UP Board Class 10 sanskrit Katha Natak Kaumudi- Chapter -6 षष्ठ: पाठ:  ज्ञानं पूततरं सदा –Gyan puttaram sada

UP Board Class 10 sanskrit Katha Natak Kaumudi- Chapter -6 षष्ठ: पाठ:  ज्ञानं पूततरं सदाGyan puttaram sada  चरित्र चित्रण एवं प्रश्नोत्तर (बहुविकल्पीय प्रश्न- MCQs)

प्रिय विद्यार्थियों! यहाँ पर हम आपको कक्षा 10 यूपी बोर्ड संस्कृत कथा नाटक कौमुदी के chapter 6 षष्ठ: पाठ:  ज्ञानं पूततरं सदा Gyan puttaram sada  के सभी पत्रों के चरित्र चित्रण, लघु उत्तरीय संस्कृत में प्रश्न उत्तर तथा  बहुविकल्पीय प्रश्न उत्तर – MCQs  प्रदान कर रहे हैं। आशा है आपको अच्छा ज्ञान प्राप्त होगा और आप दूसरों को भी शेयर करेंगे।

ज्ञानं पूततरं सदा

Subject / विषय संस्कृत (Sanskrit) कथा नाटक कौमुदी
Class / कक्षा 10th
Chapter( Lesson) / पाठ Chpter -6
Topic / टॉपिक ज्ञानं पूततरं सदा
Chapter Name Gyan puttaram sada
All Chapters/ सम्पूर्ण पाठ्यक्रम कम्पलीट संस्कृत बुक सलूशन

ज्ञानं पूततरं सदा- बहुविकल्पीय प्रश्न उत्तर – MCQs

निम्न चार विकल्पों में से सही विकल्प का चयन कीजिए-

1. सातवाहन कः आसीत्-

(क) नृपः

(ख) सेनापतिः

(ग) मन्त्रिः

(घ) राजनीतिज्ञ:

2. शर्ववर्मा सातवाहनस्य आसीत्-

(क) भृत्यः

(ख) सेनापतिः

(ग) मन्त्रिः

(घ) मित्रः

3. सातवाहनस्य प्रमुख विशेषता –

(क) विद्वत्ता

(ख) निष्ठुरता

(ग) शौर्य

(घ) उदारता

4. सरस्वती विराजते-

(क) मूषके

(ख) कमले

(ग) सिंहे

(घ) हंसे

5. कथासरित्सागरस्य रचयिता अस्ति ।

(क) सोमदेवः

(ख) बल्लालसेन:

(ग) विष्णुशर्माः

(घ) विशाखदत्तः

6. ‘ज्ञानं पूततरं सदा’ उद्धृतः अस्ति ।

(क) हितोपदेशात्

(ख) कथासरित्सागरात्

(घ) महाभारतात्

(ग) पंचतन्त्रात्

7. सोमदेवः आश्रितकविः आसीत्।

(क) अकबरस्य

(ख) जयसिंहस्य

(ग) अनन्तस्य

(घ) पृथ्वीराजस्य

उत्तर- 1. (क), 2. (ख), 3. (घ), 4. (ख), 5. (क), 6. (ख), 7. (ग)

ज्ञानं पूततरं सदा – अति लघु उत्तरीय संस्कृत प्रश्न 

प्रश्न 1. : स्वप्ने भगवानिन्दुशेखरः राजानं किमादिदेश?

उत्तर : स्वप्ने भगवानिन्दु शेखरः राजानं आदिदेश -” अटव्यां भ्राम्यन् सिंहारूढं कुमारकं द्रक्ष्यसि तं गृहीत्वा गृहं गच्छे: स ते पुत्रो भविष्यति ।”

प्रश्न 2. : सिंहः राजानम् किमवदत्?

उत्तर : कष्टं किमेतद् ब्रूहीति राज्ञा पृष्ट : जगांद् भूपते । अहं धनदस्य सखा सातीनामा यक्षोऽस्मि ।

प्रश्न 3. : सिंहारूढं बालकम् दृष्ट्वा राजा किम् अकरोत्?

उत्तर : सिंहारूढं बालकम् दृष्ट्वा राजा सिंहमेकेन शरेण जघान ।

प्रश्न 4. : ‘मोदकैर्देव’ इत्यस्य कः अभिप्रायः?

उत्तर : ‘मोदकैर्देव’ इत्यस्य अभिप्रायः अस्ति-हे देव ! ‘उदकैः मां मा सिञ्च, न च मोदकैः’।

प्रश्न 5. : शर्ववर्मणः भार्या स्वपतये किं न्यवेदयत्?

उत्तर : हे प्रभो ! सङ्कटेऽस्मिन् स्वामिकुमारेण विना तवगतिः अन्या न दृश्यते इति स्वपतये न्यवेदयत् ।

प्रश्न 6. : राजा सातवाहनः कथं सर्वाः विद्याः प्राप्तवान्।

उत्तर : कुमारवरसिद्धिमान् शर्ववर्मा आगत्य चिन्तितोपस्थिता सर्वा विद्याः राज्ञे प्रदत्तवान् ।

प्रश्न 7. : दीपकर्णे: भार्यायाः किं नाम आसीत्?

उत्तर : दीपकर्णे: भर्यायाः नाम शक्तिमती आसीत्।

प्रश्न-शर्ववर्मा का चरित्र-चित्रण कीजिए।

शर्ववर्मा का चरित्र-चित्रण

शर्ववर्मा  चरित्र की निम्न विशेषताएँ हैं-

राजा का शुभचिन्तक – शर्ववर्मा राजा सातवाहन का कल्याण चाहनेवाला सच्चा शुभचिन्तक है। यहीं कारण है कि राजा की अस्वस्थता का समाचार सुनते ही प्रधानामात्य गुणाढ्य के साथ राजा के पास पहुँच जाता है। राजा की आन्तरिक पीड़ा को समझकर कमल में से सरस्वती निकलकर राजा के मुख में प्रवेश करने का स्वप्न सुनाकर राजा को विद्वान् होने के लिए पूर्ण आश्वस्त कर देता है। इससे राजा की चिन्ता दूर हो जाती है।

साहसी – शर्ववर्मा राजा को छह मास में समस्त विद्याएँ प्राप्त करा देने की बात कहकर अपने साहस को प्रदर्शित करता है। वह बड़ी नम्रतापूर्वक इस बात को अपनी पत्नी से बताता है। उसकी बात सुनकर पत्नी ने उसे कार्तिकेय के मन्दिर में तपस्या करने का परामर्श दिया। वह निराहार रहकर कार्तिकेय के मन्दिर में तपस्यारत रहा और वहाँ से पूर्ण आश्वस्त होने पर उसने राजा को शिक्षा देना प्रारम्भ किया।

दृढ़प्रतिज्ञ – शर्ववर्मा एक दृढ़प्रतिज्ञ व्यक्ति है। वह अपने राजा सातवाहन को केवल छह मास में पूर्ण विद्वान् बनाने की कठोर प्रतिज्ञा करता है। अपनी प्रतिज्ञा के पालन के लिए उसने कार्तिकेय के मन्दिर में तपस्या की। फलस्वरूप उसने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार छह मास के भीतर राजा को समस्त विद्याएँ सिखा दीं और इस प्रकार उसने अपनी दृढ़ प्रतिज्ञा की पूर्ति की।

बुद्धिमान् – शर्ववर्मा बहुत ही बुद्धिमान व्यक्ति है। साथ ही वह सहज ज्ञानी भी है। इसीलिए तो वह राजा की मनोव्यथा का कारण तत्काल जान लेता है और राजा की इस बुद्धिक्षमता को भी पहचान लेता है कि राजा छह मास में समस्त विद्याएँ पढ़ने में सक्षम हो जायगा।

तपस्वी तथा कर्मनिष्ठ – शर्ववर्मा अत्यन्त बुद्धिमान् है। वह राजा की चिन्ता का कारण उसका अविद्वान् होना जान लेता है। वह बुद्धि के बल पर राजा को छह मास में शिक्षित कर देता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि शर्ववर्मा अपने स्वामी का शुभचिन्तक, दृढ़प्रतिज्ञ, साहसी और बुद्धिमान् मन्त्री है।

राजा सातवाहन का चरित्र-चित्रण 

राजा सातवाहन साती नाम के यक्ष एवं ऋषि कन्या का पुत्र था, जिसे राजा दीपकर्णि ने वन में पाया था। वह योग्य शासक था, व्यवहारकुशल व रसिक था, स्वाभिमानी व जिज्ञासु प्रवृत्ति का व्यक्ति था और अपमान से खिन्न रहनेवाला था। दीपकर्णि के वन चले जाने पर वह सम्राट् बना।

अपनी विदुषी रानी के ‘मोदकैर्देव मां मा परिताडय’ के अर्थ को न समझकर अपने को लज्जित अनुभव करता हुआ वह गुणाढ्य व शर्ववर्मा से संस्कृत व्याकरण का ज्ञान प्राप्त करना चाहता है। अन्त में वह शर्ववर्मा के द्वारा पण्डित बना दिया जाता है।

सातवाहन साती नामक यक्ष और प्राग्गङ्ग नामक ऋषि-कन्या से उत्पन्न राजा दीपकर्णि का पालित पुत्र था। साती नामक यक्ष आरूढ़ रहने के कारण उसका नाम सातवाहन पड़ा। वही पुत्र सातवाहन नाम का राजा बना। सातवाहन व्यवहारकुशल, रसिक प्रवृत्ति का स्वामी था।

एक बार वह अपने उद्यान की वापी में जलक्रीड़ा करता हुआ अपनी कोमलांगी रानी के द्वारा अपमानित होने के कारण जलक्रीड़ा त्यागकर राजमहल में विचार कर रहा था। उसके दरबार में शर्ववर्मा नाम का मन्त्री था। उसने राजा की समस्त बात समझकर उन्हें छह माह में विद्वान् बना दिया।

राजा ने शर्ववर्मा का यथोचित सम्मान करके उसे भरुकच्छ का राजा बना दिया।

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