन्विलसति । (अस्य) वक्षसि सरितः हाराः (सन्ति)। विन्ध्यः (अस्य) मेखलामानं भाति। पल्लव- लसिता निबिड वनाली (अस्य) रुधिरं नवपरिधानम् अस्ति। कविकुलम् अस्य मनोरमरूपवर्णने लीनम् आस्ते ।
शब्दार्थ – जीव्यात् = अमर रहे। जीयात् = विजयी हो। किरीटः = मुकुट । अरुण-किरण-मणि- माली = (सूर्य की) रक्त किरण रूपी मणियों की मालावाला। मौलेः सिर का। कर-कल्लोलैः = विशाल लहरों रूपी हाथों से। पादान्त प्रक्षाली पैरों के अग्रभाग को धोनेवाला। विलसति = शोभित होता है। मेखलामानम् = करधनी की भाँति । भाति = शोभित होता है। निबिडवनाली = घनी वन-पंक्ति। रुचिरम् = सुन्दर । परिधानम् = वस्त्र।
व्याख्या – हमारा राष्ट्र भारतवर्ष चिरकाल तक स्वाधीन होकर अमर रहे। यह अच्छे मित्रोंवाला और वैभवपूर्ण हो, यह शत्रुरहित होकर विजयी रहे। (सूर्य की) लाल किरणों की मणियों की मालावाला हिमालय इसका भारत्तवर्ष का मुकुट है। समुद्र अपनी विशाल लहरों रूपी हाथों से इसके पैरों के अग्रभाग को धोनेवाला सुशोभित होता है। इसके वक्षः स्थल पर नदियाँ हार के समान हैं। विन्ध्य पर्वत इसकी करधनी के समान शोभित होता है। कोमल पत्तों से शोभित घनी वन-पंक्ति इसका सुन्दर नया वस्त्र है। कवियों का समूह इसके सौन्दर्य के वर्णन में लीन हो रहा है।
सर्वे ज्ञान-धना बुध-वर्या मान-धना रण-धीराः।
स्वर्ण-धना व्यवसायि-धुरीणास्तथा श्रम-धना वीराः ।।
कुर्वन्त्वेकी भूय समेता नव-समाज-निर्माणम्।
मान्यो मानव-धर्मः प्रसरतु सम्परिशोध्य पुराणम्।।
आत्मशक्ति-संवलित-मानवः पाठं पठेन्नवीनम्।।2।।
अन्वय – सर्वे ज्ञानधनाः, बुध-वर्याः, मानधनाः रणधीराः स्वर्णधनाः व्यवसायिधुरीणाः तथा श्रमधनाः वीराः समेताः एकीभूय। नवसमाज निर्माणं कुर्वन्तु। पुराणं सम्परिशोध्य मान्यः मानव धर्मः प्रसरतु। आत्मशक्ति- संवलित मानवः नवीनं पाठं पठेत् ।
शब्दार्थ – बुध-वर्या = श्रेष्ठ विद्वान्। व्यवसायि-धुरीणाः व्यापारियों में अग्रणी। एकीभूय = एक होकर। सम्परिशोध्य = शुद्ध करके। संवलित = युक्त। समेताः एक साथ मिलकर । पुराणम् = पुराना ।
व्याख्या – सभी ज्ञान को धन समझने वाले (बौद्धिक वर्ग), श्रेष्ठ विद्वान्, प्रतिष्ठा को धन समझने वाले, युद्ध में विचलित न होनेवाले, व्यापारियों में श्रेष्ठ तथा श्रम को धन समझने वाले (श्रमिक वर्ग), वीर लोग एक साथ मिलकर एकजुट होकर नये समाज का निर्माण करें। (धर्म के) पुराने रूप का परिष्कार करके मानवता के – मूल्यों को सुरक्षित रखनेंवाला धर्म (सर्वत्र) फैले। आत्मशक्ति से युक्त मानव नया पाठ पढ़े।
प्रवहतु गङ्गा पूततरङ्गा प्रथयन्ती महिमानम्।
गायतु गीता कर्ममहत्त्वं योग-क्षेम-विधानम्।।
भवेदहिंसा करुणासिक्ता तथा सूनृता वाणी।
प्रसरेद् भारत-सद्वीराणां गाथा भुवि कल्याणी।।
देशे स्वस्थः सुखितो लोको भावं भजेन्न दीनम्।
भारतवर्ष राष्ट्रं जीव्याच्चिरकालं स्वाधीनम्।।3।।
संस्कृत अर्थ – अस्मिन् श्लोके कवि कथयति यत् पूततरंङ्गा गङ्गा महिमानं प्रथयन्ती प्रवहतु। गीता योगक्षेम-विधानं कर्म महत्त्वं गायतु अहिंसा करुणासिक्ता भवेत्। वाणी सूनृता भवेत्। भारत सद्वीराणां कल्याणी गाथा भुवि प्रसरेत् । देशे लोकः स्वस्थः सुखितः (भूयात्) (कोऽपि) दीनं भावम् भजेत्। भारतवर्षं राष्ट्र चिरकालं स्वाधीनं जीव्यात् ।
शब्दार्थ – प्रवहतु-बहे। पूततरङ्गा – पवित्र लहरोंवाली। योगक्षेम विधानम् – जिसमें योग और क्षेम का विधान है। करुणासिक्ता-करुणा से युक्त। सूनृता – सत्य ।
व्याख्या – पवित्र लहरोंवाली गङ्गा भारत की महिमा को फैलाती हुई प्रवाहित हो। गीता योग और क्षेम की व्यवस्था करनेवाले कर्म महत्त्व का गान करे। अहिंसा करुणा से युक्त हो। वाणी सत्यता से युक्त हो। भारत के सुन्दर वीरों की पवित्र गाथा पृथ्वी पर फैले। देश के लोग स्वस्थ और सुखी हों और दीनता के भाव को प्राप्त न करें।
जीव्याद् भारतवर्षम् पाठ कीई सूक्तियों की सन्दर्भ सहित व्याख्या
[1] भारतवर्ष राष्ट्रं जीव्याच्चिर-कालं स्वाधीनम् ।
सन्दर्भ – प्रस्तुत सूक्ति डॉ० चन्द्रभानु त्रिपाठी द्वारा रचित ‘गीताली’ से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत पद्य पीयूषम्’ में संकलित ‘जीव्याद् भारतवर्षम्’ पाठ से अवतरित है।
अर्थ – भारत राष्ट्र सदा स्वतन्त्र और अमर रहे।
व्याख्या- कवि का कहना है कि हमारा राष्ट्र हमेशा स्वतन्त्र रहे और इसकी ख्याति अन्य राष्ट्रों में हो। हमारा भारतवर्ष पराधीनता की जंजीरों से हमेशा मुक्त रहकर एक शत्रुविहीन राष्ट्र बने। इस राष्ट्र की शोभा समुद्र अपनी ऊँची-ऊँची लहरों से उठकर करता हुआ प्रतीत होता है। सघन वन नवीन पल्लवों से सुशोभित करती हैं। राष्ट्र के गले में नदियाँ हार के समान सुशोभित हैं। इसमें कवि राष्ट्र के रूप का वर्णन करने में व्यस्त है।
[2] सूनृता वाणी।
अर्थ – (भारतवासियों की) वाणी प्रिय और मधुर हो।
व्याख्या – वाणी का महत्त्व सर्वोपरि है। जिस व्यक्ति की वाणी प्रिय और मधुर होती है, वह व्यक्ति सात्त्विक गुणों को धारण करनेवाला होता है। ऐसे व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रभावशाली और आकर्षक होता है तथा समाज में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। इसके विपरीत जिसकी वाणी कठोर और अप्रिय होती है, उसका ‘कोई मित्र नहीं होता क्योंकि ऐसा व्यक्ति तामसिक गुणों से युक्त होता है। इसीलिए कवि कामना करता है कि भारत के लोगों की वाणी प्रिय और मधुर हो, जिससे भारत विश्व में सर्वोपरि बन जाय।
[3] आत्मशक्ति-संवलित-मानवः पाठं पठेन्नवीनम् ।
अर्थ – आत्मशक्ति बन मनुष्य नये-नये पाठ पढ़ते रहे हैं।
व्याख्या – मान्य (भारतीय) मानव धर्म पुरातन काल से परिवर्तित होकर प्रसरित होते रहे। आत्म शक्तिमान् (भारतीय) मनुष्य (प्रगति और समृद्धि के) नये-पये पाठ पढ़ते रहें।
[4] गायतु गीता कर्ममहत्त्वं योग क्षेम विधानम् ।
व्याख्या – पवित्र लहरों वाली गंगा भारत की महिमा को फैलाती हुई बहे। श्रीमद्भगवद्गीता कर्म के महत्त्व, योगक्षेम का विधान करती है। अहिंसा करुणासिक्त रहे, वाणी सत्य, मनोरम एवं मधुर हो। भारतीय वीरों की मंगलगाथा पृथ्वी पर फैलती रहे। भारतीय जन सुखी रहें, दीन-हीन भावना से रहित हों, ईश्वर की कृपा से स्वतन्त्रता अमर रहे।
जीव्याद् भारतवर्षम् पाठ के बहुविकल्पीय प्रश्न
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